गुरुवार, 23 सितंबर 2010

लोहागर : यहां अस्थियां पानी में ही गल जाती हैं



भारत में एक से बढ़कर एक तीर्थ हैं, बस फर्क सिर्फ इतना है कि कोई वैष्णव है तो कोई शैव। वहीं सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी के तीर्थ अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं।
पर एक तीर्थ ऐसा भी है कि जिस की रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं। वह तीर्थ है- लोहागर।
विशेषता- यह राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह क्षेत्र पिण्ड-दान और अस्थि-विसर्जन के लिए भी विख्यात है।
यहां की विशेषता है कि यहां विसर्जित अस्थियां पानी में ही गल जाती हैं। यहां चैत्र में सोमवती अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या को मेला लगता है।
मुख्य तीर्थ- यहां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं। कहा जाता है कि इस पर्वत के नीचे ब्रह्मह्लद है। ये धाराएं उसी में से निकली हैं।
यहां के प्रधान देवतासूर्य हैं। सूर्य कुण्ड के आसपास 45 मंदिर और हैं। लोहागर की परिक्रमा भाद्रपद-कृष्णा 9 से पूर्णिमा तक होती है।
कथा- ब्रह्मह्लद तीर्थ देवताओं का प्रिय तीर्थ था। कलयुग में पापी इसमें स्नान करके इसे अपवित्र न कर दें इसलिए सभी ने इसकी रक्षा करने के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की।
ब्रह्माजी ने हिमालय के पुत्र केतु को यहां भेजा। केतु ने अपनी आराधना से यहां के अधिदेवता को प्रसन्न किया और तीर्थ को आच्छादित कर लिया। इस प्रकार ब्रह्मह्लद तीर्थ पर्वत के नीचे गायब हो गया पर उसकी सात धाराएं पर्वत के नीचे से बहने लगीं। वे सातों धाराएं आज भी मौजूद हैं।
महाभारत के युद्ध के बाद पाण्डवों के मन में महासंहार का बड़ा दुख था। वे पवित्र होना चाहते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि तीर्थों की यात्रा करते समय भीमसेन की अष्टधातु की गदा जहां गलकर पानी हो जाए समझ लेना कि वहां सब लोग शुद्ध हो गये हैं।
पाण्डव हर तीर्थ में अपने शस्त्र धोते थे। एकायक यहां शस्त्र धोते ही भीमसेन की गदा सहित सभी शस्त्र पानी हो गए। इसलिए तभी से इस तीर्थ का नाम लोहागर पड़ गया।
कैसे पहुचें- पश्चिम रेलवे की एक लाइन राजस्थान में सवाई माधोपुर से लुहारू तक गई है। इसी लाइन पर सीकर या नवलगढ़ स्टेशन पड़ता है। बस यही लोहागर का नजदीकी स्टेशन है। यहां से तीर्थ स्थल तक जाने के लिए आसानी से साधन मिल जाते हैं।

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