मंगलवार, 2 नवंबर 2010

ऐसे होंगी लक्ष्मी प्रसन्न

भारतीय संस्कृति और धर्म में शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख को भी एक स्थान मिला है। मन्दिरों में आरती के समय शंखध्वनि का विधान है। हर पुजा में शंख का महत्व है। यूं तो शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा की जा सकती है, लेकिन यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें

ऊं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:
उपरोक्त मंत्र का पाठ कर लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-

मंत्र - ऊं श्रीं

अ- 10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी प्राप्ति।
ब- 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति प्राप्ति, वृद्धि।
स- 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान प्राप्ति
इसके अन्य प्रयोग निम्न है
क. सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है।
ख. पूजा के पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली आती है।
ग. शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।

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