मंगलवार, 9 नवंबर 2010

तब व्यक्ति बनता है योगी

कोई कब योगी बनता है इस द्वन्द में लम्बे समय से दुनिया उलझी है। ऊपर से देखने में भक्त और योगी अलग-अलग नजर आ सकते हैं। जो भक्ति करने में लगे हैं उन्हें योग शुद्ध कर्मकाण्ड लगता है। वे योगियों को अलग श्रेणी में मानते हैं। परन्तु भक्ति-योग एक ही है। इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं हनुमानजी। योग के आठों अंग हनुमानजी महाराज की हर क्रिया, आचरण, व्यवहार, स्वभाव में दिखते हैं।

योगी के भीतर भक्त कैसे बसे आइए इनसे सीखें।सीताजी की खोज में वानर निकल चुके थे। हनुमानजी को चुप बैठा देख जाम्बवन्त ने पूछा था
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साध रहा बलवाना
रीछपति जाम्बवन्त ने कहा हे बलवान हनुमान यह क्या चुप्पी साध रखी है। उस समय हनुमान योग की गहरी मुद्रा में थे। जब वे बोले तो उन्होंने समुद्र को लांघने पर टिप्पणी की।
सिंहनाद करि बारहि बारा, लीलहिं नाघउं जलनिधि खारा
उन्होंने सिंहनाद करके कहा इस खारे समुद्र को मैं खेल-खेल में लांघ सकता हूं। ऐसा उन्होंने कर भी दिया था।यह समुद्र ही मन है। मन के सागर को लांघना ही योग है, ध्यान है। सामान्यत: ऐसा माना जाता है योग अभ्यास का विषय है इसीलिए इसे योगाभ्यास कहा गया है। लेकिन कुछ सन्तों का मत है कि बहुत गहराई में जाएं तो योग अभ्यास का नहीं समर्पण का मार्ग है। कई साधनों में से अभ्यास एक साधन हो सकता है लेकिन समर्पण की स्थिति आने पर योग सहज हो जाएगा। इसीलिए योग के आठ अंग में से दूसरे अंग नियम के पांचवे भाग को ईश्वर प्रणिधान कहा गया है।
इसका अर्थ है ईश्वर के प्रति समर्पण। यह महत्वपूर्ण साधन है। हनुमानजी भक्ति में समर्पण का प्रतीक हैं। इसलिए भक्ति के योग को हनुमानजी के माध्यम से समझा जाए और अभ्यास तथा समर्पण के साथ योग किया जाए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें