सोमवार, 6 जून 2011

5 बातें तय करेंगी, आपकी सफलता

जिंदगी में किसी को आशा से भी अधिक सफलता मिलती है जबकि कई ऐसे बदनसीब भी हैं जो छोटी सी कामयाबी के लिये ताउम्र तरसते रह जाते हैं। विद्वानों से पूछने जाओ तो कई तरह जवाब मिल सकते हैं। किसी की नजर में सफलता का कारण कुछ खास बातें होती हैं, जबकि दूसरे कुछ और बताएंगे। लेकिन यहां हम हर सफलता के उन मूल कारणों को बता रहे हैं, जिन पर दुनिया सारे अनुभवी एकमत हो सकते हैं। सफलता के लिये जिम्मेदार मूल कारणों को हम खोज कर लाएं हैं दुनिया की प्राचीनतम विद्या योग विज्ञान में से। तो आइये जानते हैं वे मूल कारण कौन से हैं.....
अष्टांग योग की आठ अवस्थाएं हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ईश्वर को पाने का एक रास्ता योग है हम योग की आठ अवस्थाओं से गुजर कर ईश्वर तक पहुंच सकते हैं। ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य हो या कोई बड़ी से बड़ी सांसारिक सफलता पाना हो योग विज्ञान के जरिये दोनों ही इच्छाओं की पूर्ति यकीनन की जा सकती है। पंतजलि ने कहा है- अहिंसासत्यास्तेय ब्रह्मïचर्यापरिग्रहा यमा: अर्थात-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मïचर्य, अपरिग्रह इन पांच बातों को जीवन में उतार कर ही हम योग की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं। अहिंसा- जो व्यक्ति अहिंसा का इस तरह पालन करता है, उसके विरोधी लोग भी विरोध नहीं कर पाते।
अहिंसा- अहिंसा का व्रत हमारे जीवन में बदलाव लाता है। समाज में हमें विशेष सम्मान दिलाता है।
सत्य- इसका अर्थ है हम कपट से और धोखा देने की नीयत से कोई बात न कहें। जो बात जैसी है उसे उसी तरह कहना सत्य है।
अस्तेय- अर्थात चोरी नहीं करना चोरी, ठगी, धोखाधड़ी और अन्य किसी गलत तरीके से दूसरे के धन, वस्तु या अन्य किसी चीज को हथियाना अपराध है।
ब्रह्मïचर्य- इसका मतलब है इंद्रियों का संयम। हमारा भोजन, विचार, व्यवहार सभी कुछ युक्तियुक्त होना चाहिए। जो संयम से नहीं रहता वह बलहीन हो जाता है, उसमें आत्मविश्वास नहीं रहता।
अपरिग्रह- इसका अर्थ है हम बिना जरूरत के चीजों का संग्रह न करें। मन यदि बाहरी दिखावे से हट जाए तो फिर हम मनुष्य जन्म की सफलता के बारे में कह सकते हैं। शांति का मतलब खामोशी नहीं है। शांति का मतलब है सुख-संतुष्टि, मन में किसी प्रकार का कोई दु:ख, क्षोभ या तनाव नहीं रहना। जब मन में और आस-पास के वातावरण में शांति हो तभी हम योग की साधना की पहली मंजिल यम पर पहुंचते हैं।

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