विवाह में सात फेरे ही क्यों?
इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है। जब दो इंसान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। हर परिस्थिति में एक - दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है। संकल्प या वचन सदैव देव स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है। इसीलिये विवाह के साथ फेरे और वचन अग्रि के सामने लिये जाते हैं। फेरे सात ही क्यों लिये जाते हैं इसका कारण सात अंक की महत्ता के कारण होता है। शास्त्रों में सात की बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है। तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दुल्हा आगे रहता है। किन्तु फिर भी आजकल विवाह में सात फेरों का ही अधिक प्रचलन है। हमारी संस्कृति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का कितना महत्व है आइये जाने.....
- सूर्य प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात।
- संगीत में स्वरों की संख्या की संख्या भी सात: सा, रे, गा, मा, प , ध, नि।
- पृथ्वी के समान ही लोकों की संख्या भी सात: भू, भु:, स्व: मह:, जन, तप और सत्य।
- सात ही तरह के पाताल: अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल।
- द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है।
- प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं: गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि जो कि शुद्ध माने जाते हैं।
- प्रमुख क्रियाएं भी सात ही हैं: शौच, मुखशुद्धी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा।
- पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात ही है: ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्रि तथा अतिथि।
- इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात: ईष्र्या, का्रोध, मोह, द्वेष, लोभ, घृणा तथा कुविचार।
- वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान: मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्रि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान, और मानसिक स्नान।
7- अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों, विद्वानों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों तथा सात वचनों को शामिल किया है। अपने परिजनों, संबधियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हुए सात वचनों को निभाने का प्रण करते हैं यानि कि संकल्प करते हैं। मन ही मन ईश्वर से कामना करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो। हर दिन उसमें संगीत के सातों स्वरों का माधुर्य हो। जीवन में सातों रंगों का प्रकाश फै ले। दोनों एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याती सातों लोकों में सदैव बनी रहे।
इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है। जब दो इंसान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। हर परिस्थिति में एक - दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है। संकल्प या वचन सदैव देव स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है। इसीलिये विवाह के साथ फेरे और वचन अग्रि के सामने लिये जाते हैं। फेरे सात ही क्यों लिये जाते हैं इसका कारण सात अंक की महत्ता के कारण होता है। शास्त्रों में सात की बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है। तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दुल्हा आगे रहता है। किन्तु फिर भी आजकल विवाह में सात फेरों का ही अधिक प्रचलन है। हमारी संस्कृति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का कितना महत्व है आइये जाने.....
- सूर्य प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात।
- संगीत में स्वरों की संख्या की संख्या भी सात: सा, रे, गा, मा, प , ध, नि।
- पृथ्वी के समान ही लोकों की संख्या भी सात: भू, भु:, स्व: मह:, जन, तप और सत्य।
- सात ही तरह के पाताल: अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल।
- द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है।
- प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं: गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि जो कि शुद्ध माने जाते हैं।
- प्रमुख क्रियाएं भी सात ही हैं: शौच, मुखशुद्धी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा।
- पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात ही है: ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्रि तथा अतिथि।
- इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात: ईष्र्या, का्रोध, मोह, द्वेष, लोभ, घृणा तथा कुविचार।
- वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान: मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्रि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान, और मानसिक स्नान।
7- अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों, विद्वानों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों तथा सात वचनों को शामिल किया है। अपने परिजनों, संबधियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हुए सात वचनों को निभाने का प्रण करते हैं यानि कि संकल्प करते हैं। मन ही मन ईश्वर से कामना करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो। हर दिन उसमें संगीत के सातों स्वरों का माधुर्य हो। जीवन में सातों रंगों का प्रकाश फै ले। दोनों एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याती सातों लोकों में सदैव बनी रहे।
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