शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

चिड़िया ने दिया क़ीमती सबक़

किसान ने एक दिन छोटी-सी चिड़िया पकड़ ली। वह इतनी छोटी थी कि किसान की एक मुट्ठी में दो चिड़ियां समा सकती थीं। किसान कहने लगा कि वह उसे पकाकर खा जाएगा। चिड़िया बोली, ‘कृपा करके मुझे छोड़ दो। वैसे भी मैं इतनी छोटी हूं कि तुम्हारे एक कौर के बराबर भी नहीं होऊंगी।’
किसान ने जवाब दिया, ‘लेकिन तुम्हारा मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। और हां, मैंने कहावत सुनी है कि कुछ नहीं से कुछ भी होना बेहतर है।’ उसकी बात सुनकर चिड़िया बोली, ‘अगर मैं तुम्हें ऐसा मोती देने का वादा करूं, जो शुतुरमुर्ग के अंडे से भी बड़ा हो, तो क्या तुम मुझे आÊाद कर दोगे?’ उसकी बात सुनकर किसान बहुत ख़ुश हो गया और तत्काल उसने मुट्ठी खोलकर उसे उड़ा दिया।
चिड़िया आÊाद होते ही कुछ दूर पर एक पेड़ की थोड़ी ऊंची डाल पर जा बैठी, जहां तक किसान का हाथ नहीं पहुंच पाता था। किसान ने उसे बैठा देखकर बड़ी बेसब्री से कहा, ‘जाओ, जल्दी जाओ, मेरे लिए वह मोती लेकर आओ।’ चिड़िया हंसकर बोली, ‘वह मोती तो मुझसे भी बड़ा है, मैं उसे कैसे ला सकती हूं?’ किसान ने ग़ुस्से और खीझ से कहा, ‘तुम्हें लाना ही पड़ेगा, तुमने वादा किया है।’
चिड़िया वहीं बैठी रही। उसने जवाब दिया, ‘मैंने तुमसे कोई वादा नहीं किया था। मैंने सिर्फ़ यही कहा था कि अगर मैं ऐसा वादा करूं, तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे। और इतना सुनते ही तुम लालच में अंधे हो गए थे। ’ उसकी बात सुनकर किसान हाथ मलने लगा। चिड़िया बोली, ‘लेकिन दुखी मत हो, मैंने आज तुम्हें वह पाठ पढ़ाया है, जो ऐसे हÊार मोतियों से Êयादा क़ीमती है। हमेशा कुछ भी करने से पहले सोच-विचार करो।’

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