गुरुवार, 25 सितंबर 2014

मां लखनी

कलचुरी राजाओं की राजधानी रतनपुर में माँ महामाया शक्तिपीठ के साथ ही लखनी देवी का भी विशेष महत्व है। लखनी देवी मंदिर छत्तीसगढ़ का एकमात्र महालक्ष्मी का ऐतिहासिक और पौरोणिक महत्व का मंदिर कहा जा सकता है।लखनी देवी मंदिर हरे भरे वृक्षों से ढंकी एक पहाड़ी पर स्थित है। पहाड़ी के पत्थरों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं। राजा रतनदेव द्वितीय के महामंत्री पंडित मंगाधर शास्त्री द्वारा बनवाए गए इस मंदिर का आकार पुराणों में वर्णित पुष्पक विमान की तरह है।

बिलासपुर कोरबा मुख्य मार्ग पर स्थित रतनपुर कभी कल्चुरी राजाओं की राजधानी रहा है। एक किवदंती के अनुसार करीब एक हजार वर्ष पहले राजा रत्नदेव माणिपुर नामक गांव में शिकार के लिए आए थे और रात्रि में एक वटवृक्ष में विश्राम के दौरान आदिशक्ति माँ महामाया की सभा से चकित होकर अपनी राजधानी तुम्माणखोल से यहाँ स्थापित की थी। 1050 ईस्वी में उन्होंने महामाया मंदिर की स्थापना की, जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी और माँ सरस्वती की भव्य और कलात्मक प्रतिमाएं विराजमान है।

वहीं 1326 ईस्वी में राजा रत्नदेव तृतीय ने प्रधानमंत्री गंगाधर शास्त्री से महालक्ष्मी का ऐतिहासिक मंदिर बिलासपुर कोटा मार्ग पर करवाया। पुराणों में वर्णित पुष्पक विमान के आकार का यहां मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। अभी यहाँ सीढियों का निर्माण हो गया है। करीब तीन सौ सीढ़ी की चढ़ाई पर स्थित माँ लक्ष्मी को छत्तीसगढ़ में लखनीदेवी कहा जाता है। नवरात्रि में यहाँ मंगल ज्वार बोने के साथ ही धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।

छत्तीसगढ़ के इतिहास में नजर डाले तो लखनी देवी का मंदिर अपने स्थापन एवं निर्माण कला के लिए अद्भूत है। यहाँ क्वांर और चैत्र दोनों नवरात्रि में लाखों लोग दर्शन करने पहुँचते हैं। खासकर छत्तीसगढ़ के निवासियों में लखनीदेवी के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास है। इस मंदिर के नीचे श्री लखनेश्वर महादेव का मंदिर भी निर्मित हो गया है जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है।

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