माता अंजनी के संबंध पुराणों में उल्लेख है कि वे पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। पुंजिकस्थला परम सुंदरी एवं स्वभाव बहुत ही चंचल थी। इसी अतिचंचलता के वश वह कई बार दूसरों को रुष्ट कर दिया करती थीं। ऐसे ही एक बार पुंजिकस्थला ने तपस्या में लीन एक परम तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी। ऋषि की तपस्या भंग हो गई। ऋषि अति क्रोधित हो गए और उन्होंने अप्सरा को श्राप दे दिया कि वानरी की तरह स्वभाव करने वाली जा तू वानरी हो जा। ऐसा श्राप मिलने पर पुंजिकस्थला को अपनी गलती पर पश्चाताप हुआ और वह ऋषि से क्षमा याचना करने लगी। ऋषि का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने कहा श्राप का प्रभाव तो टल नहीं सकता परंतु तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा। तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगो-युगो तक अमर हो जाएगा। हुआ भी वैसा ही वह अप्सरा पुंजिकस्थला ने वानरराज कुंजर के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। वानरराज ने नाम उसका कन्या का नाम रखा अंजनी। अंजनी का विवाह वानरराज केसरी के साथ हुआ और उन्होंने चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा को महावीर हनुमान को जन्म दिया।
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