तनाव से भरी भागती-दौड़ती इस जिंदगी में किसी के चेहरे पर खुशी बिखेरना शायद आसमान के तारे तोड़ना जितना कठिन काम है, लेकिन दुनिया में कई ऐसे लोग हैं, जो दूसरों को खुशी देना अपने जीवन का लक्ष्य बनाए हुए हैं।
बच्चों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘बालमन’ की संयोजक अन्वेषा खली ने बताया कि दुनिया के सितमों के मारे बच्चों के चेहरे पर खुशी देखना शायद जीवन का सबसे खुशनुमा पल होता है।
अन्वेषा ने कहा ‘दुनिया में बहुत से बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें प्यार करना तो दूर कोई दो शब्द ठीक से भी नहीं बोलता। हम कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों को आत्मसम्मान और खुशी दे सकें।’ अन्वेषा ने कहा ‘मैं लोगों से अपील करती हूँ कि वे जिंदगी में एक बार अनाथ और बेसहारा बच्चों को खुशी देने की कोशिश करें। इस खुशी को आप लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं खरीद सकते।’
दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा और कई संस्थाओं के साथ स्वयंसेवक के तौर पर काम करने वाली पीतमपुरा निवासी प्रगति दोषी ने बताया कि जरूरतमंदों की मदद करना दोस्तों के साथ पार्टी करने से ज्यादा खुशी देता है।
कुछ पश्चिमी देशों में तीन मार्च को ‘आई वांट यू टू बी हैप्पी डे’’ मनाया जाता है। हमारे देश में इस दिन का चलन नहीं है लेकिन दूसरों को खुशी देने के लिए समर्पित इस दिन का महत्व जरूर समझ में आता है।
प्रगति ने कहा ‘मैं किसी भी खुशी के मौके पर पार्टी नहीं करती, बल्कि इसकी जगह पर मैं जरूरतमंद लोगों की जरूरतें पूरी करने में विश्वास रखती हूँ। मैं शहर के कई अनाथालयों में जाकर वहाँ बच्चों के बीच खिलौने और कपड़े बाँटती हूँ।’ प्रगति ने कहा ‘कई बच्चों को खिलौने देकर मैंने उनके चेहरे की खुशी को संजोकर रखने के लिए अपने कैमरे का उपयोग किया। इन फोटो ने मुझे दो प्रतियोगिताओं में जीत भी दिलाई।’
कुछ ऐसी ही कहानी शासकीय कर्मचारी आरके धोटे की भी है। ‘आसरा’ संस्था के लंबे समय से स्वयंसेवक धोटे अपना हर अवकाश संस्था में रह रहे बुजुर्गों की सेवा को समर्पित करते हैं।
धोटे ने बताया ‘मैंने हमेशा से बुजुर्गों की सेवा में दुनिया की खुशी देखी। इन बुजुर्गों के साथ थोड़ा समय बिताकर उनके सुख-दुख की बात करना उनके लिए सबसे बड़ी खुशी है।’ धोटे ने बताया ‘कभी-कभी बुजुर्ग अपने परिवार को याद कर परेशान हो जाते हैं। ऐसे में उनके साथ बैठना बहुत जरूरी हो जाता है। हम अगर किसी को खुशी देते हैं, तो इसमें हमारा कुछ नहीं जाता, लेकिन उनके चेहरे
पर आई मुस्कान जो सुकून देती है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल का काम है।’
बच्चों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘बालमन’ की संयोजक अन्वेषा खली ने बताया कि दुनिया के सितमों के मारे बच्चों के चेहरे पर खुशी देखना शायद जीवन का सबसे खुशनुमा पल होता है।
अन्वेषा ने कहा ‘दुनिया में बहुत से बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें प्यार करना तो दूर कोई दो शब्द ठीक से भी नहीं बोलता। हम कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों को आत्मसम्मान और खुशी दे सकें।’ अन्वेषा ने कहा ‘मैं लोगों से अपील करती हूँ कि वे जिंदगी में एक बार अनाथ और बेसहारा बच्चों को खुशी देने की कोशिश करें। इस खुशी को आप लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं खरीद सकते।’
दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा और कई संस्थाओं के साथ स्वयंसेवक के तौर पर काम करने वाली पीतमपुरा निवासी प्रगति दोषी ने बताया कि जरूरतमंदों की मदद करना दोस्तों के साथ पार्टी करने से ज्यादा खुशी देता है।
कुछ पश्चिमी देशों में तीन मार्च को ‘आई वांट यू टू बी हैप्पी डे’’ मनाया जाता है। हमारे देश में इस दिन का चलन नहीं है लेकिन दूसरों को खुशी देने के लिए समर्पित इस दिन का महत्व जरूर समझ में आता है।
प्रगति ने कहा ‘मैं किसी भी खुशी के मौके पर पार्टी नहीं करती, बल्कि इसकी जगह पर मैं जरूरतमंद लोगों की जरूरतें पूरी करने में विश्वास रखती हूँ। मैं शहर के कई अनाथालयों में जाकर वहाँ बच्चों के बीच खिलौने और कपड़े बाँटती हूँ।’ प्रगति ने कहा ‘कई बच्चों को खिलौने देकर मैंने उनके चेहरे की खुशी को संजोकर रखने के लिए अपने कैमरे का उपयोग किया। इन फोटो ने मुझे दो प्रतियोगिताओं में जीत भी दिलाई।’
कुछ ऐसी ही कहानी शासकीय कर्मचारी आरके धोटे की भी है। ‘आसरा’ संस्था के लंबे समय से स्वयंसेवक धोटे अपना हर अवकाश संस्था में रह रहे बुजुर्गों की सेवा को समर्पित करते हैं।
धोटे ने बताया ‘मैंने हमेशा से बुजुर्गों की सेवा में दुनिया की खुशी देखी। इन बुजुर्गों के साथ थोड़ा समय बिताकर उनके सुख-दुख की बात करना उनके लिए सबसे बड़ी खुशी है।’ धोटे ने बताया ‘कभी-कभी बुजुर्ग अपने परिवार को याद कर परेशान हो जाते हैं। ऐसे में उनके साथ बैठना बहुत जरूरी हो जाता है। हम अगर किसी को खुशी देते हैं, तो इसमें हमारा कुछ नहीं जाता, लेकिन उनके चेहरे
पर आई मुस्कान जो सुकून देती है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल का काम है।’
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