बुधवार, 14 जुलाई 2010

नचिकेता के सवालों का इसमें है जवाब

 108 उपनिषदों में कठोपनिषद् अत्यंत प्रसिद्ध है। यह उपनिषद्कृष्ण यजुर्वेद की कठ-शाखा के अंतर्गत आता है। इसी कारण इसका नाम कठोपनिष खा गया है। इस उपनिष द्में ईश्वर के स्वरूप यानि परमात्मा के रहस्यमय तत्व का अति महत्वपूर्ण उपयोगी एवं विशद वर्णन किया गया है। ब्राह्मण ऋषि के पुत्र नचिकेता और मृत्यु के देवता यम के मध्य ईश्वर संबंधी गूढ़ ज्ञान पर जो विस्तृत संवाद हुआ उसे ही बड़े सुंदर और प्रेरणास्पद रूप में कठोपनिषद में प्रस्तुत किया गया है। अन्य उपनिषदों की तरह ही इस उपनिषद में भी 3 प्रमुख क्षेत्रों में शोध अनुसंधान किया गया है:
1. सत्य के क्षेत्र में अनुसंधान
2. आत्मा के विषय में अनुसंधान
3. ब्रह्म (ईश्वर) के विषय में अनुसंधान

कठोपनिषद में ब्रह्म (ईश्वर)-
कठोपनिषद कहता है कि ईश्वर या परमात्मा एक शक्ति है। जिसका बुद्धि के द्वारा चिंतन नहीं किया जा सकता। ईश्वर एक ही समय में साकार भी है निराकार भी, सूक्ष्म भी है और विराट महान भी है। ईश्वर यानि परमेश्वर अपने परमधाम में विराजमान रहते हुए भी उसी समय भक्त की पुकार सुनकर उसके समीप भी हो सकते हैं। वे परमात्मा (भगवान) सदा-सर्वदा सभी जगह उपस्थित रहते हैं। वे ऐसे सर्वव्यापी हैं कि एक ही समय पर बैठे हुए भी हैं, चल भी रहे हैं, चिर निद्रा में सो भी रहे हैं और निरंतर जागते हुए क्रियाएं भी कर रहे हैं। वेस भी जगह, सभी रूपों में सदैव उपस्थित हैं। साकार के साधक भक्त के लिए साकार भी है और निराकारवादी के लिए आकाररहित, ज्योतिस्वरूप भी वे ही हं। अनंत-अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी एवं संचालक होने पर भी उन्हें अपने अनंतऐश्वर्य का जरा सा भी अभिमान नहीं है।
किसे मिलते हैं भगवान -
यह उपनिषद कहता है परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं मिलते, जो शास्त्रों को पढ़-सुनकर लच्छेदार भाषा में परमेश्वर का वर्णन करते हैं। परमात्मा उन्हें भी नहीं मिलते, जो अपनी बुद्धि और ज्ञान के अभिमान में रहते हैं और तर्क-वितर्क एवं वाद-विवाद करके अपने अहंकार की तृप्ती करते है भगवान तो उस सच्चे भक्त को ही मिलते हैं जो उन्हें पाने के लिए व्याकुल बैचेन रहता है तथा जिसे हर प्राणी में भगवान नहीं नजर आते है उसे ही भगवान की कृपा या प्रेम मिलता है। जो अपनी बुद्धि एवं योग्यता पर भरोसा न करके भगवान की ही दया और कृपा की प्रतिक्षा करता है ऐसे सच्चे प्रेमी भक्त को ही परमेश्वर मिलते हैं एवं अपना समझते हैं।

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