सोमवार, 2 अगस्त 2010

भागवत-10::11

कृष्ण देह तो राधा आत्मा हैं
विद्वान और पंडित लोग कहते हैं जिस समाधि भाषा में भागवत लिखी गई और जब राधाजी का प्रवेश हुआ तो व्यासजी इतने डूब गए कि राधा चरित लिख ही नहीं सके। सच तो यह है कि ये जो पहले श्लोक में वंदना की गई इसमें श्रीकृष्णाय में श्री का अर्थ है कि राधाजी को नमन किया गया।

बात ये है कि जब राधाजी से कृष्णजी ने पूछा कि इस साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी। तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो आपके पीछे हूं। इसलिए कहा गया कि कृष्ण देह हैं तो राधा आत्मा हैं। कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ हैं, कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत हैं, कृष्ण बंशी हैं तो राधा स्वर हैं, कृष्ण समुद्र हंै तो राधा तरंग हैं और कृष्ण फूल हैं तो राधा उसकी सुगंध हैं।
इसलिए राधाजी इसमें अदृश्य रही हैं। राधा कहीं दिखती नही है इसलिए राधाजी को इस रूप में नमन किया। जब हम दसवें, ग्यारहवें स्कंध में पहुंचेंगे, पांचवें, छठे, सातवें दिन तब हम राधाजी को याद करेंगे। पर एक बार बड़े भाव से स्मरण करें राधे-राधे। ऐसा बार-बार बोलते रहिएगा। राधा-राधा आप बोलें और अगर आप उल्टा भी बोलें तो वह धारा हो जाता है और धारा को अंग्रेजी में बोलते हैं करंट। भागवत का करंट ही राधा है। आपके भीतर संचार भाव जाग जाए वह राधा है। जिस दिन आंख बंद करके आप अपने चित्त को शांत कर लें उस शांत स्थिति का नाम राधा है। यदि आप बहुत अशांत हो अपने जीवन में तो मन में राधे-राधे..... बोलिए मेरा आश्वासन है, मेरा आपसे वादा है और नमन है आप पंद्रह मिनट में शांत हो जाएंगे क्योंकि राधा नाम में वह शक्ति है। भगवान ने अपनी सारी संचारी शक्ति राधा नाम में डाल दी। इसलिए भागवत में राधा शब्द हो या न हो राधाजी अवश्य विराजी हुई हैं।

इसीलिए प्रथम पूज्य हैं श्री गणेश
आज हम भागवत के महात्म्य में प्रवेश करते हैं। व्यासजी ने भागवत की रचना की। अब व्यासजी के सामने एक समस्या आई कि इतना बड़ा ग्रंथ लिखेगा कौन? तब नारदजी ने सलाह दी कि गणेशजी से लिखवा लो, गणेशजी से अच्छा कोई नहीं लिख सकता। गणेशजी को याद किया, गणेशजी आ गए। गणेशजी से व्यासजी ने कहा मैंने एक साहित्य रचा है। आप इसके लेखक बन जाइए।

उन्होंने कहा लिख तो दूंगा पर मेरी एक शर्त है जब आप बोलो तो एक पल के लिए भी रूकना मत। तो मैं लिख दूंगा। व्यासजी मान गए। व्यासजी भी व्यासजी थे। वे हर सौ श्लोक के बाद ऐसा कोई गंभीर श्लोक बोल देते थे कि गणेशजी उसका अर्थ सोचने लग जाते क्योंकि व्यासजी ने भी शर्त रखी थी कि मैं तो बिना रूके बोलूंगा पर आप बिना अर्थ समझे एक भी पंक्ति मत लिखना। व्यासजी एक श्लोक ऐसा बोलते कि गणेशजी उसका अर्थ सोचते तब तक व्यासजी अपना सब काम निपटाकर दूसरा श्लोक रच देते।
18 हजार श्लोक का साहित्य भागवत गणेशजी ने लिख दिया। इसीलिए प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपतिजी की पूजा की जाती है। गणपतिजी विघ्नहर्ता हैं। गणपतिजी के पूजन करने का अर्थ है जितेंद्रीय होना। विघ्न न आए इसलिए व्यासजी सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: कहकर गणपति महाराज की वंदना करते हैं। इसके पश्चात सरस्वतीजी की वंदना करते हैं। सरस्वती की कृपा से मनुष्य में समझ और सोचने की शक्ति आती है। फिर सद्गुरु की वंदना की गई है तथा भागवत के प्रधान देव श्रीकृष्ण की वंदना हुई है।

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