गुरुवार, 14 जुलाई 2011

सावन की आमद और बूंदो की बतिया

सावन की आमद ऐसी है जैसे मन के तपते सेहरा को किसी ने भीगी बयार नज़र की हो। कड़ी धूप पर बूंदों ने पर्दा गिरा दिया हो। तपिश भरे माथे पर गीली हथेली रख दी हो।
एक भीगी-सी दस्तक है यह सावन की मन पर।
कितनी लुभावनी है इस शब्द की ध्वनि। सावन कहने भर से लगता है जैसे मौसम ने शहनाई बजाई हो। शहनाई की ही तरह यह भी मंगल की घोषणा है।
हम भारतीय बारिश को रास्तों पर नहीं, आसमानों में देखते हैं। बारीक बूंदों के हवा में लहराते रेले को धुआं-धुआं होती फिज़ां के नाम से पुकारते हैं।
जब बादल केवल छेड़ने के मन से बरस रहे हों, तो उसे हल्की फुहार कहते हैं। मेघों की गर्जन को खुशहाली का शंखनाद और झड़ी को मौसम की ज़ुबान कहते हैं।
बारिश से सारी भावनाएं भी जुड़ जाती हैं। मन उमड़ता-घुमड़ता है। आंखें बरसती हैं, मन खिल उठता है। मोर की तरह नाचता है। भीगता है।
सबकुछ भुला देता है यह मौसम। किसका सिरा कहां जुड़ता है, याद ही नहीं रहता। पत्तों से फिसलती बूंदें आसमान की नहीं, पेड़ की सम्पदा बन जाती हैं। छतों से झरते झरने पर घरों के हक जम जाते हैं। गली से निकली छोटी-छोटी नदियों पर कागज़ की किश्तियों की मिल्कियत हो जाती है।
आंगन पर बिटिया का अधिकार एक बार फिर साबित हो जाता है।
बड़ी ताकत होती है बारिश की हर बूंद में। बीज को जिला देती है, अंकुर से धरती की गोद भर देती है।
ताप से चटकी धरा लहलहा उठती है। हरियाली के पांवों में थिरकन जड़ देती है। बूदों के हाथों मंजीरे थमा देती है। एक मधुर संगत-सी जमी रहती है प्रकृति के संगीत की। दिन काली घटाएं ओढ़कर बैठ जाते हैं और रातें चमकती बूंदों से उजियारी हो जाती हैं।
बारिश की हर चीज़ खूबसूरत है। कमल के पत्तों पर ठुनकती बूंदनियों से लेकर घटाओं की रिमझिम तक। नदी पर बरसता पानी आसमानी दुआओं का नज़ारा पेश करता है। पहाड़ धुंधलके में छुप जाते हैं।
किसी रात को, जब बादल थोड़े सुस्ताने लगे हों, बरखा थमी हो, उस समय अचानक छत के किसी छोर से अपनी, अकेले की आवाज़ में बोलती किसी बूंद को सुना है आपने..?टिप्प!
सावन की रातें अक्सर ऐसी बूंदों से झनझनाती रहती हैं।
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