किसी को समझाया कैसे जाए
कहते हैं किसी अपनी बात समझाना भी एक कला है। यह हर किसी के बस की बात नहीं होती है। जिसे समझाना हो पहले उसके स्वभाव, उसके भीतर के चिंतन को समझना जरूरी है। अगर हम किसी अधर्मी से धर्म को धर्म की बातों का उदाहरण देकर समझाएंगे तो सफलता नहीं मिलेगी। किसी को समझाया कैसे जाए, इसका तरीका हनुमानजी से सीखा जा सकता है। यदि किसी इन्सान को समझाना हो तो सबसे पहले यह जानने की कोशिश की जाए कि उसके भीतर क्या चिंतन विचार चल रहा है। उसके भीतर के स्तर को पकड़ कर ही उसकी समझ फेरी जा सकती है। इस प्रयोग में हनुमानजी महाराज बड़े माहिर थे।
स्वामी विवेकानंद हनुमान भक्त थे और ऐसा ही प्रयोग उन्होंने विदेश जाकर अपने व्याख्यान में किया। सुन्दरकांड की एक पंक्ति बहुत चर्चित है। हनुमानजी ने भरी सभा में रावण से कहा था-
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी।।
अर्थात्-रामनाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती, मद-मोह को छोड़, विचार देखो। हे देवताओं के शत्रु! सब गहनों से सजी हुई सुन्दरी स्त्री भी कपड़ों के बिना शोभा नहीं पाती। यहां हनुमानजी जैसे ब्रम्हचारी के मुंह से नारी का ऐसा उदाहरण देना लोगों को भ्रम और चिंता में डाल देता है। इस प्रसंग में बजरंगबली अपने चरित्र से दो बातों की ओर इशारा कर रहे हैं। पहली तो यह कि रावण काम अवसर ग्रस्त व्यक्ति है। उसकी सोच में सदैव नारी बसी है और वह स्त्री को मान की देवी नहीं भोग की वस्तु ही मानता है। इस काम पिपासु को ये शब्द तीर की तरह उतर कर समझ का कारण बनेंगे। दूसरी बात है हनुमानजी का ब्रम्हचर्य और नारी का स्मरण। हनुमानजी के लिए ब्रम्हचर्य का अर्थ है कामशक्ति यानी जीवन ऊर्जा का सद्पयोग न कि बाहरी स्थितियों से जोड़कर उसकी व्याख्या। काम शक्ति उनके लिए घृणा नहीं बल्कि वो जीवन धारा है जो मनुष्य को ऊंचा उठा सकती है। श्रेष्ठ मानवीय चिंतन इसी जीवन धारा से जन्मता है। यह काम शक्ति, कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में हमारे शरीर को सबसे नीचे के चक्र मूलाधार पर पड़ी रहती है। सारा व्यक्तित्व इसी से प्रभावित होता है कि आप इसका कैसे सद्पयोग या दुरुपयोग करेंगे।
कहते हैं किसी अपनी बात समझाना भी एक कला है। यह हर किसी के बस की बात नहीं होती है। जिसे समझाना हो पहले उसके स्वभाव, उसके भीतर के चिंतन को समझना जरूरी है। अगर हम किसी अधर्मी से धर्म को धर्म की बातों का उदाहरण देकर समझाएंगे तो सफलता नहीं मिलेगी। किसी को समझाया कैसे जाए, इसका तरीका हनुमानजी से सीखा जा सकता है। यदि किसी इन्सान को समझाना हो तो सबसे पहले यह जानने की कोशिश की जाए कि उसके भीतर क्या चिंतन विचार चल रहा है। उसके भीतर के स्तर को पकड़ कर ही उसकी समझ फेरी जा सकती है। इस प्रयोग में हनुमानजी महाराज बड़े माहिर थे।
स्वामी विवेकानंद हनुमान भक्त थे और ऐसा ही प्रयोग उन्होंने विदेश जाकर अपने व्याख्यान में किया। सुन्दरकांड की एक पंक्ति बहुत चर्चित है। हनुमानजी ने भरी सभा में रावण से कहा था-
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी।।
अर्थात्-रामनाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती, मद-मोह को छोड़, विचार देखो। हे देवताओं के शत्रु! सब गहनों से सजी हुई सुन्दरी स्त्री भी कपड़ों के बिना शोभा नहीं पाती। यहां हनुमानजी जैसे ब्रम्हचारी के मुंह से नारी का ऐसा उदाहरण देना लोगों को भ्रम और चिंता में डाल देता है। इस प्रसंग में बजरंगबली अपने चरित्र से दो बातों की ओर इशारा कर रहे हैं। पहली तो यह कि रावण काम अवसर ग्रस्त व्यक्ति है। उसकी सोच में सदैव नारी बसी है और वह स्त्री को मान की देवी नहीं भोग की वस्तु ही मानता है। इस काम पिपासु को ये शब्द तीर की तरह उतर कर समझ का कारण बनेंगे। दूसरी बात है हनुमानजी का ब्रम्हचर्य और नारी का स्मरण। हनुमानजी के लिए ब्रम्हचर्य का अर्थ है कामशक्ति यानी जीवन ऊर्जा का सद्पयोग न कि बाहरी स्थितियों से जोड़कर उसकी व्याख्या। काम शक्ति उनके लिए घृणा नहीं बल्कि वो जीवन धारा है जो मनुष्य को ऊंचा उठा सकती है। श्रेष्ठ मानवीय चिंतन इसी जीवन धारा से जन्मता है। यह काम शक्ति, कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में हमारे शरीर को सबसे नीचे के चक्र मूलाधार पर पड़ी रहती है। सारा व्यक्तित्व इसी से प्रभावित होता है कि आप इसका कैसे सद्पयोग या दुरुपयोग करेंगे।
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