मंगलवार, 14 जून 2011

श्रीकृष्ण ने क्यों काटा शिशुपाल का सिर?

जैसे ही सहदेव ने श्रीकृष्ण का नाम लिया लोग हर्षित हो उठे। यह कलकलंक ग्वाला भला अग्रपूजा का अधिकारी कैस हो सकता है? क्या कौआ कभी यज्ञ के पुरोडाश का अधिकारी हो सकता है?
अर्जुन, भीम, भीश्म जैसे वीरों से शिशुपाल की यह बातें सही नहीं गईं। वे शिशुपाल को मारने के लिए उत्तेजित हो उठे लेकिन श्रीकृष्ण मौन होकर सुन रहे थे। उन्होंने सबको शांत किया। शिशुपाल श्रीकृष्ण की बुआ का लड़का ही था लेकिन जरासंध के प्रभाव के कारण वह श्रीकृष्ण से बैर रखता था।
शिशुपाल का सारा शुभ नष्ट हो चुका था। इसी से उसने और भी बहुत सी कड़वी बातें भगवान् को सुनाईं। भगवान् श्रीकृष्ण चुप रहे, उन्होंने उसकी बातों का कुछ भी उत्तर नहीं दिया।
अब शिशुपाल को मार डालने के लिए पाण्डव, मत्स्य, केकय और सृचयवर्षा नरपति क्रोधित होकर हाथों में हथियार ले उठ खड़े हुए। परन्तु शिशुपाल को इससे कोई घबराहट न हुई। उसने बिना किसी प्रकार का आगा-पीछा सोचे अपनी ढाल-तलवार उठा ली और वह भरी सभा में श्रीकृष्ण के पक्षपाती राजाओं को ललकारने लगा। उन लोगों को लड़ते-झगड़ते देख श्रीकृष्ण खड़े हुए। उन्होंने अपने पक्षपाती राजाओं को शांत किया और स्वयं क्रोध करके अपने ऊपर झपटते हुए शिशुपाल का सिर तीखी धार वाले चक्र से काट लिया। शिशुपाल के शरीर से एक ज्योति निकलकर भगवान् श्रीकृष्ण में समा गई।
यह दृश्य देखकर शिशुपाल के अन्य मित्र राजा और श्रीकृष्ण से बैर रखने वाले डरकर शान्त बैठे रहे।
शिशुपाल को चार जन्मों के बाद अब मुक्ति मिली। शिशुपाल और जरासंध पहले जन्म में जय-विजय नाम के द्वारपाल थे जो विष्णुधाम के पहरेदार थे। सनकादिक ऋशियों के श्राप से उन्हें राक्षस कुल में जन्म मिला। पहले हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु फिर रावण-कुंभकर्ण और फिर जरासंध-शिशुपाल। अब माहौल शांत हुआ। श्रीकृष्ण की फिर जय-जयकार हुई। उनकी अग्रपूजा करके युधिष्ठिर ने यज्ञ शुरू किया।

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