मंगलवार, 29 सितंबर 2015

आशिक आवारा में मेरा किरदार कुछ हटकर है : निरहुआ

भोजपुरी फिल्मों के स्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' इन दिनों अपनी आनेवाली फिल्म 'आशिक़ आवारा' में व्यस्त हैं। उनकी फिल्मो में वो सब कुछ होती है जो दर्शको को चाहिए। फिल्म बनाने के पहले वे इस पर गहन अध्ययन करते है। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
0 आशिक़ आवारा' के बारे में कुछ बताइये?
00 आशिक़ आवारा की शूटिंग अभी शुरू की गई है। फिल्म एक अलग कांसेप्ट पर बन रही है। इसमें मेरा किरदार मेरी अब तक की सभी फिल्मों से काफी अलग है।
0 आपका किरदार किस तरह का है?
00 मुझे अब तक दर्शकों ने साधारण किरदारों में देखा है। कभी गांव के सीधे-सादे लड़के के रूप में तो कभी गरीब लड़के की रूप में,  लेकिन इस फिल्म में मैं बिजऩेस आइकॉन बना हूं जो अपने काम को लेकर काफी गंभीर रहता है।
0 इस फिल्म में आप फिर एक बार आम्रपाली के साथ हैं। क्या आप मानते हैं कि आपकी जोड़ी हिट है? 
00 फिल्मों को मिले रिस्पांस और दर्शकों की प्रतिक्रिया को देखकर तो यही लगता है। दर्शक भी मुझे कई बार कहते हैं कि मेरी जोड़ी आम्रपाली के साथ उन्हें बहुत अच्छी लगती है।
 0 'आशिक़ आवारा' के निर्देशक सतीश जैन के बारे में क्या कहेंगे?
00 सतीश जैन ने 'आशिक़ आवारा ' से पहले 'निरहुआ हिंदुस्तानी', 'निरहुआ रिक्सावाला 2' बनाई है। 'आशिक़ आवारा' की कहानी इतनी अनोखी है कि मैंने फौरन हां कह दी।
0 आपकी आनेवाली फिल्मे कौन-कौन सी है?
00 आशिक़ आवारा' की शूटिंग पूरी करने के बाद 'मोकामा जीरो किलोमीटर' की शूटिंग करनेवाला हूँ। उसके बाद 5-6 फिल्में हैं जिसके बारें में जल्दी ही आप सबको पता चल जाएगा।

धर्मेन्द्र चौबे का थियेटर से फिल्मो तक का सफर

इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है 
जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले 
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री में धर्मेन्द्र चौबे को कौन नहीं जानता वे एक जाना पहचाना नाम है। अभी हाल ही ने प्रदर्शित उनकी फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा सिनेमा घरों में काफी धूम मचा रही है। वे कहतें हैं कि इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है और जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले । थियेटर से कॅरियर की शुरुआत करने वाले धर्मेन्द्र अब तक 36 फिल्मो में अपनी अभिनय का लोहा मनवा चुके है। इसके अलावा वे निर्देशक, निर्माता और शानदार विलेन भी है । उनसे हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश।
0 फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा के शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी ?
00 यह फिल्म हमारी उम्मीदों पर खरा उत्तरी है। इसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। पूरे छत्तीसगढ़ के टाकीजों में धूम मचा रही है । इससे यही सन्देश जाता है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के अच्छे दिन आ गए हैं। इस फिल्म में हमारी कल्चर दिखती है फिर सबने अच्छी मेहनत की थी । जिसका परिणाम है।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। 1996 में मै थियेटर से जुड़ा फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा । फिल्म देख- देखकर मैं कलाकारों की नक़ल किया करता था। एक्टिंग में रूचि बचपन से ही था पर मौका नहीं मिल रहा था। मैं बहुत कुछ करना चाहता हूँ इस क्षेत्र में ।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 फिल्म छईंया भुईंया की शूटिंग देखने सुरेश निगम के साथ गया था ,जहां मुझे सतीश जैन जी ने पूछा - एक्टिंग में रूचि है ,जब मैंने हाँ कहा तो उसी फिल्म में मुझे काम दिया । जो सबको पसंद आया।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रहा था।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। पर विलेन की भूमिका मुझे ज्यादा पसंद है।
0 सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार अभिभावक की भूमिका में आये और छालीवुड को मदद करे।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 हमेशा उत्साहित रहता हूँ । इसके लिए कोई ख़ास समय की जरुरत नहीं होती ।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता। हारने जैसे माहौल में भी ऊर्जा पैदा करता हूँ।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है । जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले ।
0  आप फिल्म करवट बनाने जा रहे हैं । ये आईडिया कहाँ से मिला?
00 फिल्म मांझी देखकर। उस फिल्म का कांसेप्ट मुझे बहुत ही पसंद आया फिर सोचा की ऐसा मैं भी कुछ करूँ।



संगीत मेरा शौक नहीं इबादत है : अनिल

0 मुकेश की हूबहू आवाज निकालते है 
प्रशासनिक अधिकारी अनिल कोचर संगीत की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। मुकेश की आवाज में वे जब गाते है तो लोगो को पुराने दिन याद आ जाते हैं और वे अपने बीच मुकेश के होने का एहसास करते हैं। शासकीय सेवा में आने से पहले ही अनिल कोचर संगीत का जादू बिखेरने की राह पर चल पड़े थे। वे कहते हैं कि संगीत मेरा शौक नहीं इबादत है। आनंद जी कल्याण जी से सम्मानित होकर अनिल बेहद गौरान्वित महसूस करते हैं। टी सीरीज में उनका एल्बम मौजूद है। साथ ही दिशा टीवी में काव्यांजली में वे अपनी आवाज का जादू दिखा चुके हैं। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश।
0 आपको गाने का शौक कब से है ?
00 मुझे गाने का शौक बचपन से ही रहा है।  गाने में रूचि शुरू से ही था पर मौका नहीं मिल रहा था। मैं बहुत कुछ करना चाहता हूँ इस क्षेत्र में ।
0 आप मुकेश की आवाज में कैसे गा लेते हैं?
00 इसके लिए मैंने बहुत ही प्रेक्टिस की है और मेरी मेहनत का ही फल है कि आज मैं इस मुकाम पर हूँ।
0 सरकारी नौकरी में होते हुए भी आप गाने के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं?
00 निकालना पड़ता है वह भी जीवन का एक हिस्सा है। मन में लगन हो तो सब कुछ संभव है।
0 आज के युवा पुराने गीतों को महत्त्व नहीं देते क्यों?
00 ऐसा नहीं है आज भी पुराने गानों के प्रति लोगो का रुझान है। पुराने गीत सदाबहार है और रहेंगे।
0 आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00  मैंने अपने से ही गाने की शुरुआत  की है और काफी संघर्ष भी किया है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है।
0 कभी आपने सोचा था की गानों में इतना लोकप्रिय हो जाएंगे?
00 नहीं ! पर अब लगता है कि गाने ने मुझे ज्यादा लोकप्रिय बना दिया है।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 जब कल्याण जी ने मुझे बेहतर गाने और आवाज के लिए सम्मानित किया था।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहते हो ?
00 मेरा सपना है कि गानों में बॉलीवुड में छा जाऊं।



छत्तीसगढ़ की मनाली बॉलीवुड में मचाएगी धूम

0 आनंद जी और अनूप जलोटा से है प्रभावित 
आकाशवाणी और दूरदर्शन में एंकरिंग से अपनी कला की शुरुआत करने वाली गायिका मनाली सांखला आज लोगो के बीच एक जाना पहचाना नाम है। मशहूर संगीतकार आनंद जी और भजन गायक अनूप जलोटा से प्रभावित मनाली इन दोनों के ही नहीं बल्कि बॉलीवुड के तमाम दिग्गज संगीतकारों के चहेती बन गयी है। टी सीरीज में जसगीत का एल्बम जल्द ही आने वाली है। साथ ही हिन्दी फिल्मो में उनकी आवाज भी लोगो के कानों में गूंजेगी। मनाली को लता जी प्रेरणा मिली है तो आनंद जी उन्हें गाने की कला सिखातें हैं। मनाली सांखला को बॉलीवुड के सभी मनाली से हमने हर पहलूओं पर बात की है।
मनाली को गाने का शौक बचपन से ही रहा है। उनके पति दर्शन सांखला एक मशहूर टी वी एंकर और धारावाहिक काब्यांजली के होस्ट है। मनाली की आवाज जल्द ही टी सीरीज के एल्बमों में सुनने को मिलेगी। प्रभु इशू पर तीन एल्बम बनने जा रही है जो मनाली की आवाज में होगी। साथ ही टी सीरीज उनकी आवाज पर एक जसगीत का एल्बम बना रहां है। मनाली कहती है कि मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे बॉलीवुड के तमाम बड़े संगीतकारों का प्यार और साथ मिलता है। अनूप जलोटा जी मेरे सात गाने सुनकर बहुत प्रभावित हुए थे। आनंद जी मुझे गाने की कला बतातें है। मशहूर फिल्म निर्देशक मोंटी शर्मा मुझसे बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं उनके आने वाली फिल्मो में मेरी आवाज सुनाई देंगी। बॉलीवुड की दुनिया में कदम रखकर मैं  बहुत ही गौरान्वित हूँ। मेरी कोशिश होगी की छत्तीसगढ़ का नाम मैं दुनिया के पटल पर फैला सकूँ। मनाली सांखला को बॉलीवुड के सभी बड़े गीतकार और संगीतकारों से सीखने का सौभाग्य मिला है। छत्तीसगढ़ की वह पहली महिला है जिसे तमाम दिग्गजों ने अपना प्यार और साथ दिया है।
मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है : दर्शन 
मशहूर टीवी एंकर दर्शन सांखला का कहना है कि मुझे अपनी पत्नी मनाली और उसकी कला पर गर्व है। उनकी आवाज में वो जादू है जो दुनिया भर के कलाप्रेमी को आकर्षित करने की क्षमता रखती है । बॉलीवुड के सभी छोटे बड़े संगीतकार उनकी आवाज से प्रभावित है। जल्द ही मनाली बॉलीवुड की शान बने यही मेरी तमन्ना है।




कविता लिखना बहुत बड़ी चुनौती है : सुनीता शर्मा

जितने सफल होंगे उतने ही ज्यादा दुश्मन होते हैं
रायपुर।  घर, नौकरी और साहित्य की जिम्मेदारी बखूबी निभाने वाली सुनीता शर्मा एक जाना पहचाना नाम है। कई कवि सम्मेलनों में अपनी कविताओं का लोहा मनवा चुकी सुनीता कविता लिखने और स्टेज पर कविता पाठ करने को सबसे बड़ी चुनौती मानती है। माता पिता की प्रेरणा से लेखन में कदम रखने वाली सुनीता की दिली इच्छा अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की है। गौमाता की सबसे बड़ी भक्त सुनीता गौरक्षा पर कविता लिखकर देश को गौरक्षा का सन्देश देना चाहती हैं। वे कहती है कि जो जितना सफल होते है उतने ही उनके ज्यादा दुश्मन होते है। उनकी कविता संग्रह समर्पण बाज़ार में उपलब्ध है जिसमे 50 कविताओं का समावेश है। सुनीता शर्मा से हमने हर पहलूओं पर बेवाक बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।                                  -  अरुण कुमार बंछोर
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संक्षिप्त परिचय 
0 नाम                - सुनीता शर्मा
0 शिक्षा              - बी काम , एम ए , बीजेएमसी
0 व्यवसाय           - नौकरी महिला प्रकोष्ठ अधिकारी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, रायपुर
0 रुचि                - लेखन , पेंटिंग , तीर्थाटन
0 उपलब्धि           - कविता संग्रह समर्पण
                     - नायिका अवार्ड , ब्रम्ह सम्मान , चिंगारी सम्मान , स्त्री शक्ति सम्मान ,
                       उत्कृष्ट कर्मचारी सम्मान, सावन क्वीन सम्मान, पावन कवियित्री सम्मान ,
                       लाखे पुरूस्कार , गौपालन गौरक्षा सम्मान ।
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0 कविता लिखने की ओर रुझान कैसे हुआ?
00 बचपन से ही मेरा रुझान इस ओर रहा है। बचपन में कुछ ना कुछ करती रहती थी। स्कूल में थी तो माँ -बाप बहुत प्रेरित करते थे। उसी माहौल में लिखना सीखा है।
0 मतलब पारिवारिक माहौल ने ही आपको लिखना सिखाया?
00 हाँ ! मेरे पापा स्वर्गीय वी एल शर्मा ओर माता श्रीमती सरोज शर्मा ही मेरे आदर्श है। उसके बाद मेरे पति अश्विनी कुमार शर्मा का बहुत बड़ा सहयोग रहा है तभी आज मैं इस मुकाम पर हूँ।
0 घर परिवार और नौकरी के बीच कविता लिखने के लिए समय कैसे निकाल पाती हैं?
00 जिस समय मूड होता है उसी समय लिखती हूँ। खासकर रात में या कही सफर पर होती हूँ तो लिखती हूँ। ज्यादातर मै सरकारी नौकरी में होने के कारण दौरे पर होती हूँ तो समय रास्ते में समय का उपयोग करती हूँ।
0 कभी-कभी आपको आलोचना भी सहनी पड़ती होगी ?
00 हाँ जरूर ! जो जितना सफल होते है उतने ही उनके ज्यादा दुश्मन होते है।
0 कविता लिखना कितनी बड़ी चुनौती है?
00 बहुत बड़ी चुनौती लगती है । थीम ऐसा हो, जिसमे सरल , कवि मन और पाठकों के लिए हो। इसे सोचने , समझने और शब्दों में ढालना चुनौती है।
0  इस क्षेत्र  में कभी निराशा हुई है ?
00 कभी नहीं! मैं कभी निराश नहीं होती।
0  और कभी ऐसा क्षण हो आया हो जब आप बहुत ज्यादा उत्साहित हुई हो?
00 अखिल भारतीय कवि सम्मलेन का संचालन कर बहुत उत्साहित हुई थी। वो सुखद क्षण था और यादगार लम्हा।
0 आपको इसके लिए परिवार से कितना सहयोग मिलता है?
00 पूरा सहयोग मिलता है। एक लड़की होने के बाद भी मेरे माता-पिता ने मुझे कभी बंधन में नहीं रखा। और आज मेरे पति भी मेरे हर कदम में हर पल मेरे साथ होते हैं , इसलिए आज मैं इस मुकाम पर हूँ।
0 ऐसा आपका कोई सपना जो आप पूरा होते हुए देखना चाहती हों?
00 राष्ट्रीय अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बने , यही सपना है। साथ ही गौरक्षा पर कविता लिखकर देश को गौरक्षा का सन्देश देना चाहती हूँ।




मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है : डॉ अजय सहाय

0 विदेशों में शिविर लगाकर करते हैं इलाज , मिलता है प्यार 
0 हर रोज नया इतिहास बनता है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में 
0 इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ 
0 झोला छाप डाकटरों पर होना चाहिए कार्रवाई 
मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है। डाकटरों को भगवान का दूत माना जाता है जो मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मरीज ठीक होकर हँसते हुए जाते है अगर मरीज की मौत हो जाए तो परिजनों का व्यवहार बदल जाता इससे काफी दुख होता है ,क्योकि डाक्टर अपना धर्म निभाता है। यह कहना है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल के संचालक एवं मधुमेह ,हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ अजय मोहन सहाय का। वे कहते है कि इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ है। डॉ सहाय जितने अच्छे विशेषज्ञ है उतने ही अच्छे समाजसेवक भी है। गरीब मरीजों को भी ठीक कर दुआ बटोरते है। पैसा उनके लिए मायने नहीं रखता, सेवा को डॉ सहाय कर्म मानते हैं। सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में हर रोज नया इतिहास बनता है। देश विदेश से मरीज आते है और हँसते हुए घर को लौटते हैं। पाकिस्तान में शिविर लगाकर इलाज करने वाले डॉ सहाय कहते हैं कि सुनने और देखने में फर्क होता है। पाकिस्तान के लोगो से उन्हें बहुत प्यार मिला और भाईचारा भी देखने को मिला। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की।

0 डाकटरों को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है।मौजूदा परिवेश में डाकटर इसे कितना साकार कर पाते हैं ?
00 डाकटर मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मेरे लिए मरीजों का प्यार और भगवान का आशीर्वाद सच्ची दौलत है। मरीज अच्छा होकर हँसते हुए घर लौटे यही हम चाहतें है ,पैसा कोई मायने नहीं रखता।
0 कभी- कभी मरीजों के परिजनों के बिना वजह गुस्से का शिकार भी होना पड़ता?
00 हाँ , यह तो सहना पड़ता है। मरीज इलाज के लिए आता है और जब केस ज्यादा बिगड़ा हुआ होता है । चाह कर भी डाकटर उन्हें नहीं बचा पातेतो मरीज की मौत के बाद परिजनों का व्यवहार अचानक बदल जाता है। तब बहुत दुख होता है। हम अपना सेवा धर्म पूरी ईमानदारी से निभाते हैं । मौत शाश्वत सत्य है। एक चूक से बददुआ मिलाने लगती है जो तीर की तरह चुभती है।
0 क्या आप इस बात से सहमत है कि अस्पताल अब व्यवसाय का रूप ले लिया है?
00 डाक्टर तो भगवान का दूत होता है। आजकल डाक्टर सेवा देने वाले हो गए हैं और मरीज उपभोक्ता। यही कारण है कि डाक्टर और मरीज का रिश्ता कमजोर हो गया है। झोला छाप डाक्टरों के कारण यह स्थिति बनी है।
0 झोला छाप डाक्टरों पर शिकायतों के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?
00 सरकार का मापदंड अलग अलग है। अच्छे और रजिस्टर्ड डाक्टरों पर जऱा सी चूक में कार्रवाई हो जाती है और सरकार झोला छाप डाकटरों पर कोई कार्रवाई नहीं करती क्योकि उनके खिलाफ कोई सबूत बही होता फिर वो रजिस्टर्ड भी नहीं होते। करोडो रुपया फूंककर डाक्टर बनने वाले पर तो सरकार की नजऱ हमेशा दुनिया भर के क़ानून लाड दिए गए है। उपभोक्ता फोरम भी जुर्माना ठोकने में पीछे नहीं होता।
0 मुख्यमंत्री बीमा योजना अस्पताल और मरीजों के लिए कितना कारगर है?
00 योजना सही है पर क्रियान्वयन गलत है। जागरूकता की कमी है। प्रक्रिया इत्तनी जटिल है कि अस्पताल को नुकसान उठाना पड़ता है। मरीज तो पूरा इलाज कराने के बाद कार्ड बता देते है पर उन्हें प्रक्रिया के बारे में पता नहीं होता है। कार्ड ना लो तो दुष्प्रचार करते हैं।
0 आपके अस्पताल में गरीबों के लिए क्या क्या सुविधाएं हैं?
00 गरीबों के लिए हमारे यहां कोई केश काउंटर नहीं है, उनके इलाज में हम देर नहीं करते। हमारी मंशा है कि गरीब मरीज ठीक होकर हँसते हुए घर जाए। उनकी दुआ ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत है।
0 आप विदेशो में भी शिविर लगाकर मधुमेह की इलाज करते है। उसके बारे में बताएं?
00 हाँ मैंने नेपाल में भूकम्प पीडि़तों के लिए काम किया है। पाकिस्तान में 12 जगहों पर शिविर लगाकर इलाज किया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 6 गरीब बच्चों का सफल इलाज किया है। काफी दुआ मिला।
0 पाकिस्तान के लोगो के मन में भारत के प्रति कैसा रवैया देखने को मिला?
00 देखने और सुनने में बहुत ही अंतर है। पाकिस्तान के लोगो के मन में भाई चारा है। सुनाने के विपरीत दिलों से भारत के लोगो से अलग नहीं है। बहुत ही यादगार पल रहा है पाकिस्तान का शिविर।
0 गाँवों में कोई डाकटर जाना नहीं चाहते इसके कारण क्या  है?
00 सरकार की व्यवस्था ठीक नहीं है। बिना साधन के डाकटर वहां कैसे जाकर अपना काम करेंगे। तनखा भी कम है और असुविधाएं नहीं है। पढ़े लिखे डाक्टरों पर बंदिश बहुत है लेकिन उनकी सुविधाओं की किसी को चिंता नहीं है।

मौत के मुंह से वापस लाया
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ग्राम बेलहरी की 21 वर्षीय उमा कुर्रे को सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल से ना केवल जीवनदान मिली बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे भी सकुशल है। उमा को गंभीर अवस्था में जब अस्पताल लाया गया तब उसके तमाम अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। सारे डाक्टर जवाब दे चुके थे। सबके मना करने के बाद भी अ डॉ सहाय ने इलाज किया और उमा हँसते हुए घर के लिए विदा हुई और अस्पताल को दे गयी ढेर सारी दुआएं।

सक्षिप्त परिचय
नाम       -अजय मोहन सहाय
पेशा         मधुमेह ,ह्रदय रोग विशेषज्ञ
संस्थान    सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल
योग्यता    एमबीबीएस , एमडी सहित 18 डिगी
अवार्ड       शैक्षणिक साहित्य , डाक्टर में 50 से अधिक अवार्ड
               सीबी राय अवार्ड सीएम के हाथों
               हेल्थ केयर एक्सीलेंस अवार्ड
               दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान 

सोमवार, 14 सितंबर 2015

बेटी को कमजोर मत समझो , महान होती हैं : तीजन बाई

विदेशों में सब्जी चाँवल के लिए तरस जाती हूँ 
बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। यह कहना है मशहूर पंडवानी गायिका पद्मविभूषन डॉ तीजन बाई का । वे कहती है कि जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस  जाते है। मैं कहीं भी रहूँ अपनी छत्तीसगढ़ की परम्परा को कभी नहीं भूलती। पेरिस उनका पसंदीदा शहर है ,जहां वे ८ बार कार्यक्रम पेश कर चुकी है। विदेशों में जब उनके ही गीतों से उनका स्वागत होता है तो तीजन बाई बहुत ही गर्व महसूस करती है। तीजन बाई को कौन नहीं जानता। जो तीजन को जानता है वह पंडवानी को भी जानता है। यह दोनों नाम एक दूसरे के पूरक हैं। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस
कलाकार के पिता का नाम  छुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखतीं और धीरे—धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। तीजन बाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है। वह कहती हैं मैं आज भी गांव की औरत हूं। दिल में कुछ नहीं है …ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं, मैं सभी से एक जैसे ही मिलती हूं। बात करती हूं। बच्चों बूढ़ों के बीच बैठ जाती हूं। इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऎसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता। मैं आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमामर की चटनी खाती हूं। उनसे हमने हर पहलूओं पर बेवाक बात की है।
0 पंडवानी की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में भी गाये जाएंगे। महाभारत के प्रसंगों और कथानकों पर विकसित यह लोकप्रिय विधा है। छत्तीसगढ़ी बोली इसका लालित्य है।
0 मुख्यरूप से यह कहाँ कहाँ गई जाती है ?
00 कहीं भी कोई बंदिश नहीं है। हर जगह गई जाती है।
0 तो क्या कारण है कि लोकगीत लुप्त होती जा रही है ,युवा पीढ़ी का इस क्षेत्र में कितना भविष्य है?
00  लोकगीतों को जीवित रखने के लिए अपनी परम्परा और संस्कृति से लगाव जरूरी है। साथ ही शास्त्रीय संगीत की तरह इस विधा में भी गुरु शिष्य परम्परा को बढ़ावा देना जरूरी है।यह जिम्मेदारी लोकगीत के साधकों की है।
0 आपने किससे सीखा और आपके कितने शिष्य है ?
00 मेरे गुरु मेरे नाना ब्रजभूषण जी शारदीय है जिससे मैंने सब कुछ सीखा है और इस समय मेरे 200  से ज्यादा शिष्य हैं,जो इस परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
0 संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थान लोकगीतों के लिए क्या कर रहे हैं?
00 कुछ भी नहीं कर , क्यों ये तो वही जाने। सरकार कुछ कर रही है पर उसे  कहा जा सकता।
0 फिल्मो गीतों ने लोकगीतों को कितना नुकसान पंहुचाया है?
00 देखिये फिल्मो के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है और मैं फिल्मो से मतलब भी नहीं रखता। दोनों अलग अलग चीजें है।
0  कोई सुखद अनुभव बताईये ?
00 पदमश्री मिलने का दिन आज भी मोर सुरता में है, वेंकटरमनजी ने दिया था। उसी दिन इंदिरा गांधी से भी मिली थी बहुत अच्छी लगी, उन्होंने मेरी पंडवानी सुनी थी। मुझे बुलाकर बोली- छत्तीसगढ़ की हो ना। मैने हाँ कहा तो इंदिरा बोली महाभारत करती हो तो मैं बोली पंडवानी सुनाती हूं महाभारत नहीं कराती, सुनकर इंदिराजी खुश हुई और मेरी पीठ थपथपाई थीं।
0 सरकार से लोकगीतों को आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार लोकगीतों को मदद करे। बहुत सी लोकगीत है अनेक विधाएँ है सबकी रक्षा सरकार ही कर सकती है।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 पद्मविभूषण लेकर, वह बहुत ही जीवन का असीम क्षण है। और मुझे विदेशों में जब अपने ही गीतों से मेरा स्वागत करते हैं।
0 आप कई देशों में कार्यक्रम पेश करने के लिए जा चुकी है। इन देशो में समानता क्या है।
00 जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस  जाते है। विदेशों में उबले हुए आलू से काम चलाना पड़ता है।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होती।
0 पाठकों के लिए कोई सन्देश?
00 बेटियां अमूल्य धरोहर है उसकी रक्षा करे पढ़ा लिखाकर आगे बढ़ाये। बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। मै भी तो एक बेटी ही हूँ जिस पर दुनिया नाज करती है।