मंगलवार, 14 जून 2011

भागवत २७९

उसे ही थोड़े में सुख का अनुभव होता है जो...
पं.विजयशंकर मेहता
ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में स्थित रहकर अपनी माया से सबको ऐसे घुमा रहा है, जैसे यंत्र संचालित किया जाता है।गृहस्थ जीवन वस्तुत: मायिक यंत्र मय जीवन है, जिसमें सामान्यत: सुबह होती है, शाम होती है और 'जिन्दगी यूं ही तमाम होती है।
इस चक्र के निर्वाह में मन, बुद्धि का योग स्थापित करने से यंत्र की गति या तो थम जाती है और गुर अनुग्रह हो जाने पर यंत्र सीधे घूमता हुआ पार लगा देता है। बुद्धि द्वारा वह मान लेता है कि यह विशेष जीवन ईश्वर और ईश्वरी कार्य के लिए हैं।वानप्रस्थ में मन, बुद्धि, त्यागमय तपस्वी जीवन, संयम से वैराग्य दृढ़ होगा। त्याग अपने आप होने लगे, ममता मोह अतीत की बात हो जाए तो माना जाए कि मन, बुद्धि सन्यस्थ स्थिति में पहुंच गए हैं।
क्षमा, धैर्य, अहिंसा, सत्य, सरलता, ज्ञान, त्याग आदि सात्विक वर्ताव सहज हो जाए तो काम बन गया समझा जाए कि प्रभु प्राप्ति समीप आ रही है। प्राप्त होना तो उस प्रभु पर निर्भर करता है कि कितनी कृपा करता है और साधक भक्त किस प्रकार कितनी ग्रहण करता है, प्रभु तो अनन्त और असीम कृपा की सदैव वर्षा करते रहते हैं।
हर स्थिति में स्थिर बुद्धि को बनाए रखकर उसका सद्उपयोग करते जाना ही मनुष्य/साधक का धर्म है। जिसकी बुद्धि अच्छी नहीं होती है उसे लाख उपाय करने पर भी उसे ज्ञान नहीं होता। जो ज्ञानी होता है वह अल्प प्रयास से सुख का अनुभव करता है। कर्म-शुभ करने से जीवन पथ बिना क्लेश के पार हो जाता है। कहां जाना है, क्यों जाना है, स्पश्ट हुए बिना जहां अल्प पथ थका देने वाला होता है, तो अनन्त पथ की बात ही क्या?
बुद्धिमान् पथिक रथ का सहारा लेना है, नाव का सहारा लेता है, यान का सहारा लेता है। ये सहारे महापुरुष, गुरु और अन्तर्भगवान् हैं। साधनों की ममता भी छोडऩा होती है।
उसी समय वह दुर्घटना हुई। दुर्योधन कुण्ड समझकर गिर गया। द्रौपदी हंस दी तो दुर्योधन ने कहा-मैं इसका प्रतिकार करूंगा, इसका प्रतिषोध करूंगा। अब भगवान् इनको स्थापित करके पुन: द्वारिका लौट आए। चलिए हम भी द्वारिका चलते हैं। पाण्डवों को स्थापित कर दिया और हमें इस पूरी कथा से एक संकेत दिया।
वह सबसे बड़ा संकेत यह दिया है हमको कि मेरे भरोसे रहोगे तो कभी भी दुखी नहीं रहोगे, असफल नहीं रहोगे। पाण्डवों की सफलता की यात्रा आरम्भ हो रही है। आप कुछ गड़बड़ कर दो तो बात अलग है वरना भगवान तो आपको दुनिया का राजा और इन्द्रप्रस्थ का राजा बनाकर चले गए।

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