रविवार, 4 अप्रैल 2010

है कोई भूत खरीदने वाला!


रोहित बंछोर
क्राइस्ट चर्च के रहने वाले मेलविन एस. ने यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि वह दो बोतलबंद भूतों को बेचना चाहता है। पहला भूत एक बुजुर्ग का है और दूसरा एक लड़की का। बिक्री के सामान की जानकारी देते हुए मेलविन ने बताया कि इन दोनों ने उसके घर में अजीब-अजीब हरकतें कीं। जैसे लाइट बंद-चालू करना, कुत्ते को डराना और चीजों को बिखराना।
फिर मेलविन ने एक ओझा की मदद से उन दोनों को एक बोतल में बंद कर दिया। जैसे ही दोनों भूत बोतल में बंद हुए, पानी का रंग नीला हो गया। मेलविन का कहना है कि उसे भूतों से डर लगता है इसलिए वह इन्हें बेचना चाहता है पर अगर किसी को भूतों की हरकतें मजेदार लगती हों तो वह इन्हें खरीद सकता है।
मेलविन की सूचना पर बहुत सारी प्रतिक्रियाएँ आईं। किसी एक ने तो यह भी कह दिया कि कहीं भूतों को शराब की बोतल में तो बंद नहीं किया वरना अब तो उन्हें चढ़ भी गई होगी।

मधुर संबंध
एडवर्ड और रोस टेट दंपति का श्रयूबरी में एक फॉर्म है। एक दिन उनके फॉर्म हाउस में एक घोड़े के नीचे दब जाने से मेबेल नाम की एक मुर्गी का पंजा जख्मी हो गया। मुर्गी को चलने में कठिनाई होने लगी और ठंड के दिनों में वह बाड़े में दुखी रहने लगी। टेट दंपति ने मुर्गी को मुश्किलों से बचाने के लिए अपने घर में आने दिया। इस तरह मेबेल नाम की यह मुर्गी टेट महोदय के घर में गर्माहट पाने लगी।
टेट महोदय के यहाँ एक पालतू कुतिया नेटल भी रहती थी। ठंड के उन्हीं दिनों में नेटल ने कुछ पिल्लों को जन्म दिया। बच्चों को जन्म देने के बाद नेटल दिन के वक्त धूप सेंकने के लिए बाड़े में जाकर बैठ जाती थी और उसके बच्चे घर में पड़े रहते थे। ऐसी हालत में मेबेल ने उन बच्चों को ममता की गर्माहट देने की जिम्मेदारी अपने आप ले ली।
मेबेल ने अपना बसेरा इन बच्चों के लिए खोल दिया और इन बच्चों को उसी तरह गर्मी पहुँचाई जिस तरह वह अंडों को सेने के लिए पहुँचाती है। टेट दंपति के घर में सभी तरह के प्राणियों के बीच ऐसे आपसी मधुर संबंध देखने को मिले। प्रकृति में और उसमें रहने वाले प्राणियों के बीच इस तरह के मधुर संबंध अवसर आने पर बन ही जाते हैं।

हब्बूराय और गब्बूराय
ओमप्रकाश बंछोर
राजा हब्बूराय राजदरबार में पहुँचे। पहुँचते ही अपने मंत्री गब्बूराय से बोले - 'सुन लो गब्बूराय, कल रातभर मुझे नींद नहीं आई।' 'क्यों महाराज, क्यों नींद नहीं आई?' गब्बूराय ने हाथ जोड़कर पूछा।' रातभर यही सोचता रहा कि ज्योंही मैं पैर जमीन पर रखता हूँ, पैरों में धूल-मिट्‍टी क्यों लग जाती है? तुम लोग हर महीने तनख्वाह तो मजे से लेते हो, लेकिन हो सबके सब निकम्मे। काम-धाम कुछ नहीं करते। मेरे ही राज में, मेरे ही पैरों में मिट्‍टी लगी रहे, छी:छी:छी: यह कितनी बुरी बात है। फौरन इसका कुछ इलाज करो। वरना, वरना तुम सबकी खैर नहीं। सुन लिया! राजा हब्बूराय ने धमकी दी।
सुनते ही गब्बूराय डर के मारे पसीना-पसीना हो गया। उसने सोचा, अब तो सचमुच जान गई। यह खबर सारे राजदरबार में फैल गई। सभी के होश उड़ गए। सभी डर के मारे थर-थर काँपने लगे। शहर में भी खबर पहुँच गई। किसी भी शहरी को रातभर नींद नहीं आई। किसी के भी चूल्हे पर तवा न चढ़ा।
मंत्री गब्बूराय की आधी सफेद, आधी काली दाढ़ी, आँसुओं से भीग गईं। राजा हब्बूराय के पैरों पर सिर रखकर वह गिड़गिड़ाया 'महाराज, आप एक बात सोचिए, अगर आपके पाँव में धूल न लगी तो हम लोग आपके चरण-कमलों की धूल अपने माथे पर कैसे लगाएँगे?'
राजा ने हब्बूराय ने मंत्री गब्बूराय की बात सुनी और फिर सिर हिला-हिलाकर उस पर गौर करने लगे। आखिर बोले - 'हूँ, हूँ! बात तो ठीक कहते हो।' लेकिन, लेकिन नहीं, पहले धूल को खत्म करो। पैरों की धूल माथे पर लगाने की बात बाद में सोची जाएगी।
सुनते ही मंत्री की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। देश, परदेश, विदेश, जहाँ से भी हो सका, उसने गाने-बजाने वाले, जंत्री, तंत्री, जादूगर, पंडित, वैद्य, हकीम, ज्योतिषी इकट्‍ठे किए। सभी के सभी अपनी-अपनी नाक पर चश्मे रखे इस कठिन समस्या का हल सोचने लगे। उन सबके खाने-पीने के प्रबंध में बीस बड़े टीन तो देसी घी के मँगवाए गए। दाल, चावल, आटा, सब्जी तो पता नहीं कितने मन आए होंगे।
कुछ पंडित बहुत सोच-विचार करने लगे। विचार करने पर नम्रतापूर्वक राजा से बोले, 'महाराज अगर संसार में से मिट्‍टी खत्म कर दी ग ई तो जमीन पर हरियाली खैसे रहेगी? घास कैसे उगेगी?
सुनते ही राजा गुस्से में पाँव पटक कर बोला, 'अगर तुम इतना मामूली-सा काम नहीं कर सकते तो तुम किस तरह के पंडित हो? तुम लोग पंडित नहीं हो - बुद्धू हो, बुद्धू।
एक बार फिर सभी पंडित अपनी-अपनी नाक पर चश्मा लगाकर विचार करने बैठे। इस बार जो फैसला हुआ उसके मुताबिक साढ़े सत्रह लाख झाड़ी खरीदी गईं और धूल को खत्म कर देने की पूरी कोशिश की जाने लगी, लेकिन धूल, धूल थी।
उड़कर राजा के मुँह, नाक, छाती में घुसने लगी। शहर में बूढ़ों, बच्चों, औरतों की आँख, नाक, कान, छाती में घुसने लगी।
धूल के मारे लोग मरने लगे। धूल के बादलों ने सूरज को ढँक लिया, लेकिन वे झाड़ू दिए ही जा रहे थे।
राजा लाल आँखें कर गुस्से में लाल-पीला होकर बोला - 'वाह-वाह! बड़े आए पंडित लोग। बहुत ही लायक हो तुम सब। धूल को खत्म करने के लिए बुलाए गए थे। तुमने तो दुनिया भर को धूल से भर दिया।
तब, जहाँ देखो वहीं भिश्ती नजर आने लगे। इक्कीस लाख भिश्ती तो राजधानी में ही उड़ती धूल पर पानी डाल रहे थे। रात-दिन बराबर मश्कें भरी जा रही थीं। छिड़काव किया जा रहा था। यहाँ तक कि झीलों-तालाबों का पानी खत्म हो गया। नदियों का पानी इतना कम हो गया कि नाव चलना असंभव हो गया, जल के जीव बिना जल के मरने लगे। धरती के प्राणी बाढ़ आने से डूबने लगे। सभी काम-काज, व्यापार कीचड़ में फँस गए। सर्दी ज्यादा हो गई। सर्दी के कारण सभी को खाँसी-बुखार होने लगा।
राजा हब्बूराय गुस्से में आकर लाल-पीला होकर चिल्लाया- "तुम सबके सब गधे हो गधे। तुमको पंडित कौन कहता है! अच्छी तरह भली सूखी मिट्टी थी। सब कीचड़ करके धर दिया है। तब फिर से सबके सब पंडित अपनी-अपनी नाक पर चश्मे रख कर विचार करने लगे। विचार करते-करते उनके सिर चकराने लगे। उनकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। आँखों के सामने तारे नाचने लगे। सोच-सोच कर पीले पड़ गए, लेकिन धूल को खत्म करने का इलाज न सोच पाए। आखिर एक पंडित के दिल में विचार उठा। वह बोला- "भाइयो, यूँ क्यों नहीं करते कि सारी धरती पर एक चटाई बिछवा कर उसके ऊपर एक उतने ही साइज की साफ-सुथरी चादर बिछवा दी जाए। बस हो गई समस्या हल।"

"तुम्हारा भेजा है या प्याज! क्या अहमकों की-सी बातें करते हो जो!" दूसरा पंडित बोला- "मैं बतलाता हूँ बिलकुल सीधा-सीधा इलाज। महाराज को महल के बाहर निकलने ही न दिया जाये और धूल के एक कतरे को भी महल के अंदर न घुसने दिया जाए। राजमहल की खिड़कियों, दरवाजों, सभी सूराखों को बिलकुल बंद करवा दिया जाए। जब धूल पर पैर ही नहीं रखेंगे तो धूल उसमें लगेगी ही कैसे। क्यों भाई?
"हाँ, हाँ, हाँ! बिलकुल ठीक। चलें महाराज को सुनाएँ।
राजा ने तरकीब सुनी। बोला, "हाँ बात तो कुछ बनती है, लेकिन अगर मैं दिन-रात राजमहल में बंद रहा तो मिट्टी के डर के मारे राज मिट्टी में मिल जाएगा। ओफ्फोह! ढेर के ढेर तुम पंडित लोग यहाँ जमा हो, लेकिन!
सभी पंडित-ज्योतिषी फिर अपनी-अपनी नाक पर चश्मा रखकर बैठे। सोच-सोचकर यह फैसला किया गया कि चमड़े की एक थैली बनाकर उसमें सारी पृथ्वी को डाल दिया जाए।
"हमारे महाराज ने सारी पृथ्वी को चमड़े की थैली में बंद कर लिया। राजा की कितनी तारीफ होगी इससे। एक पंडित बोला। दूसरे पंडित ने कहा, "हाँ, तरकीब बहुत अच्छी है। बस, गाँव का कोई मोची मिल जाए तो काम बन जाए। तब किसी बहुत ही काबिल मोची को ढूँढने के लिए देश-विदेश नौकरों-चाकरों को भेजा गया।
लेकिन, दुनियाभर में कोई ऐसा लायक मोची न मिला, जो सारी धरती को चमड़े की थैली में ढँक सके। तब शहर के मोचियों की बस्ती का बूढ़ा मुखिया राजा के पास आया। दोनों हाथ जोड़कर जरा-सा मुस्कुरा कर कहने लगा, "महाराज मेरी एक विनती है। आज्ञा दें तो कुछ कहूँ। आपकी इच्छा पूरी करने का मेरे पास एक इलाज है।"
"बोलो, बोलो, जल्दी बोलो।" राजा झुँझला कर बोले।
"अपने इन दो पैरों को चमड़े से ढँकने की आज्ञा दें महाराज। अगर आप मुझे इतना करने की आज्ञा दें तो सारी धरती को चमड़े या चटाई से ढँकने की जरूरत ही न रहेगी।" मोची बोला।
राजा बोला, "अरे बूढ़े बाबा! जिस बात को सुलझाते-सुलझाते आधा देश अधमरा हो गया। वह बात क्या इतनी आसानी से हल हो जाएगी? क्या पागलों की-सी बात करते हो!"
राजा के मुँह से ये शब्द निकले ही थे कि मंत्री गब्बूराय ने फौरन हुक्म दिया, "पकड़ कर ले जाओ इस बूढ़े को। पहले सूली पर लटका दो। बाद में बंद कर दो।" लेकिन, इससे पहले ही बूढ़े मोची ने राजा के पैरों को चमड़े की नरम सुंदर थैलियों से ढँक दिया था।
मंत्री गब्बूराय ने देखा। गौर से देखा। वह कितनी देर तक चुपचाप महाराज के पैरों की तरफ देखता ही रहा। फिर कहने लगा-"महाराज, असल में मेरे दिमाग में भी बहुत देर से कुछ इसी तरह की चीज का ख्याल आ रहा था, इस कमबख्त बूढ़े मोची ने न जाने कैसे मेरे मन की बात बूझ ली।"
सो जिस दिन महाराज हब्बूराय ने जूते पहने, उसी दिन से संसार भर में चमड़े का जूता पहनने का रिवाज चला। मंत्री गब्बूराय की जान बची, सारे पंडितों और प्रजा की भी जान बची और धरती फिर से हरी-भरी हुई।
प्रेतात्मा को कैसे भगाते हैं?
क्या आत्मा-प्रेतात्मा होती है? क्या मंत्र-शक्ति से किसी को बेहोश किया जा सकता है? आजकल टेलीविजन चैनलों पर प्राय: ऐसे विषयों पर कार्यक्रम दिखाए जाते हैं जबकि ये कार्यक्रम केवल अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। प्रेतात्मा को भगाने की क्रियाएँ झूठी होती हैं। इसी तरह अखबारों में भी 'बंगाली बाबा', 'बंगाली बादशाह', 'बंगाली पीर' आदि नामों से विज्ञापन छपते हैं।

ये लोग दावा करते हैं कि ये न होने वाले काम पूरे करा देंगे जैसे - नौकरी न मिलती हो, लड़की का ब्याह न होता हो, कदमे में जीत या परीक्षा में सफलता न मिलती हो आदि। इन परेशानियों से निजात पाने के लिए दुखी लोग इन बाबाओं के पास जाते हैं और बाबा लोग तरह-तरह के चमत्कार दिखाकर लोगों में अपने प्रति विश्वास जगाते हैं, जैसे तस्वीर से राख झड़ना, सिक्के को राख में बदलना आदि। सच तो यह है कि ये सब केवल वैज्ञानिक चमत्कार होते हैं और कुछ नहीं।
यहाँ 'प्रेत बाधा' दूर करने की कुछ तरकीबों की पोल खोली गई है :-

मंत्र-शक्ति का चमत्कार
मंत्र-शक्ति से हवन-कुंड में अग्नि जलाकर प्रेत बुलाने और हवन की आग में उसे जलाने की तरकीब 'बाबा' दर्शकों पर अपनी चमत्कारी शक्ति का प्रभाव सिद्ध करने के लिए करते हैं। एक बाबा ने अपने एक 'ग्राहक' की प्रेतबाधा दूर करने के लिए हवन किया। लोगों ने देखा कि बाबा ने हवन-कुंड में सूखी लकड़ियाँ रखीं और मंत्र पढ़ा। फिर थैले से एल्यूमीनियम की बनी एक तावीज निकाली। पास ही उसका 'भक्त ग्राहक' बैठा था।

बाबा ने वह ताबीज उसकी बाँह में बाँध दिया। हवन शुरू हुआ। बाबा ने मंत्र के नाम पर कुछ भी बोलना शुरू किया। उसने हवनकुंड की तलहटी में पहले ही लोगों की नजर बचाकर पोटैशियम परमैगनेट का पाउडर डाल दिया था। उसी पर सूखी लकडियाँ रख दीं। फिर मंत्र पढ़ते-पढ़ते झोले से घी का डिब्बा निकालकर हवन-कुंड में घी डाला। घी डालते ही हवन कुंड जल उठा। फिर तो बाबा ने पूरे जोश में मंत्र पढ़खर, मोरपंखों के झाड़ू से भूत को भगाया और ग्राहक के सिर को झाड़ा। लोग आश्चर्यचकित थे कि बाबा ने मंत्रों से आग जला दी। फिर बाबा ने कहा - 'ताबीज खोल दो। देखो भूत के जलने की राख वहाँ पड़ी होगी।' और ताबीज खोलकर देखी गई तो सचमुच बाँह पर थोड़ी सी राख थी।

बाबा की जय जयकार होने लगी। सच तो यह है कि बाबा ने हवनकुंड में घी नहीं, ग्लिसरीन डाली थी। पोटैशियम परमैगनेट पर ग्लिसरीन पड़ने से आग जल उठती है। इसी तरह उसने एल्यूमीनियम के तावीज के एक तरफ मरक्यूरिक क्लोराइड लगा दी थी। जब एल्यूमीनियम मरक्यूरिक क्लोराइड के संपर्क में आता है तो उससे भभूति जैसा पदार्थ बनता है। उसे ही प्रेत की राख कहकर बाबा ने लोगों को भ्रमित किया। 'मरक्यूरिक क्लोराइड' जहरीला पदार्थ है। इसका प्रयोग सावधानी से करें।

नारियल में बंद प्रेतात्मा
बाबा ने ग्राहक को एक सूखा नारियल देकर कहा कि इसे रात को तकिए के पास रखकर सो जाना और कल ले आना। तुम्हें सताने वाली प्रेतात्मा इसमें बंद हो जाएगी। फिर मंत्र पढ़कर नारियल दे दिया। अगले दिन ग्राहक नारियल लेकर आया। शिष्यों के सामने नारियल रखकर बाबा ने कहा - 'अब इसमें बंद प्रेतात्मा को मैं जलाकर नष्ट करूँगा।'
उसने मंत्र पढ़ने का नाटक करके नारियल पर पानी के छींटे मारना शुरू किया तो नारियल से धुआँ उठने लगा जिसे देख लोग समझे कि प्रेतात्मा जलकर भाग रही है। बाबा ने नारियल की जटाओं में सोडियम के टुकड़े पहले ही फँसाकर लगा दिए थे। सोडियम पर पानी डालने से आग जल उठती है। बस उसी को बाबा ने प्रेतात्मा भगाना कहा और ग्राहक से रुपए ठगे।

प्रेतात्मा का खून
एक गीले नारियल की आँख में छेद करके पोटेशियम परमैगनेट के कुछ टुकड़े डाल दिए और मोम से आँख बंद कर दी। अब बाबा ने वह नारियल ग्राहक को दे दिया। अगले दिन मंत्र से प्रेतात्मा को मार डालने का नाटक करते हुए जब नारियल फोड़ा तो उसमें से लाल पानी दिखाकर बाबा ने उसे प्रेतात्मा का खून बताया। और इस तरह भक्त की प्रेतबाधा दूर की। अत: ऐसे चमत्कारी बाबाओं से सावधान रहें और हो सके तो इनकी पोल खोलें ताकि लोगों का अंधविश्वास दूर किया जा सके।

मुझे रोशनी चाहिए थी

बसंत त्रिपाठी

मुझे रोशनी चाहिए थी
लहलह लहकती हुई

सबसे पहले मैंने खिड़कियाँ खोलीं
फिर दरवाजे
रोशनदान तो खुले ही थे
केवल एक मटमैली बुझी-बुझी सी रोशनी
घर के भीतर आई
जैसे बुस जाता है गर्मियों में रात का बचा खाना

बिजली नहीं थी सो बल्ब जलाने का प्रश्न भी नहीं था
और बल्ब भी एक पीले रंग के अलावा
क्या दे सकते थे आखिरकार

यह एक बंद सुबह थी
बाहर उदास रंग था
आसमान में मोटी परतों वाले बादल

मुझे सूरज का टेलीफोन नंबर मालूम नहीं था
और अगर मालूम होता भी
तो क्या वह रिसीवर उठाता?

बिजली विभाग और सूरज के बीच
यह जो समझौता हुआ है
उसकी शर्तों में दुनिया के बहुत से अँधेरे छुपे हैं

लेकिन हमें रोशनी चाहिए
लहलह लहकती हुई रोशनी।

मरा डॉक्टर अधमरा मरीज
दक्षिणी अफ्रीकी टेस्ट खिलाड़ी हाशिम आमला जैसी घनी-घनघोर दाढ़ी और सपाट चंदिया वाले मेरे दोस्त मिर्जा विवादास्पद बीटी बैंगन की तरह लुढ़कते चले आ रहे थे। रिटायर्ड थे पर तोंद यों फूली थी जैसे पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा समेटा गया काफी माल अंदर पैक हो। आत्मा तक गहरी एक ठंडी साँस खींची और बोले - 'क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?' मैंने धीरे से चुटकी ली- 'तुम्हारे जाने के लिए अब एक ही जगह बची है। तुम तैयारी करो, दो गज जमीन का इंतजाम मैं कराए देता हूँ!'
मिर्जा ने गुस्से में तोंद को कई बाउंस दिए और बोले - 'सीरियस बातों में छुछलइयाँ मत खेला करो! मैं बीमार हूँ! पिछले दो महीनों से यूँ लगता है जैसे मेरे कान में कोई हारमोनियम बजा रहा हो।' मैंने दिलासा देते हुए कहा - 'मेरे साथ चलो। ईएनटी डॉक्टर को दिखाते हैं। खुदा ने चाहा तो हारमोनियम बजना बंद हो जाएगा... या फिर साथ में तबला भी बजने लगेगा। मिर्जा ने कान में उँगली घुमाई और बोले - 'मियाँ, दाल उबलेगी तो अपने ही चूल्हे में गिरेगी...। मेरा डॉक्टरों पर यकीन वैसे ही उठ गया है जैसे अमरसिंह का मुलायम सिंह पर से। खुदा न करे वह कहीं मुर्दा डॉक्टर न हो!'
मैं चौंका! मुर्दा डॉक्टर? शायद मिर्जा के दिमाग की बालकमानी पलट गई है! पागलखाने फोन करना होगा! मिर्जा मेरी खामोशी भाँप गया! बोला - 'लाला भाई, तुम मुझे पागल समझ रहे हो? अखबार में धोनी और सलोनी के क्रिकेट स्कोर के अलावा कभी न्यूजें भी पढ़ लिया करो! बेगम मेरेकान का हारमोनियम बंद कराने डॉक्टर के यहाँ ले जा रही थीं। मगर न्यूज पढ़ते ही मैंने इरादा मुलतवी किया।
न्यूज में साफ छपा है कि भारत में 7.63 लाख डॉक्टर हैं (झोला छाप डॉक्टरों को छोड़कर) यानी पाँच हजार लोगों पर एक डॉक्टर। इस गिनती में वे डॉक्टर भी शामिल हैं जो या तो मर चुके हैं या विदेश चले गए या उम्र के कारण डॉक्टरी करने लायक नहीं रहे। अब मान लो कि खुदानखास्ता मेरे हिस्से में वह डॉक्टर आ गया जो मर चुका है। मेरे कानों में हारमोनियम की जगह कब्र की सायं-सायं बजने लगेगी।
बाज आए ऐसी मोहब्बत से, हटाओ पानदान अपना! नमाज बख्शवाने जाऊँ और रोजा गले पड़ जाएँ। तुम खामख्वाह पानी पर कील ठोंकने की कोशिश न करो। मैं यूँ ही ठीक हूँ। बजने दो कान में हारमोनियम या तानपूरा। मुझे डॉक्टर को दिखाना ही है तो पहले खुद जाकर ठोंक-बजाकर यकीन कर लो कि वह जिंदा डॉक्टर है या मरे हुए डॉक्टरों में से एक है। फिलहाल मैं कान में सुदर्शन की पत्ती का अर्क गर्म करके टपकाता हूँ। शायद हारमोनियम का बजना बंद हो जाए। तुम्हें भी बुढ़ापे में खाँसी-खुर्रा लगा रहता है।
डॉक्टर के वहाँ जाओ तो पूछताछ कर कन्फर्म कर लेना कि कहीं वह स्वर्गीय डॉक्टरों में से एक तो नहीं है। चलता हूँ। हारमोनियम अब भी बज रहा है। आवाज बाहर आती होती तो तुम्हें भी सुनवाता। खुदा हाफिज।

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