tag:blogger.com,1999:blog-36292684993985637032024-03-07T09:04:09.488+05:30बालमुस्कानबच्चों की मासिक पत्रिका
भोपाल से प्रकाशित ,
सम्पादक -अरुण बंछोर,
उपसंपादक -ओमप्रकाश बंछोरअरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.comBlogger2150125tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-65841066414520484512020-02-08T21:17:00.001+05:302020-02-08T21:17:10.213+05:30अपने दम पर पहचान बनाना चाहती है जागेश्वरी मेश्राम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>छालीवुड अदाकारा की एक्टिंग में जीवंतता झलकती है</b><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeGTaDc2MuddUYPTBdAAKSgnmD5t-nXyRsuJjGfmwzgH7S8K_QtkOPC3cWAY4Gpz5LPw5VouV-v_huu814ZtwMoq3o_nKuzkzFSy-ANOtqf4oVJDKMHx4O9aMYDZGm91wpsi3L8xuTBZtu/s1600/JAGESHWARI+MESHRAM+1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="708" data-original-width="648" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeGTaDc2MuddUYPTBdAAKSgnmD5t-nXyRsuJjGfmwzgH7S8K_QtkOPC3cWAY4Gpz5LPw5VouV-v_huu814ZtwMoq3o_nKuzkzFSy-ANOtqf4oVJDKMHx4O9aMYDZGm91wpsi3L8xuTBZtu/s400/JAGESHWARI+MESHRAM+1.jpg" width="365" /></a></div>
<b><span style="color: red;">- अरुण कुमार बंछोर </span></b><br />
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की <span style="color: blue;"><b>अदाकारा जागेश्वरी मेश्राम</b> </span>आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. उनकी कला में वो जादू है कि जो भी एक बार देखे, उनकी कला के कायल हो जाएंगे। उनकी एक्टिंग में जीवंतता झलकती है. वे कहती है की मन में दृढ़ इच्छा और लगन हो तो कोइ भी काम असम्भव नहीं होता। जो मन में ठान ले उसे पूरा करके ही रहती हूँ। वे अपने कला के दम पर पहचान बनाना चाहती है. उनका कहना है कि छालीवुड में काम करने वाली सभी कलाकार उनके आदर्श है। क्योकि सबसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलता है। मै अपने कामो से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। <span style="color: red;"><b>जागेश्वरी मेश्राम</b></span> को कभी निराशा नहीं होती । यही उनकी सफलता का राज है.मैंने फिल्म दइहान देखी तो उनकी एक्टिंग देखता रह गया. ऐसा लग रहा था जैसे वे फिल्मों में नहीं सच में सामने थी. उन्होंने बतौर नायिका तीन फिल्मे की है. मैंने जागेश्वरी मेश्राम से हर पहलूओं पर बात की.<br />
<b>0 आपको एक्टिंग के प्रति कैसे दिलचस्पी हुई ?</b><br />
बचपन से शौक था एक्टिंग करने का। स्कूलों में नाटकों में भाग लिया करती थी। बाद में मुझे थियेटर का शौक हुआ। ऐसा करते करते मैंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो की ऑर कदम बढ़ाया। लोगो को देखकर लगा की मुझे भी इस क्षेत्र में कुछ करना चाहिए।<br />
<b>0 अब तक की आपकी उपलब्धी क्या है?</b><br />
मैंने करीब 7 छत्तीसगढ़ी फिल्मो में काम किया है और कुछ एल्बम बनाये है। मेरे पापा से मुझे कला विरासत में मिली है. मैंने लोकरंग ज्वाइन कर अपना कदम आगे बढ़ाया है. और आज आपके सामने हूँ.<br />
<b>0 </b><b>आप छस्तीस्सगढ़ी फिल्मों में अपना आदर्श किसे मानते है?</b><br />
छालीवुड में काम करने वाली सभी कलाकार मेरे आदर्श है। क्योकि सबसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलता है।<br />
<b>0 </b><b>क्या आप अपने कामों से संतुष्ट हैं? </b><br />
हाँ, मैं अपने कामों से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। मैंने जितने भी फिल्मों में काम किया है सभी मेरे जीवन की बेहतर फ़िल्में है।<br />
<b>0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?</b><br />
हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चली हूँ। अब इसी लाईन पर काम करती रहूंगी।<br />
<b>0 छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।</b><br />
मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी , लेकिन लीड रोल मुझे ज्यादा पसंद है।<br />
<b>0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?</b><br />
सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।<br />
<b>0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?</b><br />
अपने कला के दम पर पहचान बनाऊँ तथा लोग मुझे एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में जाने , यही मेरा सपना है. </div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-32229066824607999282019-11-03T16:20:00.003+05:302019-11-03T16:20:27.314+05:30पौराणिक कथाओं में माँ तुलसी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><u>कौन हैं और उनकी पूजा क्यों की जाती है?</u></b><br />पौराणिक कथाओं के आधार पर हम आपको बता रहे है कि माँ तुलसी कौन है और उन्हें पूजना क्यू ज़रूरी है.माँ तुलसी के बारे में जानने के लिए हमें इस कहानी को जानना होगा.माँ तुलसी का नाम वृंदा था. वृंदा का जन्म राक्षस कुल में हुआ था. राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद भी वृंदा भगवान श्री विष्णु जी की परम भक्त थी और सदैव बड़े मन से उनकी पूजा अर्चना किया करती थी.वृंदा जब विवाह लायक हुई तो उनकी शादी राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से कर दी गई. ये कहा जाता है कि जलंधर ने समुद्र से जन्म लिया था. विवाह के बाद वृंदा बड़ी ही पतिव्रता से अपने पति की सेवा किया करती थी.एक बार की बात है जब देवताओं और दानवो में युद्ध छीडा. युद्ध पर जाते हुए वृंदा ने अपने पति जलंधर से कहा कि ‘स्वामी आप तो युद्ध पर जा रहे लेकिन जब तक आप जीत हासिल कर वापस नहीं आजाते तब तक मै आपके लिए पूजा (अनुष्ठान) करती रहूंगी और अपना संकल्प नहीं छोडूंगी’<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbw55nmlYP6i7hnZKVJWi_aAO4vF2joam1DTDo1rM9tkhIwqOUyz5jyJAmPWYz6pILlRzaTonjgNP1ucd1x8C13gDXZ8hY35QiumE-hXmpfOnuoVrkVi9bgsZ_VyuFlGHWKyF0OM99J_xd/s1600/tulasi.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="1000" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbw55nmlYP6i7hnZKVJWi_aAO4vF2joam1DTDo1rM9tkhIwqOUyz5jyJAmPWYz6pILlRzaTonjgNP1ucd1x8C13gDXZ8hY35QiumE-hXmpfOnuoVrkVi9bgsZ_VyuFlGHWKyF0OM99J_xd/s400/tulasi.jpg" width="400" /></a></div>
<br />जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई.वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना था कि देवता जलंधर से जीतने में नाकाम हो रहे थे. जब देवता हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास जा पहुचे. सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि किसी भी तरह वे देवताओं को युद्ध जिताने में मदद करे.भगवान् विष्णु बड़े ही असमंजस की स्थिति में थे. वे सोच रहे थे कि वृंदा को कैसे रोका जाए, जबकि वो उनकी परम भक्त थी.बड़े ही सोचने समझने के बाद श्री विष्णु जी ने वृंदा के साथ छल करने का निर्णय ले ही लिया. वृत पूजा को तोड़ने के लिए उन्होंने वृंदा के पति जलंधर का रूप धारण किया. जलंधर के रूप में विष्णु वृंदा के महल में जा पहुचे. वृंदा ने जैसे ही अपने पति जलंधर को देखा तो उनके चरण छुने के उद्देश्य से पूजा से उठ पडी. जिससे वृंदा का संकल्प टूट गया.वृंदा का वृत संकल्प टूटते ही देवताओं ने दानव जलंधर सिर धड से अलग करके उसे मार दिया.भगवान् विष्णु के छल का पता जब वृंदा को ज्ञात हुआ तो पहले तो वो जलंधर का कटा हुआ सिर लेकर खूब रोई और सती होने के पहले विष्णु जी को श्राप दे दिया.वृंदा ने विष्णु जी को पत्थर बन जाने का श्राप दिया. विष्णु जी पत्थर बन भी गए.लेकिन इस बात से सभी देवता-देवियाँ और लक्ष्मी जी खूब रोने लगे. सभी ने मिलकर वृंदा से खूब मिन्नते की कि वे विष्णु जी को श्राप से वंचित करदे. आखिरकार वृंदा मानी. भगवान् विष्णु फिर से अपने अवतार में आए. विष्णु जी ने देखा कि वृंदा जिस जगह सती हुई उस जगह एक पौधा खिला हुआ है.वृंदा से किए गए छल का प्राश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया और ये ऐलान किया कि। ‘’आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और तुलसी जी की पूजा के बगैर मै कोई भी भोग स्वीकार नहीं करुगा’’तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे. कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है. एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है. तुलसी बड़ी पवित्र और बड़े काम की चीज है.चरणामृत के साथ तुलसी को मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.हिन्दू धर्म में सभी अपने दरवाजे या आंगन में तुलसी का पौधा लगाते है. शरीर के कई विकारों के लिए भी यह फायदेमंद है.जो पवित्र है, हमारे लिए समर्पित है, उसे हम माँ कहते है. इसलिए हम उन्हें माँ तुलसी कहते है. <br /><b>क्या है तुलसी पूजा का विधान?</b><br />- तुलसी का पौधा किसी भी बृहस्पतिवार को लगा सकते हैं.<br />- तुलसी का पौधा लगाने के लिए कार्तिक का महीना सबसे उत्तम है.<br />- कार्तिक महीने में तुलसी के पौधे की पूजा से पूरी होती है हर कामना. <br />- तुलसी का पौधा घर या आगन के बीच में लगाना चाहिए.<br />-अपने सोने के कमरे की बालकनी में भी लगा सकते हैं तुलसी का पौधा.<br />- सुबह तुलसी के पौधे में जल डालकर उसकी परिक्रमा करनी चाहिए.<br />- शाम को तुलसी के पौधे के नीचे घी का दीपक जलाना उत्तम होता है.<br /><b>तुलसी पूजा में भूलकर भी ना करें ये गलतियां-</b><br />धार्मिक मान्यताओं में तुलसी को लेकर कुछ विशेष नियम और सावधानियां हैं जिनका ध्यान रखने से खराब से खराब किस्मत भी चमक उठती है तो आइए हम आपको बताते हैं कि तुलसी पूजन या तुलसी के प्रयोग में आपको किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है.<br />- तुलसी के पत्ते हमेशा सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए.<br />- रविवार के दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक न जलाएं.<br />- भगवान विष्णु और इनके अवतारों को तुलसी दल जरूर अर्पित करें.<br />- भगवान गणेश और मां दुर्गा को तुलसी कतई न चढ़ाएं.<br /><b>क्या है तुलसी का महत्व ?</b><br />- सनातन परंपरा में जड़ और चेतन सभी में ईश्वर का भाव रखते हैं.<br />- नदियां, पहाड़, पत्थर और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास माना जाता है.<br />- पौधों में नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने कि क्षमता होती है.<br />-इसलिए पौधों में देवी-देवताओं का वास माना जाता है.<br />- तुलसी का पौधा भी ऐसा ही एक पौधा है.<br />-तुलसी में औषधीय और दैवीय दोनों गुण पाए जाते हैं.<br />- पुराणों में तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी कहा गया है.<br />- मान्यता है कि श्रीहरि ने छल से तुलसी का वरण किया था.<br />-इसलिए श्रीहरि को पत्थर हो जाने का शाप मिला और श्रीहरि ने शालिग्राम रूप लिया.<br />- शालिग्राम रूपी भगवान विष्णु की पूजा बिना तुलसी के नहीं हो सकती.<br /><b>तुलसी जी की पूजा विधि</b><br />घर में तुलसी जी की पूजा कैसे करे आइये जानते है पूजा विधि | हमारे सनातन धर्म में तुलसी का पौधा एक देवी लक्ष्मी के तुल्य है | यह विष्णु के ही एक रूप भगवान शालिग्राम जी की पत्नी है | यह घर के आँगन में लगी रहती है तो उस घर में सौभाग्य और अन्न धन की कभी कमी नही आती | घर में इसे परिवार का सदस्य मानकर नित्य ध्यान से पूजा और सींचना (जल देना ) चाहिए |<br /><b>पूजन सामग्री</b><br /> एक प्लेट<br /> एक शुद्ध जल का लोटा<br /> अगरबत्ती या धुप<br /> देशी घी का एक दीपक<br /> हल्दी और सिंदूर<br />सबसे पहले माँ तुलसी जी को नमन करे | यह आपके घर की रक्षक है | अब लोटे से जल चढ़ाये और मंत्र पढ़े- “महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी , आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।” इसके बाद उन्हें सिंदूर और हल्दी चढ़ाये | यह उनका श्रंगार है | अब तुलसी जी की पूजा के लिए घी का दीपक जलाये और शालिग्राम और वृंदा देवी को याद करके उनकी जय जयकार करे | अब धुप अगरबत्ती जलाये और माँ तुलसी की आरती करे | अब घर और परिवार के सदस्यों के लिए अच्छे भाग्य की विनती करे |<br /><b>पूजन से जुड़े नियम</b><br />- रविवार को तुलसी जी को नही तोड़े ना ही जल डाले |<br />- रोज पूजा करे |<br />- जब भी तुलसी जी के पत्ते तोड़े पहले ताली बजाये फिर क्षमा मांगे और फिर तोड़े |<br />- कभी तुलसी जी के पौधे को सूखने ना दे |<br />- जो भी भोग आप देवी देवताओ के निकालते है उनमे तुलसी दल जरुर रखे |<br />- गणेश जी और शिव जी की पूजा में तुलसी काम में नही ले |<br /><b>सूखा पौधा न रखें</b><br />अगर घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाए तो उसे किसी नदी या बहते पानी में प्रवाहित कर देना चाहिए। क्योंकि घर में सूखा पौधा रखना अशुभ माना जाता है।<br /><b>पत्ते को चबाएं नहीं</b><br />किसी प्रसाद या खाने-पीने की चीज में तुलसी का सेवन करते समय इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की उन्हें चबाएं नहीं बल्कि निगल लें। इस तरह तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ मिलता है। क्योंकि इसमें पारा धातु के कई तत्व होते है जिन्हे चबाने से दांतों को नुकसान हो सकता है। इसीलिए तुलसी के पत्ते चबाएं नहीं।<br /><b>इन पर कभी न चढ़ाएं तुलसी पत्ते</b><br />शिवलिंग और गणेश जी के पूजन में तुलसी के पत्तों का प्रयोग वर्जित होता है। जिसके पीछे अलग-अलग मानयताएं हैं। इसलिए इन दोनों के पूजन में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता।<br /></div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-85998038187902727612019-10-21T18:58:00.002+05:302019-10-21T18:58:22.430+05:30जब किसान के घर ठहर गई मां लक्ष्मी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, इसके बारे में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है।कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVAKw3iK0WPWTZ8R2pZVmVO_NOzM5Ji7pjHu1AmhYOnYysR8ZatTUZRBwAsCQEhSV5GAmN5r9IHKnt26uxPo3uJXrZBU6jyv1Oe64Em2MoWYxfWAtdfDZu0pdP1q02tsY90VYyxKO4Y1HW/s1600/dhanteras.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="592" data-original-width="740" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVAKw3iK0WPWTZ8R2pZVmVO_NOzM5Ji7pjHu1AmhYOnYysR8ZatTUZRBwAsCQEhSV5GAmN5r9IHKnt26uxPo3uJXrZBU6jyv1Oe64Em2MoWYxfWAtdfDZu0pdP1q02tsY90VYyxKO4Y1HW/s400/dhanteras.jpg" width="400" /></a></div>
विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।<br />एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।<br /><br /><ul style="text-align: left;">
<li><br /></li>
</ul>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-25955775561871821092019-10-16T14:16:00.004+05:302019-10-16T14:16:53.742+05:30क्यों करवा चौथ पर छलनी से देखा जाता है पति का चेहरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju3s6Vy7TdsUjVpm2tprm5fee6G9eQZAO-G9viPbAytSX48396wfOr7RdCpOL4WyTH_Ejutr_XW8x_3P30HYgsOSuytQ9A-DQVQSlY_lGbQ8ucCfuKZMfCeDo8ZwbK2LruyhahuVm3kxZ5/s1600/karva_chauth.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="360" data-original-width="640" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju3s6Vy7TdsUjVpm2tprm5fee6G9eQZAO-G9viPbAytSX48396wfOr7RdCpOL4WyTH_Ejutr_XW8x_3P30HYgsOSuytQ9A-DQVQSlY_lGbQ8ucCfuKZMfCeDo8ZwbK2LruyhahuVm3kxZ5/s320/karva_chauth.jpg" width="320" /></a></div>
</h3>
<div class="post-header">
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;">
नई दिल्ली। हर सुहागन स्त्री के लिए करवाचौथ का व्रत काफी महत्वपूर्ण होता
है। प्यार और आस्था के इस पर्व पर सुहागिन स्त्रियां पूरा दिन उपवास रखकर
भगवान से अपने पति की लंबी उम्र और गृहस्थ जीवन में सुख की कामना करती हैं।
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
इस साल यह व्रत 17 अक्टूबर को रखा जाएगा। करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से
मिलकर बना है,'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी '। इस
त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व बताया गया है। माना
जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है,
उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। ज्योतिषाचार्यों
के अनुसार 70 सालों बाद इस करवाचौथ पर एक शुभ संयोग बन रहा है, जो
सुहागिनों के लिए विशेष फलदायी होगा। बता दें, इस बार रोहिणी नक्षत्र के
साथ मंगल का योग बेहद मंगलकारी रहेगा। रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में
रोहिणी के योग से मार्कंडेय और सत्याभामा योग भी इस करवा चौथ बन रहा है।
चंद्रमा की 27 पत्नियों में से उन्हें रोहिणी सबसे ज्यादा प्रिय है। यही
वजह है कि यह संयोग करवा चौथ को और खास बना रहा है। इसका सबसे ज्यादा लाभ
उन महिलाओं को मिलेगा जो पहली बार करवा चौथ का व्रत रखेंगी। करवाचौथ की
पूजा के दौरान महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत करके रात को छलनी से चंद्रमा
को देखने के बाद पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत
पूरा करती हैं। <br /><b>करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त-</b><br />करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायंकाल 6:37- रात्रि 8:00 तक चंद्रोदय- <br />सायंकाल 7:55 चतुर्थी तिथि आरंभ- 18:37 <br />(27 अक्टूबर) चतुर्थी तिथि समाप्त- 16:54 (28 अक्टूबर)</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-10364405996233828142019-09-05T15:30:00.000+05:302019-09-05T15:30:02.407+05:30परशुराम ने नहीं, खुद बप्पा ने तोड़ा था अपना दांत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज हम आपको सुनाते हैं एक कहानी कि कैसे गणपति बप्पा का एक दांत टूटा. हो सकता है कि आपने परशुराम से युद्ध वाली कहानी सुनी हो, लेकिन हम आपको बताते हैं एक दूसरी कहानी जिसके अनुसार बप्पा ने <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZwBie7WEx4eRm0jVJY6OQmb1NbdxF2hThn4iteI0B8TMH28fEkLIt0vO7k26WBeQHbz1jwOa0j0PgI34Yaj42GB8-QCnWfZQvs00luhcga1lWWX3m7gnfr7tMv_nYY0TEcqHGAs_kfSYM/s1600/ekdant+1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="650" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZwBie7WEx4eRm0jVJY6OQmb1NbdxF2hThn4iteI0B8TMH28fEkLIt0vO7k26WBeQHbz1jwOa0j0PgI34Yaj42GB8-QCnWfZQvs00luhcga1lWWX3m7gnfr7tMv_nYY0TEcqHGAs_kfSYM/s320/ekdant+1.jpg" width="320" /></a></div>
खुद ही अपना दांत तोड़ दिया था. बात उस समय की है जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे, तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके मुख से निकले हुए महाभारत की कहानी को लिखे. इस कार्य के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना. गणेश जी भी इस बात के लिए मान गए पर उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन को एक पल के लिए भी बिना रुके पूरा करना होगा. गणेश जी ने कहा कि अगर आप रुकेंगे तो मैं भी लिखना बंद कर दूंगा.अब महर्षि नें एक शर्त और रखी कि गणेश जी जो भी लिखेंगे वह उसे समझ कर ही लिखेंगे. गणेश जी भी शर्त मान गए. अब दोनों ने काम शुरू किया और महाभारत के लेखन का काम प्रारंभ हुआ. कुछ देर लिखने के बाद अचानक से गणेश जी की कलम टूट गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि महर्षि बहुत तेजी से बोल रहे थे. अब अपने काम में बाधा को दूर करने के लिए गणपति ने अपने एक दांत को तोड़ दिया और स्याही में डूबा कर महाभारत की कथा लिखने लगे. </div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-39206516799422292752019-09-02T17:02:00.004+05:302019-09-25T14:29:36.902+05:30रात में सोने से पहले मंदिर पर पर्दा डाल देना चाहिए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<img alt="temple in home, ghar me mandir, old traditions about temple in home, parampara" height="300" src="https://i10.dainikbhaskar.com/thumbnails/730x548/web2images/www.bhaskar.com/2019/05/08/0521_temple_in_home_new_3.jpg" width="400" />
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<h2>
<ul>
<li>घर के मंदिर से जुड़ी 10 बातें ध्यान रखेंगे तो बनी रहती है सकारात्मकता</li>
<li>शौचालय के आसपास मंदिर बनाने से बचना चाहिए, वरना वास्तु दोष बढ़ते हैं</li>
<li><b></b>घर
में मंदिर बनाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। मान्यता है कि
मंदिर की वजह से घर में सकारात्मकता बनी रहती है। इस संबंध ध्यान रखना
चाहिए कि मंदिर के आसपास गंदगी नहीं होनी चाहिए, नियमित रूप से सुबह-शाम
पूजा करनी चाहिए। </li>
</ul>
</h2>
<h4 class="title">
मंदिर से जुड़ी खास बातें</h4>
<ol class="budget">
<li>
घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां न रखें।
शिवपुराण के अनुसार मंदिर में हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा शिवलिंग नहीं
रखना चाहिए। शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में
छोटा सा शिवलिंग रखने का नियम है। अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी छोटे
आकार की ही रखनी चाहिए।<br />
</li>
<li>
ध्यान रखें मंदिर में खंडित मूर्तियां न रखें।
जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे मंदिर से हटा देना चाहिए। खंडित
मूर्तियां पूजा के लिए अशुभ मानी गई हैं, लेकिन ध्यान रखें सिर्फ शिवलिंग
कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है, शेष देवी-देवताओं की
मूर्तियां टूटी हो तो उन्हें मंदिर में न रखें।<br />
</li>
<li>
रोज रात में सोने से पहले मंदिर पर पर्दा डाल
देना चाहिए। जिस प्रकार हम सोते समय किसी भी तरह की बाधा पसंद नहीं करते
हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए। जिससे भगवान के
विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो।<br />
</li>
<li>
घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पश्चिम
दिशा की ओर होगा तो ये बहुत शुभ रहता है। इसके लिए मंदिर का दरवाजा पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिए। अगर ये संभव न हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह
पूर्व दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।<br />
</li>
<li>
शौचालय के आसपास मंदिर बनाने से बचना चाहिए। ऐसी जगह पर मंदिर शुभ फल नहीं देता है। इसकी वजह से वास्तु दोष बढ़ते हैं।<br />
</li>
<li>
घर में मंदिर ऐसी जगह पर बनाना चाहिए, जहां कुछ
देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो। सूर्य की रोशनी और ताजी हवा
से घर के कई दोष शांत हो जाते हैं। सूर्य की रोशनी वातावरण की नकारात्मक
ऊर्जा को खत्म करती है।<br />
</li>
<li>
सुबह और शाम घर में पूजा जरूरी करनी चाहिए।
मंदिर में दीपक जलाएं। पूजन में घंटी बजाएं। घंटी की आवाज और दीपक की रोशनी
से नकारात्मकता नष्ट होती है।<br />
</li>
<li>
जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर के
मंदिर में और अन्य कमरों में गौमूत्र का छिड़काव करें। गौमूत्र के छिड़काव
से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है।<br />
</li>
<li>
पूजा में बासी फूल, पत्ते अर्पित न करें। स्वच्छ
और ताजे जल का ही उपयोग करें। ध्यान रखें तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी
बासी नहीं माने जाते हैं, इनका उपयोग कभी भी किया जा सकता है।<br />
</li>
<li>
घर में जिस जगह पर मंदिर बना है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए।</li>
</ol>
</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-30929617419766612592019-09-02T16:59:00.000+05:302019-09-25T14:30:05.207+05:30शनि देव की जन्मकथा और महत्व <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<img alt="Shani Jayanti 2019: Importance of Shani Jayanti Katha And Puja Vidhi" height="300" src="https://i10.dainikbhaskar.com/thumbnails/730x548/web2images/www.bhaskar.com/2019/06/02/0521_shani_jaynti_2019.jpg" width="400" />
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शनि
जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को
मनाया जाता है। इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन
ही शनि देव का जन्म हुआ था। शनि देव, भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के
पुत्र हैं। सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि शुरू से ही विपरीत स्वभाव
के थे। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह
इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण में इस शाप की कथा बताई गई है।
<br />
<ul>
<li><b>शनि देव के जन्म की कथा</b></li>
</ul>
शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि,
सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति
दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में
मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य
के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय
तक सहन नहीं कर पाईं। इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा
में छोड़कर वहां से चली चली गईं। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का
जन्म हुआ।<br />
<ul>
<li><b>शनि जयंती पर ऐसे करें पूजा</b></li>
</ul>
शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा
व्रत किया जाता है। शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि
संबंधी सभी कष्ट दूर कर देने में सहायक होता है।<br />
<b>1. </b>सुबह जल्दी नहाकर नवग्रहों को नमस्कार करें।<br />
<b>2. </b>फिर शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और सरसों या तिल के तेल से उसका अभिषेक करें।<br />
<b>3.</b> इसके बाद शनि मंत्र बोलते हुए शनिदेव की पूजा करें।<br />
<b>4. </b>शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा भी करनी चाहिए।<br />
<b>5. </b>शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल, उड़द,
काली मिर्च, मूंगफली का तेल, लौंग, तेजपत्ता तथा काला नमक पूजा में उपयोग
कर सकते हैं।<br />
<b>6. </b>ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: मंत्र बोलते हुए शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें।<br />
<b>7. </b>शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले
कपड़े, जामुन, काली उडद, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि वस्तुओं को शनि के
निमित्त दान में दे सकते हैं।<br />
<b>8. </b>इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर कुछ न खाएं और मंत्र का जप करते रहें।<br />
<ul>
<li><b>शनि जयंती का महत्त्व</b></li>
</ul>
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या
तिथि के दिन हुआ है। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर,
बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे। इस दिन प्रमुख शनि मंदिरों में
पूजा होती है और शनि से संबंधित चीजों का दान किया जाता है। जिससे कुंडली
में शनि की अशुभ स्थिति का असर कम हो जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने
से या उनसे जुड़ी चीजें दान करने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं। इस दिन
शनि देव की जो भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच
जाते हैं। जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता। शनि देव
की पूजा से जाने-अनजाने में किए पाप कर्मों के दोष से भी मुक्ति मिल जाती
है।</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-2573781657122047202019-09-02T16:56:00.005+05:302019-09-25T14:30:53.500+05:30रामायण सिखाती है जीने के तरीके<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<img alt="Ramayana Teaches Ways to Live, 5 Things That Are Important for Growth According to Ramayana" height="300" src="https://i10.dainikbhaskar.com/thumbnails/730x548/web2images/www.bhaskar.com/2019/06/19/0521_ramayan_2019.jpg" width="400" />
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</div>
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रामायण हिंदुओं का प्रमुख ग्रन्थ है। रामायण बताती है कि कुछ गुणों को
अपनाकर और कुछ खास बातों का ध्यान में रखकर मर्यादा एवं अनुशासन वाला जीवन
जीना चाहिए। इससे बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। रामायण एक राजपरिवार और
राजवंश की कहानी है जो पति-पत्नी, भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के आपसी
रिश्तों के आदर्श पेश करती है। रामायण से हर इंसान को कुछ न कुछ सीखकर अपने जीवन में अच्छी बातें शामिल
करनी चाहिए। इससे जीवन का स्तर बढ़ेगा। वहीं अच्छे गुणों के प्रभाव से हर
कामों सफलता मिलेगी। मानसिक तनाव से बचेंगे और परेशानियों से भी दूर
रहेंगे।
<b>ये बातें सीख सकते हैं रामायण से</b><br />
<b>1. विविधता में एकता</b><br />
<ul>
<li>विविधता में एकता रामायण की बड़ी सीख है । इस महाकाव्य में जब श्रीराम
लंका पर चढ़ाई करने जाते हैं तो उनकी सेना में मनुष्यों से लेकर बंदर और
अन्य जानवर भी शामिल थे। सभी ने श्रीराम का साथ दिया इसके अलावा राजा दशरथ के चारों बेटों का चरित्र अलग होने के बावजूद उनमें एकजुटता रहती है यह हर परिवार के लिए दुःख के समय से बाहर निकलने की सीख है।</li>
</ul>
<b>2. रिश्ते और विश्वास का महत्व</b><br />
<ul>
<li>श्रीराम ने सब कुछ जानते हुए भी कैकई को दिया वचन को निभाया। वहीं सभी
भाइयों में प्रेम था। ऐसे प्रेम में लालच, गुस्से या विश्वासघात के लिए
जगह ही नहीं थी। लक्ष्मण ने 14 साल तक भाई राम के साथ वनवास किया, वहीं
दूसरे भाई भरत ने राजगद्दी के अवसर को ठुकरा दिया। भाइयों के प्यार की ये
सीख हमें लालच और सांसारिक सुखों के बजाय रिश्तों को महत्व देने के लिए
प्रेरित करती है।</li>
</ul>
<b>3. मर्यादा और अनुशासन</b><br />
<ul>
<li>श्रीराम का व्यक्तित्व मर्यादा और अनुशासनपूर्ण था। उन्होने मर्यादओं
में रहकर अपने जीवन की हर जिम्मेदारी को अच्छे से पूरा किया। उनके जीवन से
हमें यही सीखना चाहिए कि मर्यादा और अनुशासन में रहकर हम एक अच्छे इंसानबन सकते हैं। </li>
</ul>
<b>4. दया और प्रेम</b><br />
<ul>
<li>श्रीराम शांत स्वभाव के थे। उनमें हर इंसान के लिए दया का भाव था।
उन्होंने प्रेम और दया के साथ एक पुत्र, पति, भाई और एक राजा की
जिम्मेदारियों को भी अच्छे से निभाया। श्रीराम का ये स्वभाव आपसी प्रेम और
सम्मान जैसेमानवीय गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इन गुणों को अपनाकर हम
खुशहाल और संतुष्ट जीवन जी सकते हैं। इसी की मदद से हम समाज की बुराइयों पर
जीत हासिल कर सकते हैं।</li>
</ul>
<b>5. सबसे समान व्यवहार</b><br />
<ul>
<li>भगवान राम का विनम्र आचरण और सभी के प्रति सम्मान का भाव हमको सीख
देता है। हमें पद, उम्र, लिंग आदि के भेदभावों के बावजूद सबसे समान व्यवहार
करना चाहिए। पशुओं के प्रति प्यार और दया भी हमारे मन में होनी चाहिए। सच्चा मानव वही है जो सबसे समानता से पेश आता है।</li>
</ul>
</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-68419786581080590702019-09-01T18:51:00.001+05:302019-09-01T18:51:03.194+05:30द्रौपदी यदि पांचों पांडवों से विवाह नहीं करती तो..............!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
महाभारत में द्रौपदी एक अहम् किरदार है। द्रौपदी के जीवन और चरित्र को समझना बहुत ही कठिन है। उन्हें तो सिर्फ कृष्ण ही समझ सकते थे। द्रौपदी श्रीकृष्ण की मित्र थी। मित्र ही मित्र को समझ सकता है। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी ने 4 ऐसी गलतियां की थी जिसके चलते महाभारत का युद्ध हुआ था।पहली गलती खुद <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEEtOIlPEYprdH_oaYzZZujgZBJSTBDPsl0MByEc4I4S3zXLM23pIKPxNXplmBTmL-b3VV_zJui03xTl_4hF2PivGN7duUNavjb-PwzJQmMsj3bfpiiC6RrrmmgnjBhDpMmbIhxMGwClsl/s1600/pandaw.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="416" data-original-width="740" height="358" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEEtOIlPEYprdH_oaYzZZujgZBJSTBDPsl0MByEc4I4S3zXLM23pIKPxNXplmBTmL-b3VV_zJui03xTl_4hF2PivGN7duUNavjb-PwzJQmMsj3bfpiiC6RrrmmgnjBhDpMmbIhxMGwClsl/s640/pandaw.jpg" width="640" /></a></div>
के स्वयंवर में कर्ण को सूत पुत्र कहकर उसका अपमान करना, दूसरी गलती दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ में 'अंधे का पुत्र भी अंधा' कहकर अपमानित करना, तीसरी गलती जयद्रथ के सिर के बाल मुंडवाकर उसको अपमानित करना और चौथी गलती चिरहरण के बाद पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित करना। हालांकि उपरोक्त सभी गलतियों में से तीसरी और चौथी गलती को गलती नहीं मान सकते हैं, क्योंकि यह परिस्थितिवश किया गया कार्य था। मतलब यह कि द्रौपदी ने कर्ण और दुर्योधन को अपमानित किया था जिसके बदले में जयद्रथ और दुर्योधन ने द्रौपदी को अपमानित किया। लेकिन द्रौपदी की एक सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने पांचों पांडवों के साथ विवाह करने को मंजूरी दे दी। दरअस्ल, अर्जुन ने स्वयंवर की प्रतियोगिता को जीत लिया था लेकिन किन्हीं भी परिस्थितियों में द्रौपदी यदि पांचों पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार नहीं करती तो आज इतिहास कुछ ओर होता। द्रौपदी कुंति के कहने या स्वयंवर के बाद युधिष्ठिर और वेद व्यासजी के कहने पर पांचों से विवाह करना स्वीकार किया था।यदि द्रौपदी ऐसा नहीं करती तो वह सिर्फ अर्जुन की ही पत्नी होती। यह भी कि यदि वह पांचों से ही विवाह नहीं करती तो फिर संभवत: वह कर्ण की पत्नी होती। तब महाभारत कुछ और होती।एक कथा के अनुसार द्रौपदी ने सभी पांडवों और श्रीकृष्ण के सामने यह स्वीकारा भी था कि 'मैं आप पांचों से प्यार करती हूं लेकिन मैं किसी 6वें पुरुष से भी प्यार करती हूं। मैं कर्ण से प्यार करती हूं। जाति की वजह से उससे विवाह नहीं करने का मुझे अब पछतावा होता है। अगर मैंने कर्ण से विवाह किया होता तो शायद मुझे इतने दुख नहीं झेलने पड़ते। तब शायद मुझे इस तरह के कड़वे अनुभवों से होकर नहीं गुजरना पड़ता। मैं शिक्षित होने के बावजूद बिना सोच-विचारकर किए गए अपने कार्यों के लिए पछता रही हूं। उल्लेखनीय है कि इसी कथा में युधिष्ठिर ने पांडवों के साथ हुए सभी बुरे घटनाक्रमों के लिए द्रौपदी को जिम्मेदार ठहराया था।<br /></div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-91845441385603821692019-09-01T18:40:00.002+05:302019-09-01T18:40:33.192+05:30श्री गणेश के 108 नाम देते हैं यश, कीर्ति, पराक्रम और वैभव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
श्री गणेश, गजानन, लंबोदर, विनायक के कई हजार नाम हैं लेकिन उन सभी का वाचन संभव नहीं अत: भक्त अपनी सुविधा से 108 नामों का पाठ कर सकते हैं। यह 108 गजानन नाम श्री गणेश को प्रसन्न करते हैं और वे यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और तेजस्विता का आशीष प्रदान करते हैं।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8uj9BVNFY_0tMrz5-tbi7_hwpy0fWDlJqz6RoC91qbX1jDg7ZOCqDddG74Krm8KXCASG7bTLwBs4MUoskdd1pEs-ItHA2SA6B9sSiU_6ZBbTmJd8ivRQfs0pNF-fvLm0EmpB42x0TbVkE/s1600/ganesh+ji+1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="432" data-original-width="622" height="222" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8uj9BVNFY_0tMrz5-tbi7_hwpy0fWDlJqz6RoC91qbX1jDg7ZOCqDddG74Krm8KXCASG7bTLwBs4MUoskdd1pEs-ItHA2SA6B9sSiU_6ZBbTmJd8ivRQfs0pNF-fvLm0EmpB42x0TbVkE/s320/ganesh+ji+1.jpg" width="320" /></a></div>
<br /><b>श्री गणेश के 108 नाम </b><br />1) बालगणपति – Baalganapati<br />2) भालचन्द्र – Bhalchandra<br />3) बुद्धिनाथ – Buddhinath<br />4) धूम्रवर्ण – Dhumravarna<br />5) एकाक्षर – Ekakshar<br />6) एकदंत – Ekdant<br />7) गजकर्ण – Gajkarn<br />8) गजानन – Gajaanan<br />9) गजनान – Gajnaan<br />10) गजवक्र – Gajvakra<br />11) गजवक्त्र – Gajvaktra<br />12) गणाध्यक्ष – Ganaadhyaksha<br />13) गणपति – Ganapati<br />14) गौरीसुत – Gaurisut<br />15) लंबकर्ण – Lambakarn<br />16) लंबोदर – Lambodar<br />17) महाबल – Mahaabal<br />18) महागणपति – Mahaaganapati<br />19) महेश्वर – Maheshwar<br />20) मंगलमूर्ति – Mangalmurti<br />21) मूषकवाहन – Mushakvaahan<br />22) निदीश्वरम – Nidishwaram<br />23) प्रथमेश्वर – Prathameshwar<br />24) शूपकर्ण – Shoopkarna<br />25) शुभम – Shubham<br />26) सिद्धिदाता – Siddhidata<br />27) सिद्धिविनायक – Siddhivinaayak<br />28) सुरेश्वरम – Sureshvaram<br />29) वक्रतुंड – Vakratund<br />30) अखूरथ – Akhurath<br />31) अलंपत – Alampat<br />32) अमित – Amit<br />33) अनंतचिदरुपम – Anantchidrupam<br />34) अवनीश – Avanish<br />35) अविघ्न – Avighn<br />36) भीम – Bheem<br />37) भूपति – Bhupati<br />38) भुवनपति – Bhuvanpati<br />39) बुद्धिप्रिय – Buddhipriya<br />40) बुद्धिविधाता – Buddhividhata<br />41) चतुर्भुज – Chaturbhuj<br />42) देवदेव – Devdev<br />43) देवांतकनाशकारी – Devantaknaashkari<br />44) देवव्रत – Devavrat<br />45) देवेन्द्राशिक – Devendrashik<br />46) धार्मिक – Dharmik<br />47) दूर्जा – Doorja<br />48) द्वैमातुर – Dwemaatur<br />49) एकदंष्ट्र – Ekdanshtra<br />50) ईशानपुत्र – Ishaanputra<br />51) गदाधर – Gadaadhar<br />52) गणाध्यक्षिण – Ganaadhyakshina<br />53) गुणिन – Gunin<br />54) हरिद्र – Haridra<br />55) हेरंब – Heramb<br />56) कपिल – Kapil<br />57) कवीश – Kaveesh<br />58) कीर्ति – Kirti<br />59) कृपाकर – Kripakar<br />60) कृष्णपिंगाक्ष – Krishnapingaksh<br />61) क्षेमंकरी – Kshemankari<br />62) क्षिप्रा – Kshipra<br />63) मनोमय – Manomaya<br />64) मृत्युंजय – Mrityunjay<br />65) मूढ़ाकरम – Mudhakaram<br />66) मुक्तिदायी – Muktidaayi<br />67) नादप्रतिष्ठित – Naadpratishthit<br />68) नमस्तेतु – Namastetu<br />69) नंदन – Nandan<br />70) पाषिण – Pashin<br />71) पीतांबर – Pitaamber<br />72) प्रमोद – Pramod<br />73) पुरुष – Purush<br />74) रक्त – Rakta<br />75) रुद्रप्रिय – Rudrapriya<br />76) सर्वदेवात्मन – Sarvadevatmana<br />77) सर्वसिद्धांत – Sarvasiddhanta<br />78) सर्वात्मन – Sarvaatmana<br />79) शांभवी – Shambhavi<br />80) शशिवर्णम – Shashivarnam<br />81) शुभगुणकानन – Shubhagunakaanan<br />82) श्वेता – Shweta<br />83) सिद्धिप्रिय – Siddhipriya<br />84) स्कंदपूर्वज – Skandapurvaj<br />85) सुमुख – Sumukha<br />86) स्वरुप – Swarup<br />87) तरुण – Tarun<br />88) उद्दण्ड – Uddanda<br />89) उमापुत्र – Umaputra<br />90) वरगणपति – Varganapati<br />91) वरप्रद – Varprada<br />92) वरदविनायक – Varadvinaayak<br />93) वीरगणपति – Veerganapati<br />94) विद्यावारिधि – Vidyavaaridhi<br />95) विघ्नहर – Vighnahar<br />96) विघ्नहर्ता – Vighnahartta<br />97) विघ्नविनाशन – Vighnavinashan<br />98) विघ्नराज – Vighnaraaj<br />99) विघ्नराजेन्द्र – Vighnaraajendra<br />100) विघ्नविनाशाय – Vighnavinashay<br />101) विघ्नेश्वर – Vighneshwar<br />102) विकट – Vikat<br />103) विनायक – Vinayak<br />104) विश्वमुख – Vshvamukh<br />105) यज्ञकाय – Yagyakaay<br />106) यशस्कर – Yashaskar<br />107) यशस्विन – Yashaswin<br />108) योगाधिप – Yogadhip</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-71863734792478450772019-09-01T18:35:00.002+05:302019-09-01T18:35:20.626+05:30माता पार्वती जब शिशु गणेश को छोड़ आई जंगल में<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLMy5JfffYai0mKb7c95_hfQHpk_IpkVP8dMGXMty4cv08duGZ3UUotXiiGZxIPmP5vzGWR4e7PYUp1vb17piSvVd5HkqKnnomq89C6RLQvXVFwI2Q4W0Aj7kWLBMENj3hyphenhyphenG7RLEKFawfV/s1600/ganesh+ji.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="592" data-original-width="740" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLMy5JfffYai0mKb7c95_hfQHpk_IpkVP8dMGXMty4cv08duGZ3UUotXiiGZxIPmP5vzGWR4e7PYUp1vb17piSvVd5HkqKnnomq89C6RLQvXVFwI2Q4W0Aj7kWLBMENj3hyphenhyphenG7RLEKFawfV/s320/ganesh+ji.jpg" width="320" /></a>कहते हैं कि एक घने जंगल में शिशु गणेश को माता पार्वती छोड़कर चली गई। उस जंगल में हिंसक जीव ही घूमते रहते थे। वहां कभी कभार ऋषि मुनि भी उस जंगल से गुजरते थे। उस भयानक जंगल में एक सियार ने उस शिशु को देखा और वह उसके पास जाने लगा।तभी उसी समय ही वहां से ऋषि वेद व्यास के पिता पराशर मुनि गुजरे और उनकी दृष्टि उस अबोध बालक पर पड़ी और उन्होंने देखा की एक सियार भी उस शिशु की ओर धीरे-धीरे आ रहा है। पहले तो पराशर मुनि ने सोच कि कहीं यह इंद्र का कोई खेल या माया तो नहीं जो मेरा तप भंग करना चाहता हो? यह सोचते हुए महर्षि पराशर तेजी से शिशु की ओर बढ़े और यह देखकर वह सियार अपनी जगह पर ही रुक गया और फिर चुपचाप ही वन में कहीं गुम हो गया। महर्षि पराशर ने उस बालक को ध्यान देखा। उसकी चार भुजाएं थीं। रक्त वर्ण और गजवदन था। सुंदर वस्त्र पहन रखे थे। तब उन्होंने उसके छोटे छोटे चरणों को देखा तो उस पर ध्वज, अंकुश और कमल की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी।<br />यह देखकर महर्षि के शरीर में रोमांच हो आया और वे समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्की स्वयं प्रभु थे। तब उन्होंने शिशु के चरणों में अपना मस्तक रख दिया और वे खुद को भाग्यशाली समझने लगे। वे उस शिशु को लेकर अपने आश्रम चल पड़े।<br />उनकी पत्नी वत्सला ने जब महर्षि के हाथों में एक नन्हें बालक को देखा तो पूछा यह आपको कहां से मिला। महर्षि ने कहा कि यह जंगल के एक सरोवर के तट पर पड़ा था। लगता है कि को क्रूर हृदय अभागा इसे वहां छोड़ गया है। वत्सला शिशु को देखककर प्रसन्न हो गई। तब पराशर ने अपनी पत्नी को समझाया कि यह साक्षात त्रिलोकी नाथ है। यह हमारा उद्धार करने के लिए आया है। यह वचन सुनकर वत्सला रोमांचित हो गई। दोनों ने मिलकर गणेश का लालन पालन किया।कहते हैं कि भगवान श्री गणपति ने कृत युग में कश्यप व अदिति के यहां श्रीअवतार महोत्कट विनायक नाम से जन्म लिया। इस अवतार में गणपति ने देवतान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की व अपने अवतार की समाप्ति की।त्रेता युग में गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्म लिया और उन्हें गुणेश नाम दिया गया। इस अवतार में गणपति ने सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया व ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया।<br />द्वापर युग में गणपति ने पुन: पार्वती के गर्भ से जन्म लिया व गणेश कहलाए। परंतु गणेश के जन्म के बाद किसी कारणवश पार्वती ने उन्हें जंगल में छोड़ दिया, जहां पर पराशर मुनि ने उनका पालन-पोषण किया। इन्ही गणेश ने ही ऋषि वेद व्यास के कहने पर महाभारत लिखी थी।<br />इस अवतार में गणेश ने सिंदुरासुर का वध कर उसके द्वारा कैद किए अनेक राजाओं व वीरों को मुक्त कराया था। इसी अवतार में गणेश ने वरेण्य नामक अपने भक्त को गणेश गीता के रूप में शाश्वत तत्व ज्ञान का उपदेश दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि वे महिष्मति वरेण्य वरेण्य के पुत्र थे। कुरुप होने के कारण उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया था।<br />
<br /></div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-170642404347681592019-04-17T14:02:00.003+05:302019-04-17T14:02:46.530+05:30आखिर क्यों है गंगा पवित्र <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="det_ban_opt wbx">
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<div style="color: white; display: inline-block; position: relative;">
<img align="middle" alt="" class="imgCont" height="592" src="http://media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2019-04/14/full/1555236127-5056.jpg" style="border: 1px solid #DDD; float: none; margin-right: 0px; z-index: 0;" title="Ganga Nadi" width="740" /></div>
</div>
</div>
<div>
<div style="float: left; text-align: center; width: 100%;">
</div>
<br />
हिन्दुओं ने कर्मकांड के नाम पर गंगा माता को अधमरा कर दिया है। यदि
भविष्य में गंगा लुप्त होती है तो इसका सबसे बड़ा दोष उन लोगों को लगेगा जो
गंगा में अस्थि विसर्जन करते हैं, कचरा डालते हैं, दीपक छोड़ते हैं और
शहरों और फैक्ट्रियों का गंदा पानी उसी में डालते हैं। गंगा की सफाई के नाम
पर करोड़ों रुपए पानी में बहा दिए गए लेकिन गंगा जस की तस है।</div>
<div>
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा
के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं। ये
वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को
मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। शायद इसीलिए हमारे ऋषियों ने गंगा को
पवित्र नदी माना होगा। इसीलिए इस नदी का जल कभी सड़ता नहीं है।</div>
<div>
</div>
<div>
वेद, पुराण, रामायण, महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का
वर्णन है। करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डॉक्टर एमई हॉकिन
ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी
में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को
मारने की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट
(एनबीआरआई) के निदेशक डॉक्टर चंद्रशेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में
प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई
बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है।</div>
<div>
<strong>प्राकृतिक गुणों से भरपूर औषधीय जल</strong></div>
<div>
<strong> </strong>गंगा जल की
वैज्ञानिक खोजों ने साफ कर दिया है कि गंगा गोमुख से निकलकर मैदानों में
आने तक अनेक प्राकृतिक स्थानों, वनस्पतियों से होकर प्रवाहित होती है।
इसलिए गंगा जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं जो व्यक्ति को शक्ति प्रदान करते
हैं। यह जल सभी तरह के रोग काटने की दवा भी है।</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-29155288835108746642019-04-17T14:00:00.001+05:302019-04-17T14:00:30.159+05:30काल भैरव की प्रतिमा के मदिरापान करने का रहस्य <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="det_ban_opt wbx">
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<h1>
</h1>
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<img align="middle" alt="" class="imgCont" height="354" src="http://media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2016-04/26/full/1461653575-9013.jpg" style="border: 1px solid #DDD; float: none; margin-right: 0px; z-index: 0;" title="" width="630" />
</div>
</div>
<span class="date"><strong class="authorname"></strong></span><div class="det_con_head">
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<strong><a class="storyTags" href="http://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8" target="_blank">मदिरापान </a>करती काल भैरव की प्रतिमा </strong></div>
<div>
क्या मूर्ति मदिरापान कर सकती...आप कहेंगे नहीं, कतई नहीं। भला मूर्ति
कैसे मदिरापान कर सकती है। मूर्ति तो बेजान होती है। बेजान चीजों को
भूख-प्यास का अहसास नहीं होता, इसलिए वह कुछ खाती-पीती भी नहीं है। लेकिन
उज्जैन के काल भैरव के मंदिर में ऐसा नहीं होता। वाम मार्गी संप्रदाय के इस
मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा
भी मदिरापान करते हैं । </div>
<div>
<div style="float: left; text-align: center; width: 100%;">
</div>
</div>
<div>
आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमने इसी तथ्य को खंगालने की कोशिश
की। अपनी इस कोशिश के लिए हमने सबसे पहले रुख किया उज्जैन का...महाकाल के
इस नगर को मंदिरों का नगर कहा जाता है। लेकिन हमारी मंजिल थी, एक विशेष
मंदिर- काल भैरव मंदिर। यह मंदिर महाकाल से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर
है। कुछ ही समय बाद हम मंदिर के मुख्य द्वार पर थे। </div>
<div>
मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद, श्रीफल के साथ-साथ वाइन
की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, जान
पाते, उससे पहले ही हमारे सामने कुछ श्रद्धालुओं ने प्रसाद के साथ-साथ
मदिरा की बोतलें भी खरीदीं। जब हमने दुकानदार रवि वर्मा से इस बारे में
बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बाबा के दर पर आने वाला हर भक्त उनको मदिरा
(देशी मदिरा) जरूर चढ़ाता है। बाबा के मुंह से मदिरा का कटोरा लगाने के
बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है। </div>
<div>
<strong>रवि से जानकारी लेने के बाद हम मंदिर के अंदर गए..</strong>.</div>
<div>
मंदिर
में भक्तों का तांता लगा हुआ था। हर भक्त के हाथ में प्रसाद की टोकरी थी।
इस टोकरी में फूल और श्रीफल के साथ-साथ मदिरा की एक छोटी बोतल भी जरूर नजर आ
जाती थी...हम मंदिर के गर्भ गृह में एक तरफ खड़े हो गए और देखने लगे कि
बाबा कैसे मदिरा का पान करते हैं।अंदर का दृश्य बेहद निराला था। भैरव बाबा की प्रतिमा के पास बैठे पुजारी
गोपाल महाराज कुछ मंत्र बुदबुदा रहे थे। इतने में ही एक भक्त ने प्रसाद और
मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया। पंडित जी ने मदिरा को एक छोटी प्लेट में निकाला और
बाबा की मूरत के मुंह से लगा दिया... और यह क्या...भोग लगाने के बाद प्लेट
में मदिरा की एक बूंद भी नहीं बची।</div>
<div style="text-align: center;">
<strong>जरूर देखें मदिरापान करते हुए बाबा की चमत्कारिक प्रतिमा को...</strong></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<div>
<strong>यह सिलसिला लगातार चलता रहा..</strong>.एक-के-बाद-एक भक्त आते
गए और बाबा की मूर्ति मदिरापान करती रही। सब कुछ हमारी आंखों के सामने घट
रहा था। हम काफी देर तक यहीं खड़े रहे। मदिरा पिलाने का सिलसिला भी लगातार
जारी था। पंडित जी भैरव बाबा को लगातार प्रसाद चढ़ाते जा रहे थे...लेकिन
कहीं भी मदिरा की एक बूंद भी नजर नहीं आ रही थी।हमने राजेश चतुर्वेदी नामक एक भक्त से इस बाबत चर्चा की। राजेश ने बताया
'वे उज्जैन के रहने वाले हैं और हर रविवार काल भैरव को मदिरा का भोग लगाने
जरूर आते हैं। राजेश बताते हैं, पहले-पहल वे भी यह जानने की कोशिश करते थे
कि मदिरा आखिर जाती कहां हैं, लेकिन अब उन्हें पक्का विश्वास है कि मदिरा
का भोग भगवान काल भैरव ही लगाते हैं।'</div>
<div>
<strong>तांत्रिक मंदिर : </strong></div>
<div>
<strong> </strong>काल भैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार
साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग
के मंदिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां
तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का
भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया
गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूं ही जारी रखा। </div>
<div>
अब यहां जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं।
मंदिर के पुजारी गोपाल महाराज बताते हैं कि यहां विशिष्ट मंत्रों के द्वारा
बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत
खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।</div>
<div>
<strong>काल भैरव </strong>के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर
लंबी-चौड़ी बहस हो चुकी है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले राजुल
महाराज बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अंग्रेज अधिकारी ने मंदिर की
खासी जांच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा...उसने प्रतिमा के
आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके बाद वे भी काल
भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहां देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया
जाने लगा, जो आज तक जारी है।मंदिर में काफी देर तक बैठने और आसपास की जगहों का मुआयना करने के बाद
और तमाम जानकार लोगों से बातें करने के बाद हमें भी पूरा यकीन हो गया कि
जहां आस्था होती है, वहां शक की कोई गुंजाइश नहीं होती। </div>
<strong>कब से शुरू हुआ सिलसिला</strong><br />
काल भैरव को मदिरा पिलाने
का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई
नहीं जानता। यहां आने वाले लोगों और पंडितों का कहना है कि वे बचपन से
भैरव बाबा को भोग लगाते आ रहे हैं, जिसे वे खुशी-खुशी ग्रहण भी करते हैं।
उनके बाप-दादा भी उन्हें यही बाताते हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था, जहां
बलि चढ़ाने के बाद बलि के मांस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई
जाती थी। अब बलि तो बंद हो गई है, लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही
जारी है। इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन की भी मंजूरी मिली हुई है। खास
अवसरों पर प्रशासन की ओर से भी बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-39992943572110990912019-04-17T13:58:00.002+05:302019-04-17T13:58:25.563+05:30अनूठा मंदिर! जहां मर्द पहनते हैं जनाने कपड़े... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="det_title">
<h1>
</h1>
</div>
</div>
</div>
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<div style="color: white; display: inline-block; position: relative;">
<img align="middle" alt="" class="imgCont" height="354" src="http://media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-05/01/full/1493618222-0461.jpg" style="border: 1px solid #DDD; float: none; margin-right: 0px; z-index: 0;" title="" width="630" /></div>
</div>
</div>
<div>
<div style="float: left; text-align: center; width: 100%;">
</div>
धर्म को लेकर हमारे देश में जहां तरह-तरह के प्रतबिंध लगाए गए हैं। देश
में बहुत से मंदिर ऐसे हैं जिनमें महिलाओं का प्रवेश करने पर रोक होती है।
ये मंदिर देश भर में इस तरह के लिए जाना जाता है कि यहां प्रवेश करने और
पूजा करने के इच्छुक पुरुषों को बकायदा महिलाओं की ड्रेस में आना पड़ता है।</div>
<div>
इस मंदिर में उन्हें पूजा करने के लिए महिलाओं, किन्नरों पर कोई रोक नहीं
है, लेकिन पुरुष अगर इस मंदिर में पूजा अर्चना करना चाहता है तो उसे
महिलाओं की तरह पूरा सोलह श्रृंगार करना पड़ता है। यह खास मंदिर <a class="storyTags" href="http://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B2" target="_blank">केरल </a>के कोल्लम जिले में हैं जहां पर श्री <a class="storyTags" href="http://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%BE+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80+%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0" target="_blank">कोत्तानकुलांगरा देवी मंदिर </a>में हर साल चाम्याविलक्कू त्यौहार मनाया जाता है।</div>
<div>
</div>
<div>
इस त्योहार में हर साल हजारों की संख्या में पुरुष श्रद्घालु आते हैं।
उनके तैयार होने के लिए मंदिर में अलग से मेकअप रूम बनाया जाता है। पुरुष
महिलाओं की तरह न केवल साड़ी पहनते है, बल्कि जूलरी, मेकअप और बालों में
गजरा भी लगाते है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं
है।</div>
<div>
यही नहीं ट्रांसजेंडर भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में देवी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। अपनी
खास परंपरा के लिए दुनियाभर में मशहूर इस मंदिर के ऊपर कोई छत नहीं हैं।
इस राज्य का यह ऐसा एकमात्र मंदिर है जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं
हैं।</div>
<div>
</div>
<div>
ऐसी मान्यता है कि कुछ चरवाहों ने महिलाओं के कपड़े पहनकर पत्थर पर फूल
चढ़ाए थे, जिसके बाद उस पत्थर से दिव्य शक्ति निकलने लगी। इसके बाद इसे
मंदिर का रूप दिया गया। एक मान्यता यह भी है कि कुछ लोग पत्थर पर नारियल
फोड़ रहे थे और इसी दौरान पत्थर से खून निकलने लग गया जिसके बाद से यहां
देवी की पूजा होने लगी।</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-35572640926324175612019-04-17T13:57:00.001+05:302019-04-17T13:57:19.378+05:30यहां राम ने ब्रह्महत्या का पाप धोया था...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="det_ban_opt wbx">
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<img align="middle" alt="" class="imgCont" height="415" src="http://media.webdunia.com/_media/hi/img/article/2017-06/27/full/1498567212-4299.jpg" style="border: 1px solid #DDD; float: none; margin-right: 0px; z-index: 0;" title="" width="740" /></div>
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हम आपको एक ऐसे <a class="storyTags" href="http://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%B0" target="_blank">सरोवर </a>के
बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें स्नान करने के बाद आपके सारे पाप समाप्त
हो जाते हैं और पुनः साफ-सुथरे मन से आप आगे का जीवन जीने के लिए अग्रसर
हो सकते हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, इस सरोवर से जुड़ी कथाएं व यहां के
लोगों की आस्था इस बात का प्रतीक है कि इस सरोवर में नहाने से लोगों के पाप
नष्ट हो जाते हैं।</div>
</div>
<div>
इस सरोवर से जुड़ी कथाओं की पुष्टि करने के लिए जब हम उत्तरप्रदेश की
राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर बने हत्याहरण तीर्थ सरोवर
पहुंचे, जो हरदोई जनपद की संडीला तहसील में पवित्र नैमिषारण्य परिक्रमा
क्षेत्र में स्थित है। जब हम इस सरोवर के साक्षात दर्शन करने पहुंचे तो इस
सरोवर से जुड़ी लोगों की आस्थाओं को देखकर एक बार विश्वास हो चला कि हो ना
हो इस सरोवर में स्नान करने के बाद कहीं न कहीं पापों से मुक्ति मिल जाती
है क्योंकि सरोवर में स्नान करने वालों की अपार भीड़ थी।</div>
<div>
इस सरोवर से जुड़ी कथाओं को जानने का प्रयास किया तो कई बातें सामने
निकलकर आईं। सरोवर के पास पीढ़ियों से फूलमालाओं का काम करने वाले 80 साल
के जगन्नाथ से इस सरोवर से जुड़ी बातों को जानना चाहा तो जगन्नाथ ने बताया
की पौराणिक बातों में कितनी सत्यता है, इसकी पुष्टि तो वे नहीं करते लेकिन
जो वह बताने जा रहे हैं, इसके बारे में उन्होंने अपने पिताजी से सुना था।</div>
<div>
उन्होंने कि कहा जब मैं अपने पिताजी के साथ इस सरोवर पर फूल बेचने के लिए
आता था तो मैंने एक दिन अपने पिता से पूछा कि यहां पर इतने सारे लोग क्या
करने आते हैं तो उन्होंने मुझे बताया कि हजारों वर्ष पूर्व जब भगवान <a class="storyTags" href="http://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE" target="_blank">राम </a>ने
रावण का वध कर दिया था तो उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लग गया था। उस पाप को
मिटाने के लिए भगवान राम भी इस सरोवर में स्नान करने आए थे।</div>
<div>
</div>
<div>
इस सरोवर के निर्माण के बारे में शिव पुराण में वर्णन है कि माता पार्वती
के साथ भगवान भोलेनाथ एकांत की खोज में निकले और नैमिषारण्य क्षेत्र में
विहार करते हुए एक जंगल में जा पहुंचे। वहां पर सुरम्य जंगल मिलने पर
तपस्या करने लगे। तपस्या करते हुए माता पार्वती को प्यास लगी। जंगल में
कहीं जल न मिलने पर उन्होंने देवताओं से पानी के लिए कहा तब सूर्य देवता ने
एक कमंडल जल दिया। देवी पार्वती ने जलपान करने के बाद शेष बचे जल को जमीन
पर गिरा दिया। तेजस्वी पवित्र जल से वहां पर एक कुंड का निर्माण हुआ और
जाते वक्त भगवान शंकर ने इस स्थान का नाम प्रभास्कर क्षेत्र रखा।</div>
<div>
</div>
<div>
यह कहानी सतयुग की है। काल बीतते रहे द्वापर में ब्रम्हा द्वारा अपनी
पुत्री पर कुदृष्टि डालने पर पाप लगा। उन्होंने इस तीर्थ में आकर स्नान
किया तब वे पाप मुक्त हुए। जगन्नाथ ने बताया कि तब से यहां पर मान्यता चली आ
रही है की जो इस स्थान पर आकर स्नान करेगा वह पाप मुक्त हो जाएगा। हत्या
मुक्त हो जाएगा। यहां पर राम का एक बार नाम लेने से हजार नामों का लाभ
मिलेगा। तब से आज तक लोग यहां इस पावन तीर्थ पर आकर हत्या, गोहत्या एवं
अन्य पापों से मुक्ति पा रहे हैं।</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-83625413492975774862019-04-17T13:50:00.003+05:302019-04-17T13:51:06.593+05:30हनुमान जी भी ला सकते थे माता सीता को लेकिन.......!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
पवनपुत्र हनुमानजी भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार के रूप में सर्वत्र
पूजनीय हैं। वे बल और बुद्धि के देवता हैं। कई हनुमान मंदिरों में उनकी
मूर्ति को पर्वत उठाए तथा राक्षस का मान मर्दन करते हुए दिखाया जाता है,
लेकिन प्रभु श्रीराम के मंदिरों में वे राम के चरणों में मस्तक झुकाए बैठे
हैं।</div>
<div>
भगवान शिव भी प्रभु श्रीराम का स्मरण करते हैं इसलिए उनके अवतार हनुमान को
भी राम नाम अधिक प्रिय है। कोई भी रामकथा हनुमानजी के बिना पूरी नहीं
होती।</div>
<div>
हनुमान के एक प्रसंग के अनुसार- एक बार वे माता अंजनी को रामायण सुना रहे थे।
<br />
उनकी कथा से प्रभावित होकर माता अंजनी ने उनसे पूछा- तुम इतने शक्तिशाली
हो कि तुम पूंछ के एक वार से पूरी लंका को उड़ा सकते थे, रावण को मार सकते
थे और मां सीता को छुड़ा कर ला सकते हो फिर तुमने ऐसा क्यों नहीं किया? अगर
तुम ऐसा करते तो युद्ध में नष्ट हुआ समय बच जाता?</div>
<div>
इस पर हनुमानजी विनम्रता के साथ माता अंजनी को कहते हैं- <b>क्योंकि
प्रभु श्रीराम ने कभी मुझे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था। मैं उतना ही करता
हूं मां, जितना मुझे प्रभु श्रीराम कहते हैं और वे जानते हैं कि मुझे क्या
करना है। इसलिए मैं अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता और वही करता हूं
जितना मुझे बताया गया है।</b></div>
<div>
</div>
प्रभु श्रीराम के प्रति उनके इस अगाध प्रेम और श्रद्धा के कारण ही
हनुमानजी पूरे संसार में पूजे जाते हैं। अगर कोई भी परेशान हनुमान भक्त
हनुमान जयंती, मंगलवार तथा शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का सात बार पाठ
करें, तो उनके कष्टों का निवारण होता है। ऐसा माना जाता है।</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-33253844529369986462019-04-12T19:51:00.001+05:302019-04-12T19:51:25.083+05:30क्यों मनाया जाता है राम नवमी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>जानिए पूजा के शुभ मुहूर्त</b><br />राम नवमी का संबंध भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से है। भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने के लिये हर युग में अवतार धारण किए। इन्हीं में एक अवतार उन्होंने भगवान श्री राम के रुप में लिया था। जिस दिन भगवान श्री हरि ने राम के रूप में राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया वह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन था। यही कारण है कि इस तिथि को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि का भी यह अंतिम दिन होता है।<br /><b>श्री राम का जन्म</b><br />पौराणिक ग्रंथों में जो कथाएं हैं उनके अनुसार भगवान राम त्रेता युग में अवतरित हुए। उनके जन्म का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना, मानव समाज के लिए एक आदर्श पुरुष की मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। यहां धर्म का अर्थ किसी विशेष धर्म के लिए नहीं बल्कि एक आदर्श कल्याणकारी समाज की स्थापना से है। राजा दशरथ जिनका प्रताप 10 दिशाओं में व्याप्त रहा। उन्होंने तीन विवाह किए थे लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। ऋषि मुनियों से जब इस बारे में विमर्श किया तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के पश्चात यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे राजा दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया। कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा केकैयी को दिया इसके पश्चात कौशल्या और केकैयी ने अपने हिस्से से आधा-आधा हिस्सा तीसरी पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इसीलिए चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम जन्मे। केकैयी से भरत ने जन्म लिया तो सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।<br /><b>कैसे मनाते हैं रामनवमी</b><br />भगवान श्री राम को मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। उन्हें पुरुषोत्तम यानि श्रेष्ठ पुरुष की संज्ञा दी जाती है। वे स्त्री पुरुष में भेद नहीं करते। अनेक उदाहरण हैं जहां वे अपनी पत्नी सीता के प्रति समर्पित व उनका सम्मान करते नज़र आते हैं। वे समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को भी नहीं मानते। शबरी के झूठे बेर खाने का और केवट की नाव चढ़ने का उदाहरण इसे समझने के लिए सर्वोत्तम है। वेद शास्त्रों के ज्ञाता और समस्त लोकों पर अपने पराक्रम का परचम लहराने वाले, विभिन्न कलाओं में निपुण लंकापति रावण के अंहकार के किले को ध्वस्त करने वाले पराक्रमी भगवान श्री राम का जन्मोत्सव देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम की भक्ति में डूबकर भजन कीर्तन किए जाते हैं। श्री रामकथा सुनी जाती है। रामचरित मानस का पाठ करवाया जाता है। श्री राम स्त्रोत का पाठ किया जाता है। कई जगहों भर भगवान श्री राम की प्रतिमा को झूले में भी झुलाया जाता है। रामनवमी को उपवास भी रखा जाता है। मान्यता है कि रामनवमी का उपवास रखने से सुख समृद्धि आती है और पाप नष्ट होते हैं।<br /></div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-39263114854607421392018-06-03T14:58:00.003+05:302018-06-03T14:58:32.804+05:30किससे हुआ था राधारानी का विवाह!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राधा और कृष्ण को प्रेम का दूसरा रूप माना जाता है। उनका प्रेम इतना पवित्र था कि आज भी लोगबाग उनके प्रेम की मिसालें देते हैं। हम सभी इस सत्य से भली भांति परिचित हैं कि राधा कृष्ण की प्रेमिका थी, लेकिन ये भी सत्य है कि श्रीकृष्ण का विवाह राधा से नहीं हुआ। ऐसे में ये बात महत्वपूर्ण है कि आखिर कौन था राधा का पति?आज तक कोई भी इस संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं दे पाया है। आइए आज आपको बताते हैं कि कब कैसे और कहां हुई थी राधा जी की शादी और क्या वो वास्तविकता में श्री कृष्ण की प्रेमिका थीं?भारतीय पुराणों के मुताबिक राधा मां लक्ष्मी का अवतार थीं और भगवान कृष्ण विष्णु भगवान के अवतार थे। मां लक्ष्मी ने एक बार ये बात कही थी कि विष्णु के अलावा वो किसी और की जीवनसंगिनी नहीं बन सकतीं। गर्ग संहिता के मुताबिक़ भगवान कृष्ण और राधा की शादी स्वयं परमपिता ब्रम्हा ने करवाई थी। अक्सर ही नंद बाबा बाल गोपाल को भंडीर ग्राम ले जाते थे कि अचानक एक दिन जब वो भांडीर जा रहे थे तो चुंधियाती रोशनी के साथ बहुत तेज़ का तूफ़ान आया। इतनी रोशनी कि नंद बाबा अपनी आंखें भी नहीं खोल पा रहे थे उसी समय उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई दिव्य शक्ति उनके आसपास है। ऐसी मान्यता है कि वो शक्ति साक्षात राधारानी ही थीं। बताया जाता है राधारानी के प्रकट होते ही कृष्ण भी किशोर रूप में आ गए और ठीक उसी समय भंडीर के जंगल में परमपिता ब्रम्हा ने ललिता और विशाखा के सामने उनका विवाह संपन्न कराया। जैसे ही शादी संपन्न हुई वातावरण पूर्ववत हो गया। और ब्रह्मा जी समेत राधा, ललिता, विशाखा अंतर्ध्यान हो गए और कृष्ण ने भी बाल गोपाल का रूप ले लिया।<br />
<b>राधारानी की शादी: </b><br />
इसके इतर एक कहानी और है जिसके अनुसार राधारानी का विवाह भगवान कृष्ण से ना हो कर अभिमन्यु से हुआ था। एक पौराणिक किवदंती के मुताबिक, जावत गांव में जतिला नाम की एक गोपी थी उसका पुत्र था अभिमन्यु। योगमाया के प्रभाव से राधारानी का विवाह जतिला के पुत्र अभिमन्यु से हुआ था। <br />
योगमाया की शक्तियों के कारण अभिमन्यु कभी राधा को स्पर्श तक न कर पाया। इसके अलवा अभिमन्यु बहुत शर्मीला और व्यस्त भी था, वो कभी अपने संकोच से बाहर ही नहीं आ पाया। तो इस सन्दर्भ में कोई भी ऐसी जानकारी नहीं है जिसे प्रमाणिक माना जा सके लेकिन वो कृष्ण की प्रेमिका थीं इस सत्य से सभी वाकिफ हैं। </div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-56941632184737404842018-06-03T14:53:00.002+05:302018-06-03T15:01:24.495+05:30राधा और रुक्मिणी में से लक्ष्मी कौन ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="desc_section" id="ContentPlaceHolder1_dv_headline" style="background-color: white; box-shadow: none; box-sizing: border-box; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">चराचर जगत में रुक्मिणी और राधा का संबंध श्रीकृष्ण से है। संसार रुक्मिणी जी को श्रीकृष्ण की पत्नी और राधा जी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में मानता है। आम जगत में रुक्मिणी और राधा की यही पहचान है परंतु क्या कभी आपके मन में यह प्रशन उठा है की राधा और रुक्मिणी में से कौन लक्ष्मी का अवतरण था ? इस लेख के माध्यम से हम शास्त्रों के अनुसार इस तथ्य से आप सभी पाठकों को रूबरू करवाते हैं। </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">शास्त्रों में लक्ष्मी जी के रहस्य को इस प्रकार उजागर किया है कि लक्ष्मी जी क्षीरसागर में अपने पति श्री विष्णु के साथ रहती हैं एवं अपने अवतरण स्वरुप में राधा के रूप में कृष्ण के साथ गोलोक में रहती हैं। महाभारत में लक्ष्मी के ‘विष्णुपत्नी लक्ष्मी’ एवं ‘राज्यलक्ष्मी’ ऐसे दो प्रकार बताए गए हैं। इनमें से लक्ष्मी हमेशा विष्णु के पास रहती हैं एवं राज्यलक्ष्मी पराक्रमी राजाओं के साथ विचरण करती हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार विष्णु के दक्षिणांग से लक्ष्मी का, एवं वामांग से लक्ष्मी के ही अन्य एक अवतार राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण में निर्दिष्ट लक्ष्मी के अवतार एवं उनके प्रकट होने के स्थान इस प्रकार है </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">1.महालक्ष्मी जो वैकुंठ में निवास करती हैं। </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">2. स्वर्गलक्ष्मी जो स्वर्ग में निवास करती हैं। </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">3. राधा जी गोलोक में निवास करती हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">4. राजलक्ष्मी (सीता) जी पाताल और भूलोक में निवास करती हैं। </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">5. गृहलक्ष्मी जो गृह में निवास करती हैं। </span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">6. सुरभि (रुक्मणी) जो गोलोक में निवास करती हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">7. दक्षिणा जो यज्ञ में निवास करती हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">8. शोभा जो हर वस्तु में निवास करती हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">लक्ष्मी रहस्य का रूपकात्मक दिग्दर्शन करने वाली अनेकानेक वृतांत और कथाएं महाभारत जैसे शास्त्रों में वर्णित हैं। जिनमें से एक वृतांत है "लक्ष्मी-रुक्मिणी संवाद" महाभारत के एक प्रसंग में लक्ष्मी के रहस्य से संबंधित एक प्रशन युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था, जिसका जवाब देते समय भीष्म ने लक्ष्मी एवं रुक्मिणी के दरम्यान हुए एक संवाद की जानकारी युधिष्ठिर को दी। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार, लक्ष्मी ने रुक्मिणी से कहा था, की मेरा निवास तुममे (रुक्मिणी) और और राधा में समानता से है तथा गोकुल कि गाएं एवं गोबर में भी मेरा निवास है। श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन अनुसार रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का रुक्मिणी से दैहिक और राधा से आत्मिक संबंध माना गया है। रुक्मिणी और राधा का दर्शन बहुत गहरा है। इसे सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण जगत की तीन अवस्थाएं हैं।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;"> 1. स्थूल; 2. सूक्ष्म; 3. कारण</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="color: #b71c1c; font-family: khulabold;"><span style="font-size: 30px; font-weight: 500;">स्थूल जो दिखाई देता है जिसे हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं और हाथों से छू सकते हैं वह कृष्ण-दर्शन में रुक्मणी कहलाती हैं। सूक्ष्म जो दिखाई नहीं देता और जिसे हम न नेत्रों से देख सकते हैं न ही स्पर्श कर सकते हैं, उसे केवल महसूस किया जा सकता है वही राधा है और जो इन स्थूल और सूक्ष्म अवस्थाओं का कारण है वह हैं श्रीकृष्ण और यही कृष्ण इस मूल सृष्टि का चराचर हैं। अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो स्थूल देह और सूक्ष्म आत्मा है। स्थूल में सूक्ष्म समा सकता है परंतु सूक्ष्म में स्थूल नहीं। स्थूल प्रकृति और सूक्ष्म योगमाया है और सूक्ष्म आधार शक्ति भी है लेकिन कारण की स्थापना और पहचान राधा होकर ही की जा सकती है।</span></span></h1>
<h1 style="box-shadow: none; box-sizing: border-box; color: #b71c1c; font-family: khulabold; font-size: 30px; font-weight: 500; line-height: 44px; list-style: none; margin: 0px 0px 10px; outline: none; padding: 0px;">
<br /></h1>
</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-84680536890403782362018-06-03T14:51:00.002+05:302018-06-03T14:51:28.094+05:30राधा- कृष्णा विरह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h4 style="background-color: #f4f4f4; color: #121212; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13.2px; text-align: center;">
<div style="font-size: 13.2px; font-weight: 400;">
<br /></div>
<span style="background-color: white; color: #444444; font-size: 13.2px; font-weight: 400; text-align: start;"><span style="font-family: verdana, geneva, lucida, "lucida grande", arial, helvetica, sans-serif;"><div style="text-align: justify;">
देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी. राधा जी के जन्म में और देवी रूक्मिणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा जी का शुक्ल पक्ष में. राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई. राधा और रूक्मिणी यूं तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं.<span style="font-size: 13.2px;">रामचरित मानस के बालकाण्ड में जैसा कि तुलसी दास जी ने लिखा है कि नारद जी को यह अभिमान हो गया था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर लिया है. नारद जी की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया. उस नगर के राजा ने अपनी रूपवती पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया. स्वयंर में नारद मुनि भी पहुचे और कामदेव के वाणों से घायल होकर राजकुमारी को देखकर मोहित हो गये.</span><span style="font-size: 13.2px;">राजकुमारी से विवाह की इच्छा लेकर वह भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे कि प्रभु मुझे आप अपना सुन्दर रूप प्रदान करें क्योंकि मुझे राजकुमारी से प्रेम हो गया है और मैं उससे विवाह की इच्छा रखता हूं. नारद जी के वचनों को सुनकर भगवान मुस्कुराए और कहा तुम्हें विष्णु रूप देता हूं. जब नारद विष्णु रूप लेकर स्वयंवर में पहुंचे तब उस राजकुमारी ने विष्णु जी के गले में वर माला डाल दी. नारद जी वहां से दु:खी होकर चले आ रहे थे. मार्ग में उन्हें एक जलाशय दिखा जिसमें उन्होंने चेहरा देखा तो समझ गये कि विष्णु भगवान ने उनके साथ छल किया है और उन्हें वानर रूप दिया है.</span><span style="font-size: 13.2px;">नारद क्रोधित होकर वैकुण्ड पहुंचे और भगवान को बहुत भला बुरा कहा और उन्हें पत्नी का वियोग का वियोग सहना होगा यह श्राप दिया. नारद जी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्र जी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का.</span><span style="font-size: 13.2px;">वास्तव में देवी राधा और रूक्मिणी एक ही हैं अत: रूक्मिणी अष्टमी का महत्व वही है जो राधाष्टमी का. जो इनकी उपासना करता है उन्हें देवी लक्ष्मी की उपासना का फल प्राप्त होता है. श्री कृष्ण ने देवी रूक्मिणी के प्रेम और पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी को व्रत कर के उसका उद्यापन यानी समापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना नहीं करना होगा. जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी.</span></div>
</span></span></h4>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-11912263794250634992018-06-03T14:46:00.000+05:302018-06-03T14:46:05.021+05:30भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा की पुजा क्यो ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; line-height: 1.8em; margin-bottom: 10px; margin-left: 5px; margin-top: 10px; padding: 0px;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqj3kjfhGYO0EUmdF319N-ltbEekKeatWW4zyIystUmePOlpreyK7Qss6mOfelH86fCbJP1bjJiaWlTHDmLupXQT75DOJzDXj0nbKGW_PTXZMaU_nGJybbNK6HSGcGfDcKcbrIfMXE_Yuy/s1600/radha.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="194" data-original-width="259" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqj3kjfhGYO0EUmdF319N-ltbEekKeatWW4zyIystUmePOlpreyK7Qss6mOfelH86fCbJP1bjJiaWlTHDmLupXQT75DOJzDXj0nbKGW_PTXZMaU_nGJybbNK6HSGcGfDcKcbrIfMXE_Yuy/s1600/radha.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;">कहते हैं कि राधा और कृष्ण के प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में। नंदगांव और बरसाने से मथुरा लगभग 42-45 किलोमीटर दूर है। </span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;">अब सवाल यह उठता है कि जब 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे, तो इतनी लघु अवस्था में गोपियों के साथ प्रेम या रास की कल्पना कैसे की जा सकती है? </span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;">उल्लेखनीय है कि महाभारत या भागवत पुराण में 'राधा' के नाम का जरा भी उल्लेख नहीं मिलता है। फिर यह राधा नाम की महिला भगवान कृष्ण के जीवन में कैसे आ गई या कहीं यह मध्यकाल के कवियों की कल्पना तो नहीं?</span></div>
<span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
यह सच है कि कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में राधा का नाम नहीं है। सुखदेवजी ने भी भागवत में राधा का नाम नहीं लिया।यदि भगवान कृष्ण के जीवन में राधा का जरा भी महत्व था, तो क्यों नहीं राधा का नाम कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में मिलता है?</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
मध्यकाल या भक्तिकाल में राधा और कृष्ण की प्रेमकथा को विस्तार मिला। अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया और कृष्ण के योद्धा चरित्र का नाश कर दिया गया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। निम्बार्क, चैतन्य, बल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी- ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के 5 स्तंभ बनकर खड़े हैं। निम्बार्क का जन्म 1250 ईस्वी में हुआ। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी?</div>
</span><br />
<div style="background-color: white; line-height: 1.8em; margin-bottom: 10px; margin-left: 5px; margin-top: 10px; padding: 0px;">
<span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"></span></div>
<div style="text-align: left;">
<ul style="text-align: left;">
<li style="text-align: left;">पांचों संप्रदायों में सबसे प्राचीन निम्बार्क और राधावल्लभ दो संप्रदाय हैं। दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया।राधावल्भ संप्रदाय के लोग कहते हैं कि राधावल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण वंशी अवतार कहे जाने वाले और वृंदावन के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने वाले रसिकाचार्य हित हरिवंशजी महाप्रभु के संप्रदाय की प्रवर्तक आचार्य राधा हैं।</li>
</ul>
</div>
<br />
<div style="background-color: white; line-height: 1.8em; margin-bottom: 10px; margin-left: 5px; margin-top: 10px; padding: 0px;">
<span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"></span></div>
<div style="text-align: left;">
इन दोनों संप्रदायों में राधाष्टमी के उत्सव का विशेष महत्व है। निम्बार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है। निम्बार्क संप्रदाय के विद्वान व वृंदावन शोध संस्थान से जुड़े छीपी गली निवासी वृंदावन बिहारी कहते हैं कि कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है।</div>
<span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
निम्बार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप हैं। भगवान कृष्णने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कर लिए। लेकिन यह तो भक्तिभाव में कही गई बाते हैं, इनमें तथ्य कहां है? इतिहास अलौकिक बातों से नहीं बनता। ऐसी बातें करने वालों को झूठा माना जाता है और ऐसे ही लोग तो धर्म की प्रतिष्ठा गिराते हैं। आखिर सच क्या है?</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
बरसाना और नंदगांव :राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। वृषभानु वैश्य थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्णकी मित्र थीं और उसका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। उस जमाने में स्त्री का विवाह किशोर अवस्था में ही कर दिया जाता था। बरसाना और नंदगाव के बीच 4 मील का फासला है।</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
महाभारत के सभी प्रमुख पात्र भीष्म, द्रोण, व्यास, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदि श्रीकृष्ण के महान-चरित्र की प्रशंसा करते थे। उस काल में भी परस्त्री से अवैध संबंध रखना दुराचार माना जाता था। यदि श्रीकृष्ण का भी राधा नामक किसी औरत से संबंध हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर भी अंगुली उठाई जाती?</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
कहते हैं कि राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के 5वें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया गया है। राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था। अतः गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधू हुई। माना जाता है कि गोकुल में रायाण रहते थे।</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्णकी पत्नी (विवाहिता) थीं, जिनका विवाह ब्रह्मा ने करवाया। इसी पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था।</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
'राधा' ये नाम श्रीमदभागवत् पुराण मेँ ढुंडने पर भी नहीँ मिलता तो फिर ये 'राधा' हैँ कौन,</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
गिता प्रेस गोरखपुर का श्रीमदभागवत, लेकिन उसके 980 पन्नो मे से कीसी भी पन्ने पर 'राधा' ये नाम लिखा हीँ नहीँ हैँ,</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
फिर भी सारी दुनिया ने उस सच्चिदानंद परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को भुल कर राधे राधे कहती नहीँ थकती, और इधर भगवान गिता मे कहते हैँ </div>
</span><b style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
<b>मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।</b></div>
<div style="text-align: left;">
<b>मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥</b></div>
</b><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
भावार्थ: हे अर्जुन! तू मुझमें मन लगानेवाला हो, मेरा ही भक्त बन, मेरा ही पूजन करने वाला हो और मुझको ही प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है ॥65॥</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div style="text-align: left;">
फिर राधे राधे रटने से बिहारी कैसे आ सकते हैँ और राधा का पुजन करने वालो को श्रीकृष्ण कसै प्राप्त हो सकते हैँ और भगवान तो प्रतिज्ञा लेकर बताते हैँ की मेरा ही पुजन कर और मुझको ही प्रणाम कर,</div>
</span><br />
<div style="background-color: white; line-height: 1.8em; margin-bottom: 10px; margin-left: 5px; margin-top: 10px; padding: 0px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<ol>
<li style="text-align: left;"><span style="color: #333333; font-family: Trebuchet MS, Helvetica, Arial, sans-serif;"><span style="font-size: 13px;"><br /></span></span></li>
</ol>
</div>
</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-33945601295767174782018-05-11T18:14:00.001+05:302018-05-11T18:14:23.328+05:30माँ का कर्ज नहीं चुका सकते लेकिन आभार जरूर प्रकट कर सकते हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>मदर्स डे पर विशेष </b><br />
अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस सम्पूर्ण मातृ-शक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है, जिसे मदर्स डे, मातृ दिवस या माताओं का दिन चाहे जिस नाम से पुकारें यह दिन सबके मन में विशेष स्थान लिये हुए है। पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली मां के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं। भारतीय संस्कृति में मां के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा रही है, लेकिन आज आधुनिक दौर में जिस तरह से मदर्स डे मनाया जा रहा है, उसका इतिहास भारत में बहुत पुराना नहीं है। इसके बावजूद दो-तीन दशक से भी कम समय में भारत में मदर्स डे काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।<br />
अलौकिक शब्द है माँ<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0o4rJhTUlTTSqddr2r_YcipE43mABzxtHj6zC8FwDJ7XPcVxwxFeXpX_s8zEDI0ivgebSyjWNM4NO4UU4lzgkpmAYgBvk1Eek_hQdfVfnEU6Yr8SL9hNfwCL8MJkJfz2boWoM7DOTS_RT/s1600/maaaaaaa.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="225" data-original-width="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0o4rJhTUlTTSqddr2r_YcipE43mABzxtHj6zC8FwDJ7XPcVxwxFeXpX_s8zEDI0ivgebSyjWNM4NO4UU4lzgkpmAYgBvk1Eek_hQdfVfnEU6Yr8SL9hNfwCL8MJkJfz2boWoM7DOTS_RT/s1600/maaaaaaa.jpg" /></a></div>
<br />
मातृ दिवस-समाज में माताओं के प्रभाव व सम्मान का उत्सव है। मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। मातृत्व की छाया में मां न केवल अपने बच्चों को सहेजती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसका सहारा बन जाती है। समाज में मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई। मातृ दिवस सभी माताओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। एक बच्चे की परवरिश करने में माताओं द्वारा सहन की जाने वालीं कठिनाइयों के लिये आभार व्यक्त करने के लिये यह दिन मनाया जाता है। कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग ने मातृत्व को परिभाषित करते हुए कहा है- सभी प्रकार के प्रेम का आदि उद्गम स्थल मातृत्व है और प्रेम के सभी रूप इसी मातृत्व में समाहित हो जाते हैं। प्रेम एक मधुर, गहन, अपूर्व अनुभूति है, पर शिशु के प्रति मां का प्रेम एक स्वर्गीय अनुभूति है।<br />
‘मां!’ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनोःमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। ‘मां’ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘मां’ की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। जिन्होंने आपको और आपके परिवार को आदर्श संस्कार दिए। उनके दिए गए संस्कार ही मेरी दृष्टि में आपकी मूल थाती है। जो हर मां की मूल पहचान होती है।<br />
माँ से ही मिलता है संस्कार<br />
हर संतान अपनी मां से ही संस्कार पाता है। लेकिन मेरी दृष्टि में संस्कार के साथ-साथ शक्ति भी मां ही देती है। इसलिए हमारे देश में मां को शक्ति का रूप माना गया है और वेदों में मां को सर्वप्रथम पूजनीय कहा गया है। श्रीमद् भगवद् पुराण में उल्लेख मिलता है कि माता की सेवा से मिला आशीष सात जन्मों के कष्टों व पापों को दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है।<br />
माँ के बारे में महान लोगों का कथन<br />
प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने मां की महिमा को उजागर करते हुए कहा है कि जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मां के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं। अब्राहम लिंकन का मां के बारे में मार्मिक कथन है कि जो भी मैं हूँ, या होने की उम्मीद है, मैं उसके लिए अपने प्यारी माँ का कर्जदार हूँ। किसी औलाद के लिए ‘माँ’ शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए माँ शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लिए उसका संसार होता है।<br />
मुसीबत में माँ ही क्यों याद आती है?<br />
क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में माँ ही क्यों याद आती है क्योंकि वो माँ ही होती है जो हमें तब से जानती है जब हम अजन्मे होते हैं। बचपन में हमारा रातों का जागना, जिस वजह से कई रातों तक माँ सो भी नहीं पाती थी। वह गिले में सोती और हमें सूखे में सुलाती। जितना माँ ने हमारे लिए किया है उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता। जाहिर है माँ के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी, कई सदियां भी कम है।<br />
‘मां’-इस लघु शब्द में प्रेम की विराटता/समग्रता निहित है। अणु-परमाणुओं को संघटित करके अनगिनत नक्षत्रों, लोक-लोकान्तरों, देव-दनुज-मनुज तथा कोटि-कोटि जीव प्रजातियों को मां ने ही जन्म दिया है। मां के अंदर प्रेम की पराकाष्ठा है या यूं कहें कि मां ही प्रेम की पराकाष्ठा है। प्रेम की यह चरमता केवल माताओं में ही नहीं, वरन् सभी मादा जीवों में देखने को मिलती है। अपने बच्चों के लिए भोजन न मिलने पर हवासिल (पेलिकन) नाम की जल-पक्षिनी अपना पेट चीर कर अपने बच्चों को अपना रक्त-मांस खिला-पिला देती है।<br />
माँ के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?<br />
कितनी दयनीय बात है कि देश ने स्त्री की शक्ति के रूप में अवधारणा दी, जिसने पुराणों के पृष्ठों में देवताओं को 4 या 8 हाथ दिये किन्तु देवियों को 108 हाथ दिये, उसी ने स्त्रियों को पुरुषों से नीचा स्थान दिया और उन्हें वेद पढ़ने के अधिकार से वंचित कर दिया और सबसे शोचनीय बात यह है कि उन्हें चारदिवारी में बंद कर दिया।’’ ‘मां’ को देवी सम्मान दिलाना वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता में से एक है। मां प्राण है, मां शक्ति है, मां ऊर्जा है, मां प्रेम, करुणा और ममता का पर्याय है। मां केवल जन्मदात्री ही नहीं जीवन निर्मात्री भी है। मां धरती पर जीवन के विकास का आधार है। मां ने ही अपने हाथों से इस दुनिया का ताना-बाना बुना है। सभ्यता के विकास क्रम में आदिमकाल से लेकर आधुनिककाल तक इंसानों के आकार-प्रकार में, रहन-सहन में, सोच-विचार, मस्तिष्क में लगातार बदलाव हुए। लेकिन मातृत्व के भाव में बदलाव नहीं आया। उस आदिमयुग में भी मां, मां ही थी। तब भी वह अपने बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करती थीं। उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा करना सिखाती थी। आज के इस आधुनिक युग में भी मां वैसी ही है। मां नहीं बदली। विक्टर ह्यूगो ने मां की महिमा इन शब्दों में व्यक्त की है कि एक मां की गोद कोमलता से बनी रहती है और बच्चे उसमें आराम से सोते हैं।<br />
धरती की विधाता है माँ<br />
मां को धरती पर विधाता की प्रतिनिधि कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सच तो यह है कि मां विधाता से कहीं कम नहीं है। क्योंकि मां ने ही इस दुनिया को सिरजा और पाला-पोशा है। कण-कण में व्याप्त परमात्मा किसी को नजर आये न आए मां हर किसी को हर जगह नजर आती है। कहीं अण्डे सेती, तो कहीं अपने शावक को, छोने को, बछड़े को, बच्चे को दुलारती हुई नजर आती है। मां एक भाव है मातृत्व का, प्रेम और वात्सल्य का, त्याग का और यही भाव उसे विधाता बनाता है।<br />
मां विधाता की रची इस दुनिया को फिर से, अपने ढंग से रचने वाली विधाता है। मां सपने बुनती है और यह दुनिया उसी के सपनों को जीती है और भोगती है। मां जीना सिखाती है। पहली किलकारी से लेकर आखिरी सांस तक मां अपनी संतान का साथ नहीं छोड़ती। मां पास रहे या न रहे मां का प्यार दुलार, मां के दिये संस्कार जीवन भर साथ रहते हैं। मां ही अपनी संतानों के भविष्य का निर्माण करती हैं। इसीलिए मां को प्रथम गुरु कहा गया है। स्टीव वंडर ने सही कहा है कि मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी अध्यापक थी, करुणा, प्रेम, निर्भयता की एक शिक्षक। अगर प्यार एक फूल के जितना मीठा है, तो मेरी माँ प्यार का मीठा फूल है।<br />
कन्याभ्रूणों की हत्या नृशंस<br />
प्रथम गुरु के रूप में अपनी संतानों के भविष्य निर्माण में मां की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मां कभी लोरियों में, कभी झिड़कियों में, कभी प्यार से तो कभी दुलार से बालमन में भावी जीवन के बीज बोती है। इसलिए यह आवश्यक है कि मातृत्व के भाव पर नारी मन के किसी दूसरे भाव का असर न आए। जैसाकि आज कन्याभ्रूणों की हत्या का जो सिलसिला बढ़ रहा है, वह नारी-शोषण का आधुनिक वैज्ञानिक रूप है तथा उसके लिए मातृत्व ही जिम्मेदार है। महान् जैन आचार्य एवं अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी की मातृ शक्ति को भारतीय संस्कृति से परिचित कराती हुई निम्न प्रेरणादायिनी पंक्तिया पठनीय ही नहीं, मननीय भी हैं- ‘‘भारतीय मां की ममता का एक रूप तो वह था, जब वह अपने विकलांग, विक्षिप्त और बीमार बच्चे का आखिरी सांस तक पालन करती थी। परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा की गई उसकी उपेक्षा से मां पूरी तरह से आहत हो जाती थी। वही भारतीय मां अपने अजन्मे, अबोल शिशु को अपनी सहमति से समाप्त करा देती है। क्यों? इसलिए नहीं कि वह विकलांग है, विक्षिप्त है, बीमार है पर इसलिए कि वह एक लड़की है। क्या उसकी ममता का स्रोत सूख गया है? कन्याभ्रूणों की बढ़ती हुई हत्या एक ओर मनुष्य को नृशंस करार दे रही है, तो दूसरी ओर स्त्रियों की संख्या में भारी कमी मानविकी पर्यावरण में भारी असंतुलन उत्पन्न कर रही है।’’ अन्तर्राष्ट्रीय मातृ-दिवस को मनाते हुए मातृ-महिमा पर छा रहे ऐसे अनेक धुंधलों को मिटाना जरूरी है, तभी इस दिवस की सार्थकता है।<br />
- अरुण बंछोर </div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-84079713702617086742016-07-08T12:14:00.000+05:302016-07-08T12:16:52.982+05:30भारत के ये 30 मंदिर सुनाते हैं आस्था और वैभव की दास्तां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><i><u>कहा जाता है कि भारत की भूमि विद्वानों की भूमि है, जिसके पीछे भारत का गौरवशाली इतिहास गवाह रहा है. चिकित्सा से ले कर विज्ञान के क्षेत्र में आगे होने के बावजूद यह देश कई मायनों में बाकी देशों से हटकर है जिसमें आस्था भी एक अहम भूमिका निभाती है, जो इस देश को इतनी विविधता होने के बावजूद एक धागे में बांधे रखता है.इस आस्था को बनाये रखने में यहां मौजूद मंदिरों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता. चलिए आज हम आपको भारत के ऐसे ही 30 मंदिरों की सैर पर ले चलते हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, इसी के साथ-साथ भारत के गौरवशाली इतिहास को भी समेटे हुए है. - अरुण बंछोर</u></i></b><br />
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<b>1. बद्रीनाथ मंदिर</b><br />
उत्तराखंड का चमोली डिस्ट्रिक्ट, अलकनंदा नदी का किनारा भगवान बद्रीनाथ के घर के नाम से भी जाता है. बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है. इसके अलावा बद्रीनाथ में भी एक छोटा चार धाम है जिसमे भगवन विष्णु के एक सौ आठ मंदिर हैं जो भगवन विष्णु को समर्पित हैं.<br />
भगवान विष्णु की यात्रा करने वाले लोगों का यहां तांता लगा रहता है पर यहां पर की जाने वाली यात्रा केवल अप्रैल से ले कर सितम्बर तक ही रहती है. इस मंदिर से सम्बंधित दो खास फेस्टिवल हैं जो इसकी खासियत को और बढ़ाते हैं. माता मूर्ति का मेला: भगवान बद्रीनाथ की पूजा शुरू हो कर यह मेला सितम्बर तक चलता है जब तक कि मंदिर के कपाट बंद नहीं हो जाते.बद्री-केदार फेस्टिवल: आठ दिनों तक चलने वाला यह मेला बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों जगहों पर जून के महीने में मनाया जाता है.<br />
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<b>2. सूर्य मंदिर, कोणार्क</b><br />
ओड़िसा की पूरी डिस्ट्रिक्ट के पास है कोणार्क जो मंदिर के रूप में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है. रथ के आकार में बने इस मंदिर में बारह पहिये हैं जिसे सात घोड़े खींचते हुए महसूस होते है.रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस मंदिर की खूबसूरती के बारे में कहा था की "यहां पत्थरों की भाषा इंसानों की भाषा को मात देती नज़र आती है".<br />
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<b>3. बृहदीस्वरा मंदिर</b><br />
बृहदीस्वरा मंदिर, को पेरुवुडइयर कोविल, राजराजेस्वरम भी कहा जाता है जिसे ग्याहरवीं सदी में चोल साम्राजय के राजा चोल ने बनवाया था. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. यह मंदिर ग्रेनाइट की विशाल चट्टानों को काटकर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है. इसमें एक खासियत यह है कि दोपहर बारह बजे इस मंदिर की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती.<br />
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<b>4. सोमनाथ मंदिर</b><br />
गीता, स्कंदपुराण और शिवपुराण जैसी प्राचीन किताबों में भी सोमनाथ मंदिर का जिक्र मिलता है. सोम का मतलब है चन्द्रमा और सोमनाथ का मतलब, चन्द्रमा की रक्षा करने वाला. एक कहानी के अनुसार सोम नाम का एक व्यक्ति अपने पिता के श्राप की वजह से काफी बीमार हो गया था. तब भगवान शिव ने उसे बीमारी से छुटकारा दिलाया था, जिसके बाद शिव के सम्मान में सोम ने यह मंदिर बनवाया.<br />
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो शौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र में है. ऐसी मान्यता है कि यह वही क्षेत्र है जहां कृष्ण अपना शरीर त्यागा था.<br />
यह मंदिर अरब सागर के किनारे बना हुआ है और साउथ पोल और इसके बीच कोई जमीन नहीं है.<br />
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<b>5.केदारनाथ मंदिर</b><br />
हिमालय की गोद, गढ़वाल क्षेत्र में भगवान शिव के अलोकिक मंदिरों में से एक केदारनाथ मंदिर स्थित है. एक कहानी के अनुसार इसका निर्माण पांडवों ने युद्ध में कौरवों की मृत्यु के प्राश्चित के लिए बनवाया था. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इसको दोबारा restored करवाया. यह उत्तराखंड के छोटे चार धामों में से एक है जिसके लिए यहां आने वालों को 14 किलोमीटर के पहाड़ी रास्तों पर से गुजरना पड़ता है.<br />
यह मंदिर ठन्डे ग्लेशियर और ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है जिनकी ऊंचाई लगभग 3,583 मीटर तक है. सर्दियों के दौरान यह मंदिर बंद कर दिया जाता है. सर्दी अधिक पड़ने की सूरत में भगवन शिव को उखीमठ ले जाया जाता है और पांच-छह महीने वहीं उनकी पूजा की जाती है.<br />
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<b>6.सांची स्तूप</b><br />
सांची, मध्य-प्रदेश के रायसेन डिस्ट्रिक्ट का एक सा गांव है जो कि बौद्धिक व ऐतिहसिक इमारतों का घर है जो यहां तीसरी ईसा पूर्व और बारवीं सदी के दौरान बनाये गए थे. इन सबमें सबसे प्रमुख है सांची स्तूप जहां महात्मा बुद्ध के अवशेष संभाल कर रखे गये हैं.इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा कराया गया था. इसके चार दरवाजे हैं जो प्रेम, श्रद्धा, शांति और विश्वास को दर्शाते हैं. UNESCOc द्वारा सांची स्तूप को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया चुका है.<br />
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<b>7.रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) मंदिर</b><br />
ये मंदिर तमिलनाडु के पास एक छोटे से द्वीप के समीप है जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है. यह हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार उनके चार पवित्र धामों में से एक है.एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम, रावण को हरा कर आये थे तो पश्चाताप के लिए उन्होंने शिव की पूजा करने की योजना बनाई क्योंकि उनके हाथों से एक ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी थी. शिव की पूजा के लिए उन्होंने हनुमान को कैलाश भेजा जिससे वह उनके लिंग रूप को वहां ला सकें. पर जब तक हनुमान वापिस लौटते तब तक सीता माता रेत का एक लिंग बना चुकी थी. हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को विश्वलिंग खा गया जबकि सीता द्वारा बनाये गए लिंग को रामलिंग कहा गया. भगवान राम के आदेश से आज भी रामलिंग से पहले विश्वलिंग की पूजा की जाती है.<br />
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<b>8.वैष्णो देवी मंदिर</b><br />
जम्मू कश्मीर के कटरा से 12 किलोमीटर त्रिकुट की पहाड़ियों पर जमीन से 5200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है वह पवित्र गुफा जहां माता वैष्णो देवी के दर्शन होते है.आज वहां वैष्णो देवी तीन पत्थरों के रूप में रहती है जिसे पिंडी कहा जाता है. हर साल लाखों लोग माता से आशीर्वाद लेने यहां आते हैं ऐसी मान्यता है कि माता अपने यहां आने वाले लोगों को खुद decide करती हैं और कोई भी व्यक्ति उन्ही की इच्छा से उन तक पहुंच पाता है.<br />
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<b>9.सिद्धिविनायक मंदिर</b><br />
मुंबई के प्रभा देवी में स्थित है सिद्धिविनायक मंदिर जिसे अठारवीं सदी में बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है.वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, पर मंगलवार के दिन खासतौर पर यहां भीड़ रहती है.<br />
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<b>10.गंगोत्री मंदिर</b><br />
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के गंगोत्री को गंगा का उद्भव स्थल माना जाता है. जब भागीरथ गंगा को स्वर्ग से लेकर आये थे तो यहीं पर भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में बांधकर जमीन पर उतारा था. अठांरवीं सदी में बना यह मंदिर सफ़ेद ग्रेनाइट से बना हुआ है.<br />
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<b>11.गोल्डन टेम्पल, अमृतसर</b><br />
गोल्डन टेम्पल को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है. यह सिखों के पवित्र स्थानों में से एक है. इस गुरुद्वारे के चार दरवाजे है जो कि यह दर्शाते है कि इस मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं, चाहे वह किसी धर्म को मानने वाला हो, किसी भी सम्प्रदाय का हो. यह मंदिर यूनिवर्सल भाईचारे का अद्भुत नमूना है. गुरु ग्रन्थ साहिब को सबसे पहले इसी मंदिर में रखा गया था.<br />
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<b>12.काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारस</b><br />
काशी विश्वनाथ मंदिर, पवित्र एवं प्राचीन शहर बनारस में स्थित है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. विश्वनाथ का मतलब होता है विश्व का स्वामी. यह इस मंदिर की खासियत ही थी जो यहां गुरु नानक से लेकर तुलसीदास, विवेकानंद और आदि शंकराचार्य जैसे लोगों को खुद तक खींच लाई. ऐसा मानना है कि इस मंदिर को देखने मात्र से मोक्ष के सारे दरवाजे खुल जाते हैं.<br />
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<b>13.जगन्नाथ मंदिर</b><br />
बारवीं सदी में बना यह मंदिर उड़ीसा के पुरी में बना हुआ है जिस कारण इसे जगन्नाथ पुरी के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर भगवान कृष्णा के साथ-साथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा को समर्पित है. इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है.<br />
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<b>14.यमुनोत्री टेम्पल</b><br />
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में उन्नीसवीं सदी का बना यह मंदिर कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो चुका है. गंगा के बाद यमुना को भी काफी पवित्रता कि दृष्टि से देखा जाता है.जमीन से 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां यमुना देवी कि पूजा की जाती है. मंदिर के दरवाजे अक्षय त्रित्या से लेकर दिवाली तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते है<br />
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<b>15.मिनाक्षी टेम्पल, मदुरई</b><br />
मदुरई का मीनाक्षी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है बल्कि यह कला के दीवानों के लिए भी किसी जन्नत से कम नहीं है. यह मंदिर देवी पार्वती और उनके पति शिव को समर्पित है.मंदिर के बीचों बीच एक सुनहरा कमल रुपी तालाब है. मंदिर में करीब 985 पिल्लर हैं, हर पिल्लर को अलग अलग कला कृतियों द्वारा उकेरा गया है. इस मंदिर का नाम विश्व के सात अजूबों के लिए भी भेजा जा चुका है.<br />
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<b>16.अमरनाथ केव टेम्पल</b><br />
जम्मू कश्मीर की बर्फीली पहाड़ियों में ज़मीन से 3888 मीटर ऊपर 5000 साल पुरानी गुफ़ा मौजूद है, जहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 5 दिनों में 40 मील की चढ़ाई करनी पड़ती है.यह क्षेत्र साल भर बर्फ़ से ढका रहता है, यहां कि यात्रा केवल गर्मियों के दौरान ही की जाती है.उस समय भी यह क्षेत्र काफ़ी हद तक बर्फ़ से ढका हुआ रहता है.<br />
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<b>17.लिंगराज मंदिर</b><br />
मंदिरों के शहर उड़ीसा में एक और मंदिर है जो बड़ा होने के साथ-साथ अपने साथ इतिहास को भी समेटे हुए है. यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ साथ इतिहासकारों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता है जिसकी वजह यहां कि एतिहासिक इमारते है.वैसे तो यह मंदिर शिव को समर्पित है पर यहां शिव के साथ साथ भगवान विष्णु कि भी पूजा कि जाती है, जिस कारण यह हरिहर के नाम से भी जाना जाता है.<br />
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<b>18.तिरुपति बालाजी</b><br />
आन्ध्र प्रदेश की तिरुमाला पहाडियों में बसा है तिरुमाला वेंकटेश्वारा मंदिर जिसे तिरुपति बालाजी के नाम से जाना जाता है, भगवान विष्णु को समर्पित है. यह मंदिर भारत में मौजूद सबसे अमीर मंदिरों में शुमार है. यहां पर प्रसाद के रूप में मिलने वाला लड्डू अपने स्वाद के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है.यहां पर मन्नत पूरी हो जाने पर लोग अपने बालों का चढ़ावा चढ़ाते हैं, जिससे यहां लगभग लाखों डॉलरों की कमाई होती है.<br />
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<b>19.कांचीपुरम मंदिर</b><br />
कांचीपुरम, साड़ियों के अलावा एक और चीज़ के लिए पहचाना जाता है. वो है यहां पर मौजूद हजारों मंदिर, जिसकी वजह से इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है.<br />
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<b>20.खजुराहो टेम्पल</b><br />
इस मंदिर की खासियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि UNESCO द्वारा इसे वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया है.यहां पर 10 वीं और 12 वीं सदी के कई मंदिर मौजूद है जो जैन और हिन्दू देवी-देवताओं को समर्पित हैं, जिनकी नक्काशी किसी को भी अपनी तरफ़ खींचने की क्षमता रखती है.<br />
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<b>21.विरूपक्षा टेम्पल</b><br />
7 वीं सदी में हम्पी में बना यह मंदिर आज भी अपने पूजा पाठ के लिए जाना जाता है. इसे unesco द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका है.<br />
यह मंदिर धार्मिक दृष्टि के अलावा पर्यटन कि दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है.<br />
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<b>22.अक्षरधाम मंदिर</b><br />
यमुना का किनारा जहां एक ओर दिल्ली को दो भागों में बांटता है, वहीं अक्षरधाम मंदिर आस्था के जरिये दिल्ली के दोनों किनारों को आपस में जोड़ता है.<br />
अक्षरधाम मंदिर, वास्तुशास्त्र और पंचशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. इसका मुख्य गुम्बद मंदिर से करीब 11 फीट ऊंचा है.इस मंदिर को बनाने में राजस्थानी गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया गया है.यहां पर होने वाला लाइट और म्यूजिक शो मंदिर कि सुन्दरता में चार चांद लगा देता है<br />
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<b>23.श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर</b><br />
पुरानी दिल्ली अपने आप में कई तह्ज़ीबों और संस्कृतियों को खुद में समेटे हुए है इन्हीं संस्कृतियों में से एक है श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, जिसे मुग़ल शासक शांहजहां के समय में बनाया गया था.यह मंदिर होने के साथ साथ पक्षियों के लिए एक चैरिटेबल हॉस्पिटल भी चलाता है, जहां असहाय पक्षियों का ईलाज किया जाता है.<br />
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<b>24.गोमतेश्वर मंदिर</b><br />
10 वीं सदी में कर्णाटक के श्रवानाबेलागोला में बना यह मंदिर भगवान बाहुबली को समर्पित है जिन्हें गोमतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए काफी महत्व रखता है.इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हर 12 साल बाद यहां महामस्तक अभिषेक किया जाता है, जो जैनियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है.<br />
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<b>25.रणकपुर मंदिर</b><br />
उदयपुर और जोधपुर के बीच पाली डिस्ट्रिक्ट में गांव रणकपुर में यह मंदिर स्थित है जिसे जैन धर्म के 5 पवित्र स्थलों में शुमार किया जाता है.यह पूरा मंदिर हल्के सफ़ेद रंग के मार्बल से बना हुआ है. जिसमें 1400 नक्काशी किये हुए पिलर लगे हुए हैं. यह मंदिर केवल प्राक्रतिक रौशनी का ही इस्तेमाल करता है, जिससे आध्यात्म में मदद मिलती है.<br />
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<b>26.साईं बाबा मंदिर, शिर्डी</b><br />
मुंबई से 296 किलोमीटर दूर शिर्डी में साईं बाबा कि समाधी पर यह मंदिर बना हुआ है. हर साल लगभग 25000 श्रद्धालु यहां बाबा के दर्शन के लिए आते है. राम नवमी, दशहरा और गुरु पूर्णिमा के दिन यहां खासतौर पर मेला लगता है.<br />
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<b>27.श्री पद्मनाभस्वामी टेम्पल</b><br />
केरला के तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर स्थित है जो कि भगवान विष्णु को समर्पित है. यहां केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते है. इस मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को सिर्फ धोती, जबकि औरतों को साड़ी पहनना जरुरी होता है.<br />
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<b>28.द्वारकाधीश मंदिर</b><br />
जैसा कि इस मंदिर के नाम से प्रतीत होता है, यह द्वारका में है और भगवान कृष्ण को समर्पित है. इसको जगत मंदिर भी कहा जाता है. यहां के प्रवेश द्वार को स्वर्ग द्वार और मोक्ष द्वार भी कहते है.<br />
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<b>29.लक्ष्मी नारायण मंदिर</b><br />
दिल्ली में इस मंदिर को बल्दो दास बिरला ने बनवाया था जबकि इसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था जो कि हर जाति वर्ग के लिए खुला था.<br />
वैसे तो यह मंदिर लक्ष्मी और नारायण को समर्पित है पर मंदिर में इनके अलावा शिव, गणेश व अन्य भगवानों की मूर्तियां भी है.<br />
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<b>30.इस्कॉन मंदिर</b><br />
इस्कॉन मंदिर को कृष्ण बलराम मंदिर भी कहा जाता है जिसे 1975 में वृन्दावन में इस्कॉन समूह द्वारा बनवाया गया था. इस्कॉन मंदिर अपनी पवित्रता और सफाई के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है.इसके अंदर कृष्ण, राधा और बलराम कि पूजा की जाती है.</div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-42506059463400594312016-07-04T13:37:00.003+05:302016-07-04T13:47:28.096+05:30पर्यटकों की पहली पसंद है भारतीय शहर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>भारत के टॉप 10 ऐतिहासिक स्थल, जहाँ लगता है पर्यटकों का मेला</b><br />
भारत दुनिया भर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां की संस्कृति पूरी दुनिया में मशहूर है। पर्यटक यहां शांति की खोज के लिए भी आते हैं। यहां पर्यटन के लिए बहुत सुंदर स्थल हैं। गौरतलब है कि भारत तेज़ी से विदेशी पर्यटकों के लिए पसंदीदा स्थल के रूप में उभर रहा है। हर साल यहां दुनिया के कोने कोने से पर्यटक आते हैं और यहां की सुंदरता और विविधता का आनंद लेते हैं। कभी त्यौहार, तो कभी किसी समारोह में आने वाले विदेशी पर्यटक यहां के रंग में रंग जाते हैं। भारत के लोगों का अपनापन भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। आज हम आपको भारत के कुछ चुनिंदा ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बता रहे हैं। यहां फैमिली या पार्टनर के साथ भी आया जा सकता है।आइए हम आपको भारत के 10 खूबसूरत शहरों का भ्रमण कराते हैं| <b><u><i> - अरुण बंछोर </i></u></b> <br />
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<b>हवा महल, जयपुर</b><br />
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गुलाबी नगरी जयपुर की आलीशान इमारत ‘हवामहल’ राजस्थान के प्रतीक के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस इमारत में 365 खिड़कियां और झरोखे बने हैं। इसका निर्माण 1799 में जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। राजस्थानी और फारसी स्थापत्य शैलियों के मिले-जुले रूप में बनी यह इमारत जयपुर के ‘बड़ी चौपड़’ चौराहे से चांदी की टकसाल जाने वाले रास्ते पर स्थित है। हवामहल के आनंदपोल और चांदपोल नाम के दो द्वार हैं। आनंदपोल पर बनी गणेश प्रतिमा के कारण इसे गणेश पोल भी कहते हैं। गुलाबी नगरी का यह गुलाबी गौरव अपनी अद्भुत बनावट के कारण ही आज विश्वविख्यात है। <br />
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<b>चारमीनार, हैदराबाद</b><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnlcHAXL7a7e3tngjNJ3NhlyhDUEKY-fGNtZrtQSGMXvoaNUw0G7z4LBOSwYFC_LTLW1EGyiF_9v14Mr7-42AcQcoTzCmtnyFvn7O0_ygcfw9YJt8BYpzZ8oJLltga6fvaajq1vPQiZ7hw/s1600/charminar.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnlcHAXL7a7e3tngjNJ3NhlyhDUEKY-fGNtZrtQSGMXvoaNUw0G7z4LBOSwYFC_LTLW1EGyiF_9v14Mr7-42AcQcoTzCmtnyFvn7O0_ygcfw9YJt8BYpzZ8oJLltga6fvaajq1vPQiZ7hw/s320/charminar.jpg" width="240" /></a></div>
हैदराबाद शहर की पहचान बन चुका चारमीनार इस्लामिक वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। चारमीनार 1591 में शहर के अंदंर प्लेग की समाप्ति की खुशी में मुहम्मद कुली कुतुबशाह द्वारा बनवाई गई वास्तुकला का एक नमूना है। शहर की पहचान मानी जाने वाली चारमीनार चार मीनारों से मिलकर बनी एक चौकोर प्रभावशाली इमारत है। इसके मेहराब में हर शाम रोशनी की जाती है, जो एक अविस्मरणीय दृश्य बन जाता है। हैदराबाद हवाई जहाज, रेल, बस और टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। चारमीनार हैदराबाद रेलवे स्टेशन से लगभग सात किलो मीटर की दूरी पर है। यह बस स्टेशन से पांच किलो मीटर की दूरी पर है। निजी परिवहन से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।<br />
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<b>सांची स्तूप</b><br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0e2s5Vk0w0bhIDueWAQCJPlG16-YnyrSREMx_hZy1BLMW0kMMV6ZwWocZv2-sZaT-_nluW9FQYviZHLoJOmzsn6xtsfH9-ZrHxcbuPXzkUq0f2TMbepRuy_4VL7WOV1NQI4blbl7lGsml/s1600/sanchi.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="204" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0e2s5Vk0w0bhIDueWAQCJPlG16-YnyrSREMx_hZy1BLMW0kMMV6ZwWocZv2-sZaT-_nluW9FQYviZHLoJOmzsn6xtsfH9-ZrHxcbuPXzkUq0f2TMbepRuy_4VL7WOV1NQI4blbl7lGsml/s320/sanchi.jpg" width="320" /></a>मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और विदिशा के बीच बसा सांची स्तूप दुनियाभर के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने यह सांची स्तूप बनवाया था। यह स्तूप शांति,आस्था, साहस और प्रेम का प्रतीक है।सम्राट अशोक ने इस स्तूप का निर्माण बौद्ध धर्म की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए करवाया था। लंबे समय तक गुमनामी के अंधेरे में रहने वाला सांची स्तूप अब न सिर्फ दुनियाभर में मशहूर हो चुका है,बल्कि अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। सांची के लिए हवाई जहाज, रेल, बस आदि के द्वारा आराम से प्रस्थान किया जा सकता है।<br />
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<b>फतेहपुर सीकरी</b><br />
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यहां की सबसे ऊंची इमारत बुलंद दरवाज़ा है और इसकी ऊंचाई 280 फुट है। इसे अकबर ने 1602 ई. में गुजरात विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था। इसके अलावा जामा मस्जिद,शेख सलीम चिश्ती की समाधि,दिवान-ए-आम,दिवान-ए-खास,पंचमहल, बीरबल का महल आदि यहां की मुख्य इमारते हैं। फतेहपुर सीकरी जाने के लिए आगरा नज़दीकी एयरपोर्ट है। यहां से फतेहपूर की दूरी 40 किमी है। यहां नजदीकी रेलवे स्टेशन फतेहपुर सीकरी है।<br />
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<b>मैसूर पैलेस</b><br />
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महाराजा पैलेस, राजमहल मैसूर के कृष्णराजा वाडियार चतुर्थ का है। इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना था।एक दुर्घटना में इस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया।मैसूर पैलेस दविड़, पूर्वी और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। नफासत से घिसे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी रंग के पत्थरों के गुंबदों से सजा है।महल में एक बड़ा सा दुर्ग है जिसके गुंबद सोने के पत्थरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं।दूसरे महलों की तरह यहां भी राजाओं के लिए दीवान-ए-खास और आम लोगों के लिए दीवान-ए-आम है। यहां बहुत से कक्ष हैं जिनमें चित्र और राजसी हथियार रखे गए हैं। राजसी पोशाकें, आभूषण, तुन (महोगनी) की लकड़ी की बारीक नक्काशी वाले बड़े-बड़े दरवाज़ें और छतों में लगे झाड़-फानूस महल की शोभा में चार चांद लगाते हैं। यह महल सुबह 10 से शाम के 4.30 बजे तक खुला रहता है। शाम के समय रोशनी में नहाए मैसूर पैलेस की शोभा देखते ही बनती है। यह महल अब म्यूज़ियम में तब्दील हो चुका है।<br />
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<b>लाल किला, दिल्ली</b><br />
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<b>पुराना किला, दिल्ली </b><br />
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इस किले का निर्माण सूर वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने 16वीं सदी में करवाया था। 1539-40 में शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। 1545 में उनकी मृत्यु के बाद हुमायूं ने पुन: दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया था। शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई लाल पत्थरों की इमारत शेर मंडल में हुमायूं ने अपना पुस्तकालय बनाया। यह किला केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि इतिहासकारों को भी लुभाता है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस स्थान पर पुराना किला बना है उस स्थान पर इंद्रप्रस्थ बसा हुआ था। इंद्रप्रस्थ को पुराणों में महाभारत काल का नगर माना जाता है। इसमें प्रवेश करने के तीन दरवाजे हैं- हुमायूं दरवाजा, तलकी दरवाजा और बड़ा दरवाजा।वर्तमान में यहां एक बोट क्लब है जहां नौकायन का आनंद लिया जा सकता है। पास ही चिड़ियाघर भी है।<br />
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<b>आमेर महल, जयपुर </b><br />
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जयपुर के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में शुमार है आमेर का शानदार महल। अरावली की मध्यम ऊंचाई पर स्थित आमेर महल का निर्माण सोलहवीं सदी में किया गया था। इस शानदार महल को देखते हुए उस समय की उत्कृष्ट मुगल और राजपूत निर्माण शैली का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस भव्य महल की तुलना दुनिया के शानदार महलों से की जाती है। आमेर महल में विशाल जलेब चौक, शिला माता मंदिर, दीवाने आम, गणेश पोल, शीश महल, सुख मंदिर, मुगल गार्डन, रानियों के महल आदि सब देखने लायक हैं। शीश महल में कांच की नक्काशी का जादू ऐसा है कि मुगले आजम से लेकर जोधा अकबर तक दर्जनों बॉलीवुड फिल्मों में अपनी धाक जमा चुका है। हाल ही आमेर महल से जयगढ़ जाने के लिए एक पुरानी टनल को पर्यटकों के लिए खोला गया है।जयगढ़ किले पर रखी जयबाण तोप एशिया की विशाल तोपों में से एक है।<br />
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<b>जलमहल, जयपुर </b><br />
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जलमहल पानी पर तैरते खूबसूरत शिकारे की तरह लगने वाला एक शानदार ऐतिहासिक स्थल है। जयपुर शहर से लगभग 8 किमी उत्तर में आमेर रोड पर जलमहल स्थित है। मानसागर झील के बीच स्थित इस महल की खूबसूरती बेमिसाल है। इसका निर्माण आमेर में लगातार पानी की कमी के चलते कराया गया था। जयपुर के राजा महाराजा यहां अवकाश मनाने के लिए आते थे। वर्तमान में यह पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। जलमहल तक पहुंचने के लिए शहर से सिटी बस उपलब्ध हैं। इसके अलावा निजी वाहन या टैक्सी से भी यहां पहुंचा जा सकता है। जलमहल के अंदर पहुंचने के लिए नौकाओं की व्यवस्था है।<br />
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<b>जैसलमेर का किला</b><br />
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अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3629268499398563703.post-71790092199507583602016-06-07T14:25:00.001+05:302016-06-07T14:25:06.673+05:30महिलाओं के लिए रोल मॉडल है हर्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: magenta;">अंतर - राष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी और प्रशिक्षक है </span></b><br />
<b><span style="color: magenta;"> दस हजार बच्चों को कर चुकी है प्रशिक्षित</span> </b><br />
<i><span style="color: red;">एक मुलाक़ात - अरुण बंछोर </span></i><br />
मन में दृढ़ इच्छा और लगन हो तो कोइ भी काम असम्भव नहीं होता। जो मन में ठान ले उसे पूरा करके ही रहता है। यह कर दिखाया है हर्षा साहू ने। कुश्ती चैंपियन कमलनारायण साहू और एथलेटिक्स राजेश्वरी साहू की बेटी हर्षा आज महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल है। वे राज्य से पहली अंतर्राष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी है और यहां नन्हे मुंहे बच्चों को कराटे में प्रशिक्षित करने में जूटी हुई है। शहीद राजीव पांडे पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हर्षा की दिली तमन्ना है कि उनके द्वारा प्रशिक्षित बच्चे भी यह अवार्ड हासिल करें। हर्षा अब तक दस हजार बच्चों को कराटे का प्रशिक्षण दे चुकी है। कई बच्चे नेशनल मेडलिस्ट भी बन गए हैं। हर्षा दैनिक राष्ट्रीय हिन्दी मेल के दफ्तर आई तो हमने उनसे हर पहलुओं पर बात की।<br />
<b>० कराटे के प्रति आपका रुझान कैसे हुआ ?</b><br />
०० पापा को देखकर मुझे भी कुछ बनने की ललक थी। पापा कुश्ती के खिलाड़ी थे तो मैंने कराटे को चुना। माँ एथलेटिक्स है तो उनका मुझे सहयोग मिला और मै आज आपके सामने हूँ।<br />
<b>० आपने बहुत सारे एवार्ड और मैडल जीते ,यह कैसे संभव हुआ?</b><br />
०० मन में दृढ़ इच्छा और लगन हो तो कोइ भी काम असम्भव नहीं होता। मैंने ठान ली थी कि मुझे बेस्ट कराटे चैम्पियन बनना है तो बनना है और मैंने अपनी मेहनत से इसे साबित भी किया।<br />
<b>० आप कब से इस क्षेत्र में है और क्यों?</b><br />
०० सन 2001 में मैंने कराटे के क्षेत्र में हूँ। आत्मरक्षा के लिए यह सबसे कारगर है और एक अच्छा खेल भी। इसके कई फायदे भी है। इस दौरान मैंने कई अवार्ड और पुरूस्कार हासिल किया जिसमे सबसे बड़ा पुरूस्कार है शहीद राजीव पांडे पुरूस्कार।<br />
<b>० आपके प्रेरणाश्रोत और आदर्श कौन है?</b><br />
०० मेरे माता पिता ही मेरे प्रेरणाश्रोत है और मेरे गुरु अजय साहू मेरे आदर्श हैं।<br />
<b>० अब आप बच्चों को कराटे का प्रशिक्षण दे रही है, कितने बच्चों को सीखा चुकी हैं?</b><br />
०० करीब दस हजार बच्चों को मैं यह प्रशिक्षण दे चुकी हूँ। मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे नेशनल तक जा चुके हैं। कई अवार्ड और पदक जीत चुके हैं। ये मेरी उप्लब्द्धी है। उन्हें पुरूस्कार लेते हुए देखतीं हूँ तो मुझे गर्व होता है।<br />
<b>० आपसे प्रशिक्षण लेने वालों में लडकियां कितनी है?</b><br />
०० अधिकतर लडकियां ही होती है जिन्हे हम आत्मरक्षा के गुण बतातें हैं। कराटे के प्रति लडकियों में बहुत उत्साह है। यह अच्छा संकेत भी है कि लड़कियां जागरूक हो रही हैं।<br />
<b>० आपकी कोइ ख्वाहिश है जो पूरा होते हुए आप देखना चाहती हैं?</b><br />
०० हाँ मै अपने द्वारा प्रशिक्षित बच्चों को शहीद राजीव पाण्डे पुरूस्कार लेते हुए देखना चाहती हूँ। यही मेरा सपना है और उद्देश्य भी।<br />
<b>० कभी आप इस फिल्ड में निराश भी हुई हैं ?</b><br />
०० हाँ जब मेरा नेशनल स्पर्धा के लिए चयन हुआ था और मै पैसों के अभाव में नहीं जा पाई थी तब मुझे बहुत दुःख हुआ था और निराश भी। </div>
अरुण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/12855170553657623179noreply@blogger.com0