शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

अपने दम पर पहचान बनाना चाहती है जागेश्वरी मेश्राम

छालीवुड अदाकारा की एक्टिंग में जीवंतता झलकती है
- अरुण कुमार बंछोर 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की अदाकारा जागेश्वरी मेश्राम आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. उनकी कला में वो जादू है कि जो भी एक बार देखे, उनकी कला के कायल हो जाएंगे। उनकी एक्टिंग में जीवंतता झलकती है. वे कहती है की मन में दृढ़ इच्छा और लगन हो तो कोइ भी काम असम्भव नहीं होता। जो मन में ठान ले उसे पूरा करके ही रहती हूँ। वे अपने कला के दम पर पहचान बनाना चाहती है. उनका कहना है कि छालीवुड में काम करने वाली सभी कलाकार उनके आदर्श है। क्योकि सबसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलता है। मै अपने कामो से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। जागेश्वरी मेश्राम को कभी निराशा नहीं होती । यही उनकी सफलता का राज है.मैंने फिल्म दइहान देखी तो उनकी एक्टिंग देखता रह गया. ऐसा लग रहा था जैसे वे फिल्मों में नहीं सच में सामने थी. उन्होंने बतौर नायिका तीन फिल्मे की है. मैंने जागेश्वरी मेश्राम से हर पहलूओं पर बात की.
0 आपको एक्टिंग के प्रति कैसे दिलचस्पी हुई ?
बचपन से शौक था एक्टिंग करने का। स्कूलों में नाटकों में भाग लिया करती थी। बाद में मुझे थियेटर का शौक हुआ। ऐसा करते करते मैंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो की ऑर कदम बढ़ाया। लोगो को देखकर लगा की मुझे भी इस क्षेत्र में कुछ करना चाहिए।
0 अब तक की आपकी उपलब्धी क्या है?
मैंने करीब 7 छत्तीसगढ़ी फिल्मो में काम किया है और कुछ एल्बम बनाये है। मेरे पापा से मुझे कला विरासत में मिली है. मैंने लोकरंग ज्वाइन कर अपना कदम आगे बढ़ाया है. और आज आपके सामने हूँ.
आप छस्तीस्सगढ़ी फिल्मों में अपना आदर्श किसे मानते है?
छालीवुड में काम करने वाली सभी कलाकार मेरे आदर्श है। क्योकि सबसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलता है।
क्या आप अपने कामों से संतुष्ट हैं? 
हाँ, मैं अपने कामों से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ। मैंने जितने भी फिल्मों में काम किया है सभी मेरे जीवन की बेहतर फ़िल्में है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चली हूँ। अब इसी लाईन पर काम करती  रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी  , लेकिन लीड रोल मुझे ज्यादा पसंद है।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
अपने कला के दम पर पहचान बनाऊँ तथा लोग मुझे एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में जाने , यही मेरा सपना है. 

रविवार, 3 नवंबर 2019

पौराणिक कथाओं में माँ तुलसी

कौन हैं और उनकी पूजा क्यों की जाती है?
पौराणिक कथाओं के आधार पर हम आपको बता रहे है कि माँ तुलसी कौन है और उन्हें पूजना क्यू ज़रूरी है.माँ तुलसी के बारे में जानने के लिए हमें इस कहानी को जानना होगा.माँ तुलसी का नाम वृंदा था. वृंदा का जन्म राक्षस कुल में हुआ था. राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद भी वृंदा भगवान श्री विष्णु जी की परम भक्त थी और सदैव बड़े मन से उनकी पूजा अर्चना किया करती थी.वृंदा जब विवाह लायक हुई तो उनकी शादी राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से कर दी गई. ये कहा जाता है कि जलंधर ने समुद्र से जन्म लिया था. विवाह के बाद वृंदा बड़ी ही पतिव्रता से अपने पति की सेवा किया करती थी.एक बार की बात है जब देवताओं और दानवो में युद्ध छीडा. युद्ध पर जाते हुए वृंदा ने अपने पति जलंधर से कहा कि ‘स्वामी आप तो युद्ध पर जा रहे लेकिन जब तक आप जीत हासिल कर वापस नहीं आजाते तब तक मै आपके लिए पूजा (अनुष्ठान) करती रहूंगी और अपना संकल्प नहीं छोडूंगी’

जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई.वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना था कि देवता जलंधर से जीतने में नाकाम हो रहे थे. जब देवता हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास जा पहुचे. सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि किसी भी तरह वे देवताओं को युद्ध जिताने में मदद करे.भगवान् विष्णु बड़े ही असमंजस की स्थिति  में थे. वे सोच रहे थे कि वृंदा को कैसे रोका जाए, जबकि वो उनकी परम भक्त थी.बड़े ही सोचने समझने के बाद श्री विष्णु जी ने वृंदा के साथ छल करने का निर्णय ले ही लिया. वृत पूजा को तोड़ने के लिए उन्होंने वृंदा के पति जलंधर का रूप धारण किया. जलंधर के रूप में विष्णु वृंदा के महल में जा पहुचे. वृंदा ने जैसे ही अपने पति जलंधर को देखा तो उनके चरण छुने के उद्देश्य से पूजा से उठ पडी. जिससे वृंदा का संकल्प टूट गया.वृंदा का वृत संकल्प टूटते ही देवताओं ने दानव जलंधर सिर धड से अलग करके उसे मार दिया.भगवान् विष्णु के छल का पता जब वृंदा को ज्ञात हुआ तो पहले तो वो जलंधर का कटा हुआ सिर लेकर खूब रोई और सती होने के पहले विष्णु जी को श्राप दे दिया.वृंदा ने विष्णु जी को पत्थर बन जाने का श्राप दिया. विष्णु जी पत्थर बन भी गए.लेकिन इस बात से सभी देवता-देवियाँ और लक्ष्मी जी खूब रोने लगे. सभी ने मिलकर वृंदा से खूब मिन्नते की कि वे विष्णु जी को श्राप से वंचित करदे. आखिरकार वृंदा मानी. भगवान् विष्णु फिर से अपने अवतार में आए. विष्णु जी ने देखा कि वृंदा जिस जगह सती हुई उस जगह एक पौधा खिला हुआ है.वृंदा से किए गए छल का प्राश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया और ये ऐलान किया कि। ‘’आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और तुलसी जी की पूजा के बगैर मै कोई भी भोग स्वीकार नहीं करुगा’’तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे. कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है. एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है. तुलसी बड़ी पवित्र और बड़े काम की चीज है.चरणामृत के साथ तुलसी को मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.हिन्दू धर्म में सभी अपने दरवाजे या आंगन में तुलसी का पौधा लगाते है. शरीर के कई विकारों के लिए भी यह फायदेमंद है.जो पवित्र है, हमारे लिए समर्पित है, उसे हम माँ कहते है. इसलिए हम उन्हें माँ तुलसी कहते है.
क्या है तुलसी पूजा का विधान?
- तुलसी का पौधा किसी भी बृहस्पतिवार को लगा सकते हैं.
- तुलसी का पौधा लगाने के लिए कार्तिक का महीना सबसे उत्तम है.
- कार्तिक महीने में तुलसी के पौधे की पूजा से पूरी होती है हर कामना.
- तुलसी का पौधा घर या आगन के बीच में लगाना चाहिए.
-अपने सोने के कमरे की बालकनी में भी लगा सकते हैं तुलसी का पौधा.
- सुबह तुलसी के पौधे में जल डालकर उसकी परिक्रमा करनी चाहिए.
- शाम को तुलसी के पौधे के नीचे घी का दीपक जलाना उत्तम होता है.
तुलसी पूजा में भूलकर भी ना करें ये गलतियां-
धार्मिक मान्यताओं में तुलसी को लेकर कुछ विशेष नियम और सावधानियां हैं जिनका ध्यान रखने से खराब से खराब किस्मत भी चमक उठती है तो आइए हम आपको बताते हैं कि तुलसी पूजन या तुलसी के प्रयोग में आपको किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
- तुलसी के पत्ते हमेशा सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए.
- रविवार के दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक न जलाएं.
- भगवान विष्णु और इनके अवतारों को तुलसी दल जरूर अर्पित करें.
- भगवान गणेश और मां दुर्गा को तुलसी कतई न चढ़ाएं.
क्या है तुलसी का महत्व ?
- सनातन परंपरा में जड़ और चेतन सभी में ईश्वर का भाव रखते हैं.
- नदियां, पहाड़, पत्थर और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास माना जाता है.
- पौधों में नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने कि क्षमता होती है.
-इसलिए पौधों में देवी-देवताओं का वास माना जाता है.
- तुलसी का पौधा भी ऐसा ही एक पौधा है.
-तुलसी में औषधीय और दैवीय दोनों गुण पाए जाते हैं.
- पुराणों में तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी कहा गया है.
- मान्यता है कि श्रीहरि ने छल से तुलसी का वरण किया था.
-इसलिए श्रीहरि को पत्थर हो जाने का शाप मिला और श्रीहरि ने शालिग्राम रूप लिया.
- शालिग्राम रूपी भगवान विष्णु की पूजा बिना तुलसी के नहीं हो सकती.
तुलसी जी की पूजा विधि
घर में तुलसी जी की पूजा कैसे करे आइये जानते है पूजा विधि | हमारे सनातन धर्म में तुलसी का पौधा एक देवी लक्ष्मी के तुल्य है | यह विष्णु के ही एक रूप  भगवान शालिग्राम जी की पत्नी है | यह घर के आँगन में लगी रहती है तो उस घर में सौभाग्य और अन्न धन की कभी कमी नही आती | घर में इसे परिवार का सदस्य मानकर नित्य ध्यान से पूजा और सींचना (जल देना ) चाहिए |
पूजन सामग्री
    एक प्लेट
    एक शुद्ध जल का लोटा
    अगरबत्ती या धुप
    देशी घी का एक दीपक
    हल्दी और सिंदूर
सबसे पहले माँ तुलसी जी को नमन करे | यह आपके घर की रक्षक है | अब लोटे से जल चढ़ाये और मंत्र पढ़े-  “महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी , आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।” इसके बाद उन्हें सिंदूर और हल्दी चढ़ाये | यह उनका श्रंगार है | अब तुलसी जी की पूजा के लिए घी का दीपक जलाये और शालिग्राम और वृंदा देवी को याद करके उनकी जय जयकार करे | अब धुप अगरबत्ती जलाये और माँ तुलसी की आरती करे | अब घर और परिवार के सदस्यों के लिए अच्छे भाग्य की विनती करे |
पूजन से जुड़े नियम
- रविवार को तुलसी जी को नही तोड़े ना ही जल डाले |
- रोज पूजा करे |
- जब भी तुलसी जी के पत्ते तोड़े पहले ताली बजाये फिर क्षमा मांगे और फिर तोड़े |
- कभी तुलसी जी के पौधे को सूखने ना दे |
- जो भी भोग आप देवी देवताओ के निकालते है उनमे तुलसी दल जरुर रखे |
- गणेश जी और शिव जी की पूजा में तुलसी काम में नही ले |
सूखा पौधा न रखें
अगर घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाए तो उसे किसी नदी या बहते पानी में प्रवाहित कर देना चाहिए। क्योंकि घर में सूखा पौधा रखना अशुभ माना जाता है।
पत्ते को चबाएं नहीं
किसी प्रसाद या खाने-पीने की चीज में तुलसी का सेवन करते समय इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की उन्हें चबाएं नहीं बल्कि निगल लें। इस तरह तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ मिलता है। क्योंकि इसमें पारा धातु के कई तत्व होते है जिन्हे चबाने से दांतों को नुकसान हो सकता है। इसीलिए तुलसी के पत्ते चबाएं नहीं।
इन पर कभी न चढ़ाएं तुलसी पत्ते
शिवलिंग और गणेश जी के पूजन में तुलसी के पत्तों का प्रयोग वर्जित होता है। जिसके पीछे अलग-अलग मानयताएं हैं। इसलिए इन दोनों के पूजन में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता।

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

जब किसान के घर ठहर गई मां लक्ष्मी

कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, इसके बारे में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है।कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना।
विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।


बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

क्यों करवा चौथ पर छलनी से देखा जाता है पति का चेहरा

नई दिल्ली। हर सुहागन स्त्री के लिए करवाचौथ का व्रत काफी महत्वपूर्ण होता है। प्यार और आस्था के इस पर्व पर सुहागिन स्त्रियां पूरा दिन उपवास रखकर भगवान से अपने पति की लंबी उम्र और गृहस्थ जीवन में सुख की कामना करती हैं। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस साल यह व्रत 17 अक्टूबर को रखा जाएगा। करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है,'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी '। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 70 सालों बाद इस करवाचौथ पर एक शुभ संयोग बन रहा है, जो सुहागिनों के लिए विशेष फलदायी होगा। बता दें, इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग बेहद मंगलकारी रहेगा। रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में रोहिणी के योग से मार्कंडेय और सत्याभामा योग भी इस करवा चौथ बन रहा है। चंद्रमा की 27 पत्नियों में से उन्हें रोहिणी सबसे ज्यादा प्रिय है। यही वजह है कि यह संयोग करवा चौथ को और खास बना रहा है। इसका सबसे ज्यादा लाभ उन महिलाओं को मिलेगा ​जो पहली बार करवा चौथ का व्रत रखेंगी। करवाचौथ की पूजा के दौरान महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत करके रात को छलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं।
करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त-
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायंकाल 6:37- रात्रि 8:00 तक चंद्रोदय-
सायंकाल 7:55 चतुर्थी तिथि आरंभ- 18:37
(27 अक्टूबर) चतुर्थी तिथि समाप्त- 16:54 (28 अक्टूबर)

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

परशुराम ने नहीं, खुद बप्पा ने तोड़ा था अपना दांत

आज हम आपको सुनाते हैं एक कहानी कि कैसे गणपति बप्पा का एक दांत टूटा. हो सकता है कि आपने परशुराम से युद्ध वाली कहानी सुनी हो, लेकिन हम आपको बताते हैं एक दूसरी कहानी जिसके अनुसार बप्पा ने
खुद ही अपना दांत तोड़ दिया था. बात उस समय की है जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे, तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके मुख से निकले हुए महाभारत की कहानी को लिखे. इस कार्य के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना. गणेश जी भी इस बात के लिए मान गए पर उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन को एक पल के लिए भी बिना रुके पूरा करना होगा. गणेश जी ने कहा कि अगर आप रुकेंगे तो मैं भी लिखना बंद कर दूंगा.अब महर्षि नें एक शर्त और रखी कि गणेश जी जो भी लिखेंगे वह उसे समझ कर ही लिखेंगे. गणेश जी भी शर्त मान गए. अब दोनों ने काम शुरू किया और महाभारत के लेखन का काम प्रारंभ हुआ. कुछ देर लिखने के बाद अचानक से गणेश जी की कलम टूट गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि महर्षि बहुत तेजी से बोल रहे थे. अब अपने काम में बाधा को दूर करने के लिए गणपति ने अपने एक दांत को तोड़ दिया और स्याही में डूबा कर महाभारत की कथा लिखने लगे.

सोमवार, 2 सितंबर 2019

रात में सोने से पहले मंदिर पर पर्दा डाल देना चाहिए


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  • घर के मंदिर से जुड़ी 10 बातें ध्यान रखेंगे तो बनी रहती है सकारात्मकता
  • शौचालय के आसपास मंदिर बनाने से बचना चाहिए, वरना वास्तु दोष बढ़ते हैं
  • घर में मंदिर बनाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। मान्यता है कि मंदिर की वजह से घर में सकारात्मकता बनी रहती है। इस संबंध ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के आसपास गंदगी नहीं होनी चाहिए, नियमित रूप से सुबह-शाम पूजा करनी चाहिए।

मंदिर से जुड़ी खास बातें

  1. घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां न रखें। शिवपुराण के अनुसार मंदिर में हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा शिवलिंग नहीं रखना चाहिए। शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखने का नियम है। अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी छोटे आकार की ही रखनी चाहिए।
  2. ध्यान रखें मंदिर में खंडित मूर्तियां न रखें। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे मंदिर से हटा देना चाहिए। खंडित मूर्तियां पूजा के लिए अशुभ मानी गई हैं, लेकिन ध्यान रखें सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है, शेष देवी-देवताओं की मूर्तियां टूटी हो तो उन्हें मंदिर में न रखें।
  3. रोज रात में सोने से पहले मंदिर पर पर्दा डाल देना चाहिए। जिस प्रकार हम सोते समय किसी भी तरह की बाधा पसंद नहीं करते हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए। जिससे भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो।
  4. घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होगा तो ये बहुत शुभ रहता है। इसके लिए मंदिर का दरवाजा पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। अगर ये संभव न हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।
  5. शौचालय के आसपास मंदिर बनाने से बचना चाहिए। ऐसी जगह पर मंदिर शुभ फल नहीं देता है। इसकी वजह से वास्तु दोष बढ़ते हैं।
  6. घर में मंदिर ऐसी जगह पर बनाना चाहिए, जहां कुछ देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो। सूर्य की रोशनी और ताजी हवा से घर के कई दोष शांत हो जाते हैं। सूर्य की रोशनी वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करती है।
  7. सुबह और शाम घर में पूजा जरूरी करनी चाहिए। मंदिर में दीपक जलाएं। पूजन में घंटी बजाएं। घंटी की आवाज और दीपक की रोशनी से नकारात्मकता नष्ट होती है।
  8. जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर के मंदिर में और अन्य कमरों में गौमूत्र का छिड़काव करें। गौमूत्र के छिड़काव से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है।
  9. पूजा में बासी फूल, पत्ते अर्पित न करें। स्वच्छ और ताजे जल का ही उपयोग करें। ध्यान रखें तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी बासी नहीं माने जाते हैं, इनका उपयोग कभी भी किया जा सकता है।
  10. घर में जिस जगह पर मंदिर बना है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए।

शनि देव की जन्मकथा और महत्व

Shani Jayanti 2019: Importance of Shani Jayanti Katha And Puja Vidhi
 शनि जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन ही शनि देव का जन्म हुआ था। शनि देव, भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि शुरू से ही विपरीत स्वभाव के थे। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण में इस शाप की कथा बताई गई है।
  • शनि देव के जन्म की कथा
शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं। इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से चली चली गईं। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ।
  • शनि जयंती पर ऐसे करें पूजा
शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है। शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि संबंधी सभी कष्ट दूर कर देने में सहायक होता है।
1. सुबह जल्दी नहाकर नवग्रहों को नमस्कार करें।
2. फिर शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और सरसों या तिल के तेल से उसका अभिषेक करें।
3. इसके बाद शनि मंत्र बोलते हुए शनिदेव की पूजा करें।
4. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा भी करनी चाहिए।
5. शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल, उड़द, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, लौंग, तेजपत्ता तथा काला नमक पूजा में उपयोग कर सकते हैं।
6. ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: मंत्र बोलते हुए शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
7. शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उडद, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान में दे सकते हैं।
8. इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर कुछ न खाएं और मंत्र का जप करते रहें।
  • शनि जयंती का महत्त्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे। इस दिन प्रमुख शनि मंदिरों में पूजा होती है और शनि से संबंधित चीजों का दान किया जाता है। जिससे कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति का असर कम हो जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने से या उनसे जुड़ी चीजें दान करने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं। इस दिन शनि देव की जो भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं। जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता। शनि देव की पूजा से जाने-अनजाने में किए पाप कर्मों के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है।