बुधवार, 16 जुलाई 2014

स्वामी विवेकानंद की परीक्षा

(युवाओं के प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद) ----------------------------- अपेक्षा शर्मा
बात उस समय की है जब विवेकानंद शिकागो धर्मसभा में भारतीय संस्कृति पर बोलने के लिए आमंत्रित किये गये थे। शिकागो जाने से पहले विवेकानन्द स्वामी रामकृष्ण जी पत्नी मां शारदा के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे। मां ने उन्हें वापस भेजते हुआ कहा, कल आना। पहले मैं तुम्हारी पात्रता देखूंगी। उसके बाद ही मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगी। दूसरे दिन विवेकानंद आए तो उन्होंने कहा, अच्छा आशीर्वाद लेने आया है। पर पहले मुझे वह चाकू तो पकड़ा। मुझे सब्जी काटनी है, फिर देती हूं तुझे आशीर्वाद। गुरूमाता की आज्ञा मानते हुए जैसे विवेकानन्द जी ने पास पड़ा चाकू गुरू मां को दिया मां का चेहरा प्रसन्नता से खिल गया। उन्होंने कहा जाओ नरेंद्र मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा। स्वामी विवेकानंद जी आश्चर्य में पड़ गए। वे यह सोच कर आए थे कि मां उनकी योग्यता जांचने के लिए कोई परीक्षा लेगी लेकिन वहां तो वैसा कुछ भी नही हुआ। विवेकानंद जी के आश्चर्य को देखकर माता शारदा ने कहा कि प्रायः जब किसी व्यक्ति से चाकू मांगा जाता है तो वह चाकू का मुठ अपनी हथेली में थाम देता है और चाकू की तेज धार वाला हिस्सा दूसरे को दे देता है। इससे पता चलता है कि उस व्यक्ति को दूसरे की तकलीफ और सुविधा की परवाह नहीं। लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। यही तो साधू का मन होता है जो सारी विपदा खुद झेलकर भी दूसरों कसे सुख देता है। इसी से पता चलता है कि तुम शिकागो जाने योग्य हो। ०००००००००००००००००००००००

बुधवार, 9 जुलाई 2014

धरती फट रही है!!!

बहुत समय पहले की बात है किसी जंगल में एक गधा बरगद के पेड़ के नीचे लेटकर आराम कर रहा था। लेटे-लेटे उसके मन में बुरे खयाल आने लगे, उसने सोचा कि यदि धरती फट गई तो मेरा क्या होगा? अभी उसने ऐसा सोचा ही था कि उसे एक जोर के धमाके की आवाज आई। वह भयभीत हो उठा और चीखने लगा- भागो-भागो धरती फट रही है, अपनी जान बचाओ... और ऐसा कहते हुए वह पागलों की तरह एक दिशा में भागने लगा। उसे इस कदर भागता देखते हुए एक अन्य गधे ने उससे पूछा कि अरे क्या हुआ भाई, तुम इस तरह बदहवास भागे क्यों जा रहे हो? अरे तुम भी भागो… अपनी जान बचाओ, धरती फट रही है..., ऐसा चीखते हुए वह भागता रहा। यह सुनकर दूसरा गधा भी डर गया और उसके साथ भागने लगा। अब तो वह दोनों एकसाथ चिल्ला रहे थे- भागो-भागो धरती फट रही है… भागो-भागो…। देखते-देखते सैकड़ों गधे इस बात को दोहराते हुए उसी दिशा में भागने लगे। गधों को इस तरह भागता देख अन्य जानवर भी डर गए। धरती फटने की खबर जंगल में लगी आग की तरह फैलने लगी और जल्द ही सबको पता चल गया कि धरती फट रही है। चारों तरफ जानवरों की चीख-पुकार मच गई। सांप, बिच्छू, सियार, लोमड़, हाथी, घोड़े... सभी उस झुंड में शामिल हो भागने लगे। जंगल में फैले इस हो-हल्ले को सुन अपनी गुफा में विश्राम कर रहा जंगल का राजा शेर बाहर निकला। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ कि सारे जानवर एक ही दिशा में भागे जा रहे हैं। वह उछलकर सबके सामने आया और गूंजती हुई दहाड़ के साथ बोला कि ये क्या पागलपन है? कहां भागे जा रहे हो तुम सब? महाराज, धरती फट रही है, आप भी अपनी जान बचाइए। झुंड में आगे खड़ा बंदर बोला। किसने कहा यह सब? शेर ने प्रश्न किया। सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, फिर बंदर बोला कि मुझे तो ये बात चीते ने बताई थी। चीते ने कहा कि मैंने तो यह पक्षियों से सुना था और ऐसा करते-करते पता चला कि यह बात सबसे पहले गधे ने बताई थी। गधे को महाराज के सामने बुलाया गया। तुम्हें कैसे पता चला कि धरती फट रही है? शेर ने गुस्से से पूछा। ...मैंने अपने कानों से धरती के फटने की आवाज सुनी महाराज, गधे ने डरते हुए उत्तर दिया। ठीक है चलो, मुझे उस जगह ले चलो और दिखाओ कि धरती फट रही है, ऐसा कहते हुए शेर गधे को उस तरफ ढकेलता हुआ ले जाने लगा। बाकी जानवर भी उनके पीछे हो लिए और डर-डरकर उस ओर बढ़ने लगे। बरगद के पास पहुंचकर गधा बोला कि हुजूर, मैं यहीं सो रहा था कि तभी जोर से धरती फटने की आवाज आई, मैंने खुद उड़ती हुई धूल देखी और भागने लगा। शेर ने आस-पास जाकर देखा और सारा मामला समझ गया। उसने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि यह गधा महामूर्ख है। दरअसल, पास ही नारियल का एक ऊंचा पेड़ है और तेज हवा चलने से उस पर लगा एक बड़ा-सा नारियल नीचे पत्थर पर गिर पड़ा। पत्थर सरकने से आस-पास धूल उड़ने लगी और ये गधा न जाने कैसे इसे धरती फटने की बात समझ बैठा। शेर ने बोलना जारी रखा कि भाइयों, यह तो गधा है, पर क्या आपके पास भी अपना दिमाग नहीं है। जाइए, अपने घर जाइए और आइंदा से किसी अफवाह पर यकीन करने से पहले दस बार सोचिएगा। सीख- किसी की भी बात पर यकीन करने से पहले अपना दिमाग का उपयोग जरूर करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी अफवास पर भरोसा करने से पहले उस मामले की जांच अवश्य कर लेनी चाहिए।

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

'पत्थरों' पर सिर पटकती यमुना

सिसकते, आंसू बहाते ही सही, लेकिन यमुना बहना चाहती है। उजाड़-वीरान खादरों में बेफिक्री से बहती यमुना मैया अपने 'बेटों' के बीच आते ही सहम जाती है। सीवर, गंदगी, नाले, कूड़ा-करकट से आजिज यमुना के लिए अब तो अपनी धार में भी रोड़े हैं। उसके घाटों पर कंक्रीट के जंगल बसते चले गए। कालिंदी अवैध इमारतों की नींव पर सिर पटकते रोए जा रही है। हाईकोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ये आंसू पोंछना भी चाहते हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसर कुछ करने की बजाय 'नोटिस' नाम के कागज से मुंह छिपाए बैठे हैं। मामला मथुरा का हो या ताजनगरी की कहानी, यमुना की हालत कहीं बदलती नजर नहीं आती। पावन यमुना की तरह ही पावन मथुरा-वृंदावन की भूमि पर भू-माफिया आश्रम व इमारतें बनाकर यमुना की तलहटी कब्जाने में लगे हैं, तो यमुना के लिए वैसी ही हिकारत मुहब्बत की नगरी आगरा में महसूस होती है। पिछले करीब एक दशक से अवैध निर्माणों की बाढ़ सी आई हुई है। आगरा विकास प्राधिकरण, जिला प्रशासन, नगर निगम व सिंचाई विभाग की मिलीभगत से कुछ बिल्डर लगातार यमुना की तलहटी, एहतमाली भूमि व डूब क्षेत्र पर कब्जा किए जा रहे हैं। आगरा शहर में खास तौर पर दयालबाग क्षेत्र से यमुना की तलहटी पर कब्जों की शुरुआत होती है। यहां बिल्डरों के बड़े-बड़े आवासीय प्रोजेक्ट हैं। इसी तरह जगनपुर, मनोहरपुर, बल्केश्वर, जीवनी मंडी तक कतार से दर्जनों अवैध निर्माण यमुना की तलहटी में हो गए। इनमें बड़े रसूखदार बिल्डरों के प्रोजेक्ट को तो खुद सिंचाई विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र दिए व आगरा विकास प्राधिकरण ने नक्शे पास कर दिए। वहीं, दर्जनों कॉलोनियों तो बिल्कुल अवैध बन गईं। मुख्य सचिव के आदेश पचा गए अफसर 16 मार्च 2010 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने आदेश जारी किए थे कि यमुना की तलहटी और डूब क्षेत्र में जितने भी अवैध निर्माण हैं, उन्हें चिन्हित किया जाए। सभी संबंधित विभाग उन पर कार्रवाई करे। पुलिस उन निर्माणकर्ताओं पर कार्रवाई करे। साथ ही, सुनिश्चित किया जाए कि यमुना के प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई भी नक्शा पास न किया जाए। उसे हरित पट्टिका के रूप में विकसित किया जाए। इसके बाद भी किसी भी विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। एनजीटी के आदेश पर निर्माण चिन्हित, कार्रवाई शून्य: जुलाई 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश जारी किए कि यमुना डूब क्षेत्र में जितने भी निर्माण हैं, उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई की जाए। इसके बाद आगरा विकास प्राधिकरण ने हरीपर्वत वार्ड प्रथम में पोइया से बल्केश्वर तक 34, हरीपर्वत वार्ड द्वितीय में पोइया से रुनकता तक 11 व छत्ता वार्ड में 12 निर्माण चिन्हित किए। सभी के चालान काट कर एनजीटी को जानकारी भेज दी गई, लेकिन कार्रवाई किसी भी निर्माण पर अब तक नहीं की गई। मुनाफाखोरी में अपने ही नियम दफन: इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश है कि यमुना के 500 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण नहीं होना चाहिए। वहीं, एडीए का खुद का नियम कहता है कि 200 मीटर के दायरे में कोई निर्माण अनुमन्य नहीं होगा। इसके बावजूद धड़ल्ले से यमुना की तलहटी पर नक्शे पास किए जा रहे हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट मॉनीटरिंग कमेटी के सदस्य डीके जोशी व जिला प्रशासन के संयुक्त दौरे के बाद खुद प्रशासन ने रिपोर्ट में यमुना की तलहटी पर अवैध निर्माणों की रिपोर्ट दी थी। उसके बाद एडीए ने नोटिस जारी किए, लेकिन अब मामला फिर ठंडे बस्ते में पड़ा है।
'शहर में पहले तालाबों पर कब्जे किए गए। अब इस शहर के अफसर कुछ बिल्डरों के साथ मिल कर यमुना की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। हाईकोर्ट और एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन कर यमुना की तलहटी कब्जा रहे हैं। ये कितने भी प्रभावशाली लोग हों, इन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में सभी को खड़ा किया जाएगा।'

आवाज में छुपा है महिलाओं को लुभाने का राज!

एक नए शोध के मुताबिक, महिलाएं ऐसे मर्दों की ओर नहीं देखतीं जो तन्हा या रहस्यमयी बनकर गुपचुप बैठे रहते हैं। महिलाएं ऐसे मर्दों को महत्व देती हैं, जिनका स्वभाव तो शांत हो, लेकिन वे छोटे और कम शब्दों में विनम्रता के साथ अपनी बातें कह देते हों।कनाडा की युनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया की मॉली बबेल ने बताया कि जो पुरुष छोटे-छोटे शब्दों का प्रयोग करते हैं और कम बोलते हैं, वे ज्यादा आकर्षक पुरुषों के रूप में देखे जाते हैं, क्योंकि वे अधिक मर्दाना लगते हैं और अगर आपकी आवाज धीमी या मृदुल है तो मानो आप चारों खाने चित कर देने वाले हैं।

सोमवार, 7 जुलाई 2014

चतुर बिल्ली, खरगोश और चिड़ा

एक चिड़ा पेड़ पर घोंसला बनाकर मजे से रहता था। एक दिन वह दाना पानी के चक्कर में अच्छी फसल वाले खेत में पहुंच गया। वहां खाने पीने की मौज से बड़ा ही खुश हुआ। उस खुशी में रात को वह घर आना भी भूल गया और उसके दिन मजे में वहीं बीतने लगे। इधर शाम को एक खरगोश उस पेड़ के पास आया जहां चिड़े का घोंसला था। पेड़ जरा भी ऊंचा नहीं था। इसलिए खरगोश ने उस घोंसलें में झांक कर देखा तो पता चला कि यह घोंसला खाली पड़ा है। घोंसला अच्छा खासा बड़ा था इतना कि वह उसमें खरगोश आराम से रह सकता था। उसे यह बना बनाया घोंसला पसंद आ गया और उसने यहीं रहने का फैसला कर लिया। कुछ दिनों बाद वह चिड़ा खा-खा कर मोटा ताजा बन कर अपने घोंसलें की याद आने पर वापस लौटा। उसने देखा कि घोंसलें में खरगोश आराम से बैठा हुआ है। उसे बड़ा गुस्सा आया, उसने खरगोश से कहा, 'चोर कहीं के, मैं नहीं था तो मेरे घर में घुस गए हो? चलो निकलो मेरे घर से, जरा भी शरम नहीं आई मेरे घर में रहते हुए?' खरगोश शांति से जवाब देने लगा, 'कहां का तुम्हारा घर? कौन-सा तुम्हारा घर? यह तो मेरा घर है। पागल हो गए हो तुम। अरे! कुआं, तालाब या पेड़ एक बार छोड़कर कोई जाता हैं तो अपना हक भी गवां देता हैं। यहां तो जब तक हम हैं, वह अपना घर है। बाद में तो उसमें कोई भी रह सकता है। अब यह घर मेरा है। बेकार में मुझे तंग मत करो।' यह बात सुनकर चिड़ा कहने लगा, 'ऐसे बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। किसी धर्मपंडित के पास चलते हैं। वह जिसके हक में फैसला सुनाएंगे, उसे घर मिल जाएगा।' उस पेड़ के पास से एक नदी बहती थी। वहां पर एक बड़ी-सी बिल्ली बैठी थी। वह कुछ धर्मपाठ करती नजर आ रही थी। वैसे तो यह बिल्ली इन दोनों की जन्मजात शत्रु है लेकिन वहां और कोई भी नहीं था, इसलिए उन दोनों ने उसके पास जाना और उससे न्याय लेना ही उचित समझा। सावधानी बरतते हुए बिल्ली के पास जाकर उन्होंने अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा, 'हमने अपनी उलझन तो बता दी, अब इसका हल क्या है? इसका जबाब आपसे सुनना चाहते हैं। जो भी सही होगा उसे वह घोंसला मिल जाएगा और जो झूठा होगा उसे आप खा लें।' चतुर बिल्ली ने कहा- 'अरे रे !! यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, हिंसा जैसा दूसरा पाप नहीं इस दुनिया में। दूसरों को मारने वाला खुद नरक में जाता है। मैं तुम्हें न्याय देने में तो मदद करूंगी लेकिन झूठे को खाने की बात है तो वह मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं एक बात तुम लोगों को कानों में कहना चाहती हूं, जरा मेरे करीब आओ तो!!' खरगोश और चिड़ा खुश हो गए कि अब फैसला हो कर रहेगा और उसके बिलकुल करीब गए। फिर क्या? करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़ कर मुंह से चिड़े को बिल्ली ने नोंच लिया। दोनों का काम तमाम कर दिया। अपने शत्रु को पहचानते हुए भी उस पर विश्वास करने से खरगोश और चिड़े को अपनी जानें गवांनी पड़ीं। कहानी की सीख : शत्रु से हमेशा संभल कर रहना चाहिए और हो सके तो चार हाथ दूर ही रहने में ही भलाई है।

रविवार, 6 जुलाई 2014

तुम चुप क्यों हो साईं बाबा..

आस्था सिर्फ तब से नहीं है, जब से आस्था चैनल है। हां, यह हो सकता है कि मेरे अपने दिल में किसी विशेष ईश्वर, संत, वैद्य के लिए कोई खास स्थान बन खड़ा हुआ हो। अगर किताबी और बेताबी ढंग से ना देखें तो मन्‍द‍िर, मस्‍ज‍िद, चर्च की इमारतें आस्था और श्रद्धा ही तो हैं। बस इनमें हमारी भावनाओं ने मजबूती की कलई भर दी है और हमारे यकीन ने इन्हें सजा-संवार दिया है। ताजा मामला इतना बासी है कि इसे टटोलना थोड़ा सा जरूरी है। साईं बाबा, बाबा थे, या संत थे, या ईश्वर थे या हिंदु-मुस्‍ल‍िम तम एकता का प्रतीक थे या वगैरह-वगैरह थे....हम भी इसी बहस में पड़कर देखते हैं। शंकराचार्य की साध्य विचारधारा में ऐसा क्या था जो लोगों, मीडिया व शिरडी वाले के लिए असाध्य हो गया। यह वाकई कोई मामला है या बनाया जा रहा है या बन चुका है या अब बनेगा। आइए आगे बढ़ते हैं। शंकराचार्य के बयान को ध्यान से सुनने, देखने पर उनकी आधी बात पर निगाह टिक जाती है। वे कह रहे हैं कि साईं बाबा के नाम पर देश में कमाई हो रही है। कमाई होना और कमाई गलत हाथों में जाना, दो अलग बातें हैं। यदि इस तरह के कमाऊ मामले हो रहे हैं, तब इस बात को अहमियत देनी होगी कि संत समाज की नज़र अपने समाज पर रहती है, ऐसे में यह देश के हित में है कि शंकराचार्य या उन जैसा कोई और या उनसे बिल्कुल अलग कोई ऐसे सच सामने लाए। एक मामले पर नजर डालना यहां जरूरी है। अप्रैल 2013 में आरटीआई कार्यकर्ता संजय काले की ओर से आरोप लगा था कि शिर्डी मन्द‍िर में जो भी आभूषण चढ़ाए जाते हैं, उनके रखरखाव सम्बंधी नियमों पर आंखें मूंद ली गईं। कहा गया कि जो खजाना गुरुवार-रविवार मन्‍द‍िर में मनाए जाने वाले उत्स वों के दौरान नीलाम होना चाहिए था, उसकी नीलामी नहीं की गई व सोने को गला कर रखा गया, जो कि नियमों के सख्त खिलाफ था। हालांकि इस मामले की भनक राज्य सरकार तक पहुंची। शिरडी से लेकर तिरुपति तक के तीर्थस्थलों में इस तरह की शिकायतें आम हैं। हमारे देश में धर्म का 'ध' भी फूंक-फूंक कर लिखा जाता हे, ऐसे में कोई आम आदमी इस तरह के घपलों की खबरें सामने लाने में कई बार सोचता है। इसी सोच-विचार की आड़ में सिक्के गिने जाते हैं और अंध श्रद्धा की आलीशान कोठियां खड़ी होती रहती हैं। जिन शंकराचार्य स्वरूपानंद ने साईं पर सवाल उठाया है, वे मोदी के ‘हर-हर मोदी' पर भी बोलने की हिम्म‍त दिखा चुके हैं। अपनी बात कहते हुए भले ही उन्हेांने मीडिया और अटपटे शब्दों की फिराक में रहने वालों के लिए मुद्दा खड़ा किया हो, पर उन्हेांने देश में आस्था के नाम पर हो रही कमाई पर भी आंखें तरेरी हैं। हालांकि अगर आप लोग मेरी कलम को पक्षपात की स्याोही में डूबी हुई ना समझें तो कह सकता हूं कि साईं की ओर भक्‍त और भक्‍त‍ि का झुकाव का कारण सरलता और सहजता है। वहीं शंकराचार्य जैसी मान्यतताओं को भक्तों के दर्शन तो मिल रहे हैं, पर चर्चित चढ़ौतियां नहीं। कहने में कड़वा लगता है पर शंकराचार्य का महत्व व्यारवहारिक जिंदगी में एकदम उतना और वहीं तक है, जैसे कि आज के दौर में संस्कृच भाषा का। जहां तक बात संपूर्णानंद की है, तो यह वही शख्स हैं, जिनकी राय अयोध्या मसले के वक्त बाकी शंकराचार्यों से अलग थी। राजनैतिक इतिहास व राजनैतिक दलों में इनका इतिहास खोजना जरूरी नहीं समझा। पूरे बयान और मामले में जो एक बात जरूरी है, वह है श्रद्धा के नाम पर हो रही कमाई और किसी व्यक्‍त‍ि-वर्ग विशेष को उससे हो रहा लाभ। क्या किसी भी धर्म, व्यवसाय या पेशे की जंजीरें तोड़कर हम उस सच्चे इंसान की तरह नहीं सोच सकते कि कोई हमारी मेहनत से कमाई रकम का दुरुपयोग ना करे। अगर मठ-श्रद्धालयों में इस तरह की कमाई को लेकर किसी संत ने चेतावनी दी है, तो हमें सिर्फ उतनी ही बात स्वीकार कर बाकी के कुतर्क निम्न सोच वालों के लिए छोड़ देने चाहिए। जहां तक बात साईं बाबा के ईश्वर होने या ना होने की है, तो इस बात पर तो कब की गांठ बंध चुकी है कि ईश्वर सिर्फ हमारी श्रद्धा और भरोसे का रूप है, जो हमारे अंदर है, समाने है, हममें है, सब में है। जिन कबीर, तुलसी, ब्यास और रविदास को संत-साधु का लिखित दर्जा मिला है, उन्हें हम अक्सर दसवीं-बारहवीं में जीवन परिचय की शक्ल में पढ़ लिया करते हैं। बेचारे साईं बाबा को तो किसी पाठ्यक्रम ने अनिवार्य भी नहीं किया। उनकी अनिवार्यता आधुनिक पूज्यनीय व सराहनीय देवता के तौर पर हुई, जो गुरुवार को अपने भक्तों के बीच खिचड़ी बांटता है व मानवता और क्रूरता की खिचड़ी नहीं बनने देता। तो जिसे सोने-चांदी के मुकुट चढ़ाओ या बारह रुपए किलो वाले केले, अगर हम साईं मन्‍द‍िर ना भी जाएं, तो भी मनोरंजन चैनलों के प्राइम टाइम सीरियल में हमसे मिलने चला आता है। साईं जो ठहरा...

महागणित और अबूझ पहेली

मशहूर विचारक ऑसपेन्सकी कहते हैं कि साधारण गणित के अनुसार दो और दो चार होता है। चार में से अगर चार घटा दिया जाए, तो शून्य बचता है, लेकिन एक महागणित भी होता है जिसमें पूर्ण से पूर्ण को घटा दिया जाए, तब भी पूर्ण ही बचता है। यह गणित विज्ञान को समझ में नहीं आता। प्राण को अगर समझना हो तो केवल अध्यात्म से ही समझा जा सकता है, क्योंकि उसके पास अनुभव है। विज्ञान के आंकड़ों से प्राण को नहीं समझा जा सकता। यह केवल अनुभव से समझा जा सकता है। सच पूछा जाए तो प्राण ऊर्जा को समझने की शक्ति विज्ञान में नहीं है। इसलिए जो प्राण को समझना चाहते हैं, उन्हें इसका उत्तर अध्यात्म से ही मिलेगा। प्राण ब्रह्मांड का स्पंदन है। यह ब्रह्मांड ग्रहों व नक्षत्रों के माध्यम से सांस लेता है और मनुष्य भी अपनी सांसों के माध्यम से इस ब्रह्मंड से जुड़ा है। प्राण के कारण ही जीव को प्राणी कहा जाता है। प्राणवायु से ही हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, लेकिन मनुष्य जब बीमार पड़ जाता है, तब प्राणवायु का प्रवाह शरीर में कम होने लगता है। इस कारण शरीर कमजोर हो जाता है, उत्साह में कमी आ जाती है, थकान महसूस होने लगती है, आलस्य बढ़ जाता है, जीवन से मोह कम हो जाता है और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। दूसरी ओर शरीर में अगर प्राणवायु की विपुलता है तो चेहरा लावण्यपूर्ण हो जाता है, मन प्रसन्न रहता है, उत्साह बना रहता है। किसी भी काम को करने में मन लगता है। वह गीत गाता है, किसी से प्रेम करता है, मुस्कराता है, खेलता है और नाचने लगता है। इसका अर्थ है, उसके शरीर में प्राणवायु का निरंतर प्रवाह चल रहा है। इसी से प्राणवायु की पहचान होती है। अब विज्ञान के आईने में इस प्राणवायु या प्राणशक्ति के संबंध में चर्चा की जाए। पहली बात तो यह है कि विज्ञान के पास प्राण को पहचानने का कोई यंत्र नहीं है। विज्ञान केवल पदार्थ का अध्ययन करता है। पदार्थ के अतिरिक्त वह कहीं झांक भी नहीं सकता।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

कृष्ण की द्वारिका को किसने किया था नष्ट?

मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि द्वारिका नष्ट हो गई? किसने किया द्वारिका को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई द्वारिका? क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया द्वारिका को। आखिर क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका और फिर बाद में वह समुद्र में डूब गई। अंतिम पेज पर खुलेगा इसका रहस्य जो आज तक कोई नहीं जानता। इस सवाल की खोज कई वैज्ञानिकों ने की और उसके जवाब भी ढूंढे हैं। सैकड़ों फीट नीचे समुद्र में उन्हें ऐसे अवशेष मिले हैं जिसके चलते भारत का इतिहास बदल गया है। अब इतिहास को फिर से लिखे जाने की जरूरत बन गई है। आओ, इस सबके खुलासे के पहले जान लें इस क्षेत्र की प्राचीन पृष्ठभूमि को। पहले जान लें इस क्षेत्र का इतिहास... तब खुलेगा द्वारिका का एक ऐसा रहस्य, जो आप आज तक नहीं जान पाए हैं। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई। इन पांचों कुल के लोगों ने आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी हैं जिसमें से एक दासराज्ञ का युद्ध और दूसरा महाभारत का युद्ध प्रसिद्ध है। पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। (हरिवंश पुराण, 1, 30, 29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1, 85, 32) किसको कौन सा क्षेत्र मिला : ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुहु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं मांडलिक पद से इंकार कर दिया। इस पर पुरु को राजा घोषित किया गया और वह प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला और द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा उसके पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी, अनु के हिस्से में आया। यदि हम यादवों के क्षेत्र की बात करें तो वह आज के पाकिस्तान स्थित सिन्ध प्रांत और भारत स्थित गुजरात का प्रांत है। इसके बीच का क्षेत्र यदु क्षेत्र कहलाता था। पहले राज्य का विभाजन नदी और वन क्षे‍त्र के आधार पर था। सरस्वती नदी पहले गुजरात के कच्छ के पास के समुद्र में विलीन होती थी। सरस्वती नदी के इस पार (अर्थात विदर्भ की ओर गोदावरी-नर्मदा तक) से लेकर उस पार सिन्धु नदी के किनारे तक का क्षेत्र यदुओं का था। सिन्धु के उस पार यदु के दूसरे भाइयों का क्षेत्र था। द्वारिका का परिचय : कई द्वारों का शहर होने के कारण द्वारिका इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान भी कहा जाता है। गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है। द्वारिका का प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। यहां द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही अनेक मंदिर और सुंदर, मनोरम और रमणीय स्थान हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत से प्राचीन मंदिर तोड़ दिए। यहां से समुद्र को निहारना अति सुखद है। कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया। कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। यहीं 36 वर्ष राज्य करने के बाद उनका देहावसान हुआ। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है। द्वारिका के इन समुद्री अवशेषों को सबसे पहले भारतीय वायुसेना के पायलटों ने समुद्र के ऊपर से उड़ान भरते हुए नोटिस किया था और उसके बाद 1970 के जामनगर के गजेटियर में इनका उल्लेख किया गया। उसके बाद से इन खंडों के बारे में दावों-प्रतिदावों का दौर चलता चल पड़ा। बहरहाल, जो शुरुआत आकाश से वायुसेना ने की थी, उसकी सचाई भारतीय नौसेना ने सफलतापूर्वक उजागर कर दी।एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्‍पनिक नगर है, लेकिन इस कल्‍पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्‍ट प्रो. एसआर राव ने। प्रो. राव ने मैसूर विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्‍य पुरातत्‍व विभाग ज्‍वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्‍व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्‍हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्‍यता के भी कई अवशेष उन्‍होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्‍होंने खुदाई में कई रहस्‍य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था। नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज : पहले 2005 फिर 2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। उन्होंने ऐसे नमूने एकत्रित किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है। 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए। गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश-विदेशों की पुरा प्रयोगशालाओं को भेजा। मिली जानकारी के मुताबिक ये नमूने सिन्धु घाटी सभ्यता से कोई मेल नहीं खाते, लेकिन ये इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए। नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (धरोहर) एके सिन्हा के अनुसार द्वारिका में समुद्र के भीतर ही नहीं, बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुईं। इस समुद्री उत्खनन के बारे में सहायक नौसेना प्रमुख रियर एडमिरल एसपीएस चीमा ने तब बताया था कि इस ऐतिहासिक अभियान के लिए उनके 11 गोताखोरों को पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रशिक्षित किया और नवंबर 2006 में नौसेना के सर्वेक्षक पोत आईएनएस निर्देशक ने इस समुद्री स्थल का सर्वे किया। इसके बाद इस साल जनवरी से फरवरी के बीच नौसेना के गोताखोर तमाम आवश्यक उपकरण और सामग्री लेकर उन दुर्लभ अवशेषों तक पहुंच गए। रियर एडमिरल चीमा ने कहा कि इन अवशेषों की प्राचीनता का वैज्ञानिक अध्ययन होने के बाद देश के समुद्री इतिहास और धरोहर का तिथिक्रम लिखने के लिए आरंभिक सामग्री इतिहासकारों को उपलब्ध हो जाएगी। इस उत्खनन के कार्य के आंकड़ों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सामने पेश किया गया। इन विशेषज्ञों में अमेरिका, इसराइल, श्रीलंका और ब्रिटेन के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। नमूनों को विदेशी प्रयोगशालाओं में भी भेजा गया ताकि अवशेषों की प्राचीनता के बारे में किसी प्रकार की त्रुटि का संदेह समाप्त हो जाए। द्वारिका पर ताजा शोध : 2001 में सरकार ने गुजरात के समुद्री तटों पर प्रदूषण के कारण हुए नुकसान का अनुमान लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी द्वारा एक सर्वे करने को कहा। जब समुद्री तलहटी की जांच की गई तो सोनार पर मानव निर्मित नगर पाया गया जिसकी जांच करने पर पाया गया कि यह नगर 32,000 वर्ष पुराना है तथा 9,000 वर्षों से समुद्र में विलीन है। यह बहुत ही चौंका देने वाली जानकारी थी। माना जाता है कि 9,000 वर्षों पूर्व हिमयुग की समा‍प्ति पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण यह नगर समुद्र में विलीन हो गया होगा, लेकिन इसके पीछे और भी कारण हो सकते हैं। कैसे नष्ट हो गई द्वारिका :
वैज्ञानिकों के अनुसार जब हिमयुग समाप्त हुआ तो समद्र का जलस्तर बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए। द्वारिका भी उन शहरों में से एक थी। लेकिन सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारिका का निर्माण आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था, तब ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है। लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारिका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी। हाल ही की खोज से यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि यह वह दौर था जबकि धरती पर रहने वाले एलियंस का आसमानी एलियंस के साथ घोर युद्ध हुआ था जिसके चलते यूएफओ ने उन सभी शहरों को निशाना बनाया, जहां पर देवता लोग रहते थे या जहां पर देवताओं के वंशज रहते थे।