रविवार, 5 जून 2011

...तो जीवन और ज्यादा सुंदर बन जाता है

पं. विजयशंकर मेहता
कुछ संयोग जीवन को और भी सुंदर बना देते हैं। जैसे धैर्य के साथ आशा को बनाए रखना। देखा गया है कि कुछ लोग मजबूरी को ही धैर्य समझ लेते हैं। अधिकांश ने तो अपने आलस्य को ही धैर्य की घोषणा बना दी। अधीर लोग जल्दी पागल हो जाते हैं, उदास हो जाते हैं।
ध्यान रखिएगा उदासी भी पागलपन के शुरूआत की हल्की सी थाप है, पहली कड़ी है। पूरे पागलपन का तो फिर भी इलाज संभव है, पर आधे पागलपन का क्या करेंगे? इस अर्ध स्थिति का इलाज दुनियाभर के मनोचिकित्सक भी नहीं कर सकते हों, वे आपको चाले लगा देंगे।
हां, इसका इलाज एक मात्र अध्यात्म के पास है। मन के पार होने की कला सीख जाइए और यह भी धैर्य से आएगी। इसके लिए ध्यान की क्रिया काम आएगी। ध्यान लगा या नहीं इस पर ज्यादा जोर न दें। इसमें परिणाम से अधिक क्रिया महत्वपूर्ण है। बस इतना काफी है कि आप ध्यान की क्रिया भर करें।
धैर्य से ध्यान करें, फिर ध्यान से धैर्य उपजेगा, यह एक कड़ी की तरह है। इससे, वह और उससे, यह पा जाना ही ध्यान तथा धैर्य होगा। अपने धैर्य को फिर आशा से जोड़ दें। आशा बनाए रखें कि जीवन में जो भी महान है वह मिलकर रहेगा। एक बात तय कर लें जो छलांग विकास और प्रगति की आपको लगाना है उसका आधार ध्यान यानी मेडिटेशन रहे। धैर्य और आशा की मजबूत जमीन से उछला हुआ मनुष्य हर उस आसमान को मु_ी में भर सकेगा, जिसे संसार ने सफलता का नाम दिया है।
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