शनिवार, 18 सितंबर 2010

रूठा है तो मना लेंगे!


रूठे हुए को मनाने के बीच सबसे बड़ी अड़चन होता है अहंकार! अगर यह अहंकार नहीं होता तो हजारों परिवार टूटने से बच जाते, रिश्तों के बीच खटास नहीं आती। अपने अहंकार को पोषित करने के लिए व्यक्ति अपनों के साथ रिश्तों को ताक पर रख देता है। इस एक अवगुण को दूर करें तो रिश्ते टूटने से बच सकते हैं।
यकीन मानिए, यदि आगे बढ़कर आपने 'सॉरी' कह दिया तो आप छोटे नहीं होंगे बल्कि इससे आपका बड़प्पन ही झलकेगा, फिर चाहे बात दोस्ती के रिश्तों की हो या पति-पत्नी के बीच संबंधों की।
हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था। हमारे बगल में होने के कारण उसके घर की बातें हमें अनायास ही सुनाई पड़ती थीं। पिता व पुत्र के बीच जैसा सम्मानजनक रिश्ता होना चाहिए, वैसा उस घर में नहीं था।
बेटा अपने पिता से सीधे मुँह बात तक नहीं करता था। अपने पिता का कुछ भी पूछना या सलाह देना उसे गवारा नहीं था। उनके कुछ पूछते ही वह उबल पड़ता था कि 'अब मैं बड़ा हो गया हूँ। अपना भला-बुरा समझता हूँ। बात-बात पर मुझे टोका मत कीजिए।'
कुछ समय बाद उसकी शादी हुई और जब वह पिता बना, तब उसे अहसास हुआ कि माँ-बाप अपने बच्चों का हमेशा ही भला चाहते हैं। पर जब उसे होश आया तो बहुत देर हो चुकी थी। उसके पिता इस दुनिया से दूर जा चुके थे।
अब उसे यही दर्द सालता रहता है कि मैंने अपने अहंकार के चलते अपने पिता से बदसलूकी की। मैंने अदब से, नम्रता से पिता को समझने की कोशिश व अपनी बात समझाने की कोशिश क्यों नहीं की!
अक्सर किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष कहते हैं कि गलती दूसरे पक्ष की है और चूँकि गलती उनकी है तो उनको ही झुकना चाहिए। यह तनातनी और गुस्सा सेहत पर भी बुरा असर डालता है। आपने देखा होगा कैसे बच्चे आपस में लड़ते हैं और बाद में सब भूलकर फिर खेलने लग जाते हैं। उनका अनुसरण करने की जरूरत हमें भी है।
आपके अपने अनमोल हैं। प्यार का भी कोई मूल्य नहीं होता। इसे तो बस प्यार और सम्मान देकर ही पाया जा सकता है। पति-पत्नी के बीच अहं का टकराव, मामूली-सी बात पर तनातनी आम बात हो गई है। इस पर कोई झुकने को भी तैयार नहीं होता और कई-कई दिनों तक बातचीत बंद हो जाती है।
याद रखें, इससे आपके बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है। यदि आप आगे बढ़कर अपने से रूठे हुए को मनाएँगे तो उन्हें भी अपनी गलती का अहसास होगा। इससे प्यार में इज़ाफा ही होगा। इस बात का भी ध्यान रखें कि पड़ोसियों से जब भी मिलें, मुस्कराकर मिलें।
अगर आपके और उनके स्वभाव नहीं मिलते तो सम्मानजनक दूरी बनाएँ। रिश्ता कोई भी हो, आपसे कोई रूठा हुआ है तो उसे मनाने के लिए आप ही पहल करें। यदि आप उससे मिल नहीं सकते तो कम से कम फोन तो कर ही सकते हैं।
हर किसी को उसकी अच्छाइयों और बुराइयों दोनों के साथ स्वीकार करें। हर समस्या को धीरज के साथ बैठकर पूरी तहजीब के साथ, बिना किसी गुस्से के, गरिमामय वातावरण बनाए रखते हुए सुलझाएँ।