रविवार, 31 जनवरी 2010

हँसी के फुव्वारे

हँसी के फुव्वारे

फेरी वाला - चाकू छुरियाँ तेज करवा लो।
लल्लू - (हँसते हुए) - क्यों भाई, अक्ल भी तेज करते हो क्या?
फेरी वाला - क्यों नहीं, हो तो ले आइए।

ट्रेन में बैठे लल्लू से एक जवान लड़के ने टाइम पूछ लिया।
लल्लू बोले - देख भाई, मैं तुझे टाइम नहीं बताऊँगा क्योंकि अगर मैंने तुझे टाइम बताया तो हमारी जान-पहचान हो जाएगी और फिर अपनी दोस्ती हो जाएगी, तू मेरे घर के बारे में पूछेगा, फिर मैं तुझे अपनी जवान लड़की के बारे में बताऊँगा, फिण तू मेरे घर का पता लेगा और मेरे घर आएगा-जाएगा। मेरी लड़की तुझसे प्यार करने लगेगी और फिर तुम दोनों शादी करोगे... तो मैंने ऐसा दामाद कुएँ में फेंकना है जिसके पास अपनी घड़ी भी नहीं है।

दो वकील अदालत में बहस के दौरान व्यक्तिगत कटाक्षों पर उतर आए। एक ने कहा, 'तुम से बड़ा गधा मैंने आज तक नहीं देखा।'
दूसरे ने पलट कर कहा - 'मैंने भी आज तक तुमसे बड़ा गधा नहीं देखा।'
इस पर जज ने मेज पर हथौड़ा मारते हुए कहाँ 'आर्डर-आर्डर आप दोनों शायद भूल रहे हैं कि मैं भी यहाँ पर बैठा हुआ हूँ।'

लल्लू ने कल्लू से सवाल किया, 'एक आदमी पहली मंजिल से और एक आदमी दसवीं मंजिल से गिरता है दोनों में क्या फर्क है?'
लल्लू बोले, 'पहली मंजिल वाला पहले गिरेगा 'धम्म' और फिर करेगा आऽऽऽऽऽ और ‍दसवीं मंजिल वाला पहले करेगा' आऽऽऽऽऽ और फिर गिरेगा धम्म'।

कल्लू - मुझे तो अँग्रेजी फिल्म का बेहद शौक है। जब टाईटैनिक फिल्म आई तो मैंने पाँच बार देखी। तुमने कितनी बार देखी?
लल्लू - मुझे तो एक बार में ही समझ में आ गई थी।

बीवी - तुम मोटे होते जा रहे हो।
लल्लू - तुम भी तो मोटी होती जा रही हो।
बीवी - पर मैं तो माँ बनने वाली हूँ।
लल्लू - तो मैं भी तो बाप बनने वाला हूँ।

कहानी

शक्तियाँ
हर काम के लिए व्यक्ति के अंदर शक्ति का होना आवश्यक है। शक्ति दो प्रकार की होती है। शारीरिक तथा मानसिक। जो व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है उसके शरीर और मन दोनों में शक्ति होना आवश्यक है। शरीर की शक्ति आती है शरीर को स्वस्थ रखने से और शरीर को स्वस्थ रखने से और मन की शक्ति आती है सत्य के आचरण से। शरीर और मन दोनों की शक्तियाँ जब तक व्यक्ति में हों तभी तक वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली कहलाने का दावा कर सकता है। दोनों में से केवल एक ही शक्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।
कालू नाम का एक लड़का था। वह रोज नियमपूर्वक कसरत करता था, अच्छी तरह खाता-पीता था। अपने स्वास्थ्‍य का बहुत ही ध्यान रखता था, किंतु न तो वह पढ़ता-लिखता था, न ही ज्ञान-चर्चा करता था। बड़ा होने पर वह शरीर से हट्‍टा-कट्‍टा तो हुआ, परंतु मानसिक बल उसके पास कुछ नहीं था। लोगों को मारपीट की धमकी देकर ही उनसे रुपया-पैंसा ऐंठ लेता था और उसी से अपना काम चलाता था।
ऐसा करते-करते एक दिन वह डाकुओं के दल में जा मिला। पुलिस के डर से भयभीत वह हमेशा अपने आप को छिपाए-छिपाए रहता था। शरीर में इतना बल रखते हुए भी उसे एक दिन पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। क्या कालू को हम शक्तिशाली कह सकते हैं? नहीं, मानसिक बल न रहने के कारण उसका शारीरिक बल व्यर्थ ही नहीं गया, उसकी मृत्यु का कारण भी बना।
इसके विपरीत रामानुजम नाम का लड़का था। वह गणित में बहुत ही अधिक कुशल था। उसे केवल अपनी किताबों से ही प्रेम था। हिसाब बनाते-बनाते न उसे खाने-पीने की सुध रहती न अपने शरीर के आराम की। छोटी-सी उम्र में ही उसने बहुत कुछ जान लिया। यहाँ तक कि उसके एक अँगरेज प्रोफेसर उसे विश्वविख्यात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ले गए ताकि उसे गणित के अध्ययन में सुविधा हो। लेकिन निरंतर अवहेलना के कारण उसके शरीर का सारा बल जाता रहा था। उसे टीबी हो गई और 25 साल की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। वह संसार को बहुत कुछ दे सकता था, किंतु शरीर के बल के अभाव के कारण उसका जीवन एक प्रकार से व्यर्थ हो गया।

इन दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है‍ कि शारीरिक और मानसिक बल एक-दूसरे के बिना निरर्थक हैं। शरीर में बल प्राप्त करने के लिए उसकी देखभाल बहुत आवश्यक है। जब तक बच्चा छोटा रहता है, उसका स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उसके माता-पिता पर रहती है। बड़े होने पर अपने शरीर की देखभाल स्वयं करना बहुत आवश्यक है। आरंभ से ही ठीक आदतें डालनी चाहिए। समय से खानापीना, सोना, खेलना शरीर के स्वास्‍थ्‍य के लिए अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त भोजन को रुचि तथा प्रेम से करना भी बहुत आवश्यक है।
में नहीं जीभ में होता है। स्वस्थ आदमी जब क्ष‍ुधा के साथ भोजन पर बैठेगा तो परोसी हुई हर अच्छी वस्तु खाने की आदत डालना बहुत अच्छा रहता है। खाने-पीने की कुछ चीजें अवश्य ही हानिकारक हैं - जैसे सड़े-गले फल, सड़क पर बिकने वाली खुली भोजन सामग्री, बिना धुली गंदी चीजें, तंबाकू शराब इत्यादि। इन चीजों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से कसरत करना, टहलना भी स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। शरीर भगवान की एक अनमोल देन है। उसे भगवान का वरदान मानकर हमेशा स्वस्थ, साफ-सुथरा और सुंदर रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, तभी शरीर में बल रहता है और तभी व्यक्ति अपने जीवन के उद्‍देश्य की प्राप्ति के लिए पूरी तरह चेष्टा कर सकता है।
जो व्यक्ति शरीर की देखभाल नहीं करते, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं। शरीर की देखभाल का स्थान प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति की दिनचर्या में होना नितांत आवश्यक है।
स्वस्थ शरीर के बिना सफल जीवन की कामना करना व्यर्थ है। शरीर की शक्ति ही मन की विविध शक्तियों को कार्य रूप देने में सफल हो सकती है। स्वस्थ जीवन बल यही शरीर की एकमात्र शक्ति है, किंतु इसके विपरीत मन की शक्तियाँ ही कई प्रकार की होती हैं। उनके नाम हैं बुद्धि, दृढ़ता और कल्पना। ये शक्तियाँ सब व्यक्तियों में समान रूप से निहित नहीं होतीं, लेकिन न्यूनाधिक मात्रा में हर एक के पास विद्यमान रहती हैं। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति यदि चाहे तो इनका और अधिक विकास भी सहज ही कर सकता है।
मन के स्वास्थ्य के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है और साथ ही शरीर के स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना भी आवश्यक है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मन सूक्ष्म है, उसकी देखभाल करना शरीर की देखभाल करने की अपेक्षा अधिक कठिन है। इसलिए पहले शरीर को स्वस्थ बनाकर ही मन के स्वास्थ्‍य पर ध्यान देना उचित है। स्वस्थ मन वह है जिसकी बुद्धि हमेशा अच्छी बातों की प्रेरणा देती है तथा निरंतर ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करती है। स्वस्थ मन की दृढ़ता व्यक्ति को उत्साहित रखती है और उसे अपने हर काम को पूरा करने में मदद देती है। स्वस्थ मन की कल्पना व्यक्ति को ऊँचा उठाने और अधिक अच्‍छा बनने में सतत सहायता करती है।
अस्वस्थ मन को बुद्धि बुरी दिशा की तरफ ले जाती है। अस्वस्थ मन में दृढ़ता होती ही नहीं और अस्वस्थ मन की कल्पना सदा भयावह होती है। बुद्धि दूसरों की बुराई सोचती है। दृढ़ता न रहने के कारण अस्वस्थ मन वाला व्यक्ति कोई भी काम नहीं कर पाता। उसकी कल्पना उसे असफलता तथा पतन की तस्वीरें ही उसके आगे प्रस्तुत करती है।
अब प्रश्न उठता है कि मन को स्वस्थ कैसे रखा जाए? मन को स्वस्थ रखने के लिए दो बातें बिल्कुल ही आवश्यक हैं। भगवान में दृढ़ विश्वास और सत्य का आचरण। भगवान में विश्वास न रहने पर व्यक्ति का जीवन अव्यवस्थित हो उठता है। उसे पता नहीं चलता कि वह जीवित ही क्यों है? ऐसे प्रश्न मन में उठकर उसे अशांत बना देते हैं और उसकी बुद्धि उद्‍भ्रांत-सी रहती है।
भगवान में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह जानता है कि भगवान ने उसे बनाया है, उसकी आत्मा भगवान का ही एक अंश है। भगवान ने उसे संसार में एक खास उद्‍देश्य से भेजा है - वह सुखी रहे, ज्ञान प्राप्त करे और अपने प्राप्त किए हुए ज्ञान को संसार को अच्छा करने में काम में लाए। ऐसा सोचने वाले व्यक्ति का मन सदा प्रसन्न, सदा शांत रहता है और अपने आप में वह शक्ति का अनुभव करता है। जो व्यक्ति यह जान लेता है कि वह एक उद्‍देश्य से संसार में आया है वह कभी भी बुरा आचरण नहीं करता है। सत्य को अपने जीवन की धुरी बनाकर वह हमेशा कठिन काम करता है।
अपना कर्तव्य भली-भाँति निभाता है और उसका मन सशक्त और प्रफुल्ल रहता है। मन में शक्ति रहने के कारण वह व्यक्ति समाज में सदा प्रतिष्ठित रहता है। दूसरे लोगों का श्रद्धा-पात्र रहता है।
स्वस्थ रखने के लिए मन पर नियंत्रण रखना भी बहुत आवश्यक है। आज के संसार में बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो यह कहते हैं कि यदि भगवान ने हमें इच्छा, अभिलाषा, भावनाएँ, अनुभूतियाँ दी हैं तो हम उन्हें ‍छिपाकर क्यों रखें? मन जो कहे वही करना उचित है। ऐसा करने वाले लोग मन और प्रवृत्तियों के अंतर को स्पष्ट नहीं समझ सकते हैं। हम किसी के घर जाते हैं, वहाँ कोई बड़ी लुभावनी वस्तु यदि हमारे सामने आए तो क्या उसे हम उठा लेंगे? नहीं, प्रवृत्ति कहती है, 'वह हमारी हो जाए' लेकिन मन कहता है, नहीं, वह किसी और की है, हम उसे नहीं ले सकते। बीमार रहने पर कई बार हमारी जीभ, हमारा स्वाद चाहता है कि अमुक वस्तु खाएँ, लेकिन मन समझाता है, 'नहीं, यह ठीक नहीं। इसे खा लेने पर हम और अधिक बीमार हो जाएँगे।

पुस्तक 'बच्चो अच्छे बनो' से।


नारदजी
एक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"
नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे हीएक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"

नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे ही नारदजी दुकान पर पहुँचे, वहाँ बैठा हुआ लाला बोल- "बाबा राधेश्याम! नारदजी ने सोचा, शायद किसी राधेश्याम के चक्कर में मुझे बुला लिया है। अतः वे बोले- "भैया क्षमा करना, मेरा नाम राधेश्याम नहीं है, मैं तो नारद हूँ। यह सुनकर लाला मुस्कुराकर बोला-"आप नारद हों या कोई और, मुझे इससे मतलब नहीं है, हाँ आप इस वीणा को मुझे बेच दो, मेरा लाडला वीणा चाहता है।

यह सुनते ही नारदजी के पैरों तले जमीन खिसक गई, वह तो इस आशा से दुकान पर आए थे कि‍ कुछ आदर सत्‍कार होगा, किंतु यहाँ तो लेने के देने पड़ने लगे। वे बोले 'ना भैया यह वीणा बि‍काऊ नहीं है। अपने लाड़ले सपूत को कोई दूसरी वीणा दि‍ला दो।' इतना कहकर नारद जी जाने लगे तो दुकानदार कड़ककर बोला, 'देखो बाबा मेरे बच्‍चे के मन में ये वीणा बस गई है आप चाहे जि‍तना पैसा ले लो, यह वीणा दे दो।'

अरे क्‍या कहते हो भैया तुम्‍हारे लड़के के मन में तो ये आज बसी है मेरे मन में तो सदैव से यही बसी हुई है। मैं इसे नहीं दूँगा मुझे रुपए पैसे से कोई मतलब नहीं है।' नारद जी ने कहा।

नारदजी के इस उत्तर से लाला जनभुन गया। उसने नारद जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- 'शायद कहीं बाहर से आए हो बाबा?'
'हाँ भैया मैं देवलोक से आया हूँ।' नारद जी ने वि‍नम्रता के साथ कहा। 'हुममम, तभी तो! वाराणसी में रहने का कब तक रहने का वि‍चार है?' लाला ने घमंड के साथ पूछा। 'अब आ ही गया हूँ तो भगवान शि‍व की नहरी में दस-पाँच दि‍न घूमूँगा फि‍रूँगा।' नारद जी ने जवाब दि‍या। 'तो कान खोलकर सुन लो बाबा! आप इस वीणा को लेकर वाराणसी से वापस नहीं जा सकते। मुझे सेठ पकौड़ीलाल कहते हैं। मेरी शक्ति‍ और सामर्थ्‍य के बारे में जानना हो तो कि‍सी भी बनारसी से पूछ लेना।'

सेठ की बे सि‍र पैर की बाते सुनकर नारद जी को भी मजाक सूझा। वे बोले, 'हाँ तुम्‍हारी शक्ति‍ का तो अंदाजा तुम्‍हारी मोटी तोंद से ही लग रहा है लेकि‍न शायद तुम्‍हारी बुद्धि‍ तुम्‍हारी तोंद से भी मोटी है।' नारद जी के मुँह से ऐसा सुनकर से सेठ आग बबूला हो गया जैसे ही वह नारद जी पर ढपटा वे अंतर्ध्‍यान हो गए। लाला का पैर फि‍सला और वो धम्‍म से नीचे गि‍र पड़ा।

विविध

इब्न बतूता, पहन के जूता...
एक यात्री, जो याद बन गया

रफीक विसाल
सिर्फ इक्कीस बरस की उम्र में इब्न बतूता ने उत्तरी अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी सिरे (मोरक्को) से जब 14 जून 1325 (02 रज्जब 225 हिजरी) को सफर की शुरुआत की तो ...उसे पता नहीं था कि उसकी मंजिल या रास्ते क्या होंगे। सिर्फ दिल में मक्का-मदीना की जियारत (दर्शन) करने की कोरी ख्वाहिश थी। जियारत और सियाहत (यात्रा) के इस जुनूनी शौक ने इब्न बतूता के नाम के साथ वह कारनामा चस्पाँ कर दिया कि आज भी उसका नाम लबों पर डोल जाता है। 24 फरवरी 1304 (14 रज्जब 703 हिजरी) में मराकिश (मोरक्को) के काजी खानदान में उनका जन्म हुआ। लंबे सफर के लिए मशहूर इब्न बतूता का पूरा नाम भी आम नामों की तुलना में काफी लंबा हैः इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अब्दुल्लाह। अपने समय के इस जाँबाज यात्री ने सिर्फ 28 साल की उम्र में 75 हजार मील का सफर तय किया था।
इब्न बतूता जब मोरक्को से रवाना हुआ था तो सिर्फ हज का इरादा था लेकिन सफर के रोमांच ने उसे आगे बढ़ने का हौंसला दिया। सऊदी अरब से पहले अलजीरिया, ट्यूनिशिया, मिस्र, फिलिस्तीन और सीरिया होते हुए एक बड़े कारवाँ के साथ वह मक्का पहुँचा। यहाँ की जियारतों ने उसके दिल में बह रहे ईमान के दरिया को नई लहरें दीं।

सऊदी अरब की यात्रा में ही बतूता का दो साधुओं से मिलना हुआ। इन साधुओं ने पूरब के मुल्कों की खूब तारीफें कीं। पूरब के बारे में सुनने के बाद उसे अंदाजा हो गया कि यह मजहब और ईमान के कद्रदानों की धरती है। उसने भारत के उत्तर-पश्चिम दरवाजे यानी अफगानिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश किया। उस वक्त दिल्लीClick here to see more news from this city में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की हुकूमत थी। तुगलक ने पहले से ही इब्न बतूता के बारे में सुन रखा था। दिल्ली पहुँचने पर बतूता की खूब खातिरदारी की गई और उसे कई तोहफों से नवाजा गया। बतूता को राजधानी के काजी-ए-आला का ओहदा सौंप दिया गया। तुगलक को बतूता के काम करने का अंदाज बहुत पसंद आया।

उसने 1342 में बतूता को अपना सफीर (दूत) बनाकर चीन के लिए रवाना किया। लेकिन चीन के रास्ते में उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसी सफर के दौरान वह मध्य भारत के मालवा होते हुए गोआ पहुँचा था और वहाँ से कालीकट तक पहुँचने में उसे पसीना आ गया था। आखिरकार तमाम मुश्किलों के बावजूद इब्न बतूता श्रीलंका और बंगाल की खाड़ी के मार्ग से चीन पहुँचने में कामयाब हो गया।

जिस दौर में इब्न बतूता आया तब पूरे अफ्रीका और भारतीय समुद्र मार्ग का पूरा कारोबार सौदागरों के ही हाथ में था। उसने इराक और ईरान में भी 1329 में काफी समय बिताया और फिर मक्का लौट आया। अपनी यात्रा के पड़ाव में तकरीबन तीन साल इब्न बतूता मक्का में ही रहा। यहीं रहते हुए जद्दाह पहुँचकर समुद्र के रास्ते यमन भी जाना हुआ। अदन से मुंबासा और पूर्वी अफ्रीका भी जाना हुआ। यहाँ पहुँचते बतूता काफी संपन्ना हो गया था क्योंकि वह जिस सल्तनत से गुजरता था, वहाँ के सुल्तान उसका सम्मान कर इनाम-इकराम से नवाजते थे।

तमाम सफर के बाद 1354 की शुरुआत में इब्न बतूता अपने देश मोरक्को पहुँचा। राजधानी फेज में उसका सम्मान किया गया क्योंकि इससे पहले किसी ने इतनी लंबी यात्रा नहीं की थी। फेज में सुल्तान अबू हन्नान के दरबार पहुँचकर अपना यात्रा वृतांत सुनाया तो सुल्तान ने अपने सचिव मुहम्मद इब्न जुजैय को इसे लिखने का आदेश दिया। इसके बाद पूरा समय बतूता का मोरक्को में ही बीता। 1377 (779 हिजरी) में बतूता का निधन हो गया।


FILEउसके पूरे सफरनामे को किताबी शक्ल दी गई। इस किताब को 'अजाइब अलअसफारनी गराइबुद्दयार' और ' तुहफतुल नज्जार फी गरायतब अल अमसार' के नाम से प्रकशित किया गया। इस किताब में मध्यकालीन भारत और विश्व के कई देशों के इतिहास और भौगोलिक परिस्थितियों का जिक्र है। इसकी पांडुलिपि पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। इस हस्तलिपि को दे फ्रेमरी और सांगिनेती ने संपादित किया है। यह हस्तलिपि 1836 में तांजियार में मिली थी। इसका फ्रेंच में चार खंडों अनुवाद किया गया है।

नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालनCute Vidya Balan Pics & Wallpapers अभिनीत ताजा फिल्म 'इश्किया' के गाने 'इब्न बतूता/ बग्ल में जूता/ पहने तो करता है चुर्र...उड़ उड़ आवे/दाना चुगे/उड़ जावे चिड़िया फुर्र...' ने इब्न बतूता का नाम हर खासो-आम की जबान पर ला दिया है। इस गीत को गुलजार साहब ने बड़ी खूबसूरती से लिखा है। हालाँकि बरसों पहले हिन्दी के ख्यातनाम कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता 'बतूता का जूता' काफी मकबूल हुई थी। हो सकता है गुलजार साहब के जहन में गीत लिखते हुए यह आ गई हो लेकिन गीत और कविता में काफी फर्क है।

बतूता का जूता
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।
कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता।
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान में।

शनिवार, 30 जनवरी 2010

अजब-गजब

जरूरी काम!

एक दिन एक अँगरेज राजदूत जर्मनी के महान नेता बिस्मार्क से मिलने आया। दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत होने लगी। इस बातचीत में बहुत समय लग गया। बातचीत और भी लंबी चलती जा रही थी। अचानक बीच में अँगरेज राजदूत ने बिस्मार्क से पूछा कि आपसे रोजाना सैकड़ों लोग मिलने आते हैं। इन मुलाकातों में तो आपका बहुत समय नष्ट हो जाता होगा?
बिस्मार्क ने जवाब दिया- मैंने इसके लिए एक तरीका अपना रखा है। जब भी मुझे लगता है कि कोई मेरा समय फिजूल नष्ट कर रहा है तो मेरा नौकर आकर मुझे कहता है कि मेरी पत्नी मुझे किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है। बिस्मार्क का यह कहना हुआ कि ठीक इसी समय बिस्मार्क का नौकर आया और उसने कहा- सर आपको मैडम किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है।


हैलो, कौन बोल रहा है...

पीटर गेम्बलिन के सेलफोन पर एक कॉल आया। सामने वाले ने पूछा कौन बोल रहा है। पीटर ने गर्व के साथ अपने फोन पर परिचय, पता और पहचान बता दी। यह सारी बातें कोर्ट में जज ने सुन ली और पुलिस को तुरंत पीटर को पकड़कर लाने को कहा। पीटर को जज ने पुलिस हिरासत में रखने को कहा और उसका नया साल भी वहीं मना।
दरअसल जब फोन चोरी के मामले में पहले पीटर से पुलिस ने पूछताछ की तो उसने कहा था कि इस चोरी से उसका क्या लेना-देना। जब चोरी हुई तब वह अपनी बहन के यहाँ था। तब कोर्ट के जज ने यह नया तरीका अपनाया और चोरी के मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए पीटर को पकड़ लिया।

क्या तुम जानते हो?

जल्दी बोलो गुडनाइट!
यह कहना है विज्ञान के शोधार्थियों का। इनका कहना है कि जो बच्चे रात को जल्दी सो जाते हैं वे अगले दिन जल्दी काम शुरू कर सकते हैं और बेहतर काम करके बता सकते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जल्दी सोने वालों को पूरी नींद लेने का मौका मिलता है और इससे उन्हें डिप्रेशन और सिरदर्द नहीं होता। इस अध्ययन के लेखक मानते हैं कि बच्चों और किशोरों के लिए पूरी नींद बहुत जरूरी होती है। इससे उनका मस्तिष्क स्वस्थ रहता है।
अमेरिका में हुए इस अध्ययन की बात सुनें तो यह कहता है कि बच्चों को रात १० बजे से पहले सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी जागना चाहिए। बहुत से बच्चे देर रात तक टीवी देखते रहते हैं या फिर पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं और अगले दिन जल्दी भी उठ जाते हैं। ऐसा करने से उनकी नींद पूरी नहीं होती है और अगले दिन वे पढ़ाई और दूसरे कामों को मन लगाकर नहीं कर पाते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगने से बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं और फिर इससे बच्चों में डिप्रेशन आता है।
अध्ययन करने वाले कहते हैं कि बच्चों की नींद पूरी होना बहुत जरूरी है। किशोर अवस्था में ८ घंटे के करीब की नींद जरूरी होती है। वैसे अध्ययन करने वाले यह भी बताते हैं कि ८ घंटे की नींद पर्याप्त है और इससे ज्यादा सोना ठीक नहीं। अध्ययन करने वालों ने कुछ बच्चों से बातचीत के आधार पर उनके सोने का समय पता लगाया तो मालूम हुआ कि सप्ताह के बाकी दिनों में तो बच्चे ठीक समय पर सो जाते हैं पर वीकेंड में देर रात तक जागते हैं। इसके बाद शोधार्थियों का यही मानना था कि वीकेंड में भी बच्चों को जल्दी सोने की कोशिश करना चाहिए ताकि वे फ्रेश रहकर छुट्‍टी का ज्यादा आनंद ले सकें।
अध्ययनकर्ता मानते हैं कि जो बच्चे 11 बजे के आसपास सोते हैं उन्हें ज्यादा नींद की जरूरत होती है। इसी तरह देर रात को सोने वाले बच्चों को और भी ज्यादा नींद की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रात की नींद की पूर्ति दिन में सोने से नहीं हो पाती है क्योंकि लंबी नींद से शरीर को ज्यादा आराम मिलता है बजाय टुकड़ों में नींद लेने के।
नींद और उसका बच्चों और किशोरों पर प्रभाव का अध्ययन करने वाले इन शोधार्थियों का कहना है कि जिनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है वे अगले दिन के तनावों का ठीक तरह से सामना नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं किसी भी काम को करते हुए वे एकाग्र भी नहीं ही पाते हैं। साथ ही अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि नींद की कमी से शरीर में हारमोन्स का स्त्रावण भी प्रभावित होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास पर सीधा असर डालता है। इसलिए जल्दी सोओ, जल्दी जागो और स्वस्‍थ रहो।

कहानी

सरलता
ओमप्रकाश बंछोर
सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।
कुठार लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला - 'सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है। टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।'
चंदन का वृक्ष धीरे से बोला - 'भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं। मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।'
लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्‍गति को प्राप्त हुआ। उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी। मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।
यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आवश्यकता थी। लकड़हारे उसी वन प्रांतर में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगा जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे। अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया। उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे।
यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था। वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बन चंदन बोला - 'आओ मित्र! ईश्वर की इच्‍छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया। अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है। मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।
पलाश बोला - 'देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे। मुझे भय लग रहा है। ‍अब बिछड़ना ही पड़ेगा।'
चंदन ने कहा - 'भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बनाकर धन्य कर‍ दिया तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते। सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना। सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं। सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।'
बाबा तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है -
निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

अचानक पलाश का मुख एक आध्‍यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।

सबसे अच्‍छा कौन?
शेष नारायण बंछोर
एक बार वीर वन में बंदरों ने सभी पशु-पक्षियों की एक विशाल सभा बुलाई जिसमें इस विषय पर चर्चा रखी गई कि दुनिया भर में सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन सा है? दूर-दूर से पशु-पक्षी सभा में आए। काफी देर तक बहुत से वक्ताओं ने अपनी-अपनी राय जाहिर की।
गधा बोला - मेरे विचार से शेर सबसे सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली है। मेंढक बोला - व्हेल मछली सर्वश्रेष्ठ प्राणी है वह पानी के हर प्राणी से ताकतवर और विशालकाय है।
तोते ने अपनी राय दी कि खरगोश हम सबमें बुद्धिमान है उसने तो शेर तक को हरा रखा है इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है।
इस तरह लंबी चर्चा चली तब बंदर ने कहा - मेरे विचार में तो मनुष्य धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और मैं इस बात को सिद्ध कर सकता हूँ। सभी जानवर बोले - वो कैसे?
बंदर बोला - मनुष्य के पास विवेक है, भाषा ज्ञान है, ताकत है, बुद्धि है इसलिए उसी को सर्वश्रेष्ठ मानना उचित है।
सभी पशु-पक्षी इस बात पर सहमत हो गए किंतु कौओं का दल चुप था। बंदर ने कौओं के सरदार से कहा कि अगर वह इस निर्णय से सहमत नहीं हैं तो अपने विचार जरूर रखें क्योंकि यह खुला मंच है सबको बोलने की आजादी है। कौआ बोला - आप मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं परंतु हमारी राय में वह दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है। कौए के इतना कहते ही सारी सभा में खुसर-फुसर होने लगी। बंदर बोला - तुम स्वयं अधम हो इसलिए तुम्हें मनुष्य भी अधम लग रहा है किंतु सच यही है कि सर्वश्रेष्ठ तो मनुष्य ही है।
आखिर लंबे विवाद के बाद सभा खत्म हो गई और कौए के मत का सबने विरोध किया। कुछ दिनों पश्चात बंदर पेड़ पर आराम कर रहा था अचानक उसने देखा सामने से एक मनुष्य दौड़ता हुआ आ रहा है उसके पीछे शेर लगा है। आदमी ने पेड़ के नीचे आकर बंदर से कहा ‍िक शेर उसकी जान ले लेगा। बंदर बोला - 'भाई! घबराओ मत! तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे पास आ जाओ।'
मनुष्य पेड़ पर चढ़ गया और बंदर के पास जाकर थर-थर काँपने लगा। बंदर ने उसे सांत्वना दी और शेर से कहा वह अब उसकी शरण में है शेर का भला इसी में है कि वह वापस चला जाए। शेर बोला 'बंदर! क्यूँ अपनी मुसीबत मोल ले रहे हो? इस आदमी को नीचे धक्का दे दे यह मेरा शिकार है।'
बंदर बोला - 'शेर! मैं शरण में आए की जान खतरे में नहीं डाल सकता।' शेर बोला - अरे मूर्ख बंदर! यह मनुष्य की जाति है और मनुष्य स्वार्थी होता है अब तू अपनी खैर मना।'
शेर पेड़ के नीचे ही बैठा रहा रात होने लगी बंदर को नींद लग गई तभी शेर बोला - 'ओ मनुष्य! तू क्या सोच रहा है? तुम दोनों में से एक को तो मुझे खाना ही है। तू बंदर को नीचे धक्का दे दे।
मनुष्य बोला - नहीं, नहीं इसने मुझे बचाया है। मैं इसे कैसे धक्का दे सकता हूँ?
शेर बोला - 'देख मानव! बंदर का तो आगे-पीछे कोई नहीं, अगर तू नहीं रहा तो मेरे घर वालों का क्या होगा? तेरा मकान, दुकान सब खत्म हो जाएगा। तू अपने बारे में सोच।' इतना कहते ही मनुष्य का स्वार्थ जाग उठा उसने तुरंत बंदर को पेड़ से धक्का दे दिया। गिरते हुए बंदर की नींद खुली और उसने पेड़ की डाल पकड़ ली।
लटके हुए बंदर को देख शेर ने उससे कहा - बंदर! देखी मानव की जात? मैंने पहले ही कहा था कि यह तुझे धोखा देगा। अभी भी वक्त है तू इस आदमी को नीचे धक्का दे दे?' परंतु बंदर अपनी बात पर अटल रहा बोला - मैं इसे नीचे धक्का नहीं दूँगा किंतु शेर मेरे भाई मैं अब पशु-पक्षियों की सभा दोबारा बुलाऊँगा और उसमें कौए की बात पर विचार गोष्ठी रखूँगा। सचमुच स्वार्थी मनुष्य दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है।'
सौजन्य से - देवपुत्र

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

सितारों के जन्मदिन

फरवरी

जैकी श्राफ 1 फरवरी
शमिता शेट्टी 2 फरवरी
उर्मिला मातोंडकर 4 फरवरी
अभिषेक बच्चन 5 फरवरी
जगजीत सिंह 8 फरवरी
अमृता सिंह 9 फरवरी
टीना मुनीम 11 फरवरी
प्राण 12 फरवरी
रणधीर कपूर 15 फरवरी
खय्याम 18 फरवरी
सोनू वालिया 19 फरवरी
अनु कपूर 20 फरवरी
जिया खान 20 फरवरी
सूरज बड़जात्या 22 फरवरी
भाग्यश्री 23 फरवरी
पूजा भट्ट 24 फरवरी
शाहिद कपूर25 फरवरी
प्रकाश झा27 फरवरी

बेहतरीन गीत

बचना ऐ हसीनों के गीत हैं बेहतरीन
फिल्म बचना ऐ हसीनों का एलबम अन्य की तुलना में बेहतरीन कहा जा सकता है। इसमें पंजाबी के साथ जैज संगीत भी कर्णप्रिय है।
फिल्म का शीर्षक गीत बचना ऐ हसीनों वास्तव में वर्ष 1977 की फिल्म हम किसी से कम नहीं में किशोर कुमार के गाए गीत से प्रभावित है, लेकिन विशाल-शेखर ने अपने संगीत से सजाकर इसे पूरी तरह से नए अंदाज में पेश किया है।
पुराने बेहतरीन संगीत को आज के समय की मांग के अनुसार धुन से सजाकर इसे आदर्श मेल (फ्यूजन) के रूप में पेश किया गया है, जिसे लंबे समय तक लोग याद करते रहेंगे। सुखविंदर सिंह और हिमानी कपूर के साथ मिलकर तैयार किया गया शेखर रैवजियानी का लोकगीत जग माही भी बेहतरीन है।
गीतकार अन्विता के गीत खुदा जाने को शिल्पा राव और के.के. ने बेहतरीन ढंग से गाया है। लक्की अली और श्रेया घोषाल का गीत आहिस्ता आहिस्ता भी दमदार है।
एलबम का गीत लक्की बॉय भी श्रोताओं को भाएगा, हालांकि सुनिधि चौहान, राजा हसन और हर्द कौर के गाए गीत भी जबर्दस्त हैं। शंकर महादेवन के गीत स्मॉल टाउन गर्ल में दमदार ढोल की आवाज ने उसे पंजाबी रंग में रंग दिया है।

मधुर गीतों से भरा है अगली और पगली का संगीत
आमतौर पर यह माना जाता है कि हास्य फिल्मों में संगीत का बहुत अधिक योगदान नहीं होता लेकिन आगामी 25 जुलाई को रिलीज होने जा रही फिल्म अगली और पगली इसका अपवाद है।
इस फिल्म का संगीत अनु मलिक ने तैयार किया है जबकि गीत अमिताभ वर्मा लिखे हैं। फिल्म में इश्क बेक्टर और अनुष्का मनचंदा का गाया हिंदी पंजाबी गीत करले गुनाह अंखियां मिला के बहुत मधुर बन पड़ा है। अनु मलिक, वसुंधरा दास और दिब्येंदु मुखर्जी की आवाज में शट अप आ नचले विविधता से भरपूर है।
पंजाबी-हिन्दी मिक्स गीत ताली में ताली हो गई को हर्द कौर, अनमोल मलिक और मीका ने काफी अलग अंदाज में गाया है। इसी तरह मोहित चौहान की आवाज में ये नजर आए-जाए भी श्रोताओं को निराश नहीं करता।

क्रेजी 4 के संगीत में नहीं है दम
जावेद अख्तर और राजेश रोशन की सुपरहिट जोड़ी के बावजूद क्रेजी 4 का संगीत लोकप्रियता के पायदान पर फिसड्डी साबित हो रहा है।
जयदीप सरीन निर्देशित इस फिल्म में सुनिधि चौहान और कृति सगाथिया की आवाज में देखता है तू क्या.. एक अलग तरह का गीत है। जावेद अख्तर ने इस गीत को लिखा है। हालांकि इस गीत को वैसी प्रशंसा नहीं मिल रही है जैसा कि पहले राजेश रोशन के संगीतबद्ध गीतों को मिला करती थी।
कई गायकों द्वारा प्रस्तुत गीत एक रुपया.. को भी लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। फिल्म में एक राष्ट्र प्रेम गीत जन गण मन.. भी है। हालांकि, इस गीत में कुछ नया नजर नहीं आया है। यदि क्रेजी 4 के सभी गीतों को ध्यान पूर्वक सुना जाए तो यह पता चलता है कि इन गीतों में वैसी लय नहीं है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले। राजेश रोशन भी संगीत के मामले में अपने पुराने लय को क्रेजी 4 में शामिल नहीं कर पाए हैं।

इश्किया

उ.भारतीय परिवेश की रोमांचक कथा इश्किया मुख्य कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी, विद्या बालन, सलमान शाहिद आदि।

निर्देशक : अभिषेक चौबे

तकनीकी टीम : निर्माता- विशाल भारद्वाज, रमन मारू, संवाद - विशाल भारद्वाज, पटकथा - विशाल भारद्वाज, सबरीना धवन

अभिषेक चौबे की पहली फिल्म इश्किया मनोरंजक फिल्म है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म के दो मुख्य किरदार मध्यप्रदेश केहैं। पुरबिया और भोपाली लहजे से फिल्म की भाषा कथ्य के अनुकूल हो गई है। हिंदी फिल्मों में इन दिनों अंग्रेजी का चलन स्वाभाविक मान लिया गया है। लिहाजा अपने ही देश की भाषाएं फिल्मों में परदेसी लगती हैं। अभिषेक चौबे ने निर्भीक होकर परिवेश और भाषा का सदुपयोग किया है। इश्किया वास्त व में हिंदी में बनी फिल्म है, यह हिंदी की फिल्म नहीं है।

खालू जान और बब्बन उठाईगीर हैं। कहीं ठिकाना नहीं मिलने पर वे नेपाल भागने के इरादे से गोरखपुर के लिए कूच करते हैं। रास्ते में उन्हें अपराधी मित्र विद्याधर वर्मा के यहां शरण लेनी पड़ती है। वहां पहुंचने पर उन्हें मालूम होता है कि विद्याधर वर्मा तो दुनिया से रूखसत कर गए। हां, उनकी बीवी कृष्णा हैं। परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि खालूजान और बब्बन को कृष्णा के यहां ही रूकना पड़ता है। इस बीच कृष्णा, खालू जान और बब्बन के अंतरंग रिश्ते बनते हैं। सब कुछ तात्कालिक है। न कोई समर्पण है और न ही कोई वायदा। सच तो ये है कि सारे किरदार स्वार्थी हैं और वे अपने हितों के लिए एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। शायद ऐसी ही है दुनिया।

इश्किया एक स्तर पर कृष्णा की भी कहानी है। पति ने उसे छोड़ दिया है। शरीर, मन और जीवन में भूखी कृष्णा को खालूजान और बब्बन के स्वार्थ में भी स्नेह की ऊर्जा मिलती है। खालूजान और बब्बन ही उस पर आसक्त नहीं होते। कृष्णा भी शारीरिक संबंधों का बराबर आनंद लेती है। यह नए किस्म का चरित्रांकन है, जहां औरत पवित्रता की मू‌िर्त्त भर नहीं है। फिल्म के क्लाइमेक्स में पता चलता है कि अपने पति से बिफरी और नाराज कृष्णा घर में शरण लिए खालूजान और बब्बन का इस्तेमाल करती है और अपने पति को लौटने के लिए मजबूर करती है। आखिरी दृश्य में वह झुलस गए पति पर तरस भी नहीं खाती। वह अपनी आजाद जिंदगी के राह पर मनपसंद व्यक्तियों के साथ निकल जाती है।

अभिषेक चौबे और विशाल भारद्वाज ने फिल्म की चुस्त पटकथा में रोमांच बनाए रखा है। इस फिल्म की विशेषता है कि अगले दृश्यों और प्रसंगों का अनुमान नहीं हो पाता। चूंकि अनजाने किरदार हैं, इसलिए उनकी मनोदशा से दर्शक भी अनजान हैं। संवादों में धार और चुटीलापन है। साथ ही इन संवादों में परिवेश की सामाजिक और राजनीतिकअर्थछवियां हैं। दो व्यक्तियों के बीच जमीन-आसमान का फर्क हम सभी समझते हैं, लेकिन उनके बीच हिंदू-मुसलमान का फर्क बताना नया मुहावरा है। फिल्म के कई दृश्य संवादों और अभिनय से जानदार बन गए हैं। नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन की तिगड़ी नहीं होती तो फिल्म का क्या होता? अच्छी फिल्मों की एक पहचान यह भी है कि उनके किरदारों में दूसरे कलाकारों की कल्पना नहीं की जा सके। कृष्णा की भूमिका विद्या के अलावा कौन कर सकता है?

नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन ने मिल कर फिल्म को प्रभावशाली बना दिया है। विद्या सच कहती हैं कि वह कैमरे के आगे बेशर्म हो जाती हैं। उफ्फ, कैमरे से ऐसी अंतरंगता अब दुर्लभ हो गई है। विद्या बालन ने बाडी लैंग्वेज और चेहरे के भावों से दृश्यों को सेक्सी बना दिया है। निर्देशक को अंग प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी है। निश्चित ही ऐसे दृश्यों में साथी कलाकारों की ईमानदार सहभागिता की दरकार रहती है। अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह ने भरपूर साथ दिया है। उन दोनों की सहजता और स्वाभाविकता भी उल्लेखनीय हैं। उनके नामों के साथ कई दृश्यों के उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनमें उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया है।

विशाल की एक खासियत को अभिषेक चौबे ने भी अपनाया है। सहयोगी चरित्रों के लिए परिचित कलाकारों को नहीं चुना गया है। इस फिल्म में मुश्ताक, विद्याधर वर्मा और नंदू के किरदारों को निभा रहे कलाकारों को हम पहले से नहीं जानते, इसलिए वे अधिक प्रभावशाली लगते और दिखते हैं। सलमान शाहिद, आदिल और आलोक कुमार की यही खूबी है।

विशाल भारद्वाज और गुलजार की जोड़ी हो तो गीत-संगीत लोकप्रिय होने के साथ फिल्म के लिए उपयोगी और सुंदर भी होते हैं। इश्किया में अभिषेक चौबे ने भी विशाल की तरह पुरानी फिल्मों के चुनिंदा गीतों का सही दृश्यों में उचित उपयोग किया है। इश्किया लिरिकल थ्रिलर है।

पति पत्नी और वो

पति पत्नी और वो
पत्नी (पति से)- मुझे भिखारियों से नफरत है!
पति (पत्नी से)- क्यों??
पत्नी - कल मैंने एक भिखारी को खाना दिया था, आज उस भिखारी ने मुझे एक किताब उपहार में दी है खाना कैसे बनाए!!

पत्नी (पति से)- आप मुझे मेरा नाम लेकर मत पुकारा करें, इससे बच्चे भी मेरा नाम लेकर पुकारते हैं।
पति (गुस्से से)- तो क्या मैं भी तुम्हें बच्चों की तरह मम्मी कहकर पुकारू?

पति- इस जीवन से मैं तंग आ गया हूं! हे प्रभु मुझे उठा ले।
पत्नी - नही भगवान, मेरे पति से पहले मुझे उठा ले।
पति- हे प्रभु, मैं अब अपनी मर्जी वापिस लेता हूं, तू इसकी ही सुन ले।


पत्नी (पति से)- चलो ना आज बाहर चलते हैं, कार मैं चलाऊंगी।
पति- मतलब जाएंगे कार में और आएंगे अखबार में..


पत्नी (पति से)- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।
पति (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।


पति (पत्नी से)- मेरा फोन आये तो कहना मैं घर पर नहीं हूं।
अचानक फोन की घंटी बजी..
पत्नी ने फोन उठाकर कहा- वो अभी घर पर हैं।
पत्नी के फोन रखते ही पति खीजते हुए बोला- तुम्हें मैंने मना किया था फिर भी क्यों बताया कि मैं घर पर हूं?
पत्नी- आपने अपने फोन के लिए मना किया था, वह फोन तो मेरे लिए आया था।


एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर चोरी हो रही थी..
पत्नी- उठो जी घर में चोरी हो रही है।
पुलिस इंस्पेक्टर- मुझे सोने दे, मैं इस टाइम डयूटी पर नही हूं!


एक नवविवाहिता पत्नी (पति से)- तुमने अपने दोस्तों से यह क्यों कहा कि मुझे बहुत अच्छा खाना बनाना आता है।
पति- अब तुमसे शादी करने की कोई वजह तो मुझे बतानी ही थी।


पति (पत्नी से)- तुमसे शादी करके मुझे एक बहुत बड़ा फायदा हुआ है!
पत्नी (पति से)- वो क्या?
पति- मुझे मेरे गुनाहों की सजा जीते जी ही मिल गयी!


पत्नी (पति से) - आप यहां पर क्यों खड़े हुए हो?
पति (पत्नी से)- मैं शेर का शिकार करने जा रहा हूं।
पत्नी- तो जाओ न खड़े क्यों हो?
पति- कैसे जाऊं बाहर कुत्ता खड़ा हुआ है।

पागलखाने का डॉक्टर अपनी पत्नी को कहता है- पागलों के साथ रह-रहकर मैं आधा पागल तो हो ही गया हूं।
पत्नी- कभी कोई काम पूरा भी कर लिया करो।

पत्नी (पति से)- आप बहुत मोटे हो गये हो।
पति (पत्नी से)- तुम भी तो कितनी मोटी हो गयी हो।
पत्नी- मैं तो मां बनने वाली हूं।
पति- तो मैं भी तो बाप बनने वाला हूं।

पत्नी (पति से)- आज मेरा नॉनवेज खाने का मन हो रहा है।
पति (पत्नी से)- मैं अभी बाजार से तुम्हारे लिए मछली लेकर आता हूं।
पत्नी- रहने दो उसमें कांटे होते हैं।
पति- कोई बात नहीं तुम चप्पल पहनकर खा लेना।

रजनी (राजन से)- तुम्हें मेरी कौन सी बात सबसे अच्छी लगती है, मेरी खूबसूरती या मेरी समझदारी।
राजन- मुझे तुम्हारी ये मजाक करने की आदत बहुत अच्छी लगती है।

बुधवार, 27 जनवरी 2010

सौंदर्य और स्वास्थ्य

रह न जाए कोई कमी
सुशीला परगनिहा
खूबसूरत दिखना हर किसी की प्राथमिकता नहीं हो सकती। अगर आपके पास हर दिन अच्छी तरह तैयार होने का समय नहीं होता है तो कम से कम इतना तो आप तय कर सकती हैं, कोई ऐसी कमी न रह जाए जो आपके पूरे रूप को खराब कर दे। मसलन जिस दिन आप तैयार हों, मेकअप तो कर लें लेकिन नाखूनों पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश हटाना भूल जाएं। ऐसी ही छोटी-छोटी गलतियां हम जाने-अनजाने कर जाते हैं जो हमारे सौंदर्य पर ग्रहण लगा देती हैं। सौंदर्य विशेषज्ञा विद्या टिकारी के अनुसार मेकअप का बेसिक तरीका हर किसी के लिए जानना जरूरी है। यहां वह आपको ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें बता रही हैं जिन्हें अपनाकर आप हमेशा स्मार्ट और सुंदर दिख सकती हैं।
उखडी हुई नेलपॉलिश
नाखून पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश यह दर्शाती है, कि आप अपने सौंदर्य के प्रति जरा भी सचेत नहीं है। या तो आप नई नेल पॉलिश लगाएं या फिर रिमूवर से नाखून साफ करके यूं ही छोड दें। लेकिन आधी-अधूरी उखडी हुई नेलपॉलिश आपकी छवि को खराब कर देती है। अगर आपका नेल रिमूवर खत्म हो गया है, तो कोई भी डार्क शेड्स की नेलपॉलिश लगाने से पहले रिमूवर की बॉटल जरूर खरीद लें। लगभग 3-4 दिन में आपकी नेलपॉलिश उखडने लगती है। ऐसे में या तो आप नेलपॉलिश का दूसरा कोट उसके ऊपर लगाएं या रिमूवर से साफ करके नई नेल पॉलिश लगाएं। अगर आपके पास बार-बार नेलपॉलिश हटाकर दूसरी लगाने का समय नहीं होता है, या आप इस ओर ध्यान नहीं दे पाती हैं, तो बेहतर होगा कि आप हमेशा लाइट शेड वाली नेल पॉलिश चुनें। ताकि उखडने पर लोगों का ध्यान उस तरफ न जाए।
सफेद बाल
अगर आपके बाल सफेद होना शुरू हो गए हैं और आप अपने बालों में नियमित रूप से हेयर कलर का प्रयोग करती हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि हेयर कलर आपके बालों की जडों के पास जरूर लगा हो। वरना सिर की त्वचा के पास दिखने वाले सफेद बाल आपके लुक को खराब कर देते हैं। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखें कि बालों की जडों के पास हमेशा गहरा काला रंग न लगाएं। ताकि अगर कभी हेयर कलर कराने में देर हो जाए तो वहां आए सफेद बाल बहुत अधिक खराब न लगें। बेहतर होगा कि आप दो शेड के हेयर कलर चुनें। ताकि यह स्ट्रीक्ड इफेक्ट दे। यह विकल्प अपने बालों के प्राकृतिक रंग से मेल खाता जेट ब्लैक कलर चुनने से अधिक बेहतर होगा। बाजार में तमाम शेड्स के हेयर कलर उपलब्ध हैं, अपनी स्किन टोन से मेल खाता कोई भी कलर आप चुन सकती हैं। यह सफेद बाल नजर आने से बेहतर होगा। ब्राउन और माहोगनी शेड्स आसानी से चुनें जा सकते हैं। कभी माहोगनी और कभी ब्राउन कलर कराएं। ताकि ग्रे हेयर लोगों को नजर न आएं।
रूखे, बिखरे बाल
रूखे, बेजान व बिखरे बालों की देखभाल के तमाम उपाय बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन आप तब भी उन्हें नहीं अपनाती तो यह आपकी गलती है। बाल हर स्त्री की क्राउनिंग ग्लोरी होते हैं। कम से कम इन्हें सही तो रखें। ऐसे बालों को कभी भी खोलकर न रखें। अत्यधिक रूखे बालों को सही अवस्था में करने के लिए थोडे से पानी में 3-4 बूंद तेल मिलाकर बालों में लगाएं और फिर पोनी बांध लें। इससे वे संवरे और साफ नजर आएंगे। इसी तरह अगर आपके बाल लंबे, घुंघराले व नीचे से पतले हैं तो सिरों को बिना कर्ल किए उन्हें खुला न छोडें। यह बालों को सिरे से एक सपोर्ट देता है।
फैली हुई लिपस्टिक
फैली हुई लिपस्टिक आपके लुक को खराब तो करती ही है, आप कितनी लापरवाह हैं, यह भी दर्शाती है। अगर आपके होंठों में लिपस्टिक अधिक देर तक नहीं टिक पाती, या आप लिपस्टिक खा जाती हैं तो हमेशा क्रीमी मैट वाली लाइट शेड की लिपस्टिक चुनें। लगाने से पहले होंठों पर हलका सा फाउंडेशन लगाएं। मैट लिप लाइनर से आउटलाइन बनाएं फिर होंठों को भरें।
बिगडी हुई आइब्रोज
शार्प आईब्रोज का असर जबरदस्त होता है। अगर आपकी ग्रोथ अच्छी है तो नियमित रूप से बनवाना बेहद आवश्यक है। आप कितना ही अच्छा मेकअप कर लें, अगर आइब्रो सही शेप में नहीं हैं तो अच्छा नहीं लगेगा।
अपर लिप
अगर आपके अपर लिप पर काफी बाल हैं और थ्रेडिंग कराने के बाद उस भाग पर हरापन या लाली रहती है तो कंसीलर से उसे छिपाना न भूलें। अगर आपके बाल अत्यधिक हैं तो अपर लिप एरिया में थ्रेडिंग, वैक्स या ब्लीच जरूर कराएं। आप चाहें तो इसे लेजर के जरिये पर्मानेंट हटा सकती हैं। छोटी-छोटी गलतियों से आपका सौंदर्य प्रभावित हो सकता है, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। खुद में सुंदरता का एहसास करें और अपने सौंदर्य को संवारने का प्रयास करें।

साहित्यिक कृतियां

वापसी
-अरुण कुमार बंछोर
लखनऊ से मन खिन्न हो गया था। उसी दिन मैंने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं में जाने की तैयारी कर रहे मित्र उन्मेष को कॉल किया, अपनी जरूरी किताबें पैक की और एक ब्रीफकेस में कपडे रखकर स्टेशन आ गया। ट्रेन दो घंटा लेट थी। समय-सीमा से दो घंटे विलम्ब से छूटने की घोषणा हुई।
कमरे पर वापस जाने की इच्छा न थी। आदतन एक बुक स्टाल से हिन्दी मासिक पत्रिका लेकर पढने लगा। पढते-पढते एक कविता पर आकर ठहर गया। एक बार पढी, दो बार पढी और..! कवयित्री कुसुमांजलि, हां यही नाम था जिन्होंने वह कविता लिखी थी। भाव मुझे आज भी याद हैं- कि शहर बदलने से केवल शहर बदलता है, उससे जुडी स्मृतियां, वफाएं या कुछेक गिनी-चुनी सूरतें नहीं।
जीवन अनवरत् प्रवाहमान है। गतिमान होने के लिए जिंदा रहना होता है और जिंदा रहने के लिए किसी का साथ होना। साथ होने का मतलब है कि किसी का अपना होना। कविता यहीं पूरी होती थी। पता और मोबाइल नंबर भी था। कॉल करने न करने के अन्त‌र्द्वन्द्व से उबरते हुए आखिर में मैंने उनका नम्बर मिलाया और हेलो कहते ही उनकी बिना सुने, कविता में मुझे क्या अच्छा लगा, क्या बहुत अच्छा लगा, सब कुछ एक ही सांस में कहता चला गया।

बाद में हुई बातचीत में वह बहुत खुश और रोमांचित लगी। विचारों से स्वच्छ और उन्मुक्त भी। मुझे याद है बातचीत का क्रम टूटते-टूटते धीरे से हंसते हुए उन्होंने कहा था- आपकी प्रतिक्रिया और भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया आपकी बातें तो मुग्धकारी हैं। उस दिन की बातचीत का सिलसिला बहुत लम्बा होता गया। गाडी जाने कब आई और निकल गई, लेकिन जाने क्यों उस दिन ट्रेन छूटने का कोई अफसोस नहीं हुआ। हां इतना जरूर महसूस किया कि जिन कारणों से शहर छूट रहा था, उन्हीं कारणों से मैं शहर की ओर लौट रहा था..।


ससुराल की इज्जत
विदाई के समय मां ने दीक्षा को समझाया- बेटी अपने ससुराल वालों का ख्याल रखना। आज से वही तेरा घर है। हर सुख-दु:ख में उनका साथ देना। उनकी इज्जत ही तेरी इज्जत है। मां के बताए संस्कारों और अपने मधुर स्वभाव से दीक्षा ने ससुराल में सभी का दिल जीत लिया।
हंसते-गाते कब एक वर्ष बीत गया पता ही न चला। लेकिन अब उसके ससुराल वाले घोर चिंता में थे। उसकी ननद की शादी होनी थी। रुपयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। दीक्षा भी बहुत परेशान थी।
इसी बीच वह अपने मायके आई और वहां रखे हुए अपने गहने ले जाने लगी तो उसकी मां ने कहा- बेटी दीक्षा, ननद की शादी के लिए तू अपने गहने ले जा रही है यह तू क्या कर रही है? अपने पैरों पर खुद कुल्हाडी..।
मां की बात बीच में ही रोकते हुए वह बोली- मां यह आप क्या कह रही हो! आप ही ने तो मुझे बताया है कि ससुराल की इज्जत ही मेरी इज्जत है। मां, यह गहने मेरी ननद से बढकर नहीं हैं। अपनी ननद की शादी के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करूंगी। और वह गहने लेकर ससुराल आ गई।

बच्चे
माँ -आखिर इसका क्या कारण है??
चिंटू- जी, कारण तो पापा ही बता सकते है।
चिंटू (मां से)- मां मेरी क्या कीमत है।
मां (चिंटू से)- बेटा तू तो लाखों का है।
चिंटू- तो लाखों में से 5 रुपये देना, मुझे आइसक्रीम खानी है।


चिंटू स्कूल आता है एक काला और एक सफेद जूता पहनकर।
टीचर (चिंटू से)- घर जाओ और जूते बदलकर आओ...
चिंटू- टीचर कोई फायदा नही वहा भी एक काला और एक सफेद जूता ही रखा है...


मां (चिंटू से)- तुम बल्ब पर अपने पापा का नाम क्यों लिख रहे हो?
चिंटू (मां से)- मैं पापा का नाम रोशन करना चाहता हूं।

अध्यापक (चिंटू से)- दो ऐसी चीजों के नाम बताओ जिन्हें नाश्ते में नही खा सकते।
चिंटू- जी लंच और डिनर।

मम्मी- पिंकी क्यों रो रही हो?
पिंकी- टीचर ने मारा।
मम्मी- क्यों?
पिंकी- मैंने उनको मुर्गी कहा क्योंकि उन्होंने मुझे टेस्ट में अंडा दिया था।


एक दस साल का बच्चा बहुत ध्यान से एक किताब पढ़ रहा था, जिसका शीर्षक था बच्चों का पालन पोषण कैसे करें।
मां - तुम ये किताब क्यों पढ़ रहे हो।
बच्चा- मैं ये देखना चाहता हूं कि मेरा पालन पोषण ठीक तरह से हो रहा है या नही।

चिंटू - मम्मी इस बार हम सारे पटाखे इस दुकान से ही लेंगे।
मम्मी- लेकिन बेटा ये तो ग‌र्ल्स हॉस्टल है।
चिंटू-लेकिन पापा तो कहते हैं कि सारी फुलझडि़या यही रहती है।


अध्यापक (छात्र से)- तुम स्कूल क्यों आते हो?
छात्र (अध्यापक से)- विद्या के लिए सर!
अध्यापक- फिर तुम कक्षा में सो क्यों रहे हो?
छात्र- आज विद्या नही आयी है इसलिए सर!


एक छोटा बच्चा बहुत देर से घर के बाहर खड़ा दरवाजे की घंटी बजाने की कोशिश कर रहा था। तो एक वृद्ध व्यक्ति आया और बोला- क्या कर रहे हो बेटा?
बच्चा- अंकल, ये घंटी बजाना चाहता हूं।
वृद्ध व्यक्ति (घंटी बजाकर)- ये तो बज गयी अब क्या है।
बच्चा- अब भागो!

सोमवार, 25 जनवरी 2010

बच्चे

चिंटू - मां, पापा बहुत शरीफ हैं।
मां- वो कैसे बेटा।
चिंटू - पापा जब भी किसी लड़की को देखते हैं तो अपनी एक आंख बंद कर लेते हैं।

पिंटू (चिंटू से)- ये कैसे पता चलेगा कि सामने जो जानवर है वह बकरा है या बकरी।
चिंटू (पिंटू से)- सिंपल है, उसको पत्थर मारना यदि वह भागा तो बकरा और भागी तो बकरी।

बच्चा अपनी दादी से, दादी आपने कौन-कौन से मुल्क घूमे हैं?
दी- बेटा पाकिस्तान, हिन्दुस्तान और अफगानिस्तान
बच्चा- अब कौन सा घूमेंगी..
पीछे से दादा बोले- कब्रिस्तान

साहित्यिक कृतियां
चिंटू - मां एक गिलास पानी देना।
मां- खुद ले लो..
चिंटू- प्लीज दे दो..
मां- अब मांगा तो थप्पड़ दूंगी।
चिंटू- जब थप्पड़ देने आओगी तो पानी लेते आना।

अध्यापक (चिंटू से)- बिजली कहां से आती है?
चिंटू (अध्यापक से)- मामा के घर से
अध्यापक- वो कैसे?
चिंटू- क्योंकि जब भी बिजली जाती है पापा कहते है सालों ने फिर काट दी!

सबसे महान कौन?


एक बार देवर्षि नारद के मन में यह जानने की इच्छा हुई कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे महान कौन है? वे वैकुंठ लोक गए। उन्होंने वहां प्रभु से प्रश्न किया, हे प्रभु! इस पृथ्वी पर सबसे महान कौन हैं? प्रभु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, नारदजी! सबसे बडी तो यह पृथ्वी दिखती है। इसलिए हम पृथ्वी को इसकी संज्ञा दे सकते हैं। दूसरी ओर, उसे समुद्र ने घेर रखा है। इस कारण समुद्र उससे भी बडा सिद्ध हुआ। एक बार इस समुद्र को भी अगस्त मुनि ने पी लिया था। इस कारण समुद्र कैसे बडा हो सकता है? ऐसी स्थिति में अगस्त्य मुनि सबसे बडे हुए। लेकिन उनका वास कहां है? अनंत आकाश के एक सीमित भाग में, मात्र बिंदु के समान वे एक जुगनू की तरह चमक रहे हैं। इस प्रकार आकाश उनसे बडा साबित हुआ। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने इस आकाश को भी एक पग में ही नाप लिया था। इस तरह विष्णु ही सबसे महान सिद्ध होते हैं। फिर भी नारद विष्णु भी सर्वाधिक महान नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि वे हमेशा आपके हृदय में अंगुठे इतनी जगह में ही विराजते हैं। इसलिए सबसे महान आप सिद्ध हुए।

जी सर
साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- कल जो नया बाबू आया है, उसे मेरे पास भेजो। जी सर। थोडी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। क्या नाम है? संदीप। घर कहां है? प्रतापगढ। क्यों आज मंगलवार है? नहीं सर, आज बुधवार है। साहब अभी तक फाइल में ही नजरें गडाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। तुम मुझसे ज्यादा जानते हो? नहीं सर। मैंने आज सुबह अखबार में पढा था। अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते हैं। लेकिन सर, मेरी कलाई घडी में भी आज बुधवार है। गेट आउट फ्राम हियर। संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बडे बाबू मनोहरलाल को बुलवाया। बडे बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- क्यों बडे बाबू, आज मंगलवार है? जी सर। गुड, नाउ यू कैन गो।


अपना घर
इस क्षमा को अचानक क्या हो गया.. चेहरे पर उदासी क्यों? थोडी देर पहले तो बडी खुश थी अपने नये घर में आकर। सात वर्षीया बेटी को उदास देखकर मि. शर्मा पत्नी से बोले- पूछो तो जरा..।
अपने पुराने पडोसी दोस्तों को याद करके दु:खी हो रही है शायद। मिसेज शर्मा मुस्कराई। यहां भी कुछ दिनों में नये दोस्त बन जायेंगे। बन्टी ने तो आज ही दो दोस्त बना लिये। देखो- लॉन में कैसे उछल-कूद रहा है उनके साथ। इसे भी लॉन में भेज दो।
मिसेज शर्मा ने बेटी को पुकार कर कहा- अकेली क्यों बैठी हो बेटी बाहर बन्टी भइया के साथ खेलो न। बेटी बाहर न गयी। गुमसुम-सी पास आकर बोली- एक बात पूछूं मम्मी?
हां-हां, पूछो बेटी। यह घर किसका है? अपना है बेटी.. अपना नया घर।
मेरा भी? हां, हम सब का घर। मि. शर्मा सहर्ष बीच में बोल पडे।
बेटी कुछ पल उनका मुख ताकती रही। फिर पूछा- तो फिर पापा, गेट पर लगे पत्थर में मेरा नाम क्यों नहीं? बेटी के इस प्रश्न का जवाब किसी के पास न था। मि. शर्मा की आंखों में गेट पर लगा पत्थर नाच उठा।
काले चमचमाते पत्थर पर सबसे ऊपर उनका स्वयं का नाम अंकित था, फिर पत्नी का और अन्त में बेटे बन्टी का।

रविवार, 24 जनवरी 2010

संता और बंता

युवा दोस्त
शिब्बू बंछोर
रमन- देख यार! जब मैं रोता हूँ, हँसता हूँ, दुःखी होता हूँ, गुस्सा करता हूँ तो किसी को दिखाई नहीं देता। लेकिन अगर...
चमन- अगर क्या? बोल न मेरे यार....।
रमन- लेकिन अगर किसी लड़की के साथ घूमने जाऊँ तो सारी दुनिया देख लेती है।

बॉस (संता से)- एक अच्छा शीशा लेकर आओ जिसमें मेरा चेहरा दिखायी दे।
संता- मैं सब दुकानों पर देख आया सब में मेरा चेहरा ही दिख रहा था।

बंता (संता से)- आओ जी चैस खेलें।
संता (बंता से)- तू चल मैं स्पोर्टस शूज पहनकर आता हूं।

संता (बंता से)- यार एक लड़की मुझे हंस कर देख रही है।
बंता (संता से)- अबे ध्यान से देख, हंस के देख रही है या देख कर हंस रही है।
संता बाइक से जा रहा था, लड़की को देख कर बाइक से गिर गया..
लड़की- ओह माई गॉड लगी तो नही?
संता- ओह सोणयों हम तो ऐसे ही बाइक से उतरते हैं।

संता [बंता से]- बंता ये बताओ कि एप्पल और ऑरेंज में क्या अंतर होता है।
बंता [संता से]- आसान है, ऑरेंज का कलर ऑरेंज होता है जबकि एप्पल का कलर एप्पल नहीं होता।

संता का गधा खो गया तो संता भगवान की प्रार्थना कर शुक्रिया अदा करने लगा।
बंता ने पूछा- तुम्हारा गधा खो गया और तुम भगवान को धन्यवाद दे रहे हो।
संता- मैं धन्यवाद इसलिए दे रहा हूं की अच्छा हुआ मैं उस पर नही बैठा हुआ था नही तो मैं भी खो जाता।

संता पेड़ के ऊपर उलटा लटका हुआ था।
बंता- तू पेड़ पर क्यों लटका है।
संता- सर दर्द की गोली खायी थी, कहीं पेट में न चली जाये, इसलिये..

संता (बंता से)- ओए बंते, तू दरवाजे पर इतनी हड़बड़ी में पेंट क्यों पोत रहा है?
बंता (संता से)- वो क्या है न कि पेंट कम है और मुझे डर है कि कही खत्म न हो जाए।

एक सरदार रेल की पटरी पर सो गया, एक आदमी ने कहा क्या कर रहे हो? ट्रेन आएगी तो मर जाओगे!
संता- मेरे ऊपर से जहाज गुजर गया तो कुछ नही हुआ, ट्रेन क्या चीज है?

संता (बंता से)- ओए अगर नींद न आये तो क्या किया जाये?
बंता (संता से)- नींद का इंतजार करने से अच्छा है कि बंदा सो ही जाये।

शनिवार, 23 जनवरी 2010

फिर सुबह होगी


ओमप्रकाश बंछोर
कल आश्रय के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री आने वाले हैं। आश्रय विकलांगों तथा असाध्य रोगों से पीडित बच्चों को आश्रय देने वाला केंद्र है। जिसका निर्माण सुनीति के अथक प्रयासों से संभव हुआ है।

उद्घाटन समारोह की सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं। दिनभर की भागदौड के बाद सुनीति शाम को घर आई है लेकिन थकान के बजाय उसके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि के गहरे भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। खाना खाकर सुनीति अपने कमरे में बिस्तर पर लेट जाती है लेकिन दिनभर अत्यधिक व्यस्त रहने के बाद भी उसे अभी नींद नहीं आ रही है। आज की यह आत्मसंतुष्टि मात्र उसके चेहरे को ही नहीं उसके अंतर को भी प्रकाशित कर रही है और अंतर का यह प्रकाशमय होना वह बखूबी महसूस भी कर रही है। आज जीवन में पहली बार सुनीति को ऐसा लग रहा है कि यह प्रकाश जीवनभर उसके साथ रहा तो अंधकार को धीरे-धीरे मिटा ही देगा। आज सुनीति को जो संतुष्टि मिल रही है उसके पीछे एक दु:ख भरा अतीत रहा है।
क्या कुछ नहीं था सुनीति के पास! रूप, रंग, गुण सभी तो था उसके पास। पापा पी.के. सिन्हा डिग्री कालेज में अर्थशास्त्र के रीडर, मां एक कुशल गृहणी तथा दो छोटे भाई संजय और अजय। संजय की उम्र चौदह साल जबकि अजय की उम्र दस साल थी। ऐसा नहीं कि इस समय वह पूर्णरूप से चिन्तामुक्त या प्रसन्न हो। संजय और अजय दोनों ही विकलांगों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। डाक्टरों ने भी यह स्पष्ट बता दिया था कि पन्द्रह वर्ष की उम्र के बाद दोनों का जिन्दा रह पाना मुश्किल है लेकिन फिर भी सुनीति को भगवान पर विश्वास था। उसे आशा थी कि एक न एक दिन उसके दोनों भाई बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। पैदाइश के समय हालांकि संजय और अजय की हालत बेहतर थी लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढने लगी वैसे-वैसे ही उन दोनों के हाथ-पैर सूखने लगे और शरीर के कुछ हिस्सों में ज्यादा मांस एकत्रित होने लगा। दरअसल यह स्यूडो मसक्यूलर हाइपरट्रोफी नामक एक अनुवांशिक बीमारी थी।
प्रो. सिन्हा और श्रीमती सिन्हा संजय और अजय के स्वास्थ्य तथा सुनीति की शादी को लेकर काफी चिन्तित रहते। सुनीति की शादी तय होने में वही दिक्कत आडे आ रही थी जिसकी सुनीति के पापा-मम्मी को आशंका थी। चूंकि सुनीति की मम्मी उस अनुवांशिक बीमारी की वाहक थी जिससे संजय और अजय पीडित थे। इस तरह सुनीति भी इसी रोग की वाहक थी। सुनीति के भविष्य में जो संतान होती उसमें लडके तो संजय और अजय की तरह ही पीडित होंगे और लडकी पुन: इस रोग की वाहक होगी।
आखिरकार बहुत कोशिशों के बाद सिन्हा साहब को सुनीति के लिए एक अच्छा वर मिल ही गया। डॉ. सुशील स्थानीय डिग्री कालेज में लेक्चरार था। जैसा नाम वैसा ही व्यक्तित्व भी। सुशील एक शिक्षक होने के साथ-साथ एक समाजसेवी भी था। सिन्हा साहब को इस समय सुशील में ही साक्षात ईश्वर के दर्शन हो रहे थे। होते भी क्यों न, सुनीति के बारे में सब कुछ जानने के बाद भी वह उससे शादी के लिए तैयार जो था। हालांकि सुशील के माता-पिता पहले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन सुशील की इच्छा के आगे उन्हें झुकना ही पडा।

सिन्हा साहब ने बडी धूमधाम से सुनीति का विवाह सुशील के साथ कर दिया। अनुवांशिक रोग की वाहक सुनीति का विवाह हो जाने से चिंताग्रस्त सिन्हा साहब को कुछ संतुष्टि तो अवश्य मिली लेकिन यह संतुष्टि अधिक समय तक टिक न सकी। सुनीति के विवाह के कुछ दिनों बाद ही संजय की हालत बिगडने लगी। डाक्टर तो पहले ही जवाब दे चुके थे। अंतत: बडी ही दयनीय अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई। अब तक सिन्हा साहब और उनकी पत्नी ईश्वर के किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में थे। लेकिन संजय की मृत्यु से उनका यह विश्वास टूट चुका था। सिन्हा साहब और उनकी पत्नी संजय की मौत से पहले ही दु:खी थे. अजय पर मंडराती मौत की काली छाया देखकर उनका दु:ख और बढ गया।
संजय की मौत को लगभग एक साल ही हुआ था कि अजय की हालत भी दिन पर दिन बिगडने लगी। सिन्हा साहब ने कई डाक्टर, वैद्य और हकीमों को दिखाया। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में जाकर लाख मन्नतें मांगी, लेकिन सब बेकार ही सिद्ध हुई और अन्तत: निरीह जिंदगी बिता रहे अजय ने भी दम तोड दिया। एक दु:ख के बाद दूसरे दु:ख से सिन्हा परिवार टूट चुका था।
सिन्हा साहब को एक दिन अनायास ही आशा की एक किरण दिखाई दी जिसके सहारे वे और उनकी पत्नी अपनी जिंदगी काट सकते थे। सिन्हा साहब ने सोचा, हम सभी को लडके ही घर का चिराग दिखाई देते हैं लडकियां नहीं। इंसान लडकों के सहारे ही अपनी जिंदगी का सफर तय करने के सपने देखता है। मगर कितने माता-पिता ऐसे हैं जो अपने लडकों के सहारे अपनी जिंदगी काटते होंगे। अब सिन्हा साहब को सुनीति और सुशील दो-दो चिराग दिखाई दे रहे थे जिनके प्रकाश में वह अपने शेष जीवन का सफर तय कर सकते थे।

उधर अब सुनीति के पैर भारी हो चले थे। आखिरकार उसने एक बहुत ही सुंदर बेटे को जन्म दिया। सारे घर में खुशी की लहर दौड गई। सभी इस प्यारे से बच्चे को छोटू कहकर बुलाने लगे। सुशील भी छोटू को बहुत प्यार करता था। लेकिन जल्दी ही इस खुशी के बीच छोटू के अनुवांशिक रोग से पीडित होने की आशंका भी सिर उठाने लगी। चूंकि छोटू अभी तक बिल्कुल ठीक था इसलिए आशा बंधी कि शायद छोटू अनुवांशिक रोग से पीडित नहीं हो। लेकिन वह जैसे-जैसे बडा होने लगा उसके भी हाथ-पैर सूखने लगे और शरीर के कुछ हिस्सों में ज्यादा मांस एकत्रित होने लगा। जब वह छह वर्ष का हुआ तो हाल यह था कि अपने आप खाना भी नहीं खा सकता था, उठ-बैठ भी नहीं सकता था। जब कभी सुनीति की अनुपस्थिति में सुशील को छोटू का मल-मूत्र साफ करना पडता तो वह झल्ला उठता। वह धीरे-धीरे छोटू से घृणा करने लगा।

सुनीति भी सुशील के इस व्यवहार से असमंजस में थी। वह सोच रही थी कि समाज-सुधार और आदर्शवाद की बातें करने वाले सुशील को यह क्या हो गया है। आखिरकार उसके संबंधों की खटास जल्दी ही कडवाहट में बदल गई। सुनीति के सास-ससुर का व्यवहार भी वैसा ही था। इस तरह सुशील के अन्तर में काफी समय से सुलग रही तलाक की इच्छा ने आखिरकार जोर पकड ही लिया। एक दिन उसने स्पष्ट रूप से तलाक की बात कह दी। यह सुनते ही सुनीति के पैरों तले की तो जैसे जमीन ही खिसक गई। इस समय सुनीति को एक शिक्षक एवं समाजसेवी के चोले में सुशील का वास्तविक रूप स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उसे लगा कि नारी उत्थान की बात करने वाला समाज आज भी नारी को भोग्या के अतिरिक्त कुछ नहीं समझता। अंतत: सुनीति ने तलाक के कागजों पर अपने हस्ताक्षर कर ही दिए और छोटू को साथ लेकर अपने मम्मी- पापा के पास आ गई।
ऐसे समय में मम्मी-पापा भी भाग्य का लिखा झेलने के अलावा क्या कर सकते थे? छोटू अब नौ वर्ष का हो चुका था। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ रही थी वैसे-वैसे उसकी तबियत भी लगातार बिगड रही थी। अचानक एक दिन छोटू की तबियत बहुत बिगड गई और आखिरकार संजय और अजय की तरह वह भी चल बसा। सुनीति और उसके मम्मी-पापा को लगा कि जैसे ईश्वर ने दु:खों को झेलने के लिए ही उन्हें दुनिया में भेजा है। उन्हें उस समय चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था। वे टूट तो चुके थे, लेकिन कभी-कभी अत्यधिक दु:ख भी इंसान को और मजबूत बना देता है। ढलती उम्र और दु:खों के कारण सिन्हा साहब हार मान चुके थे लेकिन सुनीति इतनी कमजोर नहीं थी। वह तपकर वह कुन्दन बन चुकी थी। जैसे छोटू के बिछोह ने उसे हीरा बना दिया हो। इसी दीप्ति से उसका अंत:करण प्रकाशित हुआ। उसे लगा कि जैसे आज तक वह खोखले और आडम्बरपूर्ण समाज में जी रही थी।
वह उठ खडी हुई और उसने निश्चय किया कि वह विकलांगों एवं असाध्य रोगों से पीडित बच्चों के लिए एक ऐसे केंद्र की स्थापना कराएगी जिसमें उनके लालन- पोषण एवं शिक्षा का सम्पूर्ण प्रबंध होगा। वह इस मुहिम में जी जान से जुट गई। सिन्हा साहब और उनकी पत्नी बेटी के इस रूप को देखकर गौरवान्वित हो गए। उन्हें लगा कि जैसे उसकी जिंदगी एक नए अर्थ के साथ शुरू हुई है।
अनायास ही एक स्पर्श ने सुनीति को अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में ला खडा किया। सुनीति ने देखा तो सामने खडे पापा का हाथ उसके सिर पर था और वे कह रहे थे- बेटी कहां खो गई हो! रात बहुत हो चुकी है अब सो जाओ। कल फिर सवेरे ही आश्रय का उद्घाटन है और सारी तैयारी तुम्हें ही करनी है।

खान दीवानी करीना?


रोहित बंछोर
करीना कपूर की रील लाइफ की कहानी हो या रीयल लाइफ की.., वह खान के साथ शुरू होती है और खान पर ही खत्म हो जाती है। यदि कहें कि करीना खान दीवानी हैं, तो गलत नहीं होगा। करीना की पर्सनल लाइफ के हीरो भी खान हैं, तो प्रोफेशनल लाइफ के हीरो भी खान ही हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं सैफ अली खान और शाहरुख खान की। सैफ के हाथों में करीना अपने जीवन की बागडोर सौंपने को तैयार हैं, तो शाहरुख के भरोसे वे अपनी फिल्मी करियर की नैया आगे बढ़ाना चाहती हैं। शाहरुख ने भी करीना को निराश नहीं किया है। अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म रा1 की नायिका के लिए उन्होंने करीना का चुनाव किया है। शाहरुख का साथ पाकर वे खुशी से फूली नहीं समा रही हैं। वे कहती हैं, मेरे लिए इस साल की शुरुआत कमाल की होने वाली है। मैं शाहरुख के साथ मियामी जा रही हूं रा1 की शूटिंग के लिए। उम्मीद करती हूं कि शाहरुख का मिडास टच मेरे करियर के लिए अच्छी खबर लेकर आएगा। सभी जानते हैं कि शाहरुख तो करीना के सिर्फ आइडल हैं, लेकिन सैफ तो उनके लिए सब कुछ हैं। पर्सनल लाइफ के साथ-साथ प्रोफेशनल लाइफ में भी करीना सैफ का साथ चाहती हैं। एजेंट विनोद में उन्हें एक बार फिर रीयल लाइफ प्रेमी सैफ का साथ मिल रहा है। इन दो खानों के साथ-साथ करीना की लाइफ में दो और खान हैं- सलमान और आमिर खान।

सलमान से उनकी दोस्ती है, तो आमिर ने उनके डूबते फिल्मी करियर को सहारा देकर अपने लिए उनके दिल में जगह बना ली है। बीते वर्ष करीना की लाइफ में सैफ को छोड़कर जिस खान का सबसे अधिक असर हुआ, वे हैं आमिर। इसकी वजह है बीते वर्ष करीना की आई एक मात्र सफल फिल्म 3 इडियट्स। इसकी कामयाबी की बड़ी वजह आमिर हैं, यह करीना भी जानती हैं। यही वजह है कि वे उनके साथ अपनी दोस्ती को बरकरार रखना चाहती हैं। तभी तो सलमान के साथ-साथ परफेक्शनिस्ट खान यानी आमिर को भी करीना अपने खास दोस्तों की सूची में शामिल कर चुकी हैं। अब लोगों को इस बात का यकीन हो गया होगा कि करीना की लाइफ में खान हीरोज का कितना महत्व है?

संता-बंता

संता (बंता से)- मैंने मोबाइल मैरिज ब्यूरो शुरु किया है।
रिश्ते के लिए 1 दबाये, मंगनी के लिए 2 दबाये, और शादी के लिए 3 दबाये।
बंता (संता से)- और दूसरी शादी के लिए क्या दबाये।
संता- दूसरी शादी के लिए पहली वाली का गला दबाये।


संता (बंता से)- भाई जल्दी जाओ तुम्हारे घर में बरसात का पानी घुस गया है।
बंता (संता से)- क्यों झूठ बोलते हो, घर की चाबी तो मेरे पास है..?


संता- यार रात में सूरज कहा चला जाता है?
बंता- सूरज कही नही जाता सिर्फ अंधेरे की वजह से हम उसे देख नही पाते।


संता- यार बंता मैंने एक चीज नोटिस की है।
बंता- अच्छा क्या?
संता- मैंने हमेशा नोट किया है कि जब रेलवे फाटक बंद होता है तो ट्रेन जरूर आती है।


संता बाइक पर जा रहा था।
उसने रास्ते में खड़े बंता से पूछा आपको लिफ्ट चाहिये क्या।
बंता- नही हमारा घर तो ग्राउंड फ्लोर पर है।
बॉस (संता से)- एक अच्छा शीशा लेकर आओ जिसमें मेरा चेहरा दिखायी दे।
संता- मैं सब दुकानों पर देख आया सब में मेरा चेहरा ही दिख रहा था।


बंता (संता से)- आओ जी चैस खेलें।
संता (बंता से)- तू चल मैं स्पोर्टस शूज पहनकर आता हूं।


संता (बंता से)- यार एक लड़की मुझे हंस कर देख रही है।
संता (संता से)- अबे ध्यान से देख, हंस के देख रही है या देख कर हंस रही है।

संता बाइक से जा रहा था, लड़की को देख कर बाइक से गिर गया..
लड़की- ओह माई गॉड लगी तो नही?
संता- ओह सोणयों हम तो ऐसे ही बाइक से उतरते हैं।

संता [बंता से]- बंता ये बताओ कि एप्पल और ऑरेंज में क्या अंतर होता है।
बंता [संता से]- आसान है, ऑरेंज का कलर ऑरेंज होता है जबकि एप्पल का कलर एप्पल नहीं होता।

राशिफल

24 जनवरी 2010 रविवार का पंचांग संवत शुभकृत 2066, शके 1931 दक्षिणायन, दक्षिणगोल, शिशिर ऋतु, माघमास शुक्लपक्ष, नवमी 28 घंटे 3 मिनट तक, तत्पश्चात दशमी, भरणी नक्षत्र, 24 घंटे 10 मिनट तक, तत्पश्चात कृतिका नक्षत्र, शुभ योग 23 घंटे 3 मिनट तक तत्पश्चात शुक्ल योग मेष में चंद्रमा 30 घंटे 8 मिनट तक तत्पश्चात वृष में।
पर्व एवं त्यौहार: महानन्दा नवमी
आज का राहुकाल:प्रात:9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक

मेष

पारिवारिक मामलों में सफलता मिलेगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगें। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। किसी कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव व वर्चस्व में वृद्धि होगी। संबंधों में निकटता आयेगी।

वृष

व्यर्थ की उलझनें रहेंगी। अधीनस्थ कर्मचारी या पड़ोसी आदि के कारण तनाव मिल सकता है। मौसम के रोग से ग्रसित हो सकते है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है। यात्रा की स्थिति सुखद होगी।
मिथुन
जीवनसाथी का सहयोग व सानिध्य मिलेगा। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। किसी कार्य के सम्पन्न होने से आत्मविश्वस में वृद्धि होगी। जीविका के क्षेत्र में प्रगति होगी। उपहार या सम्मान का लाभ मिलेगा।

कर्क
भौतिक दिशा में प्रगति होगी। मकान, सम्पत्ति के मामले में सफलता मिलेगी। व्यावसायिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। किसी कार्य के सम्पन्न होने की संभावना है। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी।

सिंह
मकान, सम्पत्ति, धन, पद, प्रतिष्ठा की दिशा में सफलता मिलेगी। पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होगी। आर्थिक प्रयास फलीभूत होगा। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। जीवनसाथी का भरपूर सहयोग मिलेगा।

कन्या

संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। यात्रा देशाटन की स्थिति सुखद व लाभदायी होगी। निजी संबंधों में प्रगाढ़ता आयेगी। पारिवारिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे।

तुला

धन, पद, प्रतिष्ठा की दिशा में प्रगति होगी। व्यावसायिक व्यस्तता रहेगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे, निजी संबंधों में प्रगाढ़ता आयेगी। पारिवारिक जीवन सुखमय होगा। आर्थिक प्रयास फलीभूत होंगे।

वृश्चिक
बहुप्रतीक्षित कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव तथा वर्चस्व में वृद्धि होगी। संबंधित अधिकारी के कृपापात्र होंगे। निजी संबंध प्रगाढ़ होंगे। उपहार या सम्मान का लाभ मिलेगा।

धनु
जीवनसाथी का भरपूर सहयोग मिलेगा। राजनैतिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति होगी। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन, पद, प्रतिष्ठा की दिशा में लाभ मिलेगा। निजी संबंधों में निकटता आयेगी। पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होगी।

मकर

उपहार या सम्मान का लाभ मिलेगा। यात्रा देशाटन की दिशा में सफलता मिलेगी। पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होगी। किसी कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव में वृद्धि होगी। संबंधों में निकटता आयेगी।

कुंभ
कुम्भ:- उपहार या सम्मान का लाभ मिलेगा। यात्रा देशाटन की दिशा में सफलता मिलेगी। पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होगी। किसी कार्य के सम्पन्न होने से आपके प्रभाव में वृद्धि होगी। संबंधों में निकटता आयेगी।

मीन
आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। धन, सम्मान, यश, कीर्ति में वृद्धि होगी। यात्रा देशाटन की स्थिति सुखद व लाभप्रद होगी। पारिवारिक जीवन सुखमय होगा। रचनात्मक प्रयास फलीभूत होंगे। किसी कार्य के सम्पन्न होने की संभावना है।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

हँसगुल्ले

हँसी के फुव्वारे

फेरी वाला - चाकू छुरियाँ तेज करवा लो। लल्लू - (हँसते हुए) - क्यों भाई, अक्ल भी तेज करते हो क्या? फेरी वाला - क्यों नहीं, हो तो ले आइए।

सर्किट-मुन्नाभाई के चुटकुले

सर्किट : भाई बापू ने बोला था कि कभी झूठ नहीं बोलना माँगता है। अपुन आज से कभी झूठ नहीं बोलेगा भाई। मुन्ना भाई : ऐ सर्किट, वो तुझसे पैसे वापस लेने लाला आया है। सर्किट : भाई उसको बोलो कि अपुन गाँव गयेला है, खेती करने को। मुन्नाभाई : सर्किट, अभी तो तू बोला कि कभी झूठ नहीं बोलेगा।

ज्ञानी महाराज

प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सत्रहवीं शताब्दी के वैज्ञानिकों के बारे में बता सकते हैं? विद्यार्थी - जी सर, वे सब मर गए हैं।

तर्कशास्त्री!

पापा : बेटा, क्या तुम जानते हो कि कुतुब मीनार किसने बनाया?
बेटा : कुतुबुद्दीन ऐबक ने।

अजब-गजब

प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सत्रहवीं शताब्दी के वैज्ञानिकों के बारे में बता सकते हो?
विद्यार्थी - जी सर, वे सब मर गए हैं।

प्रेरक व्यक्तित्व

कॉलेज से राजपथ तक
स्कूल के दिनों में मैंने एक सपना देखा था कि मैं भी एनसीसी की यूनिफॉर्म पहनूँ लेकिन मेरे स्कूल में एनसीसी नहीं होने से तब यह सपना पूरा नहीं हो सका। १२ वीं तक की पढ़ाई साइंस से पूरी करके जब मैं अच्छे प्रतिशत के साथ कॉलेज पहुँची तो मुझे एनसीसी में प्रवेश मिल गया। तब इस बात का पता चला कि पढ़ाई में अच्छा स्कोर करने से दूसरी जगह भी फायदे मिलते ही हैं। धीरे-धीरे मुझे यह अनुभव हुआ कि ब्राइट स्टूडेंट्स को सभी टीचर पसंद करते हैं..।

सीनियर विंग में एनसीसी कैडेट बनना मेरी लिए बहुत बड़ी खुशी की बात थी। यूनिफॉर्म पहने हुए परेड में भाग लेना एक रोमांचक काम था। परेड और पढ़ाई के बीच समय जल्दी निकल गया और आ गया एनुअल कैम्प। यह मेरा घर से दूर कैम्प में रहने का पहला अनुभव था। घर के आराम छोड़कर कैम्प के तंबुओं की टफ स्थितियों में रहना वाकई बहुत कुछ सिखाता है। यहाँ मम्मी-पापा नहीं होते जो हमारा ध्यान रखें और अपने कपड़े-बर्तन धोने से लेकर आधी रात को कैंप की चौकीदारी करने जैसे सारे काम हमें खुद करने पड़ते हैं।

जब इस पहले फर्स्ट एमपी गर्ल्स बटालियन कैम्प में मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रम के संचालन का मौका मिला तो मैं खुशी से फूली नहीं समाई। कार्यक्रम के सफल संचालन के कारण मुझे मास्टर ऑफ सेरेमनी पुरस्कार मिला। यह बहुत अच्छा अनुभव था। आखिर, बहुत सारे कैडेट्स के बीच जब आपको पुरस्कार मिलता है तो गर्व तो महसूस होता ही है।

एनसीसी के सेकेंड ईयर में मैंने तय किया कि इस बार मुझे आरडीसी (रिपब्लिक-डे कैम्प) के लिए जाना है। आरडीसी के लिए सिलेक्ट होना हर कैडेट का सपना होता है। राजपथ पर होने वाली परेड में शामिल होना, जीवन के सबसे रोमांचक और गौरवपूर्ण पलों में से एक होता है। पहले साल में मैंने जिस तरह का प्रदर्शन किया था उसी वजह से दूसरे साल मुझे मध्यप्रदेश से नेशनल इंटीग्रेशन कैंप में दिल्ली जाने के लिए चुना गया। इस कैम्प में मैंने अँगरेजी निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

वहाँ से आई तो पता चला कि आरडीसी के लिए सिलेक्शन होना है। मैं तैयारी में जुट गई। आरडीसी के लिए इंदौर, रतलाम और रायपुर के तीनों कैम्प में मेरा सिलेक्शन हो गया। इस दौरान आरडीसी सिलेक्शन कैम्प में जो छह महीने मैंने बिताए वे जिंदगी के कभी न भूलने वाले अनुभव रहे।

मुझे याद है जब मैं आरडीसी के लिए रायपुर में थी तो उन्हीं दिनों दिवाली आई। दिवाली पर अपने घर से दूर होना हमें बहुत बुरा लग रहा था।

गुस्सा यह देखकर भी आया कि दिवाली के दिन भी हमारे खाने के मेनू में कोई बदलाव नहीं था। बल्कि वही कद्‍दू की सब्जी और कत्थई छींटों वाली रोटियाँ। यह देखकर आँसू ‍भी निकल आए। लेकिन फिर दिवाली की रात को कमांडिंग ऑफिसर सर ने हम सभी के लिए मिठाई और पटाखों का इंतजाम किया और तब हमने दिवाली मनाई। उस दीपावली की याद अब भी ताजा है।

मुझे याद है कि आरडीसी के लिए हम 31 दिसंबर को दिल्ली पहुँचे थे। दिल्ली में हम केंट एरिया में रुके थे। यहाँ हमें वीआईपी दर्जा मिला। खाना-पीना, मौज-मस्ती और अलग-अलग राज्यों के कैडेट्‍स से मिलना.... सब कुछ अद्‍भुत था। पूरा मीडिया यहाँ हमें कवर करने पहुँचा था। यह देखकर खुद पर और भी गर्व हुआ। आडीसी सिलेक्शन के लिए हमने बहुत मेहनत की। कई बार सुबह उठकर दौड़ लगाने और परेड करने पर बहुत गुस्सा भी आता था पर जब यहाँ पहुँचे तो पिछली सारी कठिनाइयों को हम भूल चुके थे। रास्ते में आई बाधाओं के सारे काँटे यहाँ पहुँचकर फूल नजर आ रहे थे।

इस कैंप में हमें सेनाध्यक्षों तथा देश के शीर्ष नेताओं से मिलने तथा बातचीत करने का मौका भी मिला। वहीं 26 जनवरी पर यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के अंतर्गत विदेशों से आए स्टूडेंट्‍स को हमने दिल्ली और उसके आसपास की जगहों पर घुमाया। दिल्ली की सर्दी में आरडीसी के दिन फटाफट भाँप बनकर उड़ गए।

दिल्ली से जब मैं लौटकर आई तो मुझे लगा कि मुझमें बहुत बदलाव आ गया है। मैंने पाया कि अब मैं कठिन मुश्किलों को भी हँसते हुए पार कर सकती हूँ। एनसीसी के कैंप मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। स्कूल से कॉलेज तक की क्लास में मैंने जितना कुछ सीखा उससे कहीं ज्यादा मुझे एनसीसी के दो सालों में सीखने को मिला। आत्मविश्वास, कम्युनिकेशन स्किल्स और कठिन परिस्थितियों को जीतना मैंने एनसीसी के दिन याद आते हैं। अगर मैं एनसीसी कैडेट बनने का सपना नहीं देखती तो मैं इतने अच्छे अनुभव कैसे जुटा पाती?

क्या तुम जानते हो?

देश की सेवा में वृद्ध विराट
समुद्री सीमाओं की रखवाली करने वाले भारतीय युद्धपोत आईएनएस विराट ने हाल ही में अपने ५० वर्ष पूरे किए। इसकी ५०वीं सालगिरह अरब सागर में मुंबईClick here to see more news from this city के नजदीक मनाई गई। इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने विराट पर आधारित एक कॉफीटेबल बुक विमोचित की।

महामहिम के सामने नौसेना के पश्चिमी कमान ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। इस समय विराट को दुल्हन की तरह सजाया गया था और बीच समंदर में खड़े इस युद्धपोत के चारों ओर अन्य छोटे युद्धपोत एक घेरे में खड़े इसका सुरक्षा कवच बने हुए थे। इनके इर्दगिर्द स्पीड बोट पर तैनात समुद्री कमांडो की तेज रफ्तार चहल-पहल से पूरा वातावरण अपनी सामरिक सुरक्षा क्षमता के प्रति गर्व का एक सुखद भाव सबके दिलों में भर रहा था।

नौसैनिकों की आँखों में विराट के प्रति प्यार और गर्व के मिश्रित भाव स्पष्ट दिख रहे थे। विराट का भव्य रूप देखकर और उसकी क्षमता जानकर कोई भी अभिभूत हो सकता है। एचएमएस हर्मिस नाम से १८ नवंबर, १९५९ को ब्रिटिश रॉयल नेवी में शामिल किया गया यह युद्धपोत १९८६ में खरीदा गया।

लंदन के डेवनपोर्ट डॉक में भारतीय नौसेना की जरूरतों के हिसाब इसके बॉयलर्स सहित कई अन्य हिस्सों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। फिर इसे आईएनएस विराट का नाम देकर १९८७ में भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। इस खरीद के सिलसिले में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इटली की गैरिबाल्डी क्लास के एक युद्धपोत की खरीद पर मुहर लगभग लगा दी थी लेकिन अंतिम समय में एचएमएस हार्मिस ने बाजी मारी।


उल्लेखनीय है कि एचएमएस की घोषित आयु २५ वर्ष ही थी और जब भारत ने इसे खरीदा था तब यह ब्रिटिश नेवी को २७ साल की सेवा दे चुका था लेकिन भारतीय सैन्य अभियंताओं द्वारा इस युद्धपोत की अच्छी देखरेख की बदौलत इसकी आयु दोगुनी से ज्यादा बढ़ा दी है। मरम्मत के माध्यम से अब तक चार बार कायाकल्प किए जा चुके इस युद्धपोत से उम्मीद की जा रही है कि यह 2019 तक देश की सेवा करेगा। इस युद्धपोत की लंबाई 226.5 मीटर और चौड़ाई 48.78 मीटर है। कम से कम 8.8 मीटर गहराई वाले पानी में ही यह युद्धपोत चल सकता है।

तेरह मंजिल वाले इस युद्धपोत पर 9 मंजिल फ्लाइट डेस्क से नीचे और 4 डेक के ऊपर स्थित हैं। 400 पीएसआई के 4 बॉयलर्स और 76 हजार एसएचपी के दो गियर वाले स्टीम टर्बाइन इंजन से ताकत पाते इस युद्धपोत की अधिकतम गति सीमा 28 नॉटिकल मील प्रति घंटा है। विराट पर एक समय कुल 1350 सैनिक (नौसैनिक व वायुसैनिक) रह सकते हैं।

१९८६ में भारतीय नौसैनिक बेड़े में आईएनएस विराट के नाम से शामिल हुआ और आज अपनी घोषित आयु से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद भारतीय समुद्री सीमाओं की रक्षा में मुस्तैद है। युद्धक विमानों के उड़ान भरने और लैंड करने की क्षमता से लैस इस युद्धपोत पर 143 वायुसेना अधिकारी भी रहते हैं। इस पोत पर 30 सी हैरियर रखे जा सकते हैं। इसके हवाई बेड़े में सी किंग विमान भी शामिल है। विराट पर इटली की एल्मार कम्युनिकेशन तकनीक के साथ ही सैटकॉम और कंप्यूटर असिस्टेड एक्शन इन्फॉर्मेशन सिस्टम भी लगी हुई है। इसराइल बराक सैम तकनीक से लैस इस युद्धपोत पर 240 एमएम बोफोर्स तोपें भी तैनात हैं।

इसके साथ ही एके 230 गन हैं जो एंटी शिप मिसाइल के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। इस युद्धपोत से 750 सैन्ट टुकड़ियाँ रवाना की जा सकती हैं। गौरतलब है कि 1993 के सितंबर में बड़े पैमाने पर शुरू किए गए विराट की मरम्मत का कार्य लगभग 2 वर्ष चला। 1995 से पोत फिर से समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए तैयार हो गया लेकिन 1999 के जुलाई से 2001 के अप्रैल तक विराट में चले ढाँचागत बदलाव ने इसकी उम्र 2010 तक बढ़ा दी है और तब तक रूसी नौसेना के बेड़े में शामिल गोर्शकोव के भारतीय नौसेना में शामिल हो जाने की उम्मीद है। गोर्शकोव का नाम आईएनएस विक्रमादित्य होगा। इसकी मरम्मत का काम रूस में चल रहा है।

म्यूजियम बनकर सेवा करता विक्रांत
विराट से पहले तक भारतीय सीमाओं की रक्षा में मुस्तैद भारतीय युद्धपोत विक्रांत आज रक्षा जरूरतों के लिए भले ही अक्षम हो गया हो पर वह भारतीय नौसेना की गाथाओं से लोगों को परिचित करवा रहा है । १६ फरवरी, १९६१ को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल आईएनएस विक्रांत ३१ जनवरी, १९९७ को नौसेना से रिटायर हुआ। इसे भारतीय नौसेना म्यूजियम का रूप दिया गया है और नौसेना सप्ताह के दौरान आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है।

विक्रांत पर रखे लड़ाकू विमान व रॉकेट, पनडुब्बी में रहने वाले नौसैनिकों के कपड़े और उनकी जीवनशैली को प्रदर्शित करती वस्तुएँ बच्चों और बड़ों के बीच खासा आकर्षण का केंद्र बनते हैं। नौसेना सप्ताह के अलावा जो भी इस म्यूजियम को देखना चाहता है उसे नौसेना से इजाजत लेनी पड़ती है। विक्रांत भी ब्रिटिश रॉयल नेवी में हरक्यूलिस नाम से कार्यरत था। विक्रांत को स्थायी म्यूजियम बनाने के लिए कंपनियों से निविदाएँ आई हैं जो जनवरी में खोली जाएगी और विक्रांत को म्यूजियम बनाने का ठेका दिया जाएगा।


बेकार की चीजें नहीं चाहिए...

फेंग अपने काम में व्यस्त थी तभी उसे एक पार्सल मिला। पार्र्सल खोलते ही फेंग की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि पार्सल में कुछ दिनों पहले खोया उसका पर्स था। पर्स के साथ फेंग को एक चिट्ठी भी मिली। चिट्ठी लिखने वाले ने ही यह पर्स चुराया था और फिर लौटाया भी।

चिट्ठी में उस व्यक्ति ने लिखा कि- मुझे जो चाहिए था वह मैंने रख लिया, बाकी की चीजें मेरे काम की नहीं हैं और मैं बेकार की चीजों को अपने पास नहीं रखता हूँ। इसलिए मैं आपकी चीजें आपको भेज रहा हूँ। पर्स में फेंग को ड्राइविंग लाइसेंस और ऑफिस के एक जरूरी लेटर मिल गया। पर्स की नकदी नहीं लौटी, वो तो चोर के काम की जो थी।

कहानी

प्रभु को भी प्रिय है सरलता
सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।

कुठार लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला - 'सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है। टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।'

चंदन का वृक्ष धीरे से बोला - 'भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं। मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।'

लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्‍गति को प्राप्त हुआ। उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी। मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।

यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आवश्यकता थी। लकड़हारे उसी वन प्रांतर में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगा जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे। अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया। उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे।

यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था। वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बन चंदन बोला - 'आओ मित्र! ईश्वर की इच्‍छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया। अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है। मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।

पलाश बोला - 'देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे। मुझे भय लग रहा है। ‍अब बिछड़ना ही पड़ेगा।'

चंदन ने कहा - 'भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बनाकर धन्य कर‍ दिया तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते। सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना। सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं। सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।'

बाबा तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है -

निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

अचानक पलाश का मुख एक आध्‍यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।
सौजन्य से - देवपुत्र


रेत का घर

एक गाँव में नदी के तट पर कुछ बच्चे खेल रहे थे। रेत के घर बना रहे थे। किसी का पैर किसी के घर में लग जाता तो रेत का घर बिखर जाता। झगड़ा हो जाता। मारपीट हो जाती। तूने मेरा घर मिटा दिया। वह उसके घर पर कूद पड़ता है। वह उसका घर मिटा देता है और फिर अपना घर बनाने में तल्लीन हो जाता है।

महात्मा बुद्ध चुपचाप खड़े अपने भिक्षुओं के साथ ये तमाशा देख रहे थे पर बच्चे इतने व्यस्त थे कि उन्हें कुछ भी पता नहीं लगा। घर बनाना ऐसी व्यस्तता की बात है दूसरों से अच्छा बनाना है उनसे ऊँचा बनाना है। दूसरों से अच्छा बनाना है, उनसे ऊँचा बनाना है, उनसे ऊँचा बनाना है।

प्रतियोगिता है, जलन है, ईर्ष्या है। सब अपने-अपने घर को बड़ा करने में लगे हैं परंतु किसी ने सच ही कहा है -
जितने ऊँचे महल तुम्हारे, उतना ही गिरने का डर है। जिसको तुमने सागर समझा, पगले जीवन एक लहर है। इस सबके बीच एक स्त्री ने घाट पर आकर आवाज दी, सांझ हो गई है, माँ घरों में याद करती है घर चलो। बच्चों ने चौंक कर देखा। दिन बीत गया है सूरज डूब गया है। अँधेरा उतर रहा है। वे उछले-कूदे अपने ही घरों पर। सब मटियामेट कर डाला अब कोई झगड़ा नहीं कि तू मेरे घर पे कूद रहा या मैं तेरे घर पे कूद रहा हूँ।

कोई ईर्ष्या नहीं, कोई बैर नहीं। वे सब बच्चे भागते हुए अपने घरों की तरफ चले गए। दिन भर का सारा झगड़ा, व्यवसाय, मकान, अपना-पराया सब भूल गया। महात्मा बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा 'ऐसे ही एक दिन जब परमात्मा की आवाज आती है 'मृत्यु, तब तुम्हारे बाजार राजधानियाँ सब ऐसे ही पड़ी रह जाती है। हम सब जीवन भर रेत के घर ही तो बनाते रहते हैं और मरते वक्त सब वहीं रह जाता है। जीवन का लक्ष्य रेत के मकानों में रहते हुए वास्तविक मकान को ढूँढना है।

योग्यता की पहचान
नागार्जुन अपने जमाने के प्रख्यात रसायन शास्त्री थे। उन्होंने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की। वह निरंतर अपनी प्रयोगशाला में जुटे रहते और नित नई औषधियों की खोज करते।

नागार्जुन जब वृद्ध हो चले, तो उन्होंने एक बार राजा से कहा - 'राजन! प्रयोगशाला का काम बहुत बढ़ चला है। अपनी अवस्था को देखते हुए मैं भी अधिक काम करने में असमर्थ हूँ। इसलिए मुझे अपने काम के लिए एक सहायक की आवश्यकता है।

राजा ने ध्यान से नागार्जुन की बात सुनी और कुछ सोचकर कहा- 'कल मैं आपके पास दो कुशल और योग्य नवयुवकों को भेजूँगा। आप उनमें से किसी एक का चयन अपने सहायक के रूप में कर लीजिएगा।'

अगले दिन सवेरे दो नवयुवक नागार्जुन के पास पहुँचे। नागार्जुन ने उन्हें अपने पास बिठाया और उनसे उनकी योग्यताओं के बारे में पूछा। दोनों ही नवयुवक समान योग्यताएँ रखते थे और पढ़े-लिखे भी दोनों समान थे। अब नागार्जुन के सामने यह समस्या उठ खड़ी हुई कि वह उन दोनों में से किसे अपना सहायक चुनें?

आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद नागार्जुन ने उन दोनों को एक-एक पदार्थ दिया और उनसे कहा - 'यह क्या है, इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगा। तुम स्वयं इसकी पहचान करो और फिर इसका कोई एक रसायन अपनी मर्जी के अनुसार बनाकर लाओ।

इसके बाद ही मैं यह निर्णय करूँगा कि तुम दोनों में से किसे अपना सहायक बनाऊँ?' दोनों युवक पदार्थ लेकर उठ खड़े हुए। तब नागार्जुन ने कहा - 'तुम लोगों की मैं परसों प्रतीक्षा करूँगा।' वह दोनों युवक जैसे ही जाने को हुए। नागार्जुन ने फिर कहा, 'और सुनो, घर जाने के लिए तुम्हें पूरा राजमार्ग तय करना होगा।'

दोनों नवयुवक उनकी अजीब शर्त सुनकर हैरत में पड़ गए और सोचने लगे कि आचार्य उन्हें राजमार्ग पर से होकर ही जाने को क्यों कह रहे हैं? लेकिन आचार्य से उन्होंने इस बारे में कोई सवाल नहीं किया और वहाँ से चल दिए। तीसरे दिन सायं दोनों नवयुवक यथासमय नागार्जुन के पास पहुँचे। उनमें से एक नवयुवक काफी खुश दिखाई दे रहा था और दूसरा खामोश।

नागार्जुन ने पहले युवक से पूछा 'क्यों भाई! वह रसायन तैयार कर लिया?'
युवक ने तत्परता से प्रत्युत्तर दिया - 'जी हाँ! मैंने उस पदार्थ की पहचान कर रसायन तैयार कर लिया है।'

तब नागार्जुन ने तैयार रसायन की परख की और उसके संबंध में युवक से कुछ प्रश्न किए। युवक ने उनके सही-सही उत्तर दे दिए।

तब नागार्जुन ने दूसरे युवक से पूछा - 'तुम अपना रसायन क्यों नहीं लाए?'
युवक ने उत्तर दिया - 'आचार्य जी! मुझे बहुत दुख है कि मैं रसायन बनाकर नहीं ला सका। हालाँकि मैंने आपके दिए हुए पदार्थ को पहचान लिया था।'
'लेकिन क्यों?' नागार्जुन ने पूछा।

युवक ने उत्तर दिया - 'जी! मैं आपके आदेश के अनुसार राजमार्ग से होकर गुजर रहा था कि अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक वृद्ध और बीमार व्यक्ति पड़ा दर्द से कराह रहा है और पानी माँग रहा है। कोई उसे पानी तक देने के लिए तैयार नहीं था।

सब अपने-अपने रास्ते चले जा रहे थे। मुझसे उस वृद्ध की यह दशा देखी न गई और मैं उसे उठाकर अपने घर ले गया। वह अत्यधिक बीमार था। मेरा सारा समय उसकी चिकित्सा और सेवा सुश्रुषा में लग गया। अब वह स्वास्थ्य लाभ कर रहा है। इसीलिए मैं आपके द्वारा दिए गए पदार्थ का रसायन तैयार न कर पाया। कृपया मुझे क्षमा करें।'

इस पर नागार्जुन मुस्करा उठे और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा - 'मैं तुम्हें अपना सहायक नियुक्त करता हूँ।

अगले दिन जब नागार्जुन राजा से मिले तो राजा ने आश्चर्य से पूछा - 'आचार्य जी! मैं अब तक नहीं समझ पा रहा हूँ कि आपने रसायन बनाकर लाने वाले युवक के स्थान पर उस युवक को क्यों अपना सहायक बनाना स्वीकार किया, जो रसायन बनाकर नहीं ला सका?'

तब नागार्जुन ने बताया - 'राजन! मैंने उचित ही किया है। जिस नवयुवक ने रसायन नहीं बनाया। उसने मानवता की सेवा की। दोनों नवयुवक एक ही रास्ते से गुजरे, लेकिन एक उस वृद्ध बीमार की सेवा के‍ लिए रुक गया और दूसरा उसे अनदेखा कर चला गया।

मुझे पहले ही ज्ञात था कि राजमार्ग में एक पेड़ के नीचे बीमार आदमी पड़ा है। स्वयं जाकर उसे अपने यहाँ लाने की सोच रहा था‍ कि संयोग से ये दोनों युवक आ पहुँचे। तब मैंने योग्यता की परख के विचार से उन्हें राजमार्ग से ही जाने का निर्देश दिया। रसायन तो बहुत लोग तैयार कर सकते हैं किंतु अपने स्वार्थ को भूलकर मानवता की सेवा करने वाले सेवाभावी बहुत कम हुआ करते हैं। मेरे जीवन का ध्येय ही मानवता की सेवा करना है। और मुझे ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो सच्चे मन से मानव सेवा कर सके।

मुझे प्रसन्नता है कि आप द्वारा भेजे गए नवयुवकों में से एक मानवता की सेवा के लिए तत्पर निकला। यही कारण है कि मैंने उसका चयन किया।' राजा नागार्जुन की यह अनुभव भरी व समझपूर्ण बात सुनकर उनके आगे श्रद्धा से नतमस्तक हो गया।
सौजन्य से - देवपुत्र

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

कहानी

मुझसे शादी करोगी
सुशीला परगनिहा
तान्या सेन लगातार सिगरेट पी रही थी। टीवी की दुनिया का बेहद सफल नाम रोहित सूरी उसके सामने बैठा था, जिसका हर शो सुपरहिट होता है। उसका प्रोडक्शन हाउस नया रिअलिटी शो शुरू करने जा रहा है, ड्रीम हाउस में 100 दिन। तान्या बोली, रोहित तुम जानते हो, वंदना राजवंश ने मेरा घर बर्बाद कर दिया और तुम उसी को शो में ले रहे हो..।
रोहित मुसकरा रहा था, मानो तान्या की बातों का असर न हो रहा हो। दूसरी ओर तान्या कश लगाए जा रही थी। थोडी देर तक उसे देखते रहने के बाद वह बोला, यह बात पूरी इंडस्ट्री जानती है। यहां तक कि दुनिया जानती है कि सौरभ कपूर का उसके साथ अफेयर चल रहा था। लेकिन जो दुनिया नहीं जानती, मैं वह भी जानता हूं, इसलिए वंदना को शो में ले रहा हूं।
फिर उसे टोकते हुए बोला, देख रहा हूं, जबसे आई हो, सिगरेट पी रही हो। इस शो में तुम्हें सिगरेट नहीं पीनी है। जो सिगरेट पीते पकडा जाएगा, उसका चांस कम होता जाएगा।
तान्या खीज कर बोली, तुम काम की बात करो। उस वंदना मिस टेंशन की वजह से मैं ज्यादा पी रही हूं।
तो सुनो। तुम तान्या हो-सौरभ कपूर की एक्स वाइफ और वह वंदना है, जिससे सौरभ का चक्कर रहा है। इस कारण तुम्हारा घर एवं पति छूटा। यही शो की यूएसपी है। मैं लागलपेट नहीं रखता। तुम मेरी बचपन की दोस्त हो। साफ पूछता हूं, सोचो, तुम आज हो क्या?
तान्या कुछ बोलती, इससे पहले ही हाथ के इशारे से उसे रोक कर कहने लगा, पहले पूरी बात सुनो। माना तुम कभी हीरोइन थीं। एक फिल्म सुपरहिट रही। बाद में तुम मिसेज सौरभ कपूर बनीं। स्टार की वाइफ और अब उसकी एक्स वाइफ। तुम बच्चे पाल रही हो। किटी पार्टी में मिसेज एक्स सौरभ का जलवा चल सकता है मैडम, कहीं और नहीं।
और वंदना? सौरभ के चक्कर में उसे दूसरे हीरोज के साथ फिल्में मिलनी बंद हो गई। एक्टिंग उसे आती नहीं थी। तीन फिल्में फ्लॉप हुई। कोई इंटरव्यू लेने आता है तो कहती है कि चूजी हो गई हूं। फिल्में मिल ही कहां रही हैं उसे। वो फिल्में भी सौरभ ने ही दिलवाई थीं।
सो मैडम, तान्या सेन, सौरभ ही वह कमजोर कडी है, जो तुम दोनों को नफरत के मजबूत धागे से बांधता है। तुम दोनों एक द्वीप पर ड्रीम हाउस में आमने-सामने होगी, इसकी पूरी पब्लिसिटी की जाएगी।
रोहित की बात पूरी होने से पहले ही तान्या आंखें फैला कर बोली, तो रोहित, तुम हमारी नफरत का फायदा उठा रहे हो?
इसका तुम्हें एक करोड दे रहा हूं। एक लाख रुपये रोज। शो में तुम कम दिन रहोगी तो भी पैसा तुम्हें पूरा मिलेगा। वैसे मुझे भरोसा है कि तुम और वंदना टिकोगी, क्योंकि लोग तुम दोनों को ही देखना चाहेंगे।
तान्या बोली, तुम सौरभ का नाम भुनाकर करोडों कमाओगे। एक्स वाइफ को सिर्फ एक लाख रुपये रोज।

क्या यह कम है?

सौरभ के नाम पर कम है। फिल्म का कम से कम बीस करोड ले रहा है। सुपर स्टार है।
तो क्या तुम्हें भी बीस करोड चाहिए?
नहीं, सिर्फ पांच लाख रोज।
रोहित उछला, तान्या, तुम लूटने पर उतारू हो। छोडो, मैं उस मॉडल अनुप्रिया दत्ता को ले लूंगा। जुबान पर मिर्चे रहती हैं उसके और डांस तो क्या मस्त करती है।
यू आर वेरी कनिंग रोहित।
बिजनेसमैन हूं। चलो, न तुम्हारी-न मेरी। दो लाख रुपये रोज। ठीक है!
तीन से कम नहीं। यानी तीन करोड।
रोहित की आंखें सिकुड गई। बोला, तान्या, तुम एक या तीन करोड क्यों देख रही हो? सोचो, अंत तक टिक गई तो एक करोड और मिलेगा। ग्लैमर की दुनिया के दरवाजे खुल जाएंगे। शो के बाद फिल्म भी मिल सकती है।
तान्या मुसकराई, तीन से कम में नहीं।
रोहित ने हथियार डाल दिए। चलो, दोस्ती की ख्ातिर बात मान ली। वरना किसी को भी ले सकता था। उसने हाथ आगे बढाया।
तान्या ने जैसे ही हाथ मिलाया, रोहित को जैसे कुछ याद आया, बताना भूल गया, विक्रम पठान को भी शो में ले रहा हूं।
तान्या चौंकी, वह दो टके का मॉडल। वो कौन थी नई मॉडल, जिसे छेडने के चक्कर में जेल में रह कर आया है?
तुम ठीक समझ रही हो।
चुन-चुन कर नगीने इकट्ठे कर रहे हो।
पुण्य का काम कर रहा हूं। उद्धार कर रहा हूं।
और हां-तुम्हें बंदे से रोमांस भी करना है। एक हफ्ते बाद इसके चर्चे होने चाहिए।
क्या! मैं उससे इश्क करूंगी?
तान्या, ठंडे दिमाग से काम लो। लोग तुम लोगों को सौ दिन तक रोटी खाते और माला जपते नहीं देखना चाहते? सोच लो, फिल्म में काम कर रही हो, बस डायलॉग तुम्हारे होंगे। जितने अच्छे डायलॉग, जैसी धांसू एक्टिंग, उतने ही आंसू, उतने ही दिल टूटेंगे।
सौरभ की एक्स वाइफ से क्या चाहते हो?
रोहित खीजते हुए बोला, मिसेज एक्स सौरभ कपूर। अतीत में जीना बंद करो। सौरभ को सीढी बना कर आगे बढना सीखो। उसने भी तुम्हारा इस्तेमाल किया है। सुपर स्टार बन गया तो किनारे कर दिया। तुम इतनी सेंसिटिव क्यों हो रही हो? सोचो, तुम उसके पैसे पर जी रही हो। वह पैसे देने बंद कर दे तो..?
बहुत भाषण झाड लिया। समझ गई मैं।
अगले महीने की 11 तारीख्ा से शूटिंग शुरू हो रही है। जिम जाना शुरू करो, सिगरेट बंद। रौब झाड रहे हो?

नहीं, एहतियात बरतने को कह रहा हूं। तुम 16 स्त्री-पुरुषों को एक साथ एक द्वीप पर बने घर में रहना है। नियमों का पालन करना ही होगा। यस, मेरे आका। तान्या ने ऐसे अंदाज में झुक कर कहा कि रोहित की हंसी छूट गई।

शो शुरू होने से पहले ही हिट हो चुका था। इस दौरान सौरभ कपूर की एक्स वाइफ और ओल्ड फ्लेम वंदना के झगडों के किस्से, विक्रम पठान के सनकीपन की मसालेदार खबरें आ चुकी थीं। जिस दिन शो शुरू हुआ, लोगों ने सास-बहू छोडकर उसे ही देखना शुरू कर दिया। तान्या को ड्रीम हाउस में कुछ पता नहीं चल रहा था, लेकिन वह रोहित के अंदाज से भी ज्यादा बडी स्टार बन गई थी। वह वर्तमान में जीना सीख रही थी। तान्या-वंदना की कैट फाइट शो को सुपरहिट बना रही थी।

वंदना स्विम सूट पहन कर विक्रम पठान के साथ स्विमिंग पूल में उतरी तो तान्या का बयान आया, मैं चीप पब्लिसिटी के लिए यह नहीं कर सकती। लेकिन अगले ही हफ्ते तान्या ने विक्रम के साथ ऐसा डांस किया कि लोग आहें भरने लगे। देखकर लगता नहीं कि दो बच्चों की मां है। अटकलें शुरू हो गई। तान्या और विक्रम पठान का चक्कर..सौरभ जल-भुन रहा होगा।

इस बीच कई डायरेक्टर, प्रोड्यूसर तान्या के डांस के लिए फिल्मों में जगह बनाने लगे। उसके मैनेजर की मुसीबत आ गई। वह सबसे कह रहा था कि तान्या मैडम से शो के बाद ही बात हो पाएगी। फैसला वही लेंगी।

बीच में वंदना शो से बाहर हो गई तो दर्शक कहने लगे, शो में मजा नहीं आ रहा। भला हो रोहित की वाइल्ड कार्ड एंट्री का, वंदना को हफ्र बाद वापस बुला लिया गया। इस बीच वंदना को बाहर की ख्ाबरें लग गई थीं। वह तान्या से जली-भुनी बैठी थी। हर हफ्ते घर से कोई न कोई बाहर हो रहा था, लेकिन तान्या को निकालने की कोशिशें नाकाम रहीं।

इस बीच सौरभ कपूर की फिल्म रिलीज होनी थी, जिसे टालना पडा। रिपोर्ट थी कि शो के रहते फिल्म आई तो नहीं चलेगी। सलाह दी गई कि सौरभ को शो पर आना चाहिए। लोग उसे तान्या के साथ देखेंगे तो असर होगा। सौरभ आज में जीने वाला था, फौरन हां कर दी।

तय हुआ कि विनर को इनाम सौरभ के ही हाथ से मिलेगा। उस द्वीप पर आखिरी हफ्ते दो ही लोग बचे- तान्या और वंदना। इसकी भी पब्लिसिटी हो रही थी। सवाल उठ रहे थे, पत्नी या प्रेमिका-सौरभ किसे बनाएगा विनर..? तान्या और वंदना बाहर की गतिविधियों से अनजान थीं। आखिरी हफ्ता साथ गुजारना मुश्किल था। न चाहते हुए भी गिले-शिकवे हो रहे थे। शो की लोकप्रियता रिकॉर्ड तोड चुकी थी। करोडों का सट्टा लगा था उन दोनों पर।

यह था शो का क्लाइमेक्स। आखिरी घंटे में तान्या और वंदना अपने-अपने सूटकेस लगाए ड्राइंग रूम में आ गई थीं। सौरभ कपूर के बारे में उन्हें पता नहीं था। अचानक उन्हें बताया गया कि शो के चीफ गेस्ट आ रहे हैं। वही उन्हें बाहर ले जाएंगे। दोनों सौरभ को देखकर हैरान रह गई। वंदना को हाय करके सौरभ आगे बढा और तान्या को गले लगा लिया। खुसर-पुसर होने लगी कि क्या मियां-बीवी फिर एक होंगे। हालांकि सौरभ, तान्या और वंदना तो शो बिजनेस का हिस्सा थे, एक्टिंग कर रहे थे।

सौरभ दोनों को साथ बाहर मंच पर लाया। .. और शो की विनर हैं.. लोगों की सांसें थम गई। उसने वंदना को देखा और बोला, और.. विनर हैं.. अचानक वह बोला, तान्या सेन एक करोड का चेक और बुके उसने तान्या को दिया और गले से लगा लिया।

तान्या विनर थी। उसने वंदना से बदला ले लिया था। उसके आंसू आ गए। गले से भर्राई आवाज में निकला, थैंक्यू रोहित। तुमने मुझे जो दिया, उसे मैं बयां नहीं कर सकती।

अब तान्या की जिंदगी बदल चुकी थी। बाहर ऑफर उसका इंतजार कर रहे थे। होस्ट बनने का ऑफर, एक छोटे बजट की फिल्म में हीरोइन बनने का ऑफर, छह फिल्मों में आइटम डांस का ऑफर-इनमें सौरभ की फिल्म भी थी। सौरभ पर कर्ज चढा देती हूं सोचकर तान्या ने उसे हां कर दी। सोचा, अब जिंदगी नए ढंग से जिएगी। होस्ट बनने के लिए भी हां कर दी। बॉडी को टोन कर रही थी। लुक्स में हॉलीवुड हीरोइनों को मात देने लगी थी। कोई एंजेलिना जोली से उसकी तुलना कर रहा था, कोई लिज हर्ले से। उसकी जिंदगी में इतनी खुशियां कभी आई ही नहीं थीं। तीन फिल्मों में आइटम डांस कर चुकी थी। जिस शो को होस्ट कर रही थी, वह हिट था। शो के पांच-छह एपीसोड हुए थे कि अचानक उसे चक्कर आ गया। पता चला उसे कैंसर है। शो स्थगित हो गया। दर्शकों को यह भी नया पब्लिसिटी स्टंट लग रहा था। कुछ ही दिन में पक्की रिपोर्ट आ गई। उसकी जिंदगी छह महीने की है। उल्टी गिनती शुरू हो गई।

बचपन की दोस्त को रोज मरते-टूटते देख रहा था रोहित। तान्या को बच्चों का भी इंतजाम करना था। सौरभ भी मिलने आता था। बच्चों की जिम्मेदारी उसे सौंपनी थी।

रोहित बहुत उदास था, लेकिन फिर उसने इस नियति को मान लिया। एक दिन तान्या से बोला, मैडम, जिंदगी रंगमंच है। हम सब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं..। इस फिल्मी डॉयलॉग पर तान्या ने उसे गौर से देखा। रोहित थोडा सा झुका और बोला, तो तान्या, आपके लिए भी जिंदगी एक रंगमंच है और इस बार शो छह महीने का है। 15 दिन रोते हुए बीत चुके हैं। अब आपको तय करना है कि बाकी के 165 दिन कैसे बिताना चाहती हैं।

तान्या हंसी, मौत तय है तो शान से मरूंगी। रोहित गंभीर हो गया, अपनी आखिरी ख्वाहिश बताओ तान्या।

कुछ सोचकर तान्या बोली, मैं शादी करना चाहती हूं। चाहती हूं मनीष मलहोत्रा मेरा शादी का जोडा डिजाइन करे। मंडप करन जौहर की फिल्म के सेट की तरह हो, करीना कपूर मेहंदी लगाए, बिपाशा सहेली बन कर नाचे। बस दूल्हा खोजने का काम तुम्हारा..।

रोहित मुसकराकर बोला, दूल्हा सौरभ..?

नहीं, तुमने ही कहा था सौरभ मेरा पास्ट है।

रोहित एक पल रुककर बोला, तुम्हारी शादी जरूर होगी, अगर तुम मेरी बात मानो तो..। आज से तुम्हारा एक-एक पल मेरा। दूल्हा मैं खोजूंगा। समझो दूल्हा मिल गया। तान्या गंभीर थी, कहना क्या चाहते हो?

मुझसे शादी करोगी? रोहित गंभीर था।
तान्या उसे घूरने लगी। होश आया तो बोली, तुम मजाक कर रहे हो? या फिर यह नया रिअलिटी शो है। एक अलमस्त बेफिक्र इंसान मरती हुई औरत से शादी करेगा। बॉलीवुड के स्टार शादी में आएंगे और शो सुपरहिट?
यह मजाक नहीं है मैडम, न रिअलिटी शो। दोस्ती का कर्ज अदा करना चाहता हूं। तान्या को रोहित की आवाज दूर से आती लगी।
रोहित बोला, तान्या, याद है तुम्हें, बचपन में जब हम दौडते थे तो तुम आगे निकल जाती थीं। मैं बीच में ही आइसक्रीम वाले के पास रुक जाता था। तुम फिर पलटती थीं और घसीट कर फिर मुझे ले जाती थीं।..अब इन 165 दिनों की दौड में मैं हर पल तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं। हालांकि मैं वहां तक शायद न दौड सकूं, जहां तुम्हें जाना है। बस यही चाहता हूं कि तुम्हें एक नई जिंदगी दूं और इस दौरान खुद भी एक नई जिंदगी जी लूं। यह शो बिजनेस तो जिंदगी भर चलेगा। लेकिन ये दिन लौटकर
वह तान्या की आंखों में देख रहा था। बोला, मेरा यकीन करती हो? करोगी मुझसे शादी?
तान्या मुसकराकर बोली, हां रोहित, मैं तुम पर भरोसा करती हूं और तुमसे शादी करूंगी।

लतीफ़े

ओमप्रकाश बंछोर
रमेश- ये केला कैसे दिया है?
केले वाला- एक रुपये का एक
रमेश- 60 पैसे का देगा?
केले वाला- 60 पैसे में तो सिर्फ छिलका मिलेगा।
रमेश- ले 40 पैसे, छिलका रख और केला दे दे...


संता (बंता से)- केक पर बल्ब क्यों लगाया?
बंता (संता से)- 60 मोमबत्तियों को लगाने में दिक्कत हो रही थी तो सोचा 60 वाट का बल्ब ही लगा दूं।

अध्यापक (चिंटू से)- इतनी पिटाई के बाद भी तुम हंस रहे हो।
चिंटू- गांधी जी ने कहा है, मुसीबत का समय हंसकर गुजारना चाहिए।

पत्नी (पति से)- सुनो जी आपको मुझमें सबसे ज्यादा क्या अच्छा लगता है मेरी ब्यूटी या मेरी अक्लमंदी।
पति (पत्नी से)- मुझे तो ये तुम्‍हारे मजाक करने की आदत सबसे अच्छी लगती है।

डॉक्टर के क्लीनिक के आगे लम्बी लाइन लगी थी, 1 आदमी बार-बार लाइन में घुसता था, लोग उसे पीछे कर देते थे..
आदमी बोला- लगे रहो सालो, मैं भी क्लीनिक नही खोलूंगा।

साहित्य

फर्क

शेष नारायण बंछोर
पहले ही बता दूं कि डेली टाइम्स से इसलिए नहीं जुडी थी कि पत्रकारिता या लेखन को लेकर मेरे कोई सपने थे या मैं कोई जन्मजात लेखिका थी अथवा पत्रकारिता मेरे बाप-दादों की पुश्तैनी जीविका थी। न मम्मी ने और न ही पापा ने चाहा या सोचा था कि मैं पत्रकारिता को पेशे के तौर पर अपनाऊं। इन बातों में कोई भी बात ऐसी नहीं है, जिससे मैं दूर-दराज का भी अपना कोई संबंध जोड सकूं।

सच तो यह है कि पत्रकारिता से पढने-लिखने का जितना संबंध है, मेरे बाप-दादों को पढने-लिखने से उतनी ही विरक्ति, बल्कि कहिए कि चिढ थी, लेकिन जैसे ही अंग्रेजों की गुलामी से देश आजाद हुआ, सरकार ने पढने-लिखने की कुछ ऐसी हवा चला दी कि हिन्दुस्तान का घर-घर शिक्षा की रोशनी से जगमगा उठा।

हवा चली थी तो फिर चलकर हमारे गांव-कस्बे तक भी आनी ही थी और घर की बडी संतान होने के नाते मुझे स्कूल जाना ही था। जाना था तो स्कूल गयी और फिर कॉलेज भी। अभी एम.ए. कर रही थी कि एक्सीडेंट में पापा की मौत हो गयी। घर में कमाने वाले मात्र वही थे। सो, घर पर कठिनाइयों का पहाड टूट पडा। दिल्ली के वाईएमसीए में जर्नलिज्म में एडमिशन दिलवा पाने में मामाजी सफल हो गए और फिर डिप्लोमा पा लेने के बाद टाइम्स से ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में उन्होंने ही जोड दिया था, अन्यथा दिल्ली मेरे लिए बहुत दूर थी।

हमारा दफ्तर मुख्य सडक पर है। सडक की ओर देखने लगी। अर्थी पर नजर पडी तो एकाएक दिमाग में सवाल उठा, क्या दिल्ली में भी लोग मरते हैं? दिल्ली आए यही कोई डेढेक साल हो गया है। इस दौरान मैंने पहली बार कोई अर्थी देखी। दिमाग में अपने छोटे से गंवई कस्बे के कुछ दृश्य उभर आए: कहीं दूर से उभरती राम नाम सत्य है की आवाज, जो तेजी से करीब आती प्रतीत होती। तब मम्मी के मुंह से निकलता, कौन चला गया इतनी सर्दी में या किसका काल आ गया इस बारिश में या फिर कौन चल दिया दिवाली के दिन।

वैसे तो अक्सर मालूम ही रहता कि कौन गुजर गया है। बहुत छोटा भी नहीं था हमारा कस्बा, लेकिन किसी भी परिवार में कोई गुजर जाता तो खबर हवा की तरह सभी के पास अपने आप पहुंच जाती। सुबह सात बजे से पहले यदि कोई दरवाजे पर दस्तक देता तो हम दरवाजा खोलने नहीं जाते, प्राय: पापा ही जाते तो मम्मी पूछतीं, कौन चला गया इतनी सुबह! पापा आशंका जताते, महेश की हालत खराब थी, रात कहीं गुजर तो नहीं गया।

दरवाजा खोलने पर जान-पहचान के दो-चार लोग सामने खडे होते और महेश के गुजर जाने की सूचना तो देते, लेकिन कोई अंदर नहीं आता। पापा भी जल्दी में कपडे बदलते और जूते पहनकर उन लोगों के साथ चल देते। मम्मी की दिनचर्या भी उस दिन बदल जाती। सामान्य दिनों में वह सारे काम निबटाकर सुबह नौ बजे तक नहा लेती, लेकिन ऐसे दिनों में वह दूसरे काम तो करती रहतीं, लेकिन नहाती नहीं थीं। फिर मुझे हिदायतें देने लग जातीं, पापा आएंगे तो उन्हें यह-यह कपडे दे देना। वे तो गंगा घाट जाएंगे ही, मुझे भी लौटने में बारह बज जाएगा। आज मेरा और तुम्हारा ही खाना बनेगा, तुम्हारे पापा तो शाम देर तक ही लौट पाएंगे आदि-आदि। फिर हल्की बदरंग साडी लपेट लेतीं। मैं कहती, यह नहीं, कोई ठीक-सी साडी पहनकर जाओ। इतने लोग आएंगे, सबके सामने क्या अच्छी लगेगी यह। इस पर वे मुझे डांट देतीं, वहां क्या किसी की शादी हो रही है? किसी को होश ही नहीं होगा साडी-वाडी देखने का। मैं कहती, अच्छा, चाय तो पी कर जाओ। तब फिर वह मुझे समझातीं, ऐसे में मन नहीं करता कुछ खाने-पीने का, अब लौट कर ही पिऊंगी चाय भी। कहकर वे भी पापा की तरह तेज कदमों से निकल जातीं, मानो वहां उनका भी इंतजार हो रहा होगा।

मै भी अपने कामों में लग जाती। कोई दरवाजा थपथपाता, अरी गुडिया, तेरे पापा हैं घर में? दरवाजा खोलते हुए मैं कहती, पापा तो नहीं हैं..

अच्छा, चले गए, ठीक है। दरवाजा बंद कर लो। किसी को बताने की जरूरत नहीं पडती थी कि पापा कहां गए हैं। पूछने वाला स्वयं समझ जाता कि आज सब लोग कहां गए होंगे। फिर ग्यारह-बारह बजे के आसपास पापा आते और बहुत जल्दी में कहते, ला, मेरे कपडे दे दे। और फिर कुछ रुपये लेकर चल देते।

पापा, चाय तो पी लो। मैं कहती।

नहीं, सब कुछ तैयार है। घाट ले जा रहे हैं, कहीं निकल न जाएं। कहते हुए पापा तेजी से निकल जाते।

मम्मी भी चार-पांच घंटे बाद लौटतीं। नहाने के कपडे मांगतीं और शुरू हो जातीं, वह तो पागल ही हो रही थी रो-रो कर। दो छोटे-छोटे बच्चे छोडे हैं महेश ने। कैसे-क्या करेगी बेचारी! और फिर दिन भर महेश के परिवार की ही बातें होती रहतीं। शाम को पापा गंगा घाट से लौटकर आते तो फिर वही बातें दोहराई जातीं।

कोई ऐसी मृत्यु होती, जिसकी सूचना हमें न मिल पाती तो तेजी से आती राम नाम सत्य है की आवाज सुनकर मां तेज कदमों से जातीं और दरवाजे की आड लेकर खडी हो जातीं। मैं भी खिडकी से झांकती। समूह में पच्चीस-तीस लोग तो होते ही। मरने वाला यदि किसी अच्छे घर का होता तो लोगों की संख्या सौ से ऊपर भी पहुंच जाती। लोगों का समूह तेजी से बढता हुआ हमारे दरवाजे के सामने से निकल जाता। एक अजीब-सी तेजी होती उनकी चाल में। जहां-जहां से अर्थी गुजरती, सभी लोग उसके लिए राह छोड देते। अधिकतर लोग उस समूह में शामिल होकर कुछ दूर तक अर्थी का साथ भी देते। अर्थी के साथ जाने वालों की चाल इतनी तेज हो जाती कि अन्य लोगों की चाल कुछ पल के लिए धीमी हो जाती। हम उस समूह के चेहरे पहचानने की कोशिश करते रह जाते। फिर लोगों को देखकर अनुमान लगाते कि शव किधर से आया है, किस मोहल्ले का है और किसकी मृत्यु हुई है?

अर्थी के गुजर जाने के बाद मम्मी उस घर की औरतों के आने का इंतजार करतीं, जो मंदिर में हाथ धोने की रस्म अदा करने जातीं। उनमें से किसी से वे पूछतीं, कौन था वह, क्या उम्र थी, क्या बीमारी थी। फिर अंदर आकर हमे सब कुछ बतातीं। रात को जब पापा दुकान से घर लौटते तो चर्चा का विषय मरने वाला ही होता। उससे एकदम अलग थी दिल्ली की यह अर्थी। सभी लोग बहुत शांत और लगभग मौन चल रहे थे।

राम नाम सत्य है भी कोई नहीं बोल रहा था। शायद उन्हें शर्म आ रही होगी सडक पर जोर से बोलने में। दस-ग्यारह व्यक्ति ही रहे होंगे अर्थी के पीछे। वे भी इधर-उधर बिखरे-बिखरे से चल रहे थे। लग रहा था कि जैसे इन्हें जबरदस्ती लाया गया है। दिल्ली में किसके पास फुर्सत है मरते या मरे हुए आदमी के लिए! अपना समय वे क्यों बर्बाद करें? वैसा दिल भी नहीं है शायद दिल्ली वालों के पास, जिसमें गांव-कस्बे के लोगों जैसा अपनापन बसता हो।

इस बीच मेरे पीछे आ खडी हुई कलीग बता रही है कि मेट्रोज में अर्थी को कंधे पर ले जाने की परंपरा खत्म हो रही है। लोग उसे वाहन में ले जाने लगे हैं। मरने वालों को सब का कंधा देने की जरूरत नहीं समझी जा रही।

बुधवार, 20 जनवरी 2010

चुटकुले

पाँच जानवर
ओमप्रकाश बंछोर

चिंटू- पाँच जानवरों के नाम बताओ जो पानी में रहते हैं? बिट्‍टू- एक मेंढक। चिंटू- ठीक है और चार। बिट्‍टू- मेंढक के दो भाई, बहन और उसकी माँ।

चीनी

चीनी लड़की को अपने बेटे के साथ देखकर माँ बोली- बेटा ये क्या ले आए हो? चिंटू- माँ आपने खुद ही कहा था कि घर आते हुए चीनी लेते आना।

संख्या

एक दोस्त ने दूसरे से कहा- यार, मैं सोच रहा हूँ ‍कि इस दुनिया में बेवकूफों की संख्या कितनी होगी? दूसरा दोस्त- यार, अपने बारे में ही सोचते रहते हो, कभी दूसरों के बारे में सोचा करो।

महँगाई का जमाना

जज ने चोर से कहा- क्या तुम कुछ दिन पहले सौ रुपए चुराने के आरोप में पकड़े गए थे? चोर- साहब! इस महँगाई के जमाने में सौ रुपए भला कितने दिनों तक चलते हैं।

आज्ञा

चिंटू (गेट पर खड़े व्यक्ति से)- क्या तुम्हें पता नहीं कि आज्ञा के बिना अन्दर आना मना है। व्यक्ति- जनाब! आप समझे नहीं... मैं आज्ञा लेने के लिए ही अन्दर आया हूँ।