पहाड़ियों के बीच एक छोटा सा गाँव था। गाँव में बसंत के आसपास पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते और सड़कों पर कचरा जमा हो जाता। पत्ते तालाबों में भी तैरते रहते। पूरे शहर में कचरा ही कचरा नजर आता।
ऐसे में गाँव के नगर पालिका सदस्यों ने तय किया कि इस काम के लिए किसी को नियुक्त कर लेना चाहिए ताकि वह रोजाना सफाई का काम देखे।
कुछ ही दिनों में इस काम के लिए एक बूढ़े व्यक्ति को नियुक्त कर दिया गया। बूढ़ा अपने काम के प्रति ईमानदार था। वह दिनभर काम में लगा रहता।
बूढ़ा रोजाना सड़कों की सफाई करता, तालाब की सुंदरता का खयाल रखता और पेड़ों की सलीके से काँट-छाँटकर करता। देखते ही देखते उसने पूरे कस्बे की शक्ल सुधार दी। बूढ़े की देखरेख में कस्बा दिनोंदिन निखरता गया।
कुछ ही महीनों में कस्बा इतना सुंदर हो गया। कई पंछी वहाँ आने लगे। पर्यटक भी अपनी छुट्टियाँ बिताने के लिए कस्बे में रुकना पसंद करने लगे। कस्बे की नगर पंचायत को सुंदरता के लिए कई पुरस्कार मिले और कस्बे की आय में भी बढ़ोतरी हुई।
इसके बाद काउंसिल की एक बैठक और हुई। इसमें किसी सदस्य की नजर बूढ़े को दी जाने वाली तनख्वाह पर पड़ी। उसे यह खर्च अनुपयुक्त लगा। वह बोला कि गाँव की सफाई के लिए जो आदमी रखा है उस पर बहुत पैसा खर्च हो रहा है। बाकी सदस्यों ने इसमें हाँ मिलाई और बूढ़े को काम से हटाने का निर्णय ले लिया गया।
अगले दिन से बूढ़े को काम पर से हटा दिया गया। बूढ़े ने अपने लिए कुछ और काम ढूँढ लिया।
बूढ़े ने जिस दिन से अपना काम बंद कर दिया। उसके कुछ दिनों तक तो कोई खास फर्क दिखाई नहीं दिया। पर महीने, दो महीने में कस्बे की हालत फिर से पहले जैसी हो गई। लोगों ने देखा कि पेड़ों के पत्तों से सड़कें अटी पड़ी हैं। तालाबों में कचरा जमा हो गया है। पंछियों ने इस तरफ आना छोड़ दिया और पर्यटकों का आना भी बंद हो गया है। अचानक कस्बे की रौनक चली गई है।
काउंसिल ने फिर से बैठक की। सभी ने स्वीकार किया कि उस बूढ़े व्यक्ति ने ही इस कस्बे को सुंदर बनाया था। सदस्यों ने माना कि उनसे गलती हुई। उन्हें उस भले आदमी की कद्र करना चाहिए थी। कुछ दिनों बाद उस बूढ़े को फिर से उसके काम पर रख लिया गया। इस बार उसकी तनख्वाह भी पहले से बढ़ा दी गई।
सीख : ठीक ही कहा गया है अच्छे काम की जरूरत दुनिया में हमेशा बनी रहेगी। लोग भले शुरुआत में अच्छे काम को नहीं पहचानें, पर देर-सबेर अच्छा काम अपनी जगह खुद बना लेता है।
ऐसे में गाँव के नगर पालिका सदस्यों ने तय किया कि इस काम के लिए किसी को नियुक्त कर लेना चाहिए ताकि वह रोजाना सफाई का काम देखे।
कुछ ही दिनों में इस काम के लिए एक बूढ़े व्यक्ति को नियुक्त कर दिया गया। बूढ़ा अपने काम के प्रति ईमानदार था। वह दिनभर काम में लगा रहता।
बूढ़ा रोजाना सड़कों की सफाई करता, तालाब की सुंदरता का खयाल रखता और पेड़ों की सलीके से काँट-छाँटकर करता। देखते ही देखते उसने पूरे कस्बे की शक्ल सुधार दी। बूढ़े की देखरेख में कस्बा दिनोंदिन निखरता गया।
कुछ ही महीनों में कस्बा इतना सुंदर हो गया। कई पंछी वहाँ आने लगे। पर्यटक भी अपनी छुट्टियाँ बिताने के लिए कस्बे में रुकना पसंद करने लगे। कस्बे की नगर पंचायत को सुंदरता के लिए कई पुरस्कार मिले और कस्बे की आय में भी बढ़ोतरी हुई।
इसके बाद काउंसिल की एक बैठक और हुई। इसमें किसी सदस्य की नजर बूढ़े को दी जाने वाली तनख्वाह पर पड़ी। उसे यह खर्च अनुपयुक्त लगा। वह बोला कि गाँव की सफाई के लिए जो आदमी रखा है उस पर बहुत पैसा खर्च हो रहा है। बाकी सदस्यों ने इसमें हाँ मिलाई और बूढ़े को काम से हटाने का निर्णय ले लिया गया।
अगले दिन से बूढ़े को काम पर से हटा दिया गया। बूढ़े ने अपने लिए कुछ और काम ढूँढ लिया।
बूढ़े ने जिस दिन से अपना काम बंद कर दिया। उसके कुछ दिनों तक तो कोई खास फर्क दिखाई नहीं दिया। पर महीने, दो महीने में कस्बे की हालत फिर से पहले जैसी हो गई। लोगों ने देखा कि पेड़ों के पत्तों से सड़कें अटी पड़ी हैं। तालाबों में कचरा जमा हो गया है। पंछियों ने इस तरफ आना छोड़ दिया और पर्यटकों का आना भी बंद हो गया है। अचानक कस्बे की रौनक चली गई है।
काउंसिल ने फिर से बैठक की। सभी ने स्वीकार किया कि उस बूढ़े व्यक्ति ने ही इस कस्बे को सुंदर बनाया था। सदस्यों ने माना कि उनसे गलती हुई। उन्हें उस भले आदमी की कद्र करना चाहिए थी। कुछ दिनों बाद उस बूढ़े को फिर से उसके काम पर रख लिया गया। इस बार उसकी तनख्वाह भी पहले से बढ़ा दी गई।
सीख : ठीक ही कहा गया है अच्छे काम की जरूरत दुनिया में हमेशा बनी रहेगी। लोग भले शुरुआत में अच्छे काम को नहीं पहचानें, पर देर-सबेर अच्छा काम अपनी जगह खुद बना लेता है।
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