बुधवार, 14 जुलाई 2010

चोर पकड़ा गया

चंपक वन का नम्बर वन जासूस जैकी डॉग इस समय राजा शेर सिंह के सामने बैठा था। दोनों ही बहुत गंभीर नकार आ रहे थे। दरअसल चंपक वन में इन दिनों ताबड़तोड़ चोरियां होने लगी थीं जिससे आम जनता बहुत परेशान थी। इसी का सुराग लगाने के लिए उन्होंने जैकी को बुलाया था।
‘‘हां, बात तो कुछ अजीब सी लगती है, सर। रातभर आपकी खुफिया पुलिस के सिपाही घूमते रहते हैं, फिर भी चोरियां हो जाती हैं।’’ जैकी ने कहा।
‘‘मिस्टर जैकी, दरअसल जिस रात मेरे खुफिया सिपाही गश्त पर नहीं होते हैं, उसी रात चोरियां होती हैं। पता नहीं यह बात चोरों को कैसे मालूम हो जाती है,’’ शेरसिंह ने परेशान होते हुए कहा।

‘‘वैसे यह बात आपके अलावा और कौन-कौन जानता है कि कब खुफिया पुलिस रात को पहरा देगी और कब नहीं?’’ जैकी ने पूछा।
‘‘मेरे सेनापति जी’’ शेर सिंह ने कहा।
‘‘ठीक है सर, मैं आज से ही इस बात का पता लगाने में जुट जाता हूं।’’ जैकी ने उठते हुए कहा।

जैकी कई दिनों तक इस बात का पता लगाने की कोशिश करता रहा। आखिर एक दिन उसको इस रहस्य की जानकारी हो ही गई। उसी दिन शाम के समय वह राजमहल पहुंचा।

‘‘क्या हुआ मिस्टर जैकी, चोरों का कुछ पता लगा।’’ शेर सिंह ने पूछा।
‘‘लग जाएगा सर। आज नहीं तो कल, आखिर चोर जाएंगे कहां? चलिए कुछ देर छत पर चलते हैं। देखिए आज मौसम कितना सुहावना हो रहा है,’’ जैकी ने कुछ अजीब अंदाका में कहा।
शेर सिंह को उसकी बातें कुछ अटपटी सी लगीं, फिर भी वे दोनों राजमहल की छत पर पहुंचे। छत पर सोनू गधा पतंग उड़ाने की तैयारी कर रहा था।

‘‘ओह पतंगबाजी’’ उसे देखकर जैकी मुस्कुराया।
‘‘यह मेरा खास सेवक है। इसे पतंग उड़ाने का बहुत शौक है,’’ महाराज ने कहा।
‘‘गुड, पतंग उड़ाने का शौक तो मुझे भी है सर। लाओ आज मैं भी पतंग उड़ाता हूं।’’ जैकी ने कहा और सोनू से चर्खी ले ली। सोनू ने उसे उड़ाने लिए लाल पतंग देना चाही।

‘‘डियर सोनू, लाल पतंग से मुझे बेहद चिढ़ है। हां, यह हरी पतंग ठीक रहेगी’’ जैकी ने डोर से हरी पतंग बांधते हुए कहा। यह देखकर सोनू के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं। लेकिन उसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। उस दिन जैकी ने जमकर पतंगबाजी की। उस रात जैकी राजमहल के अतिथि गृह में ही रुक गया और वह रातभर सोनू से पतंगबाजी पर ही बातें करता रहा। न वह खुद सोया, न ही उसे सोने दिया। बेचारा सोनू इस झपकी जासूस से बहुत परेशान हो गया।

सुबह-सुबह ही राजमहल में अच्छी-खासी चीख-पुकार मची थी। चालू लोमड़ी, कालू भेडिय़ा, गुंडे सियार एवं भोंभों कुत्ते की डंडों से पिटाई हो रही थी। जैकी सोनू के साथ अतिथि-गृह से बाहर निकला।
‘‘देखिए मिस्टर जैकी, कल रात मेरे खुफिया पुलिस के सिपाहियों को बड़ी सफलता मिली। एक साथ ही सभी शातिर चोरों को गिरफ्तार कर लिया है,’’ शेरसिंह ने गर्व के साथ कहा।
‘‘मैं जानता था सर, पर यह मेरी पतंगबाजी का कमाल है।’’ जैकी रहस्यमय ढंग से बोला।
‘‘क्या मतलब?’’ शेरसिंह चौंके।

‘‘हरी पतंग यानी कि आज कोई डर नहीं, खूब जमकर चोरी करो। लाल पतंग यानी कि आज खुफिया पुलिस रात में ड्यूटी देगी, सावधान रहना,’’ जैकी मुस्कुराता हुआ बोला।
‘‘ओह, तो ये सोनू हरी और लाल पतंग उड़ाकर चोरों को सिग्नल देता था। और मैं सोचता था कि यह बेचारा कभी महल से बाहर ही नहीं जाता,’’ शेर सिंह ने सोनू को घूरते हुए कहा।
‘‘तभी तो आपको कभी इस पर शक नहीं हुआ। यह आप का मुंह लगा सेवक था और यह सारी खबरें लीक कर देता था। चोरी के माल में इसका भी कमीशन होता था, जो चुपचाप इसके घर पहुंचा दिया जाता था।’’

‘‘कल भी यह लाल पतंग उड़ाकर चोरों को सावधान करना चाहता था। पर मैंने हरी पतंग उड़ाकर इसका प्लान ही फेल कर दिया।’’ जैकी ने सारी बातें बताईं, तो वहां उपस्थित सभी जानवर आश्चर्यचकित रह गए। इधर सोनू गधे का चेहरा भय से पीला पड़ता जा रहा था। उसकी योजना ही विफल नहीं हुई थी, अब तो शेष जीवन भी कालकोठरी में बीतने वाला था।


बोलने वाला तोता
(कथा कुंज के साभार)
कालू एक आठ वर्षीय बालक है, जिसे चिड़ियों और पशुओं से बहुत प्रेम है। इसलिए वह रोज़ अपनी मां से विनती करता कि वे उसे कोई कुत्ता या बिल्ली पालने दें।‘उसकी देखभाल कौन करेगा?’ मां ने पूछा।
‘मैं करूंगा, वचन देता हूं, मैं देखभाल करूंगा’ कालू ने कहा।‘पर जब तुम स्कूल गए होगे?’ मां ने फिर पूछा।‘मैं जाने से पहले उसके सब काम करूंगा और आने के बाद बाकी काम भी कर लूंगा।’ कालू ने ज़ोर देकर कहा।‘नहीं, ‘हमारे पास अपने खाने को है नहीं, कुत्ता कैसे पाल सकते हैं।’ कह कर मां ने विवाद समाप्त कर दिया।
यह बात सही थी। कालू के पिताजी एक दुकान में सहायक का काम करते थे और उनकी कमाई अधिक न थी। कालू यह जानता था। जब भी उसके स्कूल की फीस भरनी होती, उसके पिताजी को उधार मांगना पड़ता। कोई पालतू पशु न पाल पाने पर कालू बहुत निराश था, पर उसने बहस नहीं की। वह जानता था कि मां सही हैं।
एक दिन आम के पेड़ पर चढ़ कर कालू अपनी कमीज़ में कच्चे आम ठूंस रहा था। वह बड़े ध्यान से बूढ़े बदरुद्दीन पर आंखें लगाए था ?योंकि यह पेड़ बदरुद्दीन के अहाते में था। यदि वह कालू को आम के पेड़ पर देख लेता था तो वह उसे गालियां देता हुआ उसकी ओर छड़ी हिलाता था।
अपनी नुकीली नाक और लाल दाढ़ी की वजह से वह बूढ़ा आदमी बड़ा मज़ेदार लगता था और कालू को उसे चिढ़ाना बहुत भाता था।जब कालू पेट के बल, एक लेटी हुई टहनी पर लेटा हुआ धीरे-से चार आमों के एक गुच्छे की ओर बढ़ रहा था तभी अचानक उसके हाथ में जोर से दर्द हुआ। न जाने कहां से एक तोता वहां आ गया और बिना उसके छेड़े, अपनी मुड़ी हुई लाल चोंच झुका कर उसने कालू के हाथ पर काट लिया। कालू दर्द से चीख उठा और धड़ाम से नीचे आ गिरा।
इस झटके की वजह से कुछ देर वहीं बिना हिले पड़ा रहा। वह टमाटरों की एक ?यारी में गिरा था और ये निश्चित था कि इसपर तो बदरुद्दीन उसे मार ही डालेगा। कालू को अपनी पतलून पर कुछ चिपचिपा व गीला-सा लगा और उसने मुड़ कर उसे देखा। उसी समय चिल्लाता और पंख फड़फड़ाता वह तोता उसके पास आ बैठा और पिचके हुए टमाटर पर चोंच मारने लगा। कालू ने शू..शू.. किया। वह अब भी तोते की तीखी चोंच से डरा रहा। पर तोते ने एक न सुनी। इस डर से कि कोई उसकी आवाज़ न सुन ले, कालू उठकर अपने घर की ओर दौड़ा। अचानक ज़ोर से टें-टें करता तोता कालू के कंधे पर आ बैठा। सिर घुमाते ही कालू की आंखें तोते की आंखों से मिलीं। अगर तोते हंस सकते, तो कहना होगा कि यह तो निश्चय ही खीसें निपोर रहा था। और कालू ने उसे भगाने की कितनी ही कोशिश की पर तोता नहीं हिला।
अब तोता कालू के ही घर में रहने लगा। कालू सदा तोते से सावधान रहता ?योंकि तोता हमेशा उसे चिढ़ाता रहता था। जब कालू मेज पर पढ़ाई करता, तोता उसकी कॉपी पर आ बैठता और कोरे पन्ने पर बीट कर देता। कभी उसका रबड़ लेकर उड़ जाता और रबड़ वापस लेने के लिए कालू को पूरे कमरे में उसका पीछा करना पड़ता।
कालू की मां को तोते से बहुत प्यार था। वे उसे अमरूद और हरी मिर्च देतीं। उसके खाते समय वे सुर में बोलतीं, ‘राम-राम, सीता-राम’। वह लालची खाना तो खा लेता, पर वे तोते से कितनी भी जबरदस्ती करें, वह बोलता कुछ नहीं। बस जोर से टें करके अपने पंख फड़फड़ा कर उड़ जाता।
कई दिन बीत गए और कालू बदरुद्दीन के बाग में पके आमों को खाने का लालच रोक न पाया। बदरुद्दीन को अड़ोस-पड़ोस के लड़कों से नफरत थी। वह कालू से भी चिढ़ता था ?योंकि कालू उसके आम चुराता था।जिस दिन कालू उसके टमाटरों की ?यारी में गिरा था, बदरुद्दीन ने उसके पिता से उसकी शिकायत की थी, जिससे कालू की पिटाई भी हुई थी। फिर भी कालू रसीले आम देख कर ललचा उठा।
गर्मी की तपते दुपहरी में जब सब सो रहे थे, कालू छिप कर घर से बाहर आया और पलक झपकते ही आम के पेड़ पर चढ़ गया। लेकिन आम बहुत ऊंचाई में लगे थे और कालू उन तक पहुंच नहीं पा रहा था। तभी तोता वहां प्रकट हो गया और चीख कर विरोध करता उसके कंधे पर बैठ गया। क्रोध के आवेश में कालू ने तोते को उसके पंख से पकड़ कर नीचे पटक दिया।तोते को बहुत चोट लगी। वह दर्द से टिटियाने लगा ?योंकि उसका एक पंख बिल्कुल नहीं हिल रहा था। पेड़ पर से कालू ने बूढ़े बदरुद्दीन को घर से बाहर आते, घायल तोते को उठाते और घर के भीतर ले जाते देखा। कालू पेड़ से नीचे उतरा और झट से घर को दौड़ा।
बदरुद्दीन ने तोते का घायल पंख धोया और कोमल उंगलियों से मरहम लगाया। फिर वह तोते से बोलने लगा, ‘मिट्ठू बोल, अल्लाह-अल्लाह.’तोते ने जरा सी आवाज़ से गला साफ किया और मोटी-भारी आवाज़ में बोला, ‘राम-राम’।
फिर बदरुद्दीन तोते को सहलाने और पुचकारने लगा। तोते ने अपना सिर उचकाया और जल्दी से बदरुद्दीन की नाक पर चोंच मार दी। अगले पांच मिनट तक तो जैसे वहां नरक बन गया। तोता कभी उड़ कर मेज पर बैठे जाता कभी पलंग के पाए पर। बदरुद्दीन गालियां देता उसे पकड़ने की कोशिश में उसके पीछे दौड़ा। उसकी नाक लाल हो गई थी और जलन हो रही थी। वह मेजों के ऊपर और चारपाइयों के आस-पास तोते को पकड़ने के लिए उछलता कूदता रहा।
‘ठहर मैं तेरी गरदन मरोड़ दूं। ठहर मैं तुझे अभी पकड़ता हूं।’ बदरुद्दीन सचमुच बहुत गुस्से में था।तोता बदरुद्दीन के कान में जोर से चीख कर उड़ गया और अलमारी के ऊपर जा बैठा। बदरुद्दीन जोर से उसपर झपटा और धड़ाम से एक कुर्सी पर गिर पड़ा। उसकी टोपी आगे आ गिरी और कुर्सी उसकी गोद में आ पड़ी।‘?या है, यहां ?या हो रहा है?’ बदरुद्दीन की बहू महरुन्निसा कमरे में आई।
‘यह मूर्ख तोता। इसने मुझे काट लिया।’ अपनी टोपी सीधी करते हुए तोते की ओर संकेत करते हुए बदरुद्दीन न कहा।उसी क्षण तोता बोलने लगा ‘मज़ा आया, मज़ा आया।’‘बोलने वाला तोता!!‘ मेहरुन्निसा ने आश्चर्य से कहा। ‘कितना सुंदर है!’‘सुंदर! देखो मेरी नाक पर ?या किया इसने।’‘जाने दीजिए अ?बा। आखिर एक तोता ही तो है।’
उस दिन से तोता बदरुद्दीन के घर में रहने लगा, यद्यपि वह बदरुद्दीन से कुछ दूरी ही रहता था।एक दिन कालू फिर से बदरुद्दीन के बाग में लगी लंबी, पतली भिंडी चुरा रहा था। तभी बदरुद्दीन और वह तोता आपस में झगड़ने लगे। कालू दौड़ कर खिड़की पर गया। यद्यपि कालू को तोता पसंद नहीं था फिर भी उसकी हंसी की कमी उसे खलने लगी थी।
जैसे ही कालू ने अपना तोता बदरुद्दीन के पास देखा। वह तुरंत चीखा, ‘वह मेरा तोता है। अभी मुझे वापस दो।’ ‘तो ले जाओ इस मूर्ख को यहां से और निकल जाओ। अगली बार मैंने तुम्हें यहां देखा तो पुलिस बुला लूंगा’, बदरुद्दीन गुस्से से भड़क उठा।तोते को पकड़ने की बात कहना आसान था पर करना कठिन। कालू बदरुद्दीन से अधिक फुर्तीला था पर तोता कहीं अधिक चतुर था। जब कालू तोते के समीप जाता, वह अपने हरे-हरे पंख फड़फड़ाता और कालू के कान के पास से उड़ जाता और कालू के हाथ बस हवा आती।
अंत में दोनों ने मिलकर तोता पकड़ लिया। कालू ने तोते की चोंच पर कपड़े का एक टुकड़ा बांधा और उसे घर ले आया। एक सुतली से उसका पैर खिड़की से बांध दिया। तुरंत उसकी मां एक हरी मिर्च ले आईं।‘राम, राम। मिट्ठू, राम, राम’, वे बोलीं।तोते ने बड़े स्वाद से हरी मिर्च खाई, बिल्कुल कालू की तरह डकार ली और गहरी, भारी आवाज़ में बोला, ‘अल्लाह..’कालू और उसकी मां चकित थे। ‘शायद यह बदरुद्दीन को अपना स्वामी समझता है’, कालू की मां बोली। इसे उस बूढ़े को भूलने का समय दो। पर कई दिन बाद भी तोता वही कहता रहा। ‘लगता है इसे अपने मालिक से ज्यादा लगाव है’, कहकर कालू की मां ने कालू से तोते को उसके मालिक को लौटा देने को कहा।कालू अपनी मां की कहे को पूरा करने के लिए बदरुद्दीन के घर गया।
‘यह तोता आपको अपना मालिक समझता है’, कालू बोला। यह अल्लाह का नाम लेता रहता है।‘अल्लाह.!!’ बदरुद्दीन हैरान रह गया। ‘पर इतने दिन तो यह राम-राम कहता रहा।’मेहरुन्निसा उनकी बातें सुन रही थी। उसने कालू से पूछा कि ?या तोते ने सचमुच उनके घर अल्लाह का नाम लिया था।‘आओ देखो’, कालू चिल्लाया और तीनों का दल वापस कालू के घर गया।
‘बोल, मिट्ठू’, कालू की मां ने फुसलाया, ‘राम, राम।’‘अल्ला-आ-आह.’ तोते ने गहरे भारी स्वर से कहा। सबके मुंह आश्चर्य से खुले रह गए। यह चतुर पक्षी कालू के घर में अल्लाह को पुकारता था और बदरुद्दीन के घर पर राम-नाम का स्मरण किया करता था।‘हम सबको इससे शिक्षा लेनी चाहिए’, मेहरुन्निसा बोली, ‘सचमुच एक अमूल्य शिक्षा’। ‘इस छोटे से जीव ने हमें एकता और ईश्वर की एकरूपता का अर्थ समझा दिया है। हमें इस पर अवश्य विचार करना चाहिए।’

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