रविवार, 29 नवंबर 2015

दबंग देहाती में काम कर मै बहुत खुश हूँ : दिव्या

  छालीवुड में कुछ बनकर जरूर दिखाउंगी
छत्तीसगढ़ी फिल्म दबंग देहाती से छालीवुड में कदम रखने वाली दिव्या यादव यूँ तो कई शार्ट फिल्मे कर चुकी है यह उनकी पहली फीचर फिल्म है। वे कहती है कि पहली ही फिल्म में सुपर स्टार करण खान के साथ काम करने का अपना अलग ही मजा है। फिल्म की शूटिंग चल रही है और मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। अच्छा सोचकर इस लाईन में कदम रखी हूँ तो एक दिन छालीवुड में कुछ बनकर जरूर दिखाउंगी। दिव्या यादव से हमने कई मुद्दों पर बेबाक बात की है।
0 फिल्म दबंग देहाती में आपका क्या रोल है और कैसे कर पा रही है?
00 ये मेरी पहली फिल्म है मुझे दूसरी नायिका का रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। एक तो बड़े कलाकार करन खान के साथ काम कर रही हूँ। इसका अपना अलग ही मजा है। करन खान के बारे में जितना सूना था उससे ज्यादा अच्छा है। बस अभी तो सीख रही हूँ।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 नहीं इसके पहले कई शार्ट मूवी कर चुकी हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है? 
00 जल्दी जल्दी फिल्मे आने से दर्शको का मन भंग हो जाता है। राजा छत्तीसगढ़िया को देखिये कैसी भीड़ खींच रही थी फिर मया 2 भी अच्छी चली । ऐसे ही फिल्मो की जरुरत है दर्शको को।

0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। आईना के सामने खड़ी होकर एक्टिंग किया करती थी।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से खीखा है । मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। करन खान ने मुझे मेरा काम देखा और मौका दिया है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रही थी। इसी लाईन पर काम करती रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है।
0 सरकार को आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड को मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये ताकि टाकिज मालिकों की मनमानी खत्म हो जाए।छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।

0 आप फिल्मो में भूमिका को लेकर कैसा महसूस करते हैं ?
00 जब मैं कोई भूमिका निभाती हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करती हूँ।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छी एक्ट्रेस बनना चाहती हूँ। 

बुधवार, 18 नवंबर 2015

अभिनय में जीवंत पैदा करती है ये अभिनेत्रियां

छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित माँ एक नजर में 
व्यक्ति के जीवन रुपी ईमारत की बुनियाद माँ है 7 ईमारत चाहे जैसी भी बने लेकिन सबसे पहले बुनियाद डालनी ही पड़ती है, उसी प्रकार किसी भी जीवन की उत्पत्ति के लिए माँ जैसी बुनियाद आवश्यक है माँ  को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है किन्तु अगर मैं माँ  को परिभाषित करने की असफल कोशिश करता हूँ तो
पाता हूँ की  माँ  वो है जो सिर्फ और सिर्फ देना जानती है7 जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था।  छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी छह ऐसी चर्चित अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो  उपासना वैष्णव ,पुष्पांजली शर्मा , श्वेता शर्मा ,उर्वशी साहू , उषा विश्वकर्मा और भानुमति कोसरे का नाम आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। वैसे तो कई और अभिनेत्रियां है जिन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ का किरदार निभाया है पर परदे पर इन छह को ज्यादा सराहा गया। आज हम जिन छह अभिनेत्रियों की बात कर रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसिएशन ने बेस्ट अभिनेत्री के एवार्ड से सम्मानित कर चुके हैं।

पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खींच लाया 
अभिनेत्री पुष्पांजली ने मां की भूमिका निभाकर एक अलग अध्याय रचा है। उन्हें प्रकाश अवस्थी, अनुज शर्मा,
करण खान, चन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है। पुष्पांजली ने 71 फिल्मों में माँ की भूमिका निभाई है। मया के घरौंदा में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुना, टूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। लेकिन पुष्पांजली खुद विदाई और मया 2 में अपनी भूमिका को सबसे अच्छी मानती है। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। डायरेक्टर एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका हौसला अफजाई किया, जिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्न को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ। 80  से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। उनकी तमन्ना इस भूमिका को लगातार आगे भी जीते रहने की है।

अच्छे कामों से मिला श्वेता को मुकाम
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री राखी की तरह अदा बिखेरने के कारण ही श्वेता शर्मा को छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कहा जाने लगा है। श्वेता हर तरह की भूमिका निभाने में माहिर है। करीब 15  माँ फिल्मो में माँ की भूमिका निभा चुकी श्वेता कहती है कि मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उनकी एंट्री भी नाटकीय ढंग से हुई थी। कोरियोग्राफर मनोजदीप ने उन्हें मंच दिया और फिल्मो में काम करने को प्रोत्साहित किया ,बस फिर क्या था फिल्मो में आ गयी । कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद श्वेता ने अपने अभिनय को ऐसे निभाया कि हर तरफ उनके कामों की तारीफ़ होने लगी और उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कही जाने लगा। निर्देशक एजाज वारसी ने ही पुष्पांजली की तरह इन्हें भी ब्रेक दिया और आज एक सफल अभिनेत्री है। श्वेता की भूमिका को लोगो ने कई फिल्मो में सराहा लेकिन श्वेता को खुद राजा छत्तीसगढिय़ा में अपनी भूमिका बहुत पसंद है। वो बताती है कि बिना तैयारी के शूटिंग में गयी थी और बेहतर ढंग से भूमिका निभा पाई।

लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति
राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति कोसरे छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती है। वे सम्मान की भूखी है , कहती है कि कलाकार को सम्मान चाहिए। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गा चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में  बनाई है। 15 छत्तीसगढ़ी फि़ल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। कारी, ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर,  भुला झन देबे, सजना मोर, छलिया, मया 2, सिधवा सजन उनकी चर्चित फिल्मे हैं। भानुमति अपनी हर भूमिका में ऐसे रम जाती है जैसे वे असल जिंदगी हो। उनकी इसी कला के चलते निर्माता उन्हें पसंद करते है।

उपासना को निगेटिव रोल पसंद है 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की सबसे सीनियर अदाकारा उपासना वैष्णव ने अब तक 85 फिल्मे की है जिसमे अधिकाँश फिल्मों में वे माँ की भूमिका में ही है। उसने हिन्दी,तेलुगु और भोजपुरी फिल्मे भी की है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उपासना बच्चों पर प्यार लुटाती हुई नजर आती है पर उसे खुद निगेटिव रोल पसंद है। मया फिल्म
में उन्होंने निगेटिव किरदार किया है जिसे दर्शकों ने खूब पसंद कियायह भूमिका उन्हें भी पसंद है। तँहू दीवाना महू दीवाना से वह खलनायिका के नाम से चर्चित हुई ,लकिन मोर डौकी के बिहाव में वह नायिका के रूप में सामने आई। क्षमानिधि मिश्रा ने इस रोल में उन्हें आजमाया और सफल रहे। उपासना कहती है कि रोल कोई भी हो उसे जीवंत बनाना ही उनका शौक है। अब वह कुछ हटकर रोल करना चाहती है। वे कहती है कि हमारी इमेज एक साफ सुथरी और आदर्श नायिका की होती है जिसे पूरी तरह भुला कर हमें एक ऐसा किरदार निभाना पड़ता है जो खलनायिका के गुण भी दिखा दें और दर्शक भी उसे पसंद करें ।

माँ की भूमिका पसंद है उर्वशी को 
`छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित नाम है उर्वशी साहू जिन्होंने 19 फिल्मों में माँ और भाभी की भूमिका निभाई है। झन भुलाहू माँ-बाप ला उनकी एक बेहतरीन फिल्म है जिसमे उन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। मोर डौकी के बिहाव में तो उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। इस फिल के लिए उन्हें बेस्ट चरित्र अभिनेत्री का एवार्ड भी मिला। उर्वशी कहती है कि उसे सभी तरह के रोल पसंद है।

आदरणीय होती है माँ की भूमिका : उषा 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ की भूमिका निभाने वाली उषा विश्वकर्मा कहती है कि माँ की जो भूमिका होती है,
उसकी अकसर कदर नहीं की जाती और कभी-कभी तो उसे नीची नजऱों से देखा जाता है। उनका मानना था कि नौकरी-पेशा, बच्चे से ज़्यादा ज़रूरी है और यह भी कि बच्चों को सँभालना किसी सज़ा से कम नहीं। उषा 9 फिल्मे कर चुकी है जिसमे दगाबाज को वह अपनी सबसे बेहतर फिल्म मानती है। वे कहती है कि माँ की भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है और आगे भी वह इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी। 

बुधवार, 4 नवंबर 2015

फिल्मों की आउट सोर्सिंग करनी होगी- प्रकाश अवस्थी

मया 2 से काफी उम्मीदें हैं,  छत्तीसगढ़ी फिल्मों की पायरेसी नहीं 
- अरुण कुमार बंछोर
छत्तीसगढ़ फिल्मों के सुपेर स्टार प्रकाश अवस्थी का कहना है कि थियेटर में प्रदर्शन के अलावा और किन- किन तरीकों से आय हो सकती है इस विषय पर विचार कर उसके आय के संसाधन बढ़ाने होंगे। उन्हें अपनी आने वाली फिल्म मया 2 से काफी उम्मीदें हैं। वे कहतें हैं कि ये अच्छी बात है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों की पायरेसी नहीं हो रही है। जबकि हिन्दी फिल्मों की पायरेटेड सीडी एक हफ्ते बाद बाजार में उपलब्ध हो जाती है। लेकिन क्षेत्र छोटा होने की वजह से वीडियो राइट्स से ज्यादा आमदनी भी नहीं होती है। इस क्षेत्र में और कारपोरेट कंपनियां आयेंगी तब हो सकता है कि प्रतिस्पर्धा में कुछ हो। मया, टूरा रिक्शा वाला, टूरा अनाड़ी तभो खिलाड़ी,दू लफाडू जैसी सुपर हिट फिल्मों में हीरो से सुपर स्टार बने प्रकाश अवस्थी इन दिनों पहली छत्तीसगढ़ी सीक्वल फिल्म मया टू का निर्माण कर रिलीज की तैयारी में जुटे है। वे इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। छत्तीसगढ़ी के अलावा बंगला फिल्म,भोजपुरी और हिन्दी फिल्म अग्निशिक्षा में कार्य किया हैं। श्री अवस्थी से हमने हर पहलूओं पर बात की है। प्रस्तुत है बातचीत के अंश।
0 मया 2 आपकी दिवाली ने आ रही है उसमे दर्शकों के लिए ऐसा क्या है ?
00 मया टू में पारिवारिक स्टोरी के अलावा कामेडी के तड़के के साथ मसाला मूवी से लोगों को मनोरंजन होगा यह उम्मीद है।यह दो भाईयों की कहानी वाली एक बेहतरीन फिल्म है।
0 मया 2 में आपकी भूमिका क्या है?
00 मया 2 में मैं मुख्य भूमिका में हूँ। यह एक पारिवारिक कहानी है। दो भाई है जिसके प्यार और टकराव को लेकर बनाया गया है।
0 छत्तीसगढ़ी फिल्मो के अलावा भोजपुरी और उडिय़ा फिल्मो की भी यहां शूटिंग होने लगी है। वहां के कलाकार भी यहां की फिल्मो में काम कर रहे है। क्या यहां कलाकारों की कमी है?
00  छत्तीसगढ़ी सिनेमा में शौकिया तौर पर फिल्म बनाने वाले लोग बड़ी संख्या में आ रहे है। कई भाषाओं में क्षेत्रीय फिल्म निर्माण से छत्तीसगढ़ी फिल्मों की आउट सोर्सिंग हुई है भोजपुरी, और उडिय़ा से नया बाजार मिला है इसी तरह और भी तरीके ईजाद करने से इंडस्ट्रीज के सभी लोगों का भला होगा। यहां कलाकारों की कतई कमी नहीं है।
0 आपने भोजपुरी और बंगाली फिल्मे भी की है तो उस ओर रुझान कैसे हुआ?
00 श्रेय जी की फिल्म चिंगारी के जरिये मैं फिल्मो में आया था। उन्होंने मेरा काम कई फिल्मो में देखा था उन्होंने ऑफर दिया और मैंने काम शुरू कर दिया । मैंने चिंगारी की शूटिंग ख़त्म ही किया था तभी केडी ने मुझे टिपटॉप लैला अंगूठा छाप छैला के लिए ऑफर दिया। इस तरह भोजपुरी फिल्मो में एंट्री हुई।
0 छत्तीसगढ़ी फिल्मो के आपको सुपरस्टार मना जाता है , क्या यही मुकाम आप वहां भी बना पाएंगे?
00 दोनों ही जगहों का माहौल अलग अलग है। मन में दृढ़ इच्छा हो तो सब संभव है। मैंने बहुत कोशिश की है। सतीश जैन जी मेरे डायरेक्टर होते तो शायद मैं भी सुपर स्टार बन जाता।
0 आप किस तरह का रोल करना पसंद करते है?
00 मुझे सभी तरह का लीड रोल पसंद है। नेचुरल रोल ही करना चाहूँगा।
0 आगे की क्या योजना है.कौन सी फिल्म बनाएंगे?
00 आगे भी फिल्म बनाता रहूँगा। निर्देशन तो मैंने मजबूरी म किया है। मैं चाहता हूँ की और डायरेक्टर आये और फिल्म बनाये।
 0 सरकार से छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री को कैसी मदद की अपेक्षा करते हैं ?
00 छत्तीसगढ़ फिल्मों को थियेटरों की कमी से जूझना पड़ रहा है अगर सरकार सहूलियत दे और कारपोरेट सेक्टर प्रदेश में सौ-डेढ़ सौ नए सिनेमाघर बना दे तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों का रंग ही बदल जायेगा। उद्योगों की तरह रियायती दर में जमीन और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स के निर्माण की अनुमति से नहीं कंपनियां सिनेमाघरों के निर्माण के लिए आकर्षित हो सकती है।

सोमवार, 2 नवंबर 2015

एक ऐसा गाँव जहां 75 हजार से भी ज्यादा नीम पेड़ है

देश में सर्वाधिक नीम पेड़ों वाले टॉप 5 गाँवों में शामिल है गाँव सलोनी 
सन स्टार स्पेशल - अरुण कुमार बंछोर
रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गाँव है जहां आप जिधर भी जाओ सिर्फ नीम के ही पेड़ नजऱ आएंगे। इस गाँव को नीम गाँव भी कहा जाता है। सबसे मजेदार और गंभीर बात यह है कि इस गाँव के लोग कभी बड़े बीमारी से ग्रसित नहीं होते हैं। क्योंकि नीम को भारत में 'गांव का दवाखानाÓ कहा जाता है।

नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है। यहाँ तक कि यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है। नीम को संस्कृत में 'अरिष्टÓ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, 'श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला।Óजी हाँ हम बात कर रहे है धमतरी जिले के गाँव सलोनी की ,जो देश में सर्वाधिक नीम पेड़ों वाले टॉप 5 गाँवों में शामिल है। लगभग 450 घरों वाले गाँव में 75 हजार से अधिक नीम पेड़ है। इसका श्रेय जाता है सरपंच वामन साहू को जिन्होंने हर तरफ नीम पेड़ का ही वृक्षारोपण कराया। सलोनी को हराभरा गाँव का भी दर्जा प्राप्त है। सन 2009 में तात्कालीन वन मंत्री विक्रम उसेंडी इस गाँव को देखकर हतप्रभ रह गए थे । मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी इस गाँव की सराहना कर चुके है।

छत्तीसगढ़ के सिहावा नगरी ब्लाक का गांव सलोनी में आप जहां भी जाएंगे नीम पेड़ ही आपका स्वागत करेगा। सड़क के दोनों और नीम पेड़ सुन्दरता का एक मिसाल है। गाँव की खाली जमीन पर एक दो नहीं बल्कि कई वृक्षारोपण है,जिसमे नीम का ही पेड़ है। नीम पेड़ के साथ साथ कहीं कही पर फलदार और औषधीय पौधे लगाए गए हैं। ये इस बात का प्रतीक है कि गाँव के ;लोग पर्यावरण के प्रति कितने जागरूक है। हमने सरपंच वामन साहू के साथ पूरे वृक्षारोपण का अवलोकन किया। उन्होंने बताया कि अपने 25 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने सिफर पेड़ों से ही प्यार किया है। गाँव में पहले कुछ भी नहीं था। जब सड़कें बनी तब वन विभागों के अफसरों से आग्रह कर सड़क के दोनों किनारे पर नीम पेड़ का रोपण कराया। खुद उसकी देखभाल की। पहले अफसर कहते थे यहां पेड़ नहीं जी पाएंगे आज वही अफसर इस गाँव की तारीफ़ करते नहीं थकते हैं। क्योकि इस गाँव की जमीन पथरीली है जिसमे पेड़ पौधे कम ही जि़ंदा रह पाते है। ओर गाँव वालों की मेहनत और पर्यावरण के प्रति प्यार ने गाँव को हरा भरा बना दिया है।
नीम पेड़ ही क्यों ,फलदार पौधे क्यों नहीं लगाए। इसके जवाब में सरपंच साहू का कहना है कि नीम के अर्क में मधुमेह यानी डायबिटिज, बैक्टिरिया और वायरस से लडऩे के गुण पाए जाते हैं। नीम के तने, जड़, छाल और कच्चे फलों में शक्ति-वर्धक और मियादी रोगों से लडऩे का गुण भी पाया जाता है। इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होती है। वे कहते हैं कि आने वाले समय में पत्ते,नीम के फल हमारे गाँव के लिए अर्थ का जरिया बनेगा। सोच अच्छी है क्योकि नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं। इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लडऩे वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं। इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है। नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लडऩे के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं।

 आजकल हमारी जिन्दगी में देसी नुस्खो का कोई खास स्थान तो नहीं है क्योंकि अमूमन सभी लोग अंग्रेजी दवाओं पर अधिक से अधिक निर्भर है शायद इसलिए कि वो जल्दी असर करती है 7 मेरा मानना है कि शायद ऐसा नहीं है आप अगर गौर से देखें तो हमारे आस पास पर्यावरण ने हमे बहुत से औषधियुक्त पौधे दिए है
जिनके इस्तेमाल से हम कुछ छोटी मोटी परेशानियो को बड़ी आसानी से दूर कर सकते है और नीम भी उनमे से एक है 7 साथ ही कुछ गंभीर बीमारीओं में भी समय के साथ उचित मार्गदर्शन में अगर हम औषधि युक्त पौधों का सेवन करते है तो उनसे निजात पाई जा सकती है 7
वामन साहू सरपंच सलोनी