गुरुवार, 15 जुलाई 2010

बुद्धू नाथ की बुद्धि


धौलछीना गाँव का एक वृद्ध बड़ा खुराफाती था। बूढ़े ने दोराहे पर लिख दिया था कि 'जो अपने बाप का बेटा होगा, वह ऊपर वाले रास्ते से जाएगा।'

इधर किसी गाँव में तीन भाई रहते थे। उनमें सबसे छोटा बुद्धू भोला था। एक दिन बुद्धू के दोनों भाई खरीददारी के लिए निकल पड़े। जंगल पार कर जब वे बूढ़े के आँगन में पहुँचे तो उसने किस्सा शुरू किया, 'मेरे पास चार भैंस हैं, चारों रोजाना दस हजार सेर दूध देती हैं।' दोनों भाई बातों में उलझकर शर्त भूल गए और बोल पड़े, 'ऐसा कभी नहीं हो सकता।'
अब क्या था बुड्ढे ने निकाला उस्तरा और दोनों की नाट काट दी। बेचारे अपना-सा मुँह लेकर घर पहुँचे। उन्होंने सोचा बुद्धू के भी नाक-कान कटवाने चाहिए।
बुद्धू को सौदा लेने भेज दिया गया। बुड्ढे ने उसे भी अपनी शर्त के अनुसार ऊट-पटांग कथा सुनाई।
बूढ़े की कथा के बाद बुद्धू नाथ ने भी किस्सा सुनाने की इच्छा जाहिर की और शर्त वही रखी जो बुड्ढे ने रखी थी। बुद्धू नाथ बोला, 'हम सात भाई थे। हमारी सात सुंदर पत्नियाँ थीं, लेकिन एक बार तेज आँधी आई और उनको उड़ा ले गई लेकिन आज मुझे वह सातों आपके घर में दिखाई दे रही हैं। बोलो 'हाँ' या 'न'।'

बूढ़ा परेशान। 'हाँ' कहता है तो उसके बेटों की सातों पत्नियाँ जाती हैं और मना करता है तो नाक-कान गँवाने पड़ेंगे। बोला, 'अच्छा उनकी कोई निशानी तो होगी।'
बुद्धू बोला, 'नई-नई शादी होने से उनके हाथ पीले थे'।'
बुड्ढे ने सातों बहुओं को बुलाकर हाथों को देखा तो सचमुच उनके हाथ पीले पड़े थे। बुड्ढे को लगा नाक-कान बचा। बहुएँ तो और आ जाएँगी। इस प्रकार बुद्धू नाथ सात बहुओं को लेकर घर लौटा। उसके नकटे भाई और गाँव वाले अवाक्‌ रह गए। तब सभी को समझ आ गया कि न तो किसी को मूर्ख समझना चाहिए और न ही अपने ज्ञान पर गर्व कर किसी का अपमान करना चाहिए।

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