आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा शरदपूर्णिमा कहलाती है। इस पूर्णिमा पर महालक्ष्मी की आराधना कर व्रत भी किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य शरद पूर्णिमा का व्रत विधि-विधान तथा पूर्ण श्रद्धा से करता है उस पर माता लक्ष्मी की कृपा होती है तथा वह दीर्घायु होता है।
व्रत विधान
शरद पूर्णिमा के दिन प्रात:काल अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करके अनका यथाविधि षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। अर्द्धरात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर का भोग भगवान को लगाएं। खीर से भरे पात्र को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चंद्रकिरणों के द्वारा अमृत गिरता है। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। इस दिन कांस्यपात्र में घी भरकर सुवर्णसहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है। ऐसा धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है।
व्रत विधान
शरद पूर्णिमा के दिन प्रात:काल अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करके अनका यथाविधि षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। अर्द्धरात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर का भोग भगवान को लगाएं। खीर से भरे पात्र को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चंद्रकिरणों के द्वारा अमृत गिरता है। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान करना चाहिए। इस दिन कांस्यपात्र में घी भरकर सुवर्णसहित ब्राह्मण को दान देने से मनुष्य ओजस्वी होता है। ऐसा धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है।
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