गुरुवार, 25 सितंबर 2014

जंगल की पहरेदार अन्नधरी देवी

देश दुनिया के जंगलों से लगातार वृक्ष कम होते जा रहे हैंजहां जंगलों कीजगह अब बसाहट होने लगी है और पर्यावरण की रीढ़ माने जाने वाले पेड़पौधे कटते जा रहे हैं। वहीं पहरिया पाठ में एक ऐसा जंगल हैजहां कीलकड़ियां काटने से पहले लोग हजार बार सोचते हैंफिर भी उनकी हिम्मतसाथ नहीं देती। यहां जंगल की पहरेदार हैं मां अन्नधरी देवी। जिसे इस क्षेत्रके लोग जंगल की देवी मानते हैं। यहां लकड़ियां काटना तो दूर लोग जमीनपर गिरी हुई लकड़ियों को भी अपने घर नहीं ले जाते। इस डर से कि कहींमां अन्नधरी उन पर नाराज  हो जाए।
जिला मुख्यालय जांजगीर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पहरिया की मां अन्नधरी देवी की ख्याति दूर-दराज तक है। यहां प्रतिवर्ष क्वांर व चैत्र नवरात्रि में ज्योतिकलश प्रजज्वलित किए जाते हैं। जमीन से सौ फीट उपर पहाड़ पर मां अन्नधरी दाई का मंदिर स्थापित हैं, जहां पहुंचने के लिए लोगों को पहाड़ चढ़नापड़ता है। ऐसा पहाड़, जिसके दोनों तरफ घनघोर जंगल है। करीब 50 एकड़ क्षेत्रफल में फैले पहरिया पाठ जंगल की हरियाली अब तक कायम है। इसकी वजह ग्रामीण बताते हैं कि यहां मां अन्नधरी दाई साक्षात् रूप से जंगल की रखवाली करती हैं। अगर किसी ने जंगल को नुकसान पहुंचाने, पेड़ पौधे काटने की जुर्रत की, तो उसका हश्र अच्छा नहीं होता। इसी वजह से आसपास के ग्रामीण जंगल से किसी भी हालत में लकड़ियां अपने घर नहीं ले जाते और न ही किसी को बेच सकते। एक बार गांव के एक व्यक्ति ने जंगल से लकड़िया काटकर उसे घर में उपयोग कर लिया। जिससे उस परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। मां अन्नधरी दाई के कोप से उस परिवार के कई लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए तथा आर्थिक रूप से परेशान रहने लगे। कुछ दिनों बाद बीमारी से उस ग्रामीण की भी मौत हो गई। बाद में परिजनों ने मां अन्नधरी दाई के मंदिर में जाकर क्षमा याचना की पूजा पाठ किया, तब जाकर परिवार को राहत मिली। इस तरह की कई घटनाएं होने के बाद ग्रामीणों को विश्वास हो गया कि मां अन्नधरी स्वयं जंगल की पहरेदारी करती हैं। मां के प्रभाव से ही पहरिया जंगल आज भी हरियाली से लबरेज है। जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले हर गांव, शहर में बढ़ते जा रहे हैं, वहीं यहां के जंगल में एक भी लकड़ी काटने के लिए कोई तैयार नहीं होता। इससे पर्यावरण का संरक्षण भी हो रहा है और मां अन्नधरी के प्रति लोगों की आस्था बनी हुई है।

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