रविवार, 31 अक्टूबर 2010

धनतेरस: सेहत, दौलत व जिंदगी की कद्र का संदेश


कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, जिसमें आरोग्य के देवता धनवन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसीलिए भगवान धनवन्तरी की जयंती हर साल दीपावली से पहले धनवन्तरी त्रयोदशी के रूप में मनाई जाती है। यह दिन धनतेरस के रुप में भी प्रसिद्ध है।
धनवन्तरी जयंती से जुड़ी पौराणिक मान्यता का संदेश है कि हर व्यक्ति अपनी अच्छाइयों-बुराइयों, गुण-दोषों का मंथन करता रहे। तभी आपकी खूबियां और गुण निखरेगें, जो आखिर में आपकी जिंदगी में सुख, शांति, धन, स्वास्थ्य, संतोष रुपी अमृत बरसाएगें।
भगवान धनवन्तरी को आयुर्वेद विद्या और आरोग्य का देवता माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान धनवन्तरी ने समुद्र मंथन से प्रकट होने के बाद देवताओं को अमृतरूपी औषधि को पिलाकर वृद्धावस्था, रोगों व मृत्यु से मुक्त किया। इसलिए धनवन्तरी त्रयोदशी को वैद्य समुदाय मुख्य रूप से मनाता है।
इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं में यमराज ने अपनी बहन यमुना को वर दिया था कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन उनके निमित्त दीपदान करने से मनुष्य की अकाल मृत्यु नहीं होगी। इस दिन यम को दक्षिण दिशा में दीपदान करने की परंपरा है।
धनतेरस पर्व को धन अर्जित करने का शुभ दिन भी माना गया है। इस प्रकार यह धन की उपासना का पर्व है। इस दिन धन के देवता कुबेर की पूजा भी की जाती है। धन, संपत्ति, व्यवसाय की पूजा की जाती है।
दीपावली के पांच दिवसीय महापर्व का पहला पर्व धनतेरस रोग और भय रूपी अलक्ष्मी की विदाई की जाती है। साथ ही सुख-संपत्ति, ऐश्वर्य, सद्बुद्धि व स्वास्थ्य रूपी कमला लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी शुरू हो जाती है। इस प्रकार अलक्ष्मी के स्थान पर कमला लक्ष्मी का आगमन होने लगता है, इसीलिए यह धनतेरस कहलाती है। इस पर्व के एक दिन पहले द्वादशी की रात से महिलाएं कूड़ा-करकट समेट कर तेरस के दिन सूर्योदय के पहले घर से बाहर फेंककर उस पर दीप प्रज्जवलित करती हैं, इससे जाती हुई अलक्ष्मी का सम्मान व आती हुई कमला लक्ष्मी का स्वागत दोनों हो जाते हैं।

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