शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

वजीर की तलाश

एक बादशाह थे, जिनका साम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था। उन्हें नए वजीर की तलाश थी। अनेक व्यक्ति वजीर बनने को आतुर थे। एक पद व कई उम्मीदवारों को देखकर बादशाह हैरत में पड़ गए कि सही वजीर का चुनाव कैसे हो? इसके लिए उन्होंने सभी उम्मीदवारों की कठिन से कठिन परीक्षा ली। तीन लोग परीक्षाओं में एकदम खरे उतरे। अब उन तीनों में से किसी एक को चुनना था।
बादशाह ने सोचा कि उन तीनों को साम्राज्य के विभिन्न सूबों में ले जाया जाए और देखा जाए कि उनका प्रजा के प्रति क्या रवैया है। बादशाह ने गौर किया कि अली नामक उम्मीदवार बड़ी कुशलता से जनता का सामना कर रहा था और उनकी परेशानियों को सुनकर उसी समय समाधान करने का प्रयत्न भी कर रहा था। उसके काम करने के तरीके से बादशाह को बेहद प्रसन्नता हुई और उन्होंने उसे ही वजीर का पद देने का मन बना लिया।
प्रजा से मिलते हुए वे आगे बढ़े तो एक जगह उन्हें कुछ गरीब बच्चे खेलते हुए नजर आए। बादशाह को देखते ही बालक उन से लिपट गए। वे धूल-मिट्टी में सने हुए थे। उनमें से एक बच्चे को बादशाह ने गोद में उठा लिया। अली को उनसे घृणा सी हुई और वह दूर ही खड़ा रहा। बादशाह ने यह देखा तो उन्होंने अली से पूछ ही लिया कि तुम दूर-दूर क्यों खड़े हो? इस पर अली बोला, 'जहांपनाह, यहां खेल रहे सभी बच्चे गंदे हैं और इनके कपड़ों से बदबू भी आ रही है। जाने कैसे आप इसे गोद में उठाए हुए हैं।'
अली की बात सुनकर बादशाह दंग रह गए और उन्होंने तुरंत अपना फैसला सुनाते हुए कहा, 'तुम हमारे वजीर किसी भी सूरत में नहीं बन सकते। मैं चाहता हूं कि मेरा वजीर वो हो जिसके भीतर दूसरों के लिए हमदर्दी हो, सच्चा प्यार हो। जो लोगों का दिल जीत सके।' इसके बाद उन्होंने अन्य दो उम्मीदवारों में से एक को वजीर बना दिया।

उधार की आदत

एक गांव में गुरु अपने शिष्य के साथ स्कूल जा रहे थे। थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक वह रुक गए और पगडंडी का रास्ता छोड़ कर खेत के बीच से जाने लगे। उन्हें ऐसा करते देख शिष्य ने पूछा, 'क्या हुआ गुरु जी?' गुरु बोले, 'बेटा, सामने से जो आदमी आ रहा है, उसके कारण मुझे रास्ता बदलना पड़ा।' वह रास्ता बहुत लंबा और खराब था। किसी तरह गुरु और शिष्य काफी देर से स्कूल पहुंचे।
स्कूल पहुंचने पर शिष्य ने पूछा, 'गुरु जी, क्या आप उस आदमी से डरते हो, इसलिए रास्ता बदल दिया?' गुरु ने कहा, 'नहीं, मैंने डर कर रास्ता नहीं बदला। वह व्यक्ति तो बहुत नेक दिल का है। मगर उसमें एक कमी है। उसकी जितनी आमदनी है उससे ज्यादा उसका खर्च है। इसलिए वह परेशान रहता है और लोगों से झूठ बोल कर उधार लेता रहता है।
कई साल पहले उसने मुझसे भी यह कह कर कुछ रुपये उधार लिए थे कि दो दिनों में वापस कर दूंगा। मगर आज तक नहीं लौटाया और लौटा भी नहीं पाएगा। मगर जब कभी अचानक उससे सामना होता है तो आदतन वह झूठ बोलता है और कहता है, गुरु जी, बस दो दिन की और मोहलत दे दीजिए। आज भी वह मुझसे मिलता तो यही कहता। मैं उसकी और कुछ मदद तो नहीं कर सकता, लेकिन उसे झूठ बोलने से तो रोक ही सकता हूं। रास्ता बदलने से तकलीफ तो हुई मगर मेरे कारण उसे एक बार फिर झूठ तो नहीं बोलना पड़ा। हो सकता है धीरे-धीरे उसमें पूरी तरह सुधार हो जाए।'

भागवत-१७६: अजगर बने अघासुर का वध किया श्रीकृष्ण ने

भागवत में हम श्रीकृष्ण द्वारा वृंदावन मे की गई लीलाओं को पढ़ रहे हैं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ गायों को चराने वन में गए। उसी समय वहां अघासुर नाम का भयंकर दैत्य भी आ गया । वह पूतना और बकासुर का छोटा भाई तथा कंस का भेजा हुआ था।वह इतना भयंकर था कि देवता भी उससे भयभीत रहते थे और इस बात की बाट देखते थे कि किसी प्रकार से इसकी मृत्यु का अवसर आ जाए।

कृष्ण को मारने के लिए अघासुर ने अजगर का रूप धारण कर लिया और मार्ग में लेट गया। उसका वह अजगर शरीर एक योजन लम्बे बड़े पर्वत के समान विशाल एवं मोटा था।अघासुर का यह रूप देखकर बालकों ने समझा कि यह भी वृंदावन की कोई शोभा है। उसका मुंह किसी गुफा की तरह दिखता था। बाल-ग्वाल उसे समझ न सके और कौतुकवश उसे देखने लगे। देखते-देखते वे अजगर के मुंह में ही घुस गए। लेकिन श्रीकृष्ण अघासुर की माया को समझ गए।
अघासुर बछड़ों और ग्वालबालों के सहित भगवान श्रीकृष्ण को अपनी डाढ़ों से चबाकर चूर-चूर कर डालना चाहता था। परन्तु उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने शरीर को बड़ी फुर्ती से बढ़ा लिया कि अजगररुपी अघासुर का गला ही फट गया। आंखें उलट गईं। सांस रुककर सारे शरीर में भर गई और उसके प्राण निकल गए। इस प्रकार सारे बाल-ग्वाल और गौधन भी सकुशल ही अजगर के मुंह से बाहर निकल आए। कान्हा ने फिर सबको बचा लिया। सब मिलकर कान्हा की जय-जयकार करने लगे।

शुभ है शनि का रत्न पहनना?

शनि को न्याय का देव माना गया है। सभी राशि वालों पर शनि देव काशुभ और अशुभ प्रभाव रहता है। वैसे तो शनि के शुभ और अशुभ प्रभावों के लिए कई प्रयोग और उपाय किए जाते है लेकिन क्या आप जानते है कि शनि का रत्न (नीलम) पहनने से किस राशि वाले को क्या फल मिलेगा? अगर नही तो जानिए...
मेष- मेष राशि वालों के लिए शनि का रत्न लाभदायक हो सकता है। शनि की महादशा में रत्न पहनने से लाभ में वृद्धि होगी। नौकरी पेशा लोगों को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी।


वृष- इस राशि के लोग शनि रत्न नीलम के साथ हीरा भी पहने तो हर तरफ से सफलता आपके कदम चूमेगी। बिजनेस और नौकरी में आपको लाभ होगा।
मिथुन- नीलम रत्न शनि की दशा में पहनने से मिथुन राशि वालों के धन और भाग्य में वृद्धि होगी।
कर्क- कर्क राशि वालों को शनि का रत्न नही पहनना चाहिए इनके लिए शनि का रत्न अशुभ फल देने वाला रहेगा।
सिंह- इस राशि का स्वामी सूर्य शनि का शत्रु ग्रह है इसलिए सिंह राशि के जातक नीलम नही पहनें।
कन्या- नीलम रत्न कन्या राशि वालों के लिए स्वास्थ्य की हानी करने वाला रहेगा, पेट रोग होने की संभावना रहेगी।
तुला- तुला राशि वालों के लिए शनि राजयोग कारक है। नीलम रत्न पद, प्रतिष्ठा, स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा।
वृश्चिक- शनि का रत्न इस राशि वालों के धन में तो वृद्धि नही करेगा लेकिन भूमि, मकान, वाहन आदि में वृद्धि करेगा।
धनु- इस राशि के लोगों के लिए नीलम पहनना शुभ नही रहेगा। इससे शत्रु बढ़ेंगे।
मकर- इस राशि का स्वामी शनि है इसलिए मकर राशि वालों के लिए नीलम रत्न धारण करना अत्यंत शुभ होगा। इससे इनके स्वास्थ्य, धन, आयु, विद्या में वृद्धि होगी।
कुंभ- शनि की राशि होने के कारण इस राशि के लोगों के लिए नीलम बहुत फायदेमंद रहेगा। धन में वृद्धि करेगा। व्यय को कम करेगा।
मीन- मीन राशि के लोगो को नीलम रत्न नहीं धारण करना चाहिए। धन लाभ में कठिनाइयां उत्पन्न करेगा। इस राशि वालों को नीलम से स्वास्थ्य में हानि हो सकती है।

पस्त हौंसलों में जान फूंके ये मंत्र

धन, स्वास्थ्य, सुविधा, साधन होने के साथ ही कामयाबी या विपरीत हालात से बाहर आने के लिए एक ओर बात सबसे महत्वपूर्ण होती है। वह है - हौंसला, उत्साह या उमंग। किंतु उतार-चढ़ाव भी जीवन का हिस्सा है। इसलिए अचानक मिले दु:ख या जी-तोड़ मेहनत के बाद भी मिली नाकामयाबी इंसान के हौंसलों को कमजोर करती है। ऐसी हालात में हर कोई नई शुरुआत के लिए कुछ ऐसे उपाय की कामना करता है, जो फिर से नई ऊर्जा से भर दे।


शास्त्रों में ऐसी ही मुश्किल हालातों से निपटने के लिए देव उपासना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम में उत्साह, ऊर्जा और उमंग पाने और मुश्किलों से बाहर आने के लिए श्री हनुमान की भक्ति प्रभावी मानी जाती है। हनुमान की प्रसन्न्ता के लिए चालीसा, सुंदरकाण्ड, हनुमान स्त्रोत आदि का पाठ किया जाता है।
यहां श्री हनुमान स्मरण के ऐसे ही उपायों में छोटे, बोलने में सरल ग्यारह श्री हनुमान मंत्रों को बताया जा रहा है। जिनका शनिवार, मंगलवार या नियमित रूप से ध्यान धार्मिक दृष्टि से आपके कष्टों को दूर कर आपको निरोग और ऊर्जावान बनाए रखता है -
श्री हनुमान की गंध, फूल, सिंदूर, नारियल, गुड़-चने, धूप, दीप से पूजा कर इन मंत्रों का यथाशक्ति जप करें।
ॐ हनुमते नमः
ॐ वायु पुत्राय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ अजराय नमः
ॐ अमृत्यवे नमः
ॐ वीरवीराय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ निधिपतये नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ निरामयाय नमः
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

शहदचट्टा का नकली मौ

यों तो अरुप-रतन सरकार कलकत्ता की एक इंश्योरंस कंपनी में बाबू थे। फिर भी मन से वे बड़े भावुक थे। कचहरी में कभी-कभार फाइलें रोक कर चार-छः पंक्तियों की कविता भी लिख लेते थे। पुरी के समुद्र तट पर छुट्टी बिताने वे आए ही इसलिए थे कि कहीं काम के दबाव से उनकी भावुकता भोंथरी न हो जाए। उन्होंने सुन रखा था कि समुद्र के पानी में फॉस्फोरस होता है। उन्हें अंधेरे में समुद्र की लहरों को देखना पसंद था। उन्हें पक्षियों को गाते हुए सुनना पसंद था। छुट्टियों में प्रकृति की संगत में कुछ साहित्य रचना करने की उनकीमंशा थी।
आज तीसरे पहर अरुप बाबू समुद्र तट पर रेत में चहलकदमी करने आए थे। ठंडी हवा और रेत में पैरों का धँसना उन्हें भला लग रहा था। तभी एकदम पास से एक बच्चे की आवाज तैरती हुई उनके कानों में आई- 'मुन्ना का सपना' क्या आपने ही लिखा है? अरुप बाबू ने पलट कर देखा तो सात-आठ वर्ष का एक लड़का उत्सुकता से उनकी ओर देख रहा था। आप ही मौलिकजी है ना? लड़के के पीछे-पीछे चली आ रही महिला ने पूछा।
लड़के को शायद वे बेरुखी से मना कर देते लेकिन इस संपन्न सुंदर महिला को देखकर, जो निश्चित ही उसकी माँ थी, उन्होंने मिठास भरी नरमी से कहा कि उन्होंने कोई किताब नहीं लिखी। बच्चा तो चुप रहा, महिला हार मानने वाली नहीं थी। उसने कहा 'हम जानते हैं कि आपको प्रसिद्धि पसंद नहीं है। एक बार मेरे देवर ने बंगाली क्लब में आपको मुख्य अतिथि की तरह निमंत्रण दिया था परंतु आपनेलिखा था कि आपको यह सब पसंद नहीं है।' महिला बोलती ही जा रही थी।
अरुप बाबू समझ गए कि 'मुन्ना का सपना' के लेखक मौलिकजी चाहे जो रहे हों, ये दोनों माँ-बेटे उनके प्रशंसक हैं और अभी उन्हें ही लेखक मानकर दोनों प्रसन्ना हो रहे हैं। अरुप बाबू को लगा कि वे अगर डपट कर उन्हें सच बता दें तो भी उन दोनों को इस बात का विश्वास नहीं होगा। दूसरे डाँटना उनके स्वभाव में नहीं बैठता था। अरुप बाबू दिल से कोमल जो थे। बात टालने के लिए उन्होंने महिला से पूछा कि आपको यकीन है कि मैं ही वह लेखक हूँ?
महिला ने चहक कर कहा कि आज के अखबारों में ही तो समाचार छपा है। आपको बंगला भाषा में श्रेष्ठ बाल साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। साथ ही में तस्वीर भी छपी है। 'अब तो हर कोई आपके चेहरे से परिचित हो गया है। आप पुरी आ रहे हैं यह भी सबको पता है।'अरुप बाबू सोच में पड़ गए कि अब आगे बात किस तरह की जाए। परंतु अबउन्हें अपनी ओर से ज्यादा कुछ बोलना नहीं था। वह महिला ही बोलती जा रही थी, उन्हें बस हाँ-हूँ कर उसके प्रश्नों के छोटे-छोटे उत्तर देना था। 'आप सी-व्यू में ठहरे हैं ना?
* नहीं, मैं सागरिका में ठहरा हूँ।
* 'अखबार में तो यह छपा था कि आप...'
* हाँ, मुझे वहाँ का खाना पसंद नहीं है।
* आप कितने दिन यहाँ रुकेंगे?
* यही.. कोई पाँचेक दिन
* तब आप हमारे साथ खाना खाने जरूर आइए। हम पुरी होटल में हैं।
* हाँ आऊँगा। अब मैं चलता हूँ।
* आप जरूर कुछ नया लिख रहे होंगे...कल हम दुबारा यहीं मिलेंगे।
होटल में अपने कमरे में पड़े-पड़े अरुप बाबू सोचते रहे कहाँ से इस उलझन में आ फँसे। तभी उन्हें कुछ सूझा। उन्होंने सी-व्यू में फोन करके मौलिकजी के बारे में पूछा तो पता चला कि वे आज नहीं, मंगलवार को आने वाले हैं। मंगलवार को ही तो अरुप बाबू को कलकत्ता लौटना था। अब अरुप बाबू का दिमाग तेजी से काम करने लगा। खाना मिलने में अभी देर थी। वे सीधे उठकर बाजार गए और वहाँ की एक दुकान से अमलेश मौलिक की लिखी चार किताबें खरीद लाए।
रास्ते में अखबार खरीद कर उन्होंने मौलिकजी की तस्वीर भी देखी। हूबहूउन्हीं का चेहरा। वैसी ही पतली मूँछें, घुँघराले बाल और आँखों पर मोटी फ्रेम का चश्मा। 'मुन्ना का सपना' नहीं मिली। खैर, कोई हर्ज नहीं। वह तो अच्छा हुआ कि किताबें बाँॅस के कागज में अच्छी तरह लिपटी हुई थीं। वर्ना होटल के स्वागत कक्ष में उनसे मिलने आए दर्जनभरबच्चे और बड़े क्या सोचते? लेखक खुद ही अपनी किताबें खरीद रहा है।
अरुप बाबू चाहते तो सबके सामने अपने एक समान चेहरे की बात बता कर मामला आगे बढ़ने से रोक सकते थे। लेकिन अब उनके सामने उन नन्हे बाल पाठकों के चेहरे थे जो अमलेश मौलिक की लिखी किताबें लेकर उन पर लेखक के हस्ताक्षर लेने आए थे। उन्हें निराश करने का अरुप बाबू का मन नहीं हुआ। अब अरुप बाबू ने अपने अमलेश मौलिक होने की बात पर अधिक ना-नुकुर नहीं की और नाटक में मुख्य पात्र की भूमिका संभाल ली। हाँ, लेखक के नकली ऑटोग्राफ करने में जरूर उन्हें परेशानी हुई। तब उन्होंने चतुराई से ऑटोग्राफ करना अच्छा नहीं लगता कह के बात टाल दी। इसके बदले वे किताबों पर चित्र बना देंगे। यह बात सभी को जँची। अरुप बाबू ने सबकी किताबें अपने पास रख ली। दूसरे दिन पुरी होटल में उन लोगों के साथ भोजन का न्योता भी उन्होंने स्वीकार कर लिया।
रात को देर तक जाग कर अरुप बाबू ने सारी किताबें पढ़ डाली। उन्हें अपना बचपन याद आ गया। बच्चों की कहानियाँ उन्हें बड़ी पसंद हुआ करती थीं। आज लंबे समय बाद वैसी पढ़ने मिल रही थीं। दूसरे दिन समुद्र किनारे बैठे-बैठे अरुप बाबू ने सारी किताबों में चित्र बना दिए-शंख, सीप, नारियल, केकड़ा। अरुप बाबू को चित्र बनाना अच्छा लगता था और वे चित्र भी खूब बना लेते थे। कचहरी में वे हर फाइल पर कुछ न कुछ चित्रकारी करते रहते।
पुरी होटल में अमलेश नाइट बड़ी सफल रही। अरुप बाबू के सवाल-जवाबों से मौलिकजी के प्रशंसकों की संख्या कई गुना बढ़ गई। अमलेश मौलिक की सारी किताबें पढ़ लेने के कारण अरुप बाबू ने बच्चों के सभी प्रश्नों के जवाब बढ़-चढ़ कर दिए। पार्टी खत्म होने के पहले ही बच्चे उन्हें शहद चट्टा कहकर पुकारने। अरुप बाबू ने ही उन्हें बताया कि मौ का अर्थ है शहद और अँगरेजी में लिक का अर्थ है चाटना। खाना-पीना खत्म होने पर सबने आग्रह किया वे एक अप्रकाशित कहानी सुनाएँ। अरुप बाबू को बचपन का एक किस्सा याद गया जब वे बाँछाराम अक्रूरदत्त लेन में रहते थे। एक बार उनके पिता की कीमती कलाई घड़ी चोरी हो गई। एक सूप झाड़ने वाले को बुलाया गया। सूप झाड़ने वाले ने आँखें बंद कर मंत्रोच्चार के साथ चावल फेंके जो घर नौकर पर जा गिरे। मँझले चाचा नौकर के बाल पकड़कर उसे मुक्का मारने ही वाले थे कि बिछावन के नीचे से कलाई घड़ी निकल आई।
पुरी में पाँच दिन साहित्य गोष्ठी करते हुए मजे से बीत गए। अरुप बाबू के कलकत्ते लौटने का दिन आ गया। आज ही असली अमलेश मौलिक भी पुरी आने वाले थे। अरुप बाबू ने सोचा क्यों न असली लेखक से भी मिल लिया जाए। उनकी रेल अरुप बाबू की रेल से पूरे एक घंटे पहले आने वाली थी। अरुप बाबू समय से पहले ही अपने सामान-संदूक सहित फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम के सामने की बेंच पर जा बैठे। रेल आने पर उन्हें मौलिक बाबू को पहचानने में बिलकुल कठिनाई नहीं हुई। हाँ, उनका कद जरूर थोड़ा ठिगना था। बाल भी सफेद हो रहे थे। जाहिर था उम्र में वे दसेक साल बड़े थे। और बोलने में हकला भी रहे थे। यह बात अरुप बाबू को तब पता चली जब वे उनसे परिचय लेकर बातचीत करने लगे। अरुप बाबू ने यह पाया कि अपनी हकलाहट से मौलिक बाबू खासे परेशान हैं और कम से कम शब्दों में जवाब देते हैं।
पहले से ही पहुँची प्रसिद्धि के कारण इस बेचारे को तो होटल पहुँच कर काफी दिक्कत होगी। अरुप बाबू ने सोचा। उन्होंने अपने आपको यह कहते हुए पाया कि होटल में उनकी अगुआई करने काफी भीड़ इकट्ठी हुई है। पता नहीं उत्तेजित भीड़ कैसा व्यवहार करे। इसलिएबेहतरी इसी में है कि वे सी-व्यू या पुरी होटल में न जाएँ।
वहीं की एक छोटी होटल सागरिका में उन्हें एक कमरा खाली मिल जाएगा। सहमे हुए मौलिकजी को अरुप बाबू की सलाह ठीक लगी। वे बोले कि किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ। अरुप बाबू छूटते ही बोले कि मैंभी आपका प्रशंसक हूँ। आपके ही उपन्यासों पर आप ऑटोग्राफ कर दें। मौलिक बाबू एकदम प्रसन्ना हो गए। साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर मौलिक बाबू ने एक नया महँगा पार्कर पेन खरीदा था। उसमें स्याही भरकर उन्होंने अपने नए हस्ताक्षर भी बनाए थे। फिर बोलते समय उनकी जुबान हकलाती थी ऑटोग्राफ करते समय पेन थोड़े ही हकलाता।

माँ की देन!

स्कूल से वापस घर लौट आए बालक ने माँ से कहा- 'माँ! अब हम और स्कूल की फीस एवं यूनीफार्म की अनदेखी नहीं कर सकते, आज मुझे स्कूल से निकाल दिया गया है।'
'बेटा उनसे कहना था, कुछ दिन की मोहलत और दे दें!'
माँ ने कहा 'वह तो कहा था माँ, लेकिन स्कूल वाले मानते ही नहीं!' बालक निराश होकर बोला।
माँ का मन उदास हो गया। फिर कुछ सोचा और दूसरे ही पल जैसे कुछ दृढ़ निर्णय ले लिया हो। बोली, 'ठीक है बेटे, अब तुम स्कूल जाना भी मत! मैं घर पर ही तुम्हें पढ़ाऊँगी।' और माँ ने उसे घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया।
बालक के लिए अब घर ही विद्यालय था तथा माँ ही गुरु। माँ उसे स्वाध्यायी तौर पर परीक्षाओं में शामिल कराती रहीं और बेटा परीक्षाएँ उत्तीर्ण करता रहा।
माँ-बेटे के आत्मविश्वास, मेहनत और लगन के फलस्वरूप कक्षा दर कक्षा सर्वोच्च श्रेणियाँ प्राप्त करते हुए यही बालक आगे चलकर वैज्ञानिक बना, महान वैज्ञानिक!
जानते हैं यह वैज्ञानिक कौन था? -थॉमस अल्वा एडीसन, जिसने दुनिया को रोशनी देने के लिए बल्ब का अविष्कार किया।
एक विद्यालय जिसे ज्ञान की रोशनी नहीं दे सका, उसने विश्व को रोशन कर दिया।

भागवत १७५ - १७६: वत्सासुर व बकासुर का वध किया श्रीकृष्ण ने

वृंदावन में रहते हुए श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई के साथ गाय-बछड़ों को चराने के लिए जाने लगे। कंस ने वत्सासुर राक्षस को वहां भेजा। एक दिन कृष्ण ने देखा कि बछड़े व्याकुल होने लगे, तो उन्होंने स्थिति समझकर वत्सासुर को टांगों से पकड़ा और उसका प्राणान्त कर दिया।

एक दिन की बात है, सब ग्वालबाल अपने बछड़ों को पानी पिलाने के लिए जलाशय के तट पर ले गए। उन्होंने पहले बछड़ों को जल पिलाया और फिर स्वयं भी पिया। ग्वालबालों ने देखा कि वहां एक बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ है। वह ऐसा मालूम पड़ता था, मानो इन्द्र के वज्र से कटकर कोई पहाड़ का टुकड़ा गिरा हो।
ग्वालबाल उसे देखकर डर गए। वह बक नाम का एक बड़ा भारी असुर था जो बगुले का रूप धर के वहां आया था। उसकी चोंच बड़ी तीखी थी और वह स्वयं बड़ा बलवान था। उसने झपटकर श्रीकृष्ण को निगल लिया। जब कृष्ण बगुले के तालु के नीचे पहुंचे, तब वे आग के समान उसका तालु जलाने लगे। बकासुर ने तुरंत ही कृष्ण को उगल दिया और फिर बड़े क्रोध से अपनी कठोर चोंच से उन पर चोट करने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी चोंच पकड़कर दो टुकड़े कर दिए। ऐसी वीरता देखकर ग्वालबाल आश्चर्यचकित हो गए।
जब बलराम आदि बालकों ने देखा कि श्रीकृष्ण बगुले के मुंह से निकल कर हमारे पास आ गए हैं, तो बड़ा आनन्द हुआ। सबने कृष्ण को गले लगाया। इसके बाद अपने-अपने बछड़े हांककर सब वृंदावन में आए और वहां उन्होंने घर के लोगों को सारी घटना कह सुनाई।

अजगर बने अघासुर का वध किया श्रीकृष्ण ने
भागवत में हम श्रीकृष्ण द्वारा वृंदावन मे की गई लीलाओं को पढ़ रहे हैं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ गायों को चराने वन में गए। उसी समय वहां अघासुर नाम का भयंकर दैत्य भी आ गया । वह पूतना और बकासुर का छोटा भाई तथा कंस का भेजा हुआ था।वह इतना भयंकर था कि देवता भी उससे भयभीत रहते थे और इस बात की बाट देखते थे कि किसी प्रकार से इसकी मृत्यु का अवसर आ जाए।

कृष्ण को मारने के लिए अघासुर ने अजगर का रूप धारण कर लिया और मार्ग में लेट गया। उसका वह अजगर शरीर एक योजन लम्बे बड़े पर्वत के समान विशाल एवं मोटा था।अघासुर का यह रूप देखकर बालकों ने समझा कि यह भी वृंदावन की कोई शोभा है। उसका मुंह किसी गुफा की तरह दिखता था। बाल-ग्वाल उसे समझ न सके और कौतुकवश उसे देखने लगे। देखते-देखते वे अजगर के मुंह में ही घुस गए। लेकिन श्रीकृष्ण अघासुर की माया को समझ गए।
अघासुर बछड़ों और ग्वालबालों के सहित भगवान श्रीकृष्ण को अपनी डाढ़ों से चबाकर चूर-चूर कर डालना चाहता था। परन्तु उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने शरीर को बड़ी फुर्ती से बढ़ा लिया कि अजगररुपी अघासुर का गला ही फट गया। आंखें उलट गईं। सांस रुककर सारे शरीर में भर गई और उसके प्राण निकल गए। इस प्रकार सारे बाल-ग्वाल और गौधन भी सकुशल ही अजगर के मुंह से बाहर निकल आए। कान्हा ने फिर सबको बचा लिया। सब मिलकर कान्हा की जय-जयकार करने लगे।

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

भागवत 173- 174: ब्रज छोड़कर वृंदावन आकर क्यों बसे ब्रजवासी?

जब नंदबाबा आदि बड़े-बूढ़े गोपों ने देखा कि ब्रज में तो बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं। तब उन्होंने मिलकर यह विचार किया कि ब्रजवासियों को कहीं दूसरे स्थान पर जाकर रहना चाहिए। ब्रज के एक गोप का नाम था उपनन्द। उन्हें इस बात का पता था कि किस समय किस स्थान पर रहना उचित होगा। उन्होंने कहा-भाइयों। अब यहां ऐसे बड़े-बड़े उत्पात होने लगे हैं, जो बच्चों के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी हैं।
इसलिए हमें यहां से अपना घरबार समेट कर अन्यत्र चलना चाहिए। देखो यह सामने बैठा हुआ नंदराय का लाड़ला श्रीकृष्ण है, सबसे पहले यह हत्यारी पूतना के चंगुल से छूटा। इसके बाद भगवान की दूसरी कृपा से इसके ऊपर इतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा। बवंडर रूपधारी दैत्य तो इसे आकाश में ले गया था लेकिन वह भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। तब भी भगवान ने ही इस बालक की रक्षा की। यमलार्जुन वृक्षों के गिरने के समय उनके बीच में आकर भी इसे कुछ नहीं हुआ। यह भी ईश्वरीय चमत्कार था।
इससे पहले कि अब कोई और खतरा यहां आए हमें अपने बच्चों को लेकर अनुचरों के साथ यहां से अन्यत्र चले जाना चाहिए। यहां से कुछ दूर वृन्दावन नाम का एक वन है। वह पूर्णत: हरियाली से आच्छादित है। हमारे पशुओं के लिए तो वह बहुत ही हितकारी है। गोप, गोपी और गायों के लिए वह केवल सुविधा का ही नहीं, सेवन करने योग्य स्थान भी है। सो यदि तुम सब लोगों को यह बात जंचती हो तो आज ही हम लोग वहां के लिए कूच कर दें। उपनन्द की बात सुनकर सभी ने हां कह दी और सभी आवश्यक वस्तुएं व अपना गौधन लेकर वृंदावन में आकर बस गए।

श्रीकृष्ण की कर्मस्थली है वृंदावन
पिछले अंक में हमने पढ़ा कि नंदबाबा आदि सभी गोप-गोपियां अपना गौधन आदि संपत्ति लेकर वृंदावन में आकर बस गए। वृन्दा का अर्थ है भक्ति। सो भक्ति का वन है वृन्दावन।

बालक के पांच वर्ष पूर्ण होने पर उसे गोकुल से वृन्दावन ले जाया जाए अर्थात लाड़ प्यार की प्राथमिक अवस्था में से अब उसे भक्ति के वन में लाया जाना चाहिए। बच्चों का हृदय बड़ा कोमल होता है अत: उसे दिए गए संस्कार उसके मन में अच्छी तरह जम जाते हैं। उसे बचपन में अच्छें संस्कार देंगे, तो उसका यौवन भ्रष्ट नहीं होगा और वह जीवनभर संस्कारी बना रहेगा।
अब भगवान गोकुल छोड़ चुके हैं। नई जगह आए हैं वृन्दावन और वृन्दावन के बारे में ऐसा कहते हैं कि वृन्दावन में राजा नहीं हुआ, वृन्दावन में रानी हुई है राधा। यह राधा का क्षेत्र है। वृन्दावन के पास में एक गांव था बरसाना और बरसाना के मुखिया थे वृषभानु और उनकी बेटी थी राधा। भगवान की जन्मस्थली थी गोकुल और कर्मस्थली वृन्दावन। भागवत कथा में यहां से राधाजी का प्रवेश हो रहा है।
यदि भागवत को बारीकी से पढ़ें, तो भागवत में श्री या तो शुकदेवजी के लिए एक बार लगा है या कृष्णजी के लिए एक बार लगा है। बाकी किसी भी पात्र के लिए भागवतजी में श्री नहीं लगाया जाता। लोगों ने पूछा ऐसा क्यों, तो व्यासजी ने बताया ये भागवत में श्री शब्द का अर्थ है राधा। जैसे श्रीमद्भागवत यहां भागवत की शुरुआत में ही राधाजी का स्मरण किया गया है। चूंकि उनके बिना भागवत हो ही नहीं सकती।

..तो न भ्रष्ट होगा राजा, न प्रजा

26 जनवरी को हिन्दुस्तान में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। सरल शब्दों में समझें तो यह वह दिन था जब आजाद हिन्दुस्तान के नागरिकों के लिए जीयो और जीने दो की मूल भावना से भरी ऐसी व्यवस्था लागू की गई, जिससे हर व्यक्ति देश, समाज, परिवार और व्यक्तिगत स्तर पर जिम्मेदार और कर्तव्यपरायण बन अपने स्वाभाविक अधिकारों के साथ जीवन बिता सके।

आजादी और जनतंत्र या गणतंत्र के लागू होने के लगभग छ: दशक में हिन्दुस्तान ने हर क्षेत्र में बुलंदियों, उपलब्धियों को पाया। लेकिन इतने गौरवशाली इतिहास के बावजूद इसी देश की जनता आज शासन में फैले भ्रष्ट और खामियों से भरी अव्यवस्थाओं से पीडि़त दिखाई देती है। भ्रष्ट आचरण, बेईमानी, अनैतिकता शासन तंत्र का हिस्सा बन चुकी है। जिनका जिम्मेदार एक-दूसरे को बताकर शासन में ऊंचे पदों पर बैठा व्यक्ति भी पल्ला झाड़ लेता है। ऐसे भ्रष्ट माहौल में यही सवाल उठता है कि आखिर कौन है असल जिम्मेदार ऐसी बुरी व्यवस्थाओं का? और कैसे इनसे बचकर बन सकता है सुखी समाज और राष्ट्र?

ऐसी समस्याओं का हल और सवालों का जवाब देते हैं - धर्मशास्त्र। खासतौर पर सनातन धर्म में बताया गया राजधर्म राजा के कर्तव्यों को बताता है। जिसका सच्चाई से पालन ही प्रजा के सुख-दु:ख नियत करते हैं। ये बातें आज की शासन व्यवस्था और सरकार के लिए भी अहम सबक है -
दुष्ट को दंड देना - शांत और तनावरहित राज्य और शासन के लिए सबसे अहम है - दण्ड देना। धर्म कहता है दुष्ट यानि बुरे कामों, आचरण और विचारों से दूसरों को कष्ट या असुविधा पैदा करने वाले व्यक्ति को दण्ड जरूर देना चाहिए। जिससे उसके साथ ही दूसरों तक भी दुराचरण न करने का संदेश जाए।
स्वजनों की पूजा करना - स्वजन यानि परिवार ही नहीं बल्कि सारी प्रजा के साथ सद्भाव और आत्मीयता का व्यवहार। उनकी स्वाभाविक और व्यावहारिक कमियों, असुविधाओं को दूर करने के साथ उनके गुण, प्रतिभा को निखारने में हरसंभव मदद करना एक राजा का परम कर्तव्य है।
न्याय से कोष बढ़ाना - किसी भी राज्य की मजबूत अर्थव्यवस्था उसकी ताकत होती है। लेकिन राजा के लिए यह जरूरी है यह आर्थिक प्रगति न्याय पर आधारित हो यानि खजाने में आया धन जनता के शोषण या निरंकुशता से इकट्ठा न करें, बल्कि धन ऐसा हो जो राज्य और प्रजा को प्रगति और उन्नति का कारण बने।
पक्षपात न करना - राज्य में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, वर्ण, धर्म या धन के आधार पर ऊँच-नीच का व्यवहार न हो। हर व्यक्ति को समान रूप से खान-पान, रहन-सहन या जीवन से जुड़ी सारी सुख-सुविधाओं का हक मिले। राजा के प्रजा के साथ मधुर संबंधों के लिए यह अहम बात है।
राष्ट्र की रक्षा करना - किसी भी राजा का सबसे बड़ा राजधर्म होता है कि वह राष्ट्र की बाहरी और आंतरिक खतरों से रक्षा करे। न कि मात्र शासन की बागडोर मिलने पर सुख-सुविधाओं में डूबकर स्वयं का हित साधे।
सार यही है कि सिंहासन पर बैठा राजा राज्य और प्रजा के सुख के लिए अपने प्राण भी देने पड़ें तो पीछे न रहे। साथ ही वह न नाइंसाफ करे, न अपने सामने किसी के साथ अन्याय होता देखे। ऐसा संकल्प ही राजा के साथ प्रजा के आचरण को भी पावन रखेगा।

क्यों चमत्कारी है आंकड़े के गणेश?

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है। उनका हर रूप मन को मोह लेता है। इनमें से ही एक है - सफेद आंकड़े के गणेश। इन्हें श्वेतार्क गणपति भी कहते हैं। धार्मिक और लोक मान्यताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए आंकड़े के गणेश की मूर्ति पूजा शुभ फल देने वाली मानी जाती है। जानते हैं आंकड़े की जड़ से जुड़ी भगवान गणेश की भक्ति की जन आस्था के पीछे के कारणों को -

दरअसल आंकड़े के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट है। इसे लोक भाषा में आंकड़े के नाम से जाना जाता है। इस पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद आंकड़ा होती है। जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं।
इसी सफेद आंकड़े की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है। तब सफेद आंकड़े की इस जड़ में भगवान गणेश के शरीर की बनावट दिखाई देती है।
हर जड़ में भगवान गणेश की सूंड जैसा आकार तो जरुर मिलता है। इसके अलावा इस जड़ के तने में भगवान गणेश का भारी शरीर, आस-पास की शाखाओं में भुजाओं और सूंड जैसी दिखाई देती है। जड़ की कुछ शाखाएं बैठे हुए गणेश की मूर्ति जैसी भी दिखाई देती है।
सनातन धर्म में वैदिक काल से ही प्रकृति की पूजा का महत्व बताया गया है। यही कारण रहा है कि धार्मिक परंपराओं में अनेक पेड़-पौधों की देव रुप में पूजा की जाती है। इनमें पीपल, आंवला, वट वृक्ष प्रमुख हैं। इसी तरह शिव के वास के कारण बिल्वपत्र पूजनीय है, ठीक उसी प्रकार आंकड़े का पौधा भगवान गणेश के निवास करने की धार्मिक आस्था के कारण पूजनीय है। आंकड़े की जड़ में दिखाई देने वाली श्री गणेश की आकृति इस आस्था को ओर गहरा करती है।
वैसे भी हिन्दू धर्म के सबसे लोकप्रिय ग्रंथ रामचरित मानस में भगवान के स्वरूप और भक्ति के संबंध में एक बहुत ही गहरी बात बताई गई है, जो आंकड़े के गणेश पूजा की आस्था को बल देती है। यह है -
जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन जैसी।।
भक्ति भाव का सरल मतलब भी होता है कि किसी लक्ष्य को पाने की कोशिश में पूरी तरह डूब जाना। इस प्रकार भक्ति संकल्प का ही दूसरा रूप है। जहां संकल्प होता है, सुख और सफलता संभव है। आंकड़े के गणेश की पूजा से जुड़ी भक्ति और आस्था भक्त के मन में संकल्प शक्ति और आत्म विश्वास जगाती है। इसी से प्रेरित भक्त अंत में सफलता, धन और समृद्धि पा जाता है। संभवत: यही कारण आंकड़े के गणेश को सुख-समृद्धि के देवता के रूप में पूजित करता है।

छत्तीसगढ़ की खबरें

साहब मुझे महिला बॉस से बचा लो
कोरबा.अब तक महिला उत्पीड़न का मामला समय-समय पर सामने आता रहा है। लेकिन अधिकारी, कर्मचारी मोर्चा ने कलेक्टर को पुरूष उत्पीड़न समिति गठन करने का ज्ञापन देकर महिला अफसरों पर प्रताड़ित किए जाने के मामले का खुलासा किया है।

कर्मचारी मोर्चा ने सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि पुरूष शासकीय सेवकों को उनके समुचित कर्तव्यों व अधिकारों का परिपालन में सम्मान की रक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी है।
ऐसे में पुरूष उत्पीड़न समिति का गठन करके ही उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है। मोर्चा को समय-समय पर राजपत्रित वर्ग से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारियों की शिकायत मिल रही है कि महिला अधिकारी व कर्मचारियों के द्वारा उन्हें धमकाया जा रहा है।
पुरूष अधिकारी व कर्मचारियों के कर्तव्य व अधिकारों की रक्षा का दायित्व भी शासन व प्रशासन का है। ऐसे मे उन्हें उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने के लिए समिति की जरूरत महसूस हो रही है ताकि पीड़ित अधिकारी व कर्मचारी सीधे समिति के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकें।
बड़ी संख्या में महिला अधिकारी विभाग प्रमुख के तौर पर कार्य कर रहीं हैं। प्रताड़ना की स्थिति में वे अपना आवेदन महिला समिति के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। कई बार महिला बॉस व अधीनस्थ अधिकारी व कर्मचारी के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होती है। इस कारण अब राजपत्रित अधिकारियों का संगठन भी पुरूष प्रताड़ना की शिकायत को लेकर मुखर होने लगा है।
"महिला बॉस के द्वारा प्रताड़ित किए जाने के कारण राजपत्रित अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक काफी व्यथित है। इससे कार्य प्रभावित होने के साथ-साथ टकराव की स्थिति भी निर्मित होने लगी है।"


खजुराहो में प्रस्तुति देंगी यास्मीन सिंह
रायपुर.मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित किए जाने वाले सात दिवसीय खजुराहो महोत्सव में इस बार छत्तीसगढ़ की कथक नृत्यांगनाएं यास्मीन सिंह और डॉ. आरती सिंह प्रस्तुति देंगी। खजुराहो महोत्सव हर साल के फरवरी महीने में आयोजित किया जाता है।

इस कार्यक्रम की शुरुआत 1 फरवरी से खजुराहो (छतरपुर-मध्यप्रदेश) में होगी। विश्वप्रसिद्ध खजुराहो महोत्सव में पहले दिन मशहूर भरतनाट्यम नृत्यांगना और फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी व उनकी दोनों बेटियां ईशा और आहना ओडिसी नृत्य प्रस्तुत करेंगी। कार्यक्रम के दूसरे दिन दिल्ली के अनिभमन्यु लाल और विधा लाल कथक, रमा बैद्यनाथन भरतनाट्यम, मुंबई के कनक रेले मोहिनीअट्टम पेश करेंगे।
खजुराहो महोत्सव में तीसरा दिन छत्तीसगढ़ के नाम रहेगा, जब रायपुर से यास्मीन-आरती सिंह कथक की प्रस्तुति देंगी। राज्य की उभरती इन कलाकारों ने देश के अनेक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। खजुराहो महोत्सव में पहली बार छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व हो रहा है।
और सबसे बड़ी बात इस महोत्सव में मेजबान मध्यप्रदेश से कोई भी प्रतिभागी शामिल नहीं है। खजुराहो महोत्सव उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा को-ऑर्डिनेट किया जाता है।

सोमवार, 24 जनवरी 2011

हर चीज में भगवान हैं!

एक गुरुजी थे। उनके आश्रम में कुछ शिष्य शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। एक बार बातचीत में एक शिष्य ने पूछा -गुरुजी, क्या ईश्वर सचमुच है? गुरुजी ने कहा - ईश्वर अगर कहीं है तो वह हम सभी में है। शिष्य ने पूछा - तो क्या मुझमें और आपमें भी ईश्वर है?
गुरुजी बोले - बेटा, मुझमें, तुममें, तुम्हारे सारे सहपाठियों में और हर जीव-जंतु में ईश्वर है। जिसमें जीवन है उसमें ईश्वर है। शिष्य ने गुरुजी की बात याद कर ली।
कुछ दिनों बाद शिष्य जंगल में लकड़ी लेने गया। तभी सामने से एक हाथी बेकाबू होकर दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया। हाथी के पीछे-पीछे महावत भी दौड़ता हुआ आ रहा था और दूर से ही चिल्ला रहा था - दूर हट जाना, हाथी बेकाबू हो गया है, दूर हट जाना रे भैया, हाथी बेकाबू हो गया है।
उस जिज्ञासु शिष्य को छोड़कर बाकी सभी शिष्य तुरंत इधर-उधर भागने लगे। वह शिष्य अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिला, बल्कि उसने अपने दूसरे साथियों से कहा कि हाथी में भी भगवान है फिर तुम भाग क्यों रहे हो? महावत चिल्लाता रहा, पर वह शिष्य नहीं हटा और हाथी ने उसे धक्का देकर एक तरफ गिरा दिया और आगे निकल गया। गिरने से शिष्य होश खो बैठा।
कुछ देर बाद उसे होश आया तो उसने देखा कि आश्रम में गुरुजी और शिष्य उसे घेरकर खड़े हैं। साथियों ने शिष्य से पूछा कि जब तुम देख रहे थे कि हाथी तुम्हारी तरफ दौड़ा चला आ रहा है तो तुम रस्ते से हटे क्यों नहीं? शिष्य ने कहा - जब गुरुजी ने कहा है कि हर चीज में ईश्वर है तो इसका मतलब है कि हाथी में भी है। मैंने सोचा कि सामने से हाथी नहीं ईश्वर चले आ रहे हैं और यही सोचकर मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा, पर ईश्वर ने मेरी कोई मदद नहीं की।
गुरुजी ने यह सुना तो वे मुस्कुराए और बोले -बेटा, मैंने कहा था कि हर चीज में भगवान है। जब तुमने यह माना कि हाथी में भगवान है तो तुम्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए था कि महावत में भी भगवान है और जब महावत चिल्लाकर तुम्हें सावधान कर रहा था तो तुमने उसकी बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? शिष्य को उसकी बात का जवाब मिल गया था।

सेहत की साथी, ताजी सब्जियाँ

सौन्दर्य और सब्जियों का रिश्ता
संसारभर के पुरुष व महिलाएँ स्वास्थ्य तथा सौंदर्य चाहते हैं, किन्तु कोई भी प्राकृतिक आहार-विहार, दिनचर्या अपनाना नहीं चाहता। डिब्बाबंद आहार का चलन बहुत बढ़ा है। रेडीमेड फूड प्रोडक्ट, हॉटडॉग जैसी चीजें इस आपाधापी के जीवन में ज्यादा इस्तेमाल की जा रही है।

प्राकृतिक चिकित्सा वास्तव में चिकित्सा कम जीने की कला, आत्मसाक्षात्कार का विज्ञान अधिक है। यह चिकित्सात्मक की अपेक्षा रक्षात्मक अधिक है। यदि हम अपना खान-पान बदल लें तो जीवन पद्धति बदल जाएगी। शक्ति ऊर्जा अर्जित होने लगेगी। जहा शक्ति है, वहीं स्वास्थ्य है, वहीं सौन्दर्य है।
अन्न कम खाएँ, सब्जियों का प्रयोग ज्यादा करें, वह भी रसेदार बनाकर। इससे शरीर के भीतर के अंग पुष्ट होते हैं, शरीर सुचारु रूप से कार्य करता है। व्यक्तित्व में स्वतः निखार आने लगता है। भीतर की उष्मा जब बाहर झलकती है तो वही स्वास्थ्य कहलाता है, वही सौंदर्य बनकर दमकता है।
कुछ सब्जियाँ तो बहुत उपयोगी हैं, जैसे-
* करेला पेट के कृमि नष्ट करता है। रक्तशोधन कर, अग्नाशय को सक्रिय करता है।
* टमाटर रक्त बढ़ाता है एवं त्वचा निखारता है।
* नीबू शरीर के पाचक रसों को बढ़ाता है।
* पालक हड्डियों को कैल्शियम से सुदृढ़ करता है। पत्तेदार सब्जी लौह तत्व से भरपूर होती है अतः इन सबका उचित रूप से सलाद में प्रयोग करें।
* भिंडी वीर्य में गाढ़ापन लाती है, शुक्राणु बढ़ाती है।
* लौकी शीघ्र पाचक, रक्तवर्द्धक है, शीतलता प्रदान करती है।
* खीरा रक्तकणों का शोधन करता है व इसका प्रवाह बढ़ाता है।
* लहसुन खून का थक्का जमने नहीं देता अतः हृदय रोग में लाभकारी है।
* परवल शरीर को ऊर्जा देती है।
* गोभी, आलू, बीन्स आदि शरीर के विविध भागों, तत्वों, मात्राओं को प्रभावित करते हैं। इनको बनाते समय सावधानी की जरूरत है।
सब्जी को काटने से पूर्व अच्छी तरह धो लिया जाए, काटने के बाद धोने से सब्जी के तत्व नष्ट होते हैं। पकाते समय अधिक तेल डालने व ज्यादा देर तक आग पर रखकर स्वाद के लालच में कहीं सब्जियों की पौष्टिकता नष्ट हो जाती है। अधिक मिर्च-मसाले से भी सब्जी का स्वाद कम हो जाता है।
ताजी सब्जियाँ, ताजा बनाकर सेवन करना ही हितकर होता है। बासी, फ्रिज में रखी, बार-बार गरम करके परोसी गई सब्जी में पौष्टिक तत्व खत्म हो चुके होते हैं।

सेवा और धर्म

एक बार गांधीजी सर्वधर्म सम्मेलन में भाग लेने काशी आए। वहां कई विद्वान और संत भी आए हुए थे। उन सबने गांधीजी की चर्चा सुन रखी थी और उनसे मिलने को बेहद उत्सुक थे। वे उनसे अनौपचारिक बातचीत में उनके निजी जीवन के कई पहलुओं को जानना चाहते थे। सम्मेलन खत्म होने के बाद एक संत ने गांधीजी से पूछा , ' आप कौन सा धर्म मानते हैं और भारत के भावी धर्म का क्या स्वरूप होगा ?' गांधीजी ने कहा , ' सेवा करना ही मेरा धर्म है और मेरा मानना है कि आप लोगों को भी इस धर्म को अपनाना चाहिए। ' संत ने फिर पूछा , ' मगर सेवा तो सभी करते हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि पूजा - पाठ , धर्म - कर्म सब मिथ्या है।
इसको छोड़ देना चाहिए। ' गांधी जी ने कहा , ' मेरा मतलब यह नहीं कि पूजा पाठ छोड़ दिए जाए। मन की शांति के लिए यह सब करना भी जरूरी है। पर यदि मेरे लिए लेटे - लेटे चरखा चलाना संभव हो और मुझे लगे कि इससे ईश्वर पर मेरा चित्त एकाग्र होने में मदद मिलेगी तो मैं जरूर माला छोड़ कर चरखा चलाने लगूंगा। चरखा चलाने की शक्ति मुझमें हो और मुझे यह चुनाव करना हो कि माला फेरूं या चरखा चलाऊं , तो जब तक देश में गरीबी और भुखमरी है , तब तक मेरा निर्णय निश्चित रूप से चरखे के पक्ष में होगा और उसी को मैं अपनी माला बना लूंगा।
चरखा , माला और राम नाम सब मेरे लिए एक ही हैं। वे सब एक ही उद्देश्य पूरा करते हैं। वह है मानव की सुरक्षा करना , अपनी रक्षा करना। मैं सेवा का पालन किए बिना अहिंसा का पालन नहीं कर सकता और अहिंसा धर्म का पालन किए बिना मैं सत्य को प्राप्त नहीं कर सकता। और आप तो मानते होंगे कि सत्य के सिवा दूसरा कोई धर्म भी नहीं है। ' सभी संतों ने गांधी जी के विचारों से सहमति जताई और उसी रास्ते पर चलने का संकल्प किया।
संकलन : सुरेश सिंह

सन्डे की पाठशाला

नैसर्गिकता से खिलवाड़ नहीं
सुंदरपुर शहर में एक धनी सेठ रहते थे, जिनका नाम रूपचंद था। नाम के अनुरूप ही रूपचंद काफी खूबसूरत थे। उन्होंने दो विवाह किए थे। दो पत्नियों में से एक उनकी हमउम्र थीं जिनका नाम रूपा था। दूसरी पत्नी चंदा उनसे दस साल छोटी थी। दोनों ही पत्नियां पति को बहुत मानती थीं।
सेठ रूपचंद भी पूरी कोशिश करते थे कि व्यस्त कामकाज के बावजूद दोनों पत्नियों को पूरा समय दे सकें। वे उन पर पर्याप्त स्नेह रखते थे। उधर दोनों पत्नियों का भी पूरा जोर इस बात पर होता कि सेठ का खानपान और पहनावा आदि उनकी मर्जी के मुताबिक हो। सेठ का यश चारों ओर फैला हुआ था। उनका सभी बहुत सम्मान भी करते। एक दिन की बात है, कहीं बाहर निकलने से पहले सेठ अपने बालों को संवार रहे थे। अचानक उनकी नजर अपने सफेद बालों पर पड़ी। उस समय उनके साथ चंदा भी थी।
सेठ ने हंसकर कहा कि वह तो अब बूढ़ा हो चला है। छोटी पत्नी चंदा को भी चिंता होने लगी कि उसका पति बूढ़ा हो रहा है। पति के सामने वह बहुत छोटी दिखेगी। काफी सोच-विचार के बाद चंदा ने इसका उपाय खोजा। रात में जब पति सो रहा था तो चंदा ने सेठ के सिर से सफेद बाल चुन-चुनकर निकालने शुरू कर दिए ताकि वह जवान दिखाई दे। अगली रात दूसरी पत्नी रूपा ने जब पति के सिर से सफेद बाल गायब देखे तो उसे चिंता होने लगी कि वह कहीं पति से पहले वृद्घ न दिखने लगे। बस उसने पति के सिर से सारे काले बाल उखाड़ दिए। अगले दिन सेठ रूपचंद ने जब अपने सिर के सारे बाल गायब देखे तो उसकी हैरानी और दुख का ठिकाना नहीं रहा।

सबक
अगर हम अपने आस-पास की किसी वस्तु या इंसान को पूरी तरह अपने हिसाब से ढालने लगेंगे तो उस की नैसर्गिक सुंदरता को नष्ट ही करेंगे।


अपने ही भीतर खुशी की तलाश
नीलनगर के उस अस्पताल में एक साथ रहते-रहते मोहन और यश के बीच नजदीकी दोस्ती हो गई थी। हालांकि दोनों के बिस्तर कमरे के दो छोरों पर मौजूद थे लेकिन फिर भी दोनों को एक दूसरे से बातें करना बहुत भाता था। लेकिन इधर कुछ दिनों से पता नहीं क्यों मोहन के मन में यश को लेकर एक तरह की ईष्र्या घर कर गई थी।
इसके पीछे शायद वह खिड़की थी जो यश के बिस्तर के ठीक ऊपर थी। अस्पताल के घुटन भरे कमरे में बाहर की रोशनी वहीं से आती थी। अक्सर जब नर्स यश को दवा लेने के लिए उठाकर बिठाती तो वह अपने साथी मरीजों का मन बहलाने के लिए उन्हें खिड़की के बाहर दिखने वाले नजारों का आंखों देखा हाल सुनाता।
कमरे की एक रस जिंदगी से ऊब चुके मरीजों में वह खुशनुमा एहसास भरता। इन सब बातों के बीच मोहन के मन में कहीं न कहीं यह शैतानी खयाल सर उठा रहा था कि बाहर की दुनिया देखने का मजा अकेले यश क्यों लेता है?
एक रात की बात है यश को खांसी का भीषण दौरा पड़ा। कमरे में केवल मोहन जाग रहा था वो चाहता तो नर्स को बुला सकता था, लेकिन वह चुप रहा। नर्स सुबह दवा देने आई और उसने पाया कि यश की मौत हो चुकी है। शोकाकुल माहौल में यश का शव वहां से हटाया गया।
मौका मिलते ही मोहन ने नर्स से कहा कि क्या उसे यश के खाली बिस्तर पर भेजा जा सकता है। नर्स ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। लेकिन यह क्या? यह देखकर मोहन के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि खिड़की के ठीक बाहर एक ऊंची दीवार के सिवा कुछ नहीं था। उसे यश की याद आई और रुलाई फूट पड़ी।

संदेश
खुशी हमेशा हमारे भीतर होती है उसे कहीं बाहर तलाशने का कोई मतलब नहीं है। कई बार दूसरों को खुशी के लिए कुछ करने से जो खुशी मिलती है उससे बड़ी खुशी दूसरी नहीं।

चौबीस हजार श्लोक हैं शिव महापुराण में

पुरातन समय की बात है। एक बार तीर्थराज प्रयाग में समस्त साधु-संत आकर ठहरे। उस समय वहां महर्षि वेदव्यास के शिष्य महामुनि सूतजी भी आए। सूतजी को देखकर साधु-संत आदि महात्मा अति प्रसन्न हुए। उन्होंने सूतजी से कहा कि घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुण्यकर्म नहीं करेंगे तथा दुराचारी हो जाएंगे। धर्म का त्याग कर देंगे तथा अधर्म में ही मन लगाएंगे। उस स्थिति में उन्हें परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी? अत: ऐसा कुछ उपाय बताएं जिससे कि कलयुग के मानवों का पाप तत्काल नाश हो जाए।

तब सूतजी भगवान शंकर का स्मरण कर बोले कि भगवान शंकर की महिमा को बताने वाला जो शिव महापुराण है, वह सभी पुराणों में श्रेष्ठ है। कलियुग में जो भी शिव महापुराण का वाचन करेगा तथा धर्मपूर्वक इसका श्रवण करेगा वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा। इस शिव महापुराण की रचना स्वयं भगवान ने ही की है। इसमें बारह संहिताएं हैं। मूल शिव महापुराण की श्लोक संख्या एक लाख है परंतु व्यासजी ने इसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है।
पुराणों की क्रम संख्या के अनुसार शिव महापुराण का स्थान चौथा है। इसमें वेदांत, विज्ञानमय तथा निष्काम धर्म का उल्लेख है। साथ ही इस ग्रंथ में श्रेष्ठ मंत्र-समूहों का संकलन भी है। जो बड़े आदर से इसे पढ़ता और सुनता है, वह भगवान शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त करता है।

रविवार, 23 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

बूढ़ातालाब में अब एक प्रयोग और
रायपुर. ऐतिहासिक धरोहर बूढ़ातालाब को विकसित करने की योजना निगम के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने शुरू की है। यहां पिछले कुछ सालों से लगातार प्रयोग किए जा रहे हैं। यह उस सिलसिले की ताजा कड़ी है। काफी पहले पर्यटन मंडल ने तालाब को टेक ओवर कर लिया है लेकिन तालाब की हालत में बहुत ज्यादा सुधार नहीं दिख रहा। इसमें गंदे नालों का पानी आकर मिल रहा है। धार्मिक आयोजनों के बाद पूजन सामग्री यहां डाली जाती है।
पर्यटन मंडल के प्रबंध संचालक तपेश झा ने बताया कि निगम से गंदे पानी की निकासी रोकने में मदद ली जाएगी। इसके बाद तालाब का पूरा कायाकल्प मंडल द्वारा किया जाएगा। तालाब के चारो ओर पाथ वे बनाकर दीवार पर पेंटिंग की गई है। सोलर लाइट लगाने का काम चल रहा है। जलकुंभी भी समय-समय पर निकाली जाती है। विवेकानंद की प्रतिमा के सामने लगा म्यूजिकल फाउंटेन बंद हो गया था, उसे भी रिपेयर किया जा रहा है। तालाब के चारों हिस्सों में लैंड स्केपिंग, वॉटर ट्रीटमेंट व वाटर प्यूरीफिकेशन का काम किया जाएगा। गार्डन में लेजर शो व लाइट एंड साउंड शो का भी आयोजन पर्यटन मंडल के द्वारा किया जाएगा।
महापौर किरणमयी नायक ने बताया कि बूढ़ा तालाब पर ठोस नीति बनाकर काम किया जाएगा। तालाब का संरक्षण व सौंदर्यीकरण करने विशेष योजना बनाई जाएगी। मंडल ने जो सुझाव दिए हैं उन पर जल्द ही अमल किया जाएगा। शहर की जनता के द्वारा धार्मिक आयोजनों के समय जो पूजन सामग्री डाली जाती है, उसके लिए तालाब के चार कोनों में स्थान तय किए जाएंगे।

न डॉक्टर मिलते हैं न पौष्टिक खाना
रायपुर। डीबी स्टार की पड़ताल में सामने आया कि आयुर्वेद अस्पताल में मरीज यहां की अव्यस्थाओं को लेकर शिकायत भी कर चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि आयुर्वेद में दवाइयों का असर धीमी गति से होता है। इसीलिए मरीजों को लंबे समय तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है। इसके बावजूद आयुर्वेद अस्पताल में अव्यवस्थाओं के चलते मरीजों को बीच में इलाज छोड़कर जाना पड़ता है।
टीम ने जब मौके पर जाकर जब देखा तो पाया कि मरीज परेशान हैं। कुछ से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि डॉक्टर उन्हें कुछ नर्सो के भरोसे छोड़कर चले जाते हैं। इसी तरह उनका कहना है कि जो खाना दिया जा रहा है, वह आधा कच्च, आधा पक्का होता है। पौष्टिकता की बात तो तब आएगी जब खाना पूरा होगा, मरीजों के अनुसार अक्सर दाल-चावल मिलाकर दे दिए जाते हैं।
प्रबंधन को लंबे समय से मिल रही अव्यवस्थाओं की शिकायत के बाद नई व्यवस्था लागू की गई है। इसके बाद भी डॉक्टर और नर्सिग स्टाफ इसके अनुसार काम नहीं कर रहे हैं। मरीजों ने बताया कि डॉक्टर दिन में नियमित रूप से दो बार निरीक्षण करने की बजाय दो दिन में एक बार आते हैं।
मैं यहां पांच महीने से भर्ती हूं। बीमारी में सुधार तो हुआ है, लेकिन यहां की अव्यवस्थाओं से पेरशान हो रहा हूं। खाना बिल्कुल स्तरीय नहीं मिलता है। इसी वजह से कई मरीज इलाज के दौरान ही अस्पताल छोड़कर जा चुके हैं।
काशीनाथ गजभिये, भर्ती मरीज
पहले यहां के डॉक्टर दिन में एक बार ही आते थे, मरीजों ने शिकायत की तो सुधार किया गया। अब कभी-कभी दिन में दो बार राउंड लगा लेते हैं। खाने में हर दिन आलू की सब्जी ही दी जाती है।
सकुन तांडी, भर्ती मरीज के परिजन
शासन द्वारा हमें जितना पैसा दिया जाता है, उसके हिसाब से खाना देते हैं। मद बढ़ाने के लिए लिखा है। जहां तक डॉक्टरों का सवाल है तो लापरवाही बरतने वालों को नोटिस जारी किया जाएगा।
डॉ. डी.के. तिवारी, प्राचार्य, आयुर्वेद कॉलेज

क्या बात है

जानते हो रात में मजा कब आता है?
जब किसी सोते हुए को उठा कर पूछा जाए.. क्या तुम सो रहे हो?

काश कोई “exam result” का इंश्योरेंस करा देता, तो हर इग्जाम का पहले प्रीमियम भरवा देता,
पास होते तो थीक है, वरना इंश्योरेंस क्लेम करवा लेते

आप की आवाज़ कोयल जैसी, आंखें हिरण जैसी, चाल मोर जैसी, आदतें बंदर जैसी.
अच्छा होता अगर कोई एक चीज़ इंसानों वाली भी होती.

अंधेरा केवल रोशनी की अनुपस्थिति मात्र है। जिस तरह असफलता केवल सफलता की गैरमौजूदगी है।

अपने से योग्य व्यक्ति, बॉस और बुजुर्ग को कभी सलाह नहीं देनी चाहिए।
अगर वह कुछ गलत भी कर रहे हों तो आंखे मूंद कर निकल जाना चाहिए, ऐश करोगे।

जब पेपर हो आउट ऑफ कंट्रोल आनसर शीट को करके फोल्ड एरोप्लेन बना के बोल आल इज फेल

बरसों पुरानी डायन पर संसद में चर्चा हो गई ख़ुश हो जाओ कि कागज़ पर महंगाई कम हो गई Y

सफलता का मंत्रा ‘
1- कभी टॉप न करो , वर्ना लोग तुमसे जलने लगेंगे।
2- हमेशा क्लास में लेट आओ , इस तरह हर टीचर तुम्हें याद रखेगा।
3- ज्यादा पढ़ने से टाइम वेस्ट होता है और टाइम वेस्ट करना गुनाह है।
4- कभी टेस्ट न दो क्योंकि बेइज्जती के दो नंबर से इज्जत का जीरो अच्छा है।

जिसे दिल दिया वो दिल्ली चली गई। जिसे प्यार किया वो पूना चली गई। जिसे इश्क किया वो इटली चली गई। मजबूर होकर सोचा खुदखुशी कर लूं पर जब बिजली को हाथ लगाया तो बिजली चली गई।

पढ़ो लिखो और ढूंढ़ो जॉब जीवन में रोमांस नहीं घर-घर में नल लग गए पनघट पर भी चांस नहीं

कभी सोचा है कि पत्नी को बेगम क्यों कहते हैं?
क्यों कि शादी के बाद सारे गम तो पति के हिस्से में आते हैं और पत्नी बे गम हो जाती है।

अर्ज करता हूं दबंग के प्यार में मुन्नी हुई दीवानी
मुन्नी हो गई पुरानी क्योंकि अब आगई शीला की जवानी

Girl : मेरी एक-एक सांस पर एक-एक लड़का मरता है.
Boy : तो कोई अच्छा सा टूथपेस्ट क्यों नहीं इस्तेमाल करती ?

सपने हर चीज को आसान बना देते हैं, आशाएं कोशिश को हकीकत बना देती हैं,प्यार जिंदगी को खूबसूरत बना देता है और मुस्कुराहट से यह सारे काम किए जा सकते हैं, तो रोज ब्रश करना न भूलें।

अगर आप बस पे चढ़ें... या फिर बस आप पे चढ़े... दोनों मर्तबा टिकट आपका ही कटता है.

अगर आपका वजन ज्यादा है तो आपका दोस्त कभी भी अपना वजन घटाने की कोशिश नहीं करेगा।
दूसरे को मोटा देख सभी खुद को पतला समझते हैं।

प्रश्न - प्यार करके शादी करनी चाहिए या शादी करके प्यार करना चाहिए ?
उत्तर - शादी करके प्यार करना चाहिए पर इसकी खबर बीवी को नहीं होनी चाहिए.

कम्प्यूटर एक आधुनिक यंत्र है। यह यंत्र भले ही आपको शतरंज के खेल में मात दे दे लेकिन बॉक्सिंग में आप से कभी नहीं जीत सकता। इसलिए ध्यान रखें कि आप मनुष्य हो कम्प्यूटर आपने बनाया है कम्प्यूटर ने आपको नहीं। बलशाली हमेशा आप ही रहोगे।

ज़रा हंस लो

मंदिर की परिक्रमा करने से क्या होता है?


मंदिर या घर पर पूजा के समय हम भगवान की परिक्रमा जरूर करते हैं। कभी सोचा है आखिर क्यों हम भगवान की परिक्रमा करते हैं? इससे लाभ क्या होता है और भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
दरअसल भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है ही, विद्वानों का मत है भगवान की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है। परिक्रमा करने का व्यवहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है।
मंदिर में भगवान की प्रतिमा के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का घेरा होता है, यह मंत्रों के उच्चरण, शंख, घंटाल आदि की ध्वनियों से निर्मित होता है। हम भगवान की प्रतिमा की परिक्रमा इसलिए करते हैं कि हम भी थोड़ी देर के लिए इस सकारात्मक ऊर्जा के बीच रहें और यह हम पर अपना असर डाले।
इसका एक महत्व यह भी है कि भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है।

रोज योग क्यों करें?


- योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी वेज्ञानिक एवं प्रामाणिक व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।
- योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
- आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोडऩे और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्व है।
- योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।
- योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बडिय़ां उत्पन्न नहीं होतीं।
- योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।
- योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।
- योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।
- योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्म-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।
- योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।
- योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।
- योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है, और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।
- आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।
- आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत:स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अ

भागवत १७२: फल बेचने वाली का उद्धार किया श्रीकृष्ण ने

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि बालकृष्ण ने वृक्षरूपी कुबेर के पुत्रों को मुक्ति दिलाई। वृक्षों के गिरने से जो भयंकर आवाज हुई। उसे सुन नन्दबाबा आदि गोप आवाज की दिशा में दौड़े। उन्होंने देखा कि दो वृक्ष गिरे हुए हैं और पास ही बालकृष्ण ओखल से बंधे हुए खेल रहे हैं। किसी को कुछ समझ नहीं आया कि वृक्ष कैसे गिरे?

वहां कुछ बालक खेल रहे थे। नंदबाबा से उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि कृष्ण इन दोनों वृक्षों के बीच में से होकर निकल रहा था। ऊखल तिरछा हो जाने पर दूसरी ओर से इसने उसे खींचा और वृक्ष गिर पड़े। हमने तो इनमें से निकलते हुए दो पुरुष भी देखे हैं। इस बात को किसी ने नहीं माना। तब नन्दबाबा ने कृष्ण के बंधन खोलकर उसे गोद में उठा लिया और आश्चर्य से देखने लगे।
एक दिन कान्हा के घर के सामने से एक फल बेचने वाली निकली। वह आवाज लगाती जाती- ताजे मीठे फल ले लो। यह सुनकर कृष्ण भी अंजुलि में अनाज लेकर फल लेने के लिए दौड़े। अनाज तो रास्ते में ही बिखर गया, पर फल बेचने वाली ने बालकृष्ण की मोहिनी सूरत देखकर उनके हाथ फल से भर दिए। भगवान ने उसके इस प्रेम के बदले में उसकी फल रखने वाली टोकरी रत्नों से भर दी।
वास्तव में वह फल भगवान के प्रति प्रेम व आस्था का प्रतीक हैं और वह रत्न भगवान द्वारा दिया गया उपहार। इस घटना से अभिप्राय है कि यदि हम प्रेम व आस्था से भगवान की भक्ति करेंगे तो भगवान भी अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करेंगे।

कैसे हुआ भीम व हिडिम्बा का विवाह?


जब भीमसेन ने हिडिम्बासुर का वध किया और सभी पाण्डव माता कुंती के साथ वन से जाने लगे तो हिडिम्बा भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। हिडिम्बा को पीछे आता देख भीम ने उससे जाने के लिए कहा तथा उस पर क्रोधित भी हुए। तब युधिष्ठिर ने भीम को रोक लिया।
हिडिम्बा ने कुंती व युधिष्ठिर से कहा कि इन अतिबलशाली भीमसेन को मैं अपना पति मान चुकी हूं। इस स्थिति में अब ये जहां भी रहेंगे मैं भी इनके साथ ही रहूंगी। आपकी आज्ञा मिलने पर मैं इन्हें अपन साथ लेकर जाऊंगी और थोड़े ही दिनों में लौट आऊंगी। आप लोगों पर जब भी कोई परेशानी आएगी उस समय मैं तुरंत आपकी सहायता के लिए आ जाऊंगी। हिडिम्बा की बात सुनकर युधिष्ठिर ने भीमसेन को समझाया कि हिडिम्बा ने तुम्हें अपना पति माना है इसलिए तुम भी इसके साथ पत्नी जैसा ही व्यवहार करो। यह धर्मानुकूल है। भीमसेन न युधिष्ठिर की बात मान ली।
इस प्रकार भीम व हिडिम्बा का गंर्धव विवाह हो गया। तब युधिष्टिर ने हिडिम्बा से कहा कि तुम प्रतिदिन सूर्यास्त के पूर्व तक पवित्र होकर भीमसेन की सेवा में रह सकती हो। भीमसेन दिनभर तुम्हारे साथ रहेंगे और शाम होते ही मेरे पास आ जाएंगे। तब भीम ने कहा कि ऐसा सिर्फ तब तक ही होगा जब तक हिडिम्बा को पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी।
हिडिम्बा ने भी स्वीकृति दे दी। इस प्रकार भीम हिडिम्बा के साथ चले गए।

प्रेम की पहचान तो ऐसे ही होती है

कहते हैं प्रेम की पहचान के लिए कोई शब्द और साक्ष्य की जरूरत नहीं होती। प्रेम आंखों से ही झलक जाता है। पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका, वे प्रेम की भावनाओं को आंखों से ही समझ जाते हैं। विद्वान कहते हैं कि वो रिश्ता प्रेम का हो ही नहीं सकता, जिसमें भावनाओं को शब्दों से बताया जाए। प्रेम तो वह होता है जिसमें बिना कुछ बोले और बिना कुछ सुनें हम अपनों की बात समझ जाएं।

पुराणों में नल-दयमंती की प्रेम कहानी ऐसी ही है। दयमंती एक सुंदर राजकुमारी थी। उसके राज्य से बहुत दूर किसी दूसरे राज्य में नल नाम का राजा था। नल बहुत पराक्रमी और सुंदर था। नल के राज उद्यान में दो हंस थे। उन्होंने नल को दयमंती की सुंदरता के बारे में बताया और उससे आग्रह किया कि वो दयमंती को अपनी रानी बना ले। दोनों हंसों ने दयमंती को भी जाकर नल की सुंदरता और वीरता का बखान कर दिया। दयमंती ने नल को मन ही मन अपना पति मान लिया। नल ने भी दयमंती को अपना मान लिया। दोनों में संदेशों का आदान-प्रदान होने लगा। कुछ समय के बाद दयमंती का स्वयंवर रखा गया। जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी आ गए। नल भी स्वयंवर में जा रहा था। देवताओं ने उसे रोककर कहा कि वो स्वयंवर में न जाए।
उन्हें यह बात पहले से पता थी कि दयमंती नल को ही चुनेगी। सभी देवताओं ने भी नल का रूप धर लिया। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दयमंती जरा भी विचलित नहीं हुई, उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। इस तरह आंखों में झलकते भावों से ही दयमंती ने असली नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया।

ये ही चीज हमें निडर बनाती है

बड़े-बड़े साधन होने के बाद भी आदमी भयभीत है। बड़ी सुरक्षा व्यवस्था है, बहुत धन है, बहुत बाहुबल है, बहुत लोग हैं साथ में उसके बाद भी आदमी भयभीत है। हमें निर्भय कोई नहीं कर सकता दुनिया में। भागवत कथा में एक प्रसंग है।
परीक्षित को शुकदेवजी कथा सुना रहे थे। जैसे ही कथा आरंभ हुई और भागवत के श्लोक आए तब देवताओं ने उन्हें सुने। उन्होंने विचार किया ये तो बहुत अद्भुत श्लोक हैं। ऐसे श्लोक तो हमारी पूंजी होना चाहिए। कथा चल रही थी, देवता दौड़कर नीचे आए। उन्होंने कहा- कृपया इन्हें आप हमें दे दीजिए, ये स्वर्ग की पूंजी हैं। शुकदेव बोले-परन्तु यजमान ये हैं, मैं इनको सुना रहा हूं।

देवताओं ने परीक्षित से कहा-तुम्हारी समस्या यह है कि सात दिन बाद तुम्हें तक्षक आकर डसेगा। तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। इसी कारण तुम यह भागवत सुन रहे हो। एक काम करो, हम तुम्हें अमृत देते हैं। भागवत और उसके श्लोक हमें दे दो, अमृत तुम ले लो। तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। परीक्षित ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया। देवताओं! मैं अमृत लेकर क्या करूंगा? अधिक से अधिक अमर हो जाऊंगा, पर निर्भय नहीं हो सकता। निर्भय मुझे यह कथा ही करेगी। एक बार यदि मैंने भागवत का पान कर लिया तो फिर मैं निर्भय हो जाऊंगा।
परीक्षित का उत्तर सुन देवता निरूत्तर हो गए। ऐसा हुआ भी। जब मृत्यु आई, तक्षक आया, तब परीक्षित ने कहा था मैं खड़ा हूं, मैं स्वयं अपनी मृत्यु देखना चाहता हूं, क्योंकि देह और आत्मा का अंतर समाप्त हो गया अब। अब मुझे मालूम है जो कुछ भी होना है इस शरीर के साथ होना है। उस दिन पहली बार मृत्यु शरमा गई, थक गई, दूर खड़ी हो गई। मृत्यु ने कहा-अब किसे मारें? मृत्यु का तो सारा मजा ही भय में है। भय ही समाप्त हो गया। कथा आदमी को निर्भय करती है।

दान देने से बुरा फल भी मिल सकता है...

यदि आप सोच रहे है कि दान देने से आपका बुरा समय खत्म हो जाएगा, आपके सितारे आपका साथ देने लगेंगे तो दान देने से पहले जान लें कि, आपको कौन सी वस्तु का दान शुभ फल देगा और किस वस्तु के दान देने से आपको नुकसान होगा।

सूर्य- जिस कुंडली में सूर्य मेष राशि मे स्थित होता है उस व्यक्ति को लाल रंग की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।
चंद्रमा- यदि आपकी जन्मकुण्डली में चन्द्र वृष राशि में हो तो पानी का दान नही करना चाहिए।
मंगल- अगर जन्मकुण्डली में मंगल मकर राशि में हो तो उस व्यक्ति को भूमि, संपत्ति या तांबे की वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।
बुध- जन्मकुंडली में यदि बुध कन्या राशि में हो तो आपको हरे वस्त्र या हरी वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।
बृहस्पति- यदि आपकी जन्मकुण्डली में गुरु कर्क राशि में है तो आपको पीले वस्त्र, पीली वस्तुएं और धार्मिक कार्यों में दान नही देना चाहिए।
शुक्र- जिसकी जन्मकुण्डली में शुक्रग्रह मीन राशि में स्थित हो उन्हे एश्वर्य पूर्ण वस्तुएं, मनोरंजक एवं सौंदर्य से सम्बंधित वस्तुएं किसी को दान या गिफ्ट नहीं करनी चाहिए।
शनि- यदि शनि देव की स्थिति जन्मकुण्डली में उच्च हो यानी तुला राशि में शनि हो तो, उसे व्यर्थ परिश्रम और भ्रमण नहीं करना चाहिए। और लोहा, वाहन आदि का दान नहीं देना चाहिए।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

भागवत १७१: जब श्रीकृष्ण ने मुक्ति दी कुबेरपुत्रों को

जब माता यशोदा ने बालकृष्ण को ओखल से बांध दिया तब कृष्ण वृक्ष रूप में शापित जीवन बिताने वाले कुबेर के पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव के उद्धार करने के विचार से मूसल खींचकर वृक्षों के समीप ले गए और दोनों के मध्य से स्वयं निकलकर ज्यों ही जोर लगाया कि दोनों वृक्ष उखड़ गए और इन दोनों का उद्धार हो गया।

शुकदेवजी ने कहा-परीक्षित। नलकुबेर और मणिग्रीव। ये दोनों धनाध्यक्ष कुबेर के लाड़ले लड़के थे और इनकी गिनती रुद्र भगवान के अनुचरों में भी होती थी। इससे उनका घमंड बढ़ गया। एक दिन वे दोनों मंदाकिनी के तट पर कैलाश के रमणीय उपवन में वारुणी मदिरा पीकर मदोन्मत हो गए थे। बहुत सी स्त्रियां उनके साथ गा-बजा रहीं थीं और वे पुष्पों से लदे हुए वन में उनके साथ विहार कर रहे थे। वे स्त्रियों के साथ जल के भीतर घुस गए और जल क्रीडा करने लगे। संयोगवश उधर से देवर्षि नारदजी आ निकले। उन्होंने यक्षपुत्रों को देखा और समझ लिया कि ये इस समय मतवाले हो रहे हैं।
इसलिए ये दोनों अब वृक्षयोनि में जाने के योग्य हैं। ऐसा होने से इन्हें फिर इस प्रकार का अभिमान न होगा। वृक्षयोनि में जाने पर भी मेरी कृपा से इन्हें भगवान की स्मृति बनी रहेगी और मेरे अनुग्रह से देवताओं के सौ वर्ष बीतने पर इन्हें भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त होगा और फिर भगवान के चरणों में परम प्रेम प्राप्त करके ये अपने लोक में चले आएंगे। तभी से वे वृक्षयोनि में अपने उद्धार की प्रतीक्षा कर रहे थे।

राक्षस हिडिम्बासुर का वध क्यों किया भीम ने?


लाक्षाभवन से निकलकर जब पाण्डव दक्षिण दिशा की ओर चले तो रास्ते में एक वन आया। सभी ने उसी वन में रात बिताई। उस वन में हिडिम्बासुर नाम का एक राक्षस रहता था। जब उसने मनुष्यों की गंध सूंघी तो उसने अपनी बहन हिडिम्बा से कहा कि वन में से मनुष्यों की गंध आ रही है तुम उन्हें मारकर ले आओ ताकि हम उन्हें अपना भोजन बना सकें। भाई की आज्ञा मानकर जब हिडिम्बा पाण्डवों को मारने के लिए गई तो सबसे पहले भीम को देखा जो पहरेदारी कर रहे थे।
भीम को देखकर हिडिम्बा उस पर मोहित हो गई। तब हिडिम्बा स्त्री का रूप बदलकर भीम के पास पहुंची और अपना परिचय देकर प्रणय निवेदन किया। उसने हिडिम्बासुर के बारे में भी भीम को बताया। लेकिन भीमसेन जरा भी विचलित नहीं हुए। उधर जब काफी देर तक हिडिम्बा नहीं पहुंची तो हिडिम्बासुर स्वयं वहां आ पहुंचा। हिडिम्बा को भीम पर मोहित हुआ देख वह बहुत क्रोधित हुआ और उसे मारने के लिए दौड़ा। इतने में ही भीमसेन बीच में आ गए और दोनों के बीच भयंकर युद्ध होने लगा।
आवाजें सुनकर पाण्डवों की नींद भी खुल गई। कुंती ने जब हिडिम्बा को वहां देखा तो उसका परिचय पूछा। हिडिम्बा ने पूरी बात कुंती को सच-सच बता दी। इधर भीम को राक्षस के साथ युद्ध करता देख अर्जुन उनकी मदद के लिए आए लेकिन भीम ने उन्हें मना कर दिया और अपने बाहुबल से हिडिम्बासुर का वध कर दिया। जब पाण्डव वहां से जाने लगे तो हिडिम्बा भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी।

दान का महत्व

धनीराम नामक एक सेठ बेहद कंजूस था। वह भिखारी तक को कभी एक पैसा नहीं देता था। उसकी इस आदत के कारण लोग उसे नापसंद करते थे। सेठ जिससे भी बात करने की कोशिश करता, वही उससे दूर चला जाता। उसे लगता कि शायद लोग उसकी धन-दौलत से जलते हैं, इसलिए उससे बातें करना पसंद नहीं करते। एक दिन मंदिर के निर्माण कार्य के लिए सभी से चंदा वसूला जा रहा था। न जाने उस दिन धनीराम के मन में क्या आया कि उसने रुपयों से भरी थैली पुजारी को दे दी। यह देखकर वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए। उस दिन के बाद से धनीराम जहां भी निकलता, लोग उसका हालचाल पूछते और आदर देते।
यह देखकर एक दिन सेठ फिर पुजारी के पास पहुंचा और बोला, 'पुजारी जी, देखा लोगों में धन का कितना मोह है। पहले वे मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करते थे किंतु उस दिन मैंने रुपयों से भरी थैली क्या दी कि अब सब मुझसे बात करने को आतुर रहते हैं। दौलत देखते ही सब बदल गए।' इस पर पुजारी ने मुस्कराते हुए कहा, 'सेठ जी, आपका सोचना गलत है। लोग आपका धन देखकर नहीं बदल गए हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि आप बदल गए हैं। आपके भीतर दान की भावना आ गई है। धन तो आपके पास पहले भी इतना ही था किंतु आपके अंदर दान करने की भावना नहीं थी। वास्तव में यह महत्व दान का है।' यह सुनकर धनीराम दंग रह गया। उसने संकल्प किया कि अब वह हर जरूरतमंद की मदद करेगा।

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

ईमानदारी

मैं सरकारी दफ्तर में खडा था और समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी यह फाइल चल क्यों नहीं रही जबकि इसे बगल वाले बाबू के पास ही जाना है। अरे आप कैसे सरकारी कागज छू सकते हैं, बाबू बोला जब मैंने यह कहा कि इसमें क्या है मैं रख देता हूं। - बाहर चपरासी राम प्रसाद बेंच पर बैठा होगा उसे कह दीजिये। बाबू फिर बोला।।
बाहर जब मैंने राम प्रसाद से कहा तो वह बोला, इसमें दो पहिये भी तो लगाइये चलेगी। मैंने झिझकते हुये उसे दस का नोट दिया तो वह देखने लगा और बोला, और नहीं? मेरे नकारात्मक में सिर हिलाने पर फिर बोला, चलिये पहिले आप का काम कर दें। मेरी जान में जान आई। मैं बाबू से काम कराके गलियारे से होता हुआ सीढी तक पहुंच गया तभी पीछे से बाबू-बाबू की आवाज आई। मैंने पलट के देखा तो राम प्रसाद हांफता-कांखता आ रहा था, अरे बाबू, बाकी के आठ रुपये तो लेते जाओ।।
मैंने कहा, वो कैसे? वह कुछ रुक करके बोला, लगता है नये हो, रेट नहीं मालूम। फाइल इस मेज से उस मेज तक जाने के लिये दो पहियों की जरूरत होती है, यानी दो रुपये। हम लोग कोई ऐसे ही थोडे काम करते हैं, बाबू रेट के हिसाब से ईमानदारी से काम करते हैं।।
[अजय मोहन जैन]

आंखें गर हो जायें पराई

मैं उसके खेल को दूर से निहार रही थी और बीच-बीच में मिसेज शर्मा की बातों का जवाब भी दे रही थी। परन्तु उनकी बातों से ज्यादा मेरा ध्यान उस खेल पर था जो मेरी छ: साल की मासूम बेटी अनुभूति मिसेज शर्मा की हम उम्र बेटी महक के साथ खेल रही थी। खेल कुछ दिनों से उसके व्यवहार में आये परिवर्तन के कारण मैं उसका कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगी थी।
उसका खेल बडा ही विचित्र था। उसने एक काले रंग की पट्टी महक की आंखों पर बांध दी। फिर उसके सामने अपने पेंसिल बॉक्स से पेंसिल निकालकर पूछा, ये क्या है? महक ने उत्सुकता से झटपट आंखों से पट्टी हटाई और बोली, कितनी सुंदर पेंसिल है! अनुभूति को जैसे इस उत्तर से कोई सरोकार ही नहीं था।

वह कुछ और उत्तर चाहती थी इसलिए उसने महक को दो पल घूरा और गुस्से से बोली, तुमने पट्टी क्यों खोल दी? आंखों पर पट्टी बांधकर बताओ ये क्या है? वह उठी और दोबारा उसने महक की आंखों पर वह पट्टी बांध दी। फिर कलर बॉक्स से लाल रंग निकालकर पूछा, ये कौन सा कलर है? इस बार महक ने अंदाजा लगाया और बोली, ब्लैक।- नो, दिस इज रेड।- अनुभूति चिल्लायी।
अनुभूति छोटी-छोटी बातों पर इस तरह से कभी नहीं झुंझलाती थी। पिछले कुछ दिनों से वह किसी उलझन में लग रही थी। उलझन की इसी अवस्था में उसने फिर सफेद रंग उठाकर पूछा, विच कलर इज दिस? महक ने इस बार थोडा समय लगाया और फिर बोली- ब्लैक! अनुभूति के चेहरे की शिकन बढने लगी और उसने महक के आंखों की पट्टी खोल दी और कहा- ये पट्टी मेरी आंखों पर बांधों। उसे देखकर लगा कि वो कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर चाहती है जो सामान्य नहीं हैं।
खैर! आंखों पर पट्टी बंधते ही उसने महक के पूछने से पहले ही अपनी नन्ही-नन्हीं उंगलियों को पेंसिल बॉक्स पर धीरे-धीरे घुमाया और स्पर्श से कुछ जानने की कोशिश की। इसी बीच महक ने उससे पूछा- विच कलर इज दिस? लेकिन उसने उसका कोई जवाब नहीं दिया। और अपनी धुन में मगन पेंसिल बॉक्स और कलर बॉक्स को बार-बार छूकर अलग-अलग पहचानने की कोशिश वह करती रही। महक ने फिर उससे अपना प्रश्न दोहराया परन्तु इस बार भी उत्तर न पाकर वह अनुभूति के व्यवहार से नाराज हो गई और अपने पापा व भाई जो मिसेज शर्मा के ही साथ आये थे, उनके पास चली गई। अनुभूति को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ और वह अब भी अलग-अलग रंग उठाकर उसका अंदाजा लगाने की कोशिश कर रही थी और कभी स्पर्श के माध्यम से चीजों को पहचानने की।
अनुभूति मानसिक रोगी या किसी बीमारी से ग्रस्त नहीं थी। वस्तुत: ऐसा उसके साथ तब से हो रहा था जब से वह उस नेत्रहीन बच्चे से मिली थी जो हमें नेत्र-अस्पताल में मिला था। जब हम नेत्र दान करने के लिए वहां गये थे। अनुभूति उसकी आंखों को, उसके व्यवहार को और उसकी पर-निर्भरता को को बहुत ध्यान से देख रही थी। वह बहुत समझदार, जिज्ञासु और बहुत भावुक लडकी है इसलिए शायद उसने उसे देखते ही प्रश्नों की झडी लगा दी।
- मम्मी भैया की आंखें ऐसी क्यों हैं? इनको पकडकर क्यों ले जा रहे हैं? मैं इन्हें देख रही हूं फिर भी ये मुझे क्यों नहीं देख रहे हैं? ये देखकर क्यों नहीं चल रहे हैं? क्यों चीजों से टकरा जाते हैं? और भी न जाने क्या-क्या? मैंने पूरी कोशिश की कि अपने उत्तरों से उसे संतुष्ट कर सकूं मगर वह पूर्णत: संतुष्ट नहीं हो पा रही थी। उसने फिर पूछा कि हम यहां क्यों आये हैं? मैंने बताया कि नेत्रदान करने के लिए। नेत्रदान से संबंधित उसके प्रश्नों ने फिर मुझे घेर लिया। परन्तु इस बार उसके प्रश्न मेरे नेत्रदान के फैसले को सहयोग कर रहे थे। वो मासूम जैसे मेरे फैसले से खुश हो।
हम घर आ गये परन्तु अनुभूति हर पल उस बच्चे की पीडा का अहसास करने का प्रयास करने लगी थी। यह खेल भी उसी प्रयास का ही एक हिस्सा था।
थोडी देर बाद मिसेज शर्मा परिवार और हम सभी खाने की मेज पर साथ बैठे खाना खाते हुए गपशप कर रहे थे। हमारी गपशप के बीच में एक प्रश्न ने हम सभी का ध्यान उसकी ओर मोड दिया। - अंकल क्या आपने आईज डोनेट की हैं?
उसके इस सवाल पर चंद क्षणों का सन्नाटा छा गया परन्तु फिर अचानक मिस्टर शर्मा हंसने लगे और बोले, बेटा क्या आप जानते हो कि आई डोनेशन क्या होता है?
हां, मैं जानती हूं। मम्मी ने मुझे बताया था कि जो लोग देख नहीं पाते उनको, जो लोग मर जाते हैं उनकी आंखें लगा देते हैं और वे लोग फिर से देखने लगते हैं। अनुभूति ने समझाते हुए कहा।
आप तो बहुत समझदार हो बेटा। लेकिन मैंने तो अपनी आईज डोनेट नहीं की। शर्मा जी ने कहा। क्यों? क्यों नहीं की आपने अपनी आईज डोनेट?, अनुभूति ने आश्चर्य से पूछा। शर्मा जी व्यंगात्मक लहजे से बोले, वो इसलिए बेटा, कहीं ऐसा न हो कि मरने के बाद आईज डोनेट करने पर मैं अगले जन्म में अंधा पैदा होऊं।
और पापा मैं तो अपनी आंखें कभी डोनेट नहीं करूंगा। मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद मेरी खूबसूरती में कोई कमी आये। तुरन्त उनके बेटे ने भी कहा।
उन दोनों के ये संवाद सुनकर मैं अवाक रह गई। मुझे लगा शायद बच्ची को बहकाकर शान्त करने के लिए वे ऐसा कह रहे हैं। मैंने उनसे पूछा, भाई साहब क्या आप वाकई ऐसा सोचते हैं?
हां, बहन जी। ये सच है। मैं अगले जन्म में अंधा पैदा नहीं होना चाहता। शर्मा जी ने कहा। उनका यह जवाब सुनकर सबसे पहले तो मुझे उनके पढे-लिखे अनपढ होने का अहसास हुआ।
मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, भाई साहब! जो लोग किसी दुर्घटना में विकलांग हो जाते हैं क्या वे सभी विकलांग ही पैदा होते हैं? अगर ऐसा होता तो धीरे-धीरे विकलांगों की तादात इतनी बढ जाती कि कोई भी पूर्णत: हष्ट-पुष्ट नहीं होता। और जो शरीर अग्नि में स्वाहा होकर पंचतत्वों में विलीन हो जाना है उसकी खूबसूरती या बदसूरती का कोई औचित्य ही नहीं है। हां, लेकिन हमारी आंखें यदि किसी को ये खूबसूरत दुनिया दिखाने में सफल हो जायें तो हमारी मौत अवश्य सार्थक हो जायेगी।
वैसे भी मरणोपरान्त इस मिट्टी रूपी शरीर का कोई वजूद नहीं होता। तो क्यों न इसे किसी के लिए उपयोगी बना दिया जाये? फिर डॉक्टर आपकी पूरी आंखें नहीं केवल कॉर्निया का उपयोग करते हैं। और पुन: आंखों में आई-बॉल डालकर पहले जैसा ही रूप दे देते हैं। जिससे आपकी खूबसूरती में भी कोई कमी नहीं आती। यदि हम अपनी आंखें कुछ पल के लिए बंद कर लें तो बेचैन हो उठते हैं। अपनी दुनिया देखने के लिए तडप उठते हैं। जरा सोचिए उन लोगों के विषय में जिन्हें अपनी सूरत का भी अंदाजा नहीं। अपने बच्चों की शक्ल मालूम नहीं, दुनिया के रंगों का अहसास नहीं। वे सिर्फ स्पर्श की आंखों से दुनिया को समझते हैं। पर क्या कभी स्पर्श आंखों की कमी पूरी कर सकता है?
मेरी बातें शर्मा जी को शायद बोर कर रही थीं और वे इस भाषण से मुक्ति चाहते थे। तभी वे बोल उठे, अच्छा जी! अब हम चलते हैं। काफी देर हो गई है। इस लजीज खाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। उन्हें अलविदा कहने के बाद मैं पीछे मुडी, अनुभूति जैसे मेरा ही इन्तजार कर रही थी। उसके चेहरे पर दृढ भाव थे। उसी गंभीर दृढता से वह बोली, अंकल बहुत गंदे थे ना मम्मी। वे झूठ बोल रहे थे। उनको कुछ नहीं पता। आप प्लीज मेरी आईज डोनेट कर दो। उसकी मासूमियत पर मेरी आंखें छलक उठीं और मैंने उसे सीने से लगा लिया।

दान का महत्व

धनीराम नामक एक सेठ बेहद कंजूस था। वह भिखारी तक को कभी एक पैसा नहीं देता था। उसकी इस आदत के कारण लोग उसे नापसंद करते थे। सेठ जिससे भी बात करने की कोशिश करता, वही उससे दूर चला जाता। उसे लगता कि शायद लोग उसकी धन-दौलत से जलते हैं, इसलिए उससे बातें करना पसंद नहीं करते। एक दिन मंदिर के निर्माण कार्य के लिए सभी से चंदा वसूला जा रहा था। न जाने उस दिन धनीराम के मन में क्या आया कि उसने रुपयों से भरी थैली पुजारी को दे दी। यह देखकर वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए। उस दिन के बाद से धनीराम जहां भी निकलता, लोग उसका हालचाल पूछते और आदर देते।
यह देखकर एक दिन सेठ फिर पुजारी के पास पहुंचा और बोला, 'पुजारी जी, देखा लोगों में धन का कितना मोह है। पहले वे मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करते थे किंतु उस दिन मैंने रुपयों से भरी थैली क्या दी कि अब सब मुझसे बात करने को आतुर रहते हैं। दौलत देखते ही सब बदल गए।' इस पर पुजारी ने मुस्कराते हुए कहा, 'सेठ जी, आपका सोचना गलत है। लोग आपका धन देखकर नहीं बदल गए हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि आप बदल गए हैं। आपके भीतर दान की भावना आ गई है। धन तो आपके पास पहले भी इतना ही था किंतु आपके अंदर दान करने की भावना नहीं थी। वास्तव में यह महत्व दान का है।' यह सुनकर धनीराम दंग रह गया। उसने संकल्प किया कि अब वह हर जरूरतमंद की मदद करेगा।

लाक्षाभवन से निकलने के बाद पाण्डवों ने क्या किया?

लाक्षाभवन से निकलने के बाद पाण्डव गंगा नदी के तट पर पहुंच गए। तभी वहां विदुरजी द्वारा भेजा हुआ सेवक भी आ गया । उसने नौका से पाण्डवों को गंगा के पार पहुंचा दिया। पाण्डव बड़ी शीघ्रता से आगे बढऩे लगे। सुबह जब वारणावतवासियों ने जले हुए महल को देखा तो उन्हें पता चल गया कि महल लाख का बना हुआ था। वे तुरंत समझ गए कि यह सब दुर्योधन की ही चाल थी जिसके कारण पाण्डव इस महल में जल कर मर गए। आग बुझने पर जब महल की राख को हटाया तो उसमें से भीलनी तथा उसके पांच पुत्रों के साथ ही पुरोचन का भी शव निकला। लोगों ने समझा कि यह माता कुंती तथा पाण्डवों के ही शव हैं। तब सभी दुर्योधन को धिककारने लगे।
यह खबर जब धृतराष्ट्र को लगी तो झूठ-मूठ का विलाप करने लगा। उन्होंने कौरवों को आज्ञा दी कि शीघ्र ही वारणावत जाओ और पाण्डवों का अंत्येष्टि संस्कार करो। इस प्रकार सभी लोग यह समझने लगे की पाण्डव सचमुच मर चुके हैं। विदुर सब कुछ जानते हुए भी अनजाने बने रहे।
इधर पाण्डव तेजी से दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे। माता कुंती तथा पाण्डव काफी थक चुके थे। इसलिए वे चलने में असमर्थ थे तब भीम ने माता कुंती को कंधे पर, नकुल व सहदेव को गोद में तथा युधिष्ठिर तथा अर्जुन को अपने दोनों हाथों पर बैठा लिया और तेजी से चलने लगे। थोड़ी देर बाद कुंती को प्यास लगी तो भीम ने सभी को नीचे उतार दिया और स्वयं पानी लेने के लिए चले गए। जब भीम वापस लौटे तो माता कुंती व भाइयों को इस अवस्था में देख बहुत दु:खी हुए। वह रात पाण्डवों ने वहीं वन में बिताई।

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

क्रोध ही राक्षस

एक बार कृष्ण, बलराम और सात्यकि एक घने जंगल में पहुंचे। वहां रात हो गई, इसलिए तीनों ने जंगल में ही रात बिताने का निर्णय लिया। जंगल बहुत घना और खतरनाक था। उसमें अनेक हिंसक जानवर रहते थे। इसलिए तय किया गया कि सब मिल कर बारी- बारी से पहरा देंगे। सबसे पहले सात्यकि की बारी आई, रात के पहले पहर में वे जग कर निगरानी करने लगे। कृष्ण और बलराम सोने चले गए।
उसी समय एक भयानक राक्षस आया और सात्यकि पर आक्रमण कर दिया। सात्यकि बहुत बलवान थे। राक्षस के आक्रमण से उन्हें बड़ा गुस्सा आया। क्रोध में आ कर उन्होंने भी पूरे बल के साथ उस राक्षस पर आक्रमण कर दिया। मगर सात्यकि को जितना अधिक क्रोध आता, उस राक्षस का आकार उतना ही बड़ा हो जाता। कुछ देर के बाद राक्षस अदृश्य हो गया। दूसरे पहर में बलराम पहरा देने उठे।
जब कृष्ण और सात्यकि सो गए तो बलराम के साथ भी वैसा ही हुआ, जैसा सात्यकि के साथ हुआ था। तीसरे पहर में कृष्ण पहरा दे रहे थे। राक्षस फिर आया। कृष्ण हंसते-हंसते उसका मुकाबला करने लगे। उन्हें उस पर क्रोध नहीं आया। राक्षस जितनी बार आक्रमण करता, कृष्ण उतनी बार मुस्कराते और उसके हमले का जवाब देते।
फिर आश्चर्यजनक बात हुई। कृष्ण जितना मुस्कराते, राक्षस का आकार उतना ही छोटा हो जाता। धीरे- धीरे वह छोटा होकर मच्छर के बराबर हो गया। कृष्ण ने उसे पकड़ कर अपने दुपट्टे में बांध लिया। सुबह हुई तो बलराम और सात्यकि को घायल देख कर कृष्ण ने पूछा, यह सब कैसे हुआ। तुम दोनों तो बहुत शक्तिशाली हो, तुम्हें किसने घायल कर दिया? दोनों ने रात की घटना बताई। कृष्ण ने दुपट्टे को खोल कर वह मच्छर दिखाते हुए कहा, यह रहा तुम्हारा राक्षस।
सत्य यह है कि क्रोध ही राक्षस है। जितना क्रोध करोगे, राक्षस उतना ही शक्तिशाली होता जाएगा और तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा। असल में अपने आप में राक्षस कुछ नहीं है।

लाक्षा भवन की आग से कैसे बचे पाण्डव ?


धृतराष्ट्र के कहने पर जब पांडव वारणावत पहुंचे तो वहां के नागरिकों में बड़े उत्साह से उनका स्वागत किया। दुर्योधन के मंत्री पुरोचन ने पांडवों के रहने व भोजन का उचित प्रबंध किया। दस दिन बीत जाने के बाद पुरोचन ने पांडवों को लाक्षा भवन के बारे में बताया तब माता कुंती के साथ लाक्षा भवन में रहने चले गए। युधिष्ठिर ने जब भवन को देखा तो उन्हें दुर्योधन की चाल तुरंत समझ में आ गई। यह बात युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को भी बताई। तब सभी ने यह निर्णय लिया कि यहां चतुराई पूर्वक रहना ही उचित होगा।
तभी वहां विदुरजी द्वारा भेजा गया सेवक आया जो सुरंग खोदने में माहिर था। युधिष्ठिर के कहने पर उसने भवन के बीच एक बड़ी सुरंग बनाई। और उसे इस प्रकार ढ़क दिया कि किसी को उस सुरंग के बारे में पता न चले। पांडव अपने साथ शस्त्र रखकर बड़ी सावधानी से रात बिताते थे। दिनभर शिकार खेलने के बहाने जंगलों के गुप्त रास्ते पता किया करते थे। पुरोचन को लगभग एक वर्ष बाद यह विश्वास हो गया कि पांडवों को दुर्योधन की चाल का बिल्कुल ध्यान नहीं हैं। तब युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा कि अब वह समय आ गया है जब पुरोचन का वध कर यहां से भाग निकलना चाहिए।
कुंती ने एक दिन दान देने के लिए ब्राह्मण भोज कराया। जब सब खा पीकर चले गए। एक भील की स्त्री अपने पांच पुत्रों के साथ खाना मांगने आईं। वे सब शराब पीकर लाक्षा भवन में ही सो गए। उसी रात भीमसेन ने पुरोचन के कक्ष में आग लगा दी तथा जब आग बहुत भयानक हो गई तब पांचों भाई माता कुंती के साथ सुरंग के रास्ते नगर के बाहर निकल गए। वारणावत के लोगों ने जब लाक्षा भवन जलता दिखा तो उन्हें लगा कि पांडव भी जल गए हैं, यह सोचकर वे रातभर विलाप करते रहे।

बुधवार, 19 जनवरी 2011

काले धन पर टालमटोल

विदेशों में जमा पैसे को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अभी तक सरकार का जो रुख दिखा है, उसमें कुछ बातें चिंताजनक हैं। जर्मनी की सरकार ने काले धन के खिलाफ चलाई गई अपनी मुहिम में लीख्टेंस्टाइन के एलटीजी बैंक में भारतीय खाते होने की जानकारी भारत सरकार को 2008 में ही दे दी थी। सरकार ने अदालत को बताया है कि वहां पाए गए 18 खातों में कुल 43 करोड़ 83 लाख रुपये जमा हैं, जिनके खातेदारों से 24 करोड़ 26 लाख रुपया टैक्स वसूलने के लिए वह दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में कार्रवाई शुरू कर चुकी है। यह पहाड़ खोदने पर चींटी निकलने जैसी बात है। जितनी वसूली का आश्वासन सरकार ने अदालत को दिया है, उससे ज्यादा पैसे तो अफसरों की आवाजाही और मुकदमेबाजी में निकल जाएंगे। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सरकार के पास इस मामले में कुल 21 दस्तावेज हैं, जिनमें 16 को अति गोपनीय बताते हुए उनके बारे में वह कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में अदालत ने उससे ठीक ही पूछा है कि आखिर किस हक से वह अपने पास मौजूद कुछ नामों को गोपनीय रखना चाहती है? सरकार कहती है कि पिछले साल स्विट्जरलैंड के साथ डबल टैक्सेशन एवॉयडेंस एग्रीमेंट पर दस्तखत हो जाने से वह अब काले धन से जुड़ी और भी सूचनाओं तक अपनी पहुंच बना सकती है। लेकिन लीख्टेंस्टाइन में जमा पैसे पर उसका जो रवैया अब तक नजर आया है, उससे लगता नहीं कि स्विट्जरलैंड में वह कोई बहुत बड़ा तीर मार लेगी। यह आश्चर्यजनक है कि देश का पैसा विदेशों में जमा करने का मसला सरकार के लिए यूं ही सिर खुजा लेने जैसा सहज है। टैक्स बचाने के लिए कुछ लोगों ने अपना पैसा बाहर जमा कर रखा है, इसका पता चलते ही उनसे टैक्स जमा करने को कह दिया गया! सरकार को यह याद दिलाने के लिए कि यह मामला सिर्फ टैक्स बचाने का नहीं है, सुप्रीम कोर्ट को उसे डांटना पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के लगभग 70 लाख करोड़ रुपये, यानी इसके जीडीपी से भी ज्यादा रकम विदेश में जमा है। लेकिन सरकार इस मद में मात्र 43 करोड़ रुपये की जानकारी होने की बात कह कर राई की ओट में पहाड़ छिपाने जैसा करतब कर रही है। अमेरिका के लिए टैक्स हैवन्स से अपना पैसा वापस लाना अपने विशाल जहाज में एक छोटा छेद बंद करने जैसा है, लेकिन भारत के लिए तो यह अपनी वास्तविक अर्थव्यवस्था से भी बड़ी एक समानांतर काली अर्थव्यवस्था से निपटने का मामला है। यूपीए सरकार को यह सोचना चाहिए कि 2जी स्पेक्ट्रम या कॉमनवेल्थ जैसे घपलों-घोटालों से इसकी कोई तुलना नहीं है। इस मामले में वह जितनी गोपनीयता बरतेगी या इसे टरकाने का प्रयास करेगी, उतनी ही उसकी स्थिति संदिग्ध होती जाएगी। इसलिए बेहतर होगा कि वह न सिर्फ अदालत को, बल्कि पूरे देश को बताए कि इस सिलसिले में अब तक उसने क्या किया है, आगे क्या करने वाली है, और अगर कुछ बातें यदि वह अभी बताना नहीं चाहती, तो इसके पीछे कारण क्या है।

नियमों से खिलवाड़

उस दिन मैं मेट्रो का इंतजार कर रहा था। तभी नजर पड़ी एक युवा जोड़े पर। मेट्रो का पहला कोच महिलाओं के लिए आरक्षित है। वह जोड़ा वहीं पर खड़ा था। गार्ड लड़के से वहां से निकलने के लिए कह रहा था। मगर लड़की उसे वहां से जाने नहीं दे रही थी। गार्ड खिसियानी हंसी के साथ उनसे गुजारिश कर रहा था, मगर लड़की लगातार उससे बहस किए जा रही थी। आसपास खड़ी महिलाएं देख रही थीं। मगर कोई कुछ बोल नहीं रही थीं।
मैंने उनसे पूछा- क्या बात है? लड़की थोड़ी हैरान हुई, मगर कुछ नहीं बोली। गार्ड ने कहा- सर, मैं इनसे कह रहा हूं कि यह कोच केवल महिलाओं का है। यह अपने साथ इस लड़के को उस कोच में ले जाना चाहती हैं। मैंने लड़की से कहा- जब यह आपसे कह रहा है कि यह कोच केवल महिलाओं का है तो आप क्यों नहीं इसकी बात मानती। लड़की ने जवाब दिया- आप अपना काम कीजिए। मैंने कहा- काम तो करूंगा, मगर यह भी बता दूं कि आप गलत कर रही हैं? लड़की बोली- क्या गलत है? मैंने कहा- यह कोच महिलाओं का है, आप किसी पुरुष को उसमें ले जाना चाहती हैं। लड़की ने तपाक से कहा- यह मेरा बॉयफ्रेंड है। जब किसी और को ऐतराज नहीं है, तो आप क्यों बीच में पड़ रहे हैं। मैंने कहा- नियम-कानून भी तो कोई चीज है।
अब लड़की का पारा चढ़ गया। बोली- इतनी बातें कह रहे हैं, आप कौन हैं? मैने विनम्रता से कहा- मैं पत्रकार हूं। अपना फर्ज समझकर आपको समझा रहा हूं। सरकार ने आपकी हिफाजत के लिए ही यह नियम बनाया है आपको उसका पालन करना चाहिए। लड़की बोली- यह तो बस मेरे साथ कोच में खड़ा रहेगा। मैंने कहा- अगर आप जैसी 20 से 30 पर्सेंट लड़कियां भी अपने बॉयफ्रेंड को बातचीत के लिए महिलाओं के कोच में ले जाना शुरू कर दें तो फिर उस कोच का औचित्य क्या रहा जाएगा। तभी एक पुलिस वाला आ गया। मैंने उसे सारी बातें बताई। उसने लड़की से कहा- अपने बॉयफ्रेंड के साथ जाना है, जनरल कोच में जा। जी भर के बातचीत कर। कौन रोकता है। काहे झमेला कर रही है। तब लड़का-लड़की भुनभुनाते हुए वहां से चल दिए।
जाते-जाते लड़की अंग्रेजी में यह कहना नहीं भूली- छोटी मानसिकता है इनकी। पता नहीं कब सुधरेंगे। जाते-जाते पुलिस वाले ने एक बड़ी बात कही- बुरा मत मानिए, चाहे कानून तोड़ने की बात हो या भ्रष्टाचार की, सबकी शुरुआत आम आदमी से होती है। अगर मैंने इस लड़की को कानून तोड़ने के लिए गिरफ्तार कर लिया होता तो इसके परिवार वाले किसी अफसर या नेता को फोन कर देते। हमें उनका फोन आ जाता, हमें छोड़ना पड़ता। बदनाम हम होते। अगर आम आदमी सुधर जाए तो सब कुछ सुधर जाएगा। मैं यही सोचता रहा कि हम पहले सिस्टम से सुविधाओं की मांग करते हैं फिर उन्हीं का दुरुपयोग शुरू कर देते हैं। उस लड़की ने समाज से यही मानसिकता हासिल की।

डर-डर कर जीना

उस दिन मैं अपने पति के साथ किसी रिश्तेदार के यहां ग्रेटर नोएडा गई थी। लौटते हुए रात हो गई। हमारी गाड़ी बिसरख के रास्ते गाजियाबाद की तरफ दौड़ रही थी। रास्ता सुनसान और काफी खराब था। अचानक एक जगह गाड़ी एक गड्ढे में फंस गई। हम जितना उसे निकालने की कोशिश करते, वह उतना धंसने लगती। मैं गाड़ी से बाहर आ गई और मेरे पति गाड़ी और गड्ढे से जद्दोजहद करने लगे। आसपास कोई नहीं था। अंधेरा घना हो रहा था। मैं गहनों से लदी थी। मन में कई तरह की आशंकाएं घर कर रही थीं। मेरे पति गाड़ी निकालने की भरपूर कोशिश कर रहे थे कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी हमारे पास आकर रुक गई। उसमें से दो लड़के उतरे।
दोनों लंबे चौड़े और कसी हुई कद काठी के थे। वे मेरे पति से बात करने लगे। उन्हें देखकर मेरी सांसें थम गईं। जेहन में हाल में पढ़ी कई खबरें घूमने लगीं। उन लड़कों ने लोकल भाषा में एक दूसरे से बात की और मेरे पति को गाड़ी से उतरने को कहा। वह उतर गए। उनमें से एक ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और दूसरा मेरे पति के साथ गाड़ी को धक्का लगाने लगा। कुछ ही देर में गाड़ी गड्ढे से बाहर आ गई। वह लड़का गाड़ी से बाहर आ गया। मेरे पति ने उन्हें धन्यवाद दिया और हम आगे बढ़ गए।
हमारा सकुशल पहुंचना यकीनन किसी इत्तफाक से कम नहीं था। रास्ते में मेरा मन अपराध बोध से भर उठा था। मैंने उन लड़कों को क्यों गलत समझा? वो तो हमारी मदद कर रहे थे। अगर वो न आते तो न जाने क्या होता। दरअसल आज हमारे समाज का माहौल ही ऐसा हो गया है कि हमें हर कोई पहली नजर में संदिग्ध लगता है। महिलाओं को तो खासतौर से ऐसा ही लगता है। अपने आसपास जो कुछ झेलना पड़ रहा है, उस कारण उनके मन में डर का बैठना स्वाभाविक है। मुझे एक वाकया अकसर याद आता है। एक बार मैं ब्लू लाइन बस में सवार हुई। बस लगभग खाली थी।
मैं गेट के पास वाली दूसरे नंबर की सीट पर बैठ गई। मेरे आगे कंडक्टर बैठा था। उसने बस में मौजूद अपने साथी को इशारे में कुछ कहा। लगा जैसे वह मेरे बारे में कुछ कह रहा है। उस व्यक्ति ने, जो बेहद खतरनाक लग रहा था, उसकी तरफ देखकर हामी भर दी और थोड़ा मुस्कराया। उसके बाद बस का ड्राइवर भी किसी बात पर पीछे देखकर मुस्कराया। कनखियों से सब कुछ देख रही मैं घबरा गई। मैंने तुरंत पीछे पलट कर देखा। बस में 3-4 लोग बैठे थे। मेरे बिल्कुल पीछे एक महिला बैठी थी। उसे देखकर कुछ राहत महसूस की। तुरंत फैसला किया कि जहां यह महिला उतरेगी, मैं भी वहीं उतर जाऊंगी। मुझे बाराखंभा जाना था, लेकिन उस महिला के साथ मैं तिलक ब्रिज स्टॉप पर ही उतर गई। वहां से डीटीसी की थोड़ी भरी हुई बस में बैठकर मंजिल तक पहुंची। आखिर ऐसा समय कब आएगा, जब महिलाएं सड़क पर बेखौफ निकल सकेंगी?

दो कहानियां

परोपकार की सीख
अरब के एक खलीफा बेहद ईमानदार और न्यायप्रिय थे। एक बार वह बीमार हो गए। उनका काफी इलाज कराया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अपना अंत समय जान खलीफा ने खजांची को बुलाया और उससे पूछा, 'बताओ, खलीफा बनने के बाद मेरी निजी संपत्ति कितनी बढ़ी है?' खजांची ने हिसाब लगाया और बोला, 'हुजूर, आपकी निजी संपत्ति में एक ऊंट, एक दुशाला और एक बकरी का इजाफा हुआ है।' खलीफा ने उन्हें गरीबों में बांट देने का हुक्म दिया। इसके बाद उन्हें यह भी पता चला कि उन्होंने राजकोष से पांच हजार दिरहम लिए थे।
इस पर वह बोले, 'मेरा घर बेचकर पांच हजार दिरहम खजाने में जमा कर दिए जाएं और जो बचें उन्हें गरीब लोगों व अनाथ बच्चों में बांट दिया जाए।' इसके बाद वह अपने आसपास खड़े सभी लोगों से बोले, 'मेरी आखिरी यात्रा में सिर्फ तीन कपड़े मेरे जिस्म पर हों, जिनमें से दो तो इस वक्त मेरे शरीर पर हैं ही। तीसरा कपड़ा खरीद कर मुझ पर डाल दिया जाए।' यह सुनकर उनके कुछ मित्र बोले, 'हम तीनों नए कपड़े खरीद ही सकते हैं और फिर अंतिम यात्रा में तो नए कपड़े लिए जाने चाहिए, भला पुरानों से काम क्यों चलाया जाए?' उन मित्रों की बात सुनकर खलीफा बोले, 'अरे भाई, क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धरती पर नए कपड़ों की जरूरत मुर्दों के बजाय जिंदा लोगों को ज्यादा है। आप लोग कृपया जिंदा लोगों को ही नए कपड़े देने का प्रयास करें।' यह सुनकर सभी लोग खलीफा के प्रति श्रद्धा से भर उठे।

मां और शिक्षक
एक गरीब मां चाहती थी कि उसका बेटा पियानो सीख कर एक बड़ा कलाकार बने। वह उसे हर रोज संगीत शिक्षक के पास ले जाती, किंतु बच्चा चाह कर भी सीख नहीं पाता। सिखाने वाले शिक्षक काफी प्रसिद्ध थे। वे भी बच्चे को सिखाने की कोशिश करते, पर कई बार झल्ला कर मना कर देते। फिर भी मां हर रोज उसेले कर आती और पूरे क्लास के दौरान बाहर बैठी रहती। एक दिन मास्टर ने कहा कि आपका बेटा नहीं सीख सकता, इसे ले जाओ। यह तो मेरी भी बदनामी करा देगा कि किसने सिखाया है, जो इतना बेसुरा बजाता है। वह लड़का मां के साथ वापस चला गया और फिर दोबारा क्लास के लिए नहीं आया। कुछ समय बाद स्कूल के वार्षिक उत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें पुराने छात्र भी आमंत्रित किए गए।
समारोह में वह बालक भी आया। उसने मैले- कुचले कपड़े पहन रखे थे। टीचर ने उसे देखा, तो उन्हें दया आ गई। उन्होंने कहा कि आज तुम्हें भी बजाने का मौका दूंगा, लेकिन जरा बाद में। वह लड़का पीछे जाकर बैठ गया। काफी बच्चे आए और उन्होंने बहुत अच्छा बजाया। आखिर में इसकी बारी आई। लेकिन उसने इतना अच्छा पियानो बजाया कि सभी मंत्रमुग्ध हो गए। टीचर ने जा कर उसे गले लगा लिया। फिर पूछा, इतना अच्छा कैसे सीखा, तुम तो बिल्कुल नहीं बजा पाते थे। लड़के ने बताया, मेरी मां चाहती थी कि मैं अच्छा पियानो बजाना सीखूं, किंतु उन्हें कैंसर था। इसकी वजह से वह सुन नहीं सकती थीं। अब वह सुन सकती है। मैंने उसी को सुनाने के लिए बजाया था। संगीत शिक्षक श्रोताओं की ओर देखने लगा, क्या वो आई हैं? कहां बैठी हैं?
बच्चे ने धीरे से कहा, वे जिंदगी की इस लड़ाई में आज हार गईं। लेकिन स्वर्ग से शायद वे मेरा पियानो सुन सकें। सुन कर सबकी आंखें भींग गईं। और टीचर ने उस बच्चे से माफी मांगी। सच्चा शिक्षक वह नहीं, मां थी जिसके पास इतना धैर्य था।

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

क्रिकेट वर्ल्डकप 2011

वर्ल्डकप क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन 19 फरवरी से होने जा रहा है। इसकी मेजबानी भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश संयुक्त रूप से कर रहे हैं। क्रिकेट के इस महासंग्राम से जुड़ी सभी जानकारियाँ आप 'क्रिकेट वर्ल्डकप 2011 अपडेट' लिंक के माध्यम से नियमित प्राप्त कर सकते हैं। प्रस्तुत हैं वर्ल्डकप से जुड़े अब तक के अपडेट...

* गौतम गंभीर ने संकेत दिए हैं कि वे वर्ल्डकप के समापन के बाद वह परिणय सूत्र में बँध सकते हैं।
* ब्रायन लारा भारत को खिताब का प्रबल दावेदार मानते हैं, लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि भारत पर घरेलू उम्मीदों का भारी दबाव रहेगा।
* मशहूर कोच देश प्रेम आजाद का मानना है कि वर्ल्डकप के लिए चुनी गई भारतीय क्रिकेट टीम किसी भी लिहाज से संतुलित नहीं है।
* माइकल हसी को ऑस्ट्रेलिया की वर्ल्डकप टीम में शामिल जरूर किया है लेकिन बाएँ पैर की सर्जरी होने के बाद उनका वर्ल्डकप में खेलना संदिग्ध नजर आ रहा है।
* पाकिस्तान के चयनकर्ताओं ने अजूबा पेश करते हुए वर्ल्डकप के लिए 15 सदस्यीय टीम की घोषणा कर दी लेकिन उसने कप्तान का ऐलान नहीं किया। माना जा रहा है कि मिस्बाह उल हक पाकिस्तान टीम के कप्तान बनाए जाएँगे। पाक टीम से सीनियर खिलाड़ी मोहम्मद यूसुफ बाहर हैं।
* ऑस्ट्रेलिया ने भी अपनी 15 सदस्यों की टीम की घोषणा कर दी और इस टीम में तूफानी गेंदबाज ब्रेट ली और शॉन टेट को जगह दी है। एशियाई विकेटों को स्पिन गेंदबाजी की खान माना जाता है, ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ताओं द्वारा टीम में दो तेज गेंदबाज रखना, क्रिकेट बिरादरी में चर्चा का ‍‍विषय बना हुआ है।
* न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग ने वर्ल्डकप के बाद भारतीय टीम के कोच बनने की संभावनाओं को सिरे से नकारते हुए कहा कि मैं अपने परिवार के साथ वक्त बिताना चाहता हूँ। मेरे लिए अब कोचिंग परिवार से बढ़कर नहीं है। उल्लेखनीय है कि वर्ल्डकप के बाद गैरी कर्स्टन का भारत के साथ कोचिंग करार खत्म हो जाएगा।
* भारतीय कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी ने पीयूष चावला के चयन को उचित बताया जबकि कुछ क्रिकेट समीक्षकों ने चावला के चयन पर सवाल उठाए।
* मुख्य चयनकर्ता कृष्णमाचारी श्रीकांत ने दावा किया है कि 2011 के वर्ल्डकप के लिए घोषित टीम 'सर्वश्रेष्ठ टीम' है। उन्हें भरोसा है कि इसी टीम के हाथों में विश्वकप होगा।
* भारत की 15 सदस्यीय टीम का चयन 16 जनवरी को चेन्नई में किया गया, जिसमें महेन्द्रसिंह धोनी (कप्तान), वीरेन्द्र सहवाग (उपकप्तान), सचिन तेंडुलकर, गौतम गंभीर, विराट कोहली, युवराज सिंह, सुरेश रैना, यूसुफ पठान, हरभजन सिंह, जहीर खान, आशीष नेहरा, प्रवीण कुमार, मुनाफ पटेल, आर. अश्विन और पीयूष चावला शामिल हैं। रोहित शर्मा, श्रीसंथ और ईशांत शर्मा को भारतीय टीम में जगह नहीं मिली।
* आईसीसी के मुख्यकार्यकारी हारुन लोर्गट ने कहा कि 2011 वर्ल्डकप के सभी स्टेडियम आयोजन से पूर्व तैयार हो जाएँगे। सनद रहे कि मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम समेत 5 स्टेडियमों में निर्माण चल रहा है।
* क्रिकेट ऑस्ट्रे‍लिया के चयनकर्ता ग्रेग चैपल का मानना है कि 2011 के वर्ल्डकप में शेन वॉटसन ऑस्ट्रेलियाई टीम के लिए सफलता की कुंजी स‍ाबित हो सकते हैं।
* पॉल कॉलिंगवुड ने भविष्यवाणी है कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड की टीमें सेमीफाइनल के दरवाजे तक पहुँच सकती है।
* कैस्ट्रोल इंडिया ने अपना ‍आईसीसी वर्ल्डकप लांच किया। टीवी पर कैस्ट्रोल के विज्ञापन में सचिन तेंडुलकर नजर आ रहे हैं। सचिन को हाल ही में कैस्ट्रॉल ने अनुबंधित किया है।
* वर्ल्डकप के ग्लोबल प्रायोजक पैप्सी के लिए महेन्द्रसिंह धोनी, वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह, सुरेश रैना और विराट कोहली ने बॉडी पेंट करवाई। क्रिकेटरों के बॉडी पेंट का भारतीय क्रिकेट इतिहास में यह पहला मौका है।
* उद्योग जगत की जानकारी के अनुसार आईसीसी 2011 के वर्ल्डकप के टिकटों की ब्रिकी से 150 करोड़ रुपए तक की आय होने का अनुमान है। भारत, श्रीलंका तथा बांग्लादेश में कुल मिलाकर 20 लाख टिकटें इस दौरान बेची जानी हैं।
* सनथ जयसूर्या और चमिंडा वास को श्रीलंका की 15 सदस्यीय वर्ल्डकप टीम में शामिल नहीं किया गया है। श्रीलंका को 1996 में वर्ल्डकप दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले जयसूर्या और वास के अंतराष्ट्रीय करियर के खत्म होने का यह संकेत है।
* श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रीय चयन समिति से वर्ल्डकप के लिए देश की सर्वश्रेष्ठ टीम का चयन करने का आग्रह करते हुए कहा कि निजी प्राथमिकता के कारण कोई बेहतर खिलाड़ी टीम से बाहर नहीं होना चाहिए।