देवराज इंद्र की सभा में यूं तो कई अप्सराएं हैं। सभी एक से बढ़कर एक सुंदर... वहीं एक अप्सरा रंभा जिसकी सुंदरता की कोई सीमा नहीं... पलभर में कोई भी उसके मोह में पड़ सकता है। रंभा एक बार सज-धजकर कुबेरदेव के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण ने उसे देखा और रंभा के रूप और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गया। रावण ने रंभा को बुरी नियत से रोक लिया। इस पर रंभा ने रावण से उसे छोडऩे की प्रार्थना की और कहा कि आज मैंने आपके भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने का वचन दिया है अत: मैं आपकी पुत्रवधु के समान हूं अत: मुझे छोड़ दीजिए। परंतु रावण था ही दुराचारी वह नहीं माना और रंभा के शील का हरण कर लिया।
रावण द्वारा रंभा के शील हरण का समाचार जब कुबेर देव के पुत्र नलकुबेर का प्राप्त हुआ तो वह रावण पर अति क्रोधित हुआ। क्रोध वश नलकुबेर ने रावण को श्राप दे दिया कि आज के बाद यदि रावण किसी भी स्त्री को बिना उसकी स्वीकृति जबरजस्ती करेगा या अपने राजमहल में रखेगा तो उसी दिन वह भस्म हो जाएगा। इसी श्राप के डर से रावण ने सीता को राजमहल में न रखते हुए अशोक वाटिका में रखा।
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