गुरुवार, 15 जुलाई 2010

डाकू से बने ऋषि वाल्मीकि


ब्राह्माण लेकिन किरातों के साथ बुरी संगत में रहने के कारण चोरी और लूट-पाट में लगे रहते। इससे इनका ब्राह्माणत्व नष्ट हो गया। उस समय एक शूद्र महिला के गर्भ से इनके कई पुत्र भी हुए। एक बार इन्होंने सात मुनियों को लूटने के इरादे से रोका।

उन ऋषियों ने कहा परिवार के जिन लोगों के लिए तुम ये अपराध-कर्म कर रहे हो उनसे जाकर पूछो कि क्या वे तुम्हारे इस पाप में सहभागी होंगे? ये घर गए और सबसे पूछा। सबने मना कर दिया। परिजनों के जवाब ने उनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। पापों का प्रायश्चित करने के लिए उन ऋषि-मुनियों से उपाय पूछा तब उन्होंने राम-राम जपने का कहा। लेकिन वाल्मीकि के मुंह से राम की जगह 'मरा' शब्द निकला। यही शब्द जपते-जपते राम-राम हो गया। कई साल तक वे ध्यान मुद्रा में बैठकर जप करते रहे। ध्यान इतना गहरा हो गया था कि उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी (वल्मीक) बना लिया। कालान्तर में उन्हीं ऋषियों ने इन्हें वल्मीक से बाहर निकलने का आदेश दिया। तब मुनियों ने कहा अब तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ है। आज से तुम वाल्मीक के नाम से विख्यात होओगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें