शुक्रवार, 28 मई 2010

यहाँ थी बुद्ध की कपिलवस्तु


राजा शुद्धोधन की राजधानी कपिलवस्तु, अपने समय की बड़ी वैभवशाली नगरी थी। इसी कपिलवस्तु में राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ और देवदत्त के बीच घायल हंस को लेकर उठे विवाद का निर्णय सुनाया था - "मारने वाले से, बचाने वाला बड़ा होता है।" राजकुमार सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु में रहते हुए इस संसार की नश्वरता और दुःखों को देखकर संन्यास ले लिया था। उन्होंने अपनी तप-साधना पूर्ण होने पर बोध ज्ञान प्राप्त किया और भगवान बुद्ध कहलाए। बुद्ध बनने के बाद वे एक बार वापस कपिलवस्तु लौटे। महाराज शुद्धोधन बीमार थे। बुद्ध ने उन्हें धर्म का उपदेश दिया। फिर अपने पुत्र राहुल को सबसे पहले दीक्षा दी।

भगवान बुद्ध की इस धरती पर अस्तित्व के ढाई हजार वर्ष से भी अधिक समय बीत गए हैं। कपिलवस्तु नगरी लुप्त हो गई और उसकी चर्चा केवल इतिहास में बंद हो गई। वर्ष १८९८ में अंग्रेज जमींदार डब्ल्यू.सी. पेप्पे ने कुछ खुदाई कराई तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही, जब पता चला कि वहां तो एक स्तूप है। स्तूप की खुदाई करने पर एक सेलखड़ी (चौक स्टोन) का बना कलश मिला, जिस पर अशोककालीन ब्राह्मी लिपी में लिखा था - "सुकिती भतिनाम भगिनीका नाम-सा-पुत- दात्नानाम इयम सलीला-निधाने-बुद्धस भगवते साक्यिानाम।" इसका इतिहासकारों ने इस तरह अनुवाद किया है - "बुद्ध भगवान के अस्थि अवशेषों का यह पात्र शाक्य सुकिती भ्रातृ, उनकी बहनों, पुत्रों और पत्नियों द्वारा दान किया गया है।" यह पात्र आज भी कोलकाता के इंडियन म्यूजियम में रखा है।
भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेष आठ भागों में विभाजित किए गए थे जिनमें से एक भाग भगवान बुद्ध के शाक्य वंश को भी प्राप्त हुआ था। पेप्पे को ये अवशेष आठ फुट की गहराई पर मिले थे। उस समय कुछ विद्वानों ने इस स्थान के कपिलवस्तु होने की संभावना की ओर संकेत किया था किंतु निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन था।

वर्ष १९७१ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पुरातत्ववेत्ता एवं निदेशक के.एम. श्रीवास्तव (१९२७-२००९) ने उस स्थान पर और खोज तथा खुदाई का काम कराया। वर्ष १९७२ में उसी स्तूप में लगभग दस फुट और गहराई पर, चौकोर पत्थर के एक बक्से में दो सेलखड़ी कलश मिले, जिनमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे थे। ये दोनों पात्र और अस्थियां नेशनल म्यूजियम, जनपथ, नई दिल्लीClick here to see more news from this city में रखे हैं। इतनी वस्तुएं मिलने के बाद भी यह कहना संभव न था कि यहीं कपिलवस्तु की नगरी थी।

के.एम. श्रीवास्तव द्वारा कराए जा रहे उत्खनन कार्य के फलस्वरूप १९७३ में पूर्वी बिहार से पकी मिट्टी की मुद्राएँ पहली बार मिलीं, जिन पर लिखा था -"ओम देवपुत्र विहारे, कपिलवस्तु भिक्खु संघस" एवं "महाकपिलवस्तु, भिक्सु संघस"। दो मुद्राओं पर भिक्खुओं (भिक्षुओं) के नाम भी लिखे थे। इस अभिलेख ने उत्खनन कार्य को एक निर्णायक मोड़ प्रदान किया। फिर तो आसपास के क्षेत्र में खुदाई कराते ही पूरे कपिलवस्तु का प्राचीन अवशेष उभरकर सामने आ गया। बाद में के.एम. श्रीवास्तव ने बोधगया में वह स्थान भी खोजा जहाँ सुजाता ने भगवान बुद्ध को खीर खिलाई थी। कपिलवस्तु की खोज के.एम. श्रीवास्तव की महान गौरवशाली खोज थी क्योंकि आज वह स्थान विश्वभर में बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए पवित्र तीर्थ बन गया है।
वर्तमान कपिलवस्तु उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में, नेपाल की तराई क्षेत्र में स्थित है। यह उत्तर पूर्व रेलवे के गोरखपुर-गोंडा लूप लाइन पर स्थित नौगढ़ नामक तहसील मुख्यालय और रेलवे स्टेशन से २२ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है। यहां प्राप्त अस्थि अवशेषों को नेशनल म्यूजियम और इंडियन म्यूजियम में देखा जा सकता है। बुद्ध पूर्णिमा पर महाबोधि सोसाइटी इन अस्थि अवशेषों की विशेष पूजा आयोजित करती है। विश्व के अन्य देशों के पर्यटक भी कपिलवस्तु और अस्थि अवशेषों के दर्शनों के लिए आते हैं।

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