रविवार, 7 फ़रवरी 2010

दो कहानियां

मीठा उपहार
शहंशाह अकबर ने एक बार सभी दरबारियों को भोज दिया, बीरबल पर उनका प्यार कुछ ज्यादा, उन्होंने विशेष आग्रह करके उन्हें खिलाया। अब बीरबल खा-खाकर हो गए परेशान, तो बोले अब नहीं है मेरे पेट में जगह श्रीमान। अब और नहीं खा सकूँगा, आपकी आज्ञा मान नहीं सकूँगा। तभी एक सेवक आम काटकर एक प्लेट में लाया, देखकर बीरबल का मन ललचाया।
बीरबल ने हाथ बढ़ाकर, आम की फाँकें उतार ली पेट में अंदर। बीरबल को आम खाता देखकर शहंशाह को गुस्सा आया, उन्होंने गरज कर बीरबल को बुलाया। बीरबल खड़े हो गए अकबर के सामने जाकर, फिर बोले हाथ जोड़कर-'जब बहुत भीड़ होती है रास्ते पर, और निकलने की नहीं होती जगह तिल भर। आपकी सवारी को होता है वहाँ से गुजरना, तो अपने आप सबको होता है आपको जगह देना।
उसी तरह महाराज, आम भी करता है सभी फलों पर राज। जिस तरह आप हैं शहंशाह, वैसे ही आम भी है शाहों का शाह, तो कैसे नहीं देगा पेट उसे पनाह? जवाब सुनकर अकबर मान गए बीरबल की बुद्धिमानी का लोहा, मँगवाया उन्होंने मीठे आमों का एक टोकरा। बहुमूल्य भेंट दी बीरबल को उस टोकरे के साथ, बीरबल बहुत खुश थे पाकर यह मीठा उपहार।

लड्डू और शहंशाह
ओमप्रकाश बंछोर
एक बार हो रहा था शहंशाह अकबर के यहाँ शाही भोज, सभी दरबारी कर रहे थे मौज। व्यंजन भी थे खूब स्वादिष्ट, एक भी व्यंजन छोड़ने में हो रहा था सबको बड़ा कष्ट। शहंशाह ने बीरबल पर विशेष प्रेम दर्शाया, उनकी थाली में कुछ और भी डलवाना चाहा। पर बीरबल खा चुके थे पेट भर, उन्होंने हाथ कर दिए थाली के ऊपर। तभी आ गया लड्डुओं का थाल, और बीरबल का मन मचलकर हो गया बेहाल। उन्होंने थाल वाले को रुकवाया और एक लड्डू थाल में डलवाया। यह देखकर अकबर हो गए खफा, बीरबल ने उनका कहा क्यों नहीं सुना?
बीरबल को लड्डू खाने के बाद अहसास हुआ, बादशाह उनसे हो गए हैं खफा। अकबर ने कहा बीरबल ये तुमने अच्छा नहीं किया। जब मैंने परोसा तो तुमने नहीं लिया। जब पेट भर गया था भाई, तो लड्डू की जगह कहाँ से निकल आई?
अकबर की बात सुनकर सभी सहम गए, भोज करते हुए हाथ वहीं थम गए।

बीरबल ने आगे बढ़कर कहा-'हुजूर जब सड़क पर होती है भीड़ बहुत भारी, तिल भर भी जगह नहीं होती निकलने को कोई सवारी। फिर भी जब आपके निकलने का होता है ऐलान, तो रास्ता निकल ही आता है श्रीमान। जैसे आप हैं बहुत खास वैसे ही लड्डू भी हैं बहुत खास। इसीलिए पेट में जगह निकल आई जनाब।'

बीरबल का उत्तर सुनकर अकबर को हँसी आ गई, भोज में एक बार फिर से खुशी छा गई।

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