शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

विद्या बालन का बचपन

राधा के रोल से नई शुरुआत हुई थी
साथियो,
मैं मुंबई में पैदा हुई और यहीं बड़ी हुई हूँ। मुंबई के चेंबूर इलाके में मेरा घर है। यह बड़ा ही प्यारा इलाका है। हम दक्षिण भारतीय अय्यर हैं और ज्यादातर दक्षिण भारतीय अय्यर परिवार चेंबूर में रहते हैं। तो दोस्तो, मेरा बचपबन चेंबूर में बीता। बाकी मुंबई की तरह यहाँ जिंदगी ज्यादा तेज नहीं है। यहाँ न तो ज्यादा डिस्को है औ न ही ज्यादा बड़े शॉपिंग मॉल वगैरह। यह इलाका मुंबई में होते हुए भी मुंबई की भागदौड़ से अलग है। शांत जगह रहने का अपना मजा है और मेरे बचपन के दिन इसी सुकून भरी जगह में बीते।
दोस्तो, हमारे परिवार में संगीत, दूसरी कलाओं में और पढ़ाई को बहुत महत्व दिया जाता था। बचपन में हमारे घर के आसपास रहने वाले ज्यादातर बच्चों की रुचि शास्त्रीय संगीत सीखने में रहती थी। सालभर हमारे मोहल्ले में बहुत-सी प्रतियोगिताएँ भी होती थीं जिनमें बच्चों को भाग लेने का मौका मिलता था। इन प्रतियोगिताओं में जीतने से ज्यादा महत्व भाग लेने का होता था।
मैं भी बचपन में नाटक में भाग लेती थी। पर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी। चेंबूर में मेरा बचपन बहुत सारे दोस्तों और भाई-बहनों के बीच बीता इसलिए मुझे बचपन में अकेलापन या बोरियत महसूस नहीं हुई। बल्कि हम मिलकर बहुत सारी शैतानियाँ करते थे।
दोस्तो, मेरी बड़ी बहन प्रिया और मैं बचपन में खूब मस्ती करते थे। प्रिया मुझसे चार साल बड़ी थी और वह बहुत बातूनी थी। उसकी खासियत यह थी कि वह सभी से जल्दी ही दोस्ती कर लेती थी। मैं इस मामले में थोड़ी संकोची और शर्मीली लड़की थी। मैं किसी के साथ ज्यादा घुलमिल नहीं पाती थी। यह बात बताते हुए मुझे थोड़ी हँसी भी आती है कि बचपन में खासी मोटी थी।
इसलिए जब भी दीदी से लड़ाई होती थी तो मैं उसे हरा देती थी। वैसे इन छोटी लड़ाइयों के बाद भी हम दोनों में बहुत प्यार था। प्रिया दीदी मुझे पढ़ाई से लेकर दूसरी सारी चीजों में हमेशा मदद करती थी। हम दोनों में बहनों का रिश्ता बाद में था और अच्‍छी दोस्त का पहले।मुझे याद है कि हम दोनों का स्कूल भी एक ही था। सेंट एंथोनी'ज गर्ल्स स्कूल। पापा हम दोनों को स्कूटर पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाते थे। आज भी मुझे उन दिनों की बहुत याद आती है। बचपन के दिनों की सारी शैतानियाँ बड़ा हो जाने पर याद आती है और हमें हँसा जाती है। आज मैं फिल्मों में अभिनय करती हूँ तो इसकी शुरुआत नर्सरी से ही हो गई थी। नर्सरी में हम्टी-डम्टी पर एक स्टेज परफार्मेंस होना थी। मम्मी बताती है कि उन्होंने मुझे चॉकलेट का लालच देकर यह रोल करने को राजी किया था। इसके बाद भी दोस्तों सातवीं कक्षा तक स्टेज पर जाने से मुझे डर लगता था। स्कूल में होने वाली प्रतियोगिताओं से मैं दूर ही रहती थी पर सातवीं कक्षा के बाद जब मैं आठवीं में थी तो शांता मिस ने मुझे एक प्ले में राधा का रोल दिया।
मैंने डरते-डरते वह रोल किया। राधा के रोल में मुझे खूब पसंद किया गया। इसके बाद अगले साल फिर से मुझे राधा का रोल मिला। तो इस तरह स्कूल के दिनों में एक्टिंग की शुरुआत हुई। दोस्तो, मैंने जब एक बार इन प्रतिय‍ोगिताओं में भाग लेना शुरू किया तो फिर मुझे इनमें पढ़ाई से ज्यादा मजा आने लगा था। स्कूल के दिनों में जो कुछ भी एक्टिंग इस तरह सीखी थी। उसी की वजह से आगे चलकर मैं अभिनेत्री बन पाई। तो आप भी स्कूल के दिनों में अपनी पसंद के काम जरूर करो। स्कूल के दिनों में सभी कामों में हिस्सा लो।
मेरा आप सभी से यही कहना है कि स्कूल में होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना ही चाहिए। इनमें आपको सीखने को बहुत कुछ मिलेगा। वैसे अब इन प्रतियोगिताओं का समय तो निकल चुका है और पढ़ाई का समय आ गया है। तो इस समय मन लगाकर पढ़ाई करो। फिर जब अगले साल स्कूल या कॉलेज का नया सत्र शुरू होगा तो सारी एक्टिविटीज में भाग लेना।

आपकी दोस्त
विद्या बालन

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