यमराज का नाम जेहन में आते ही एक भयानक और खुंखार तस्वीर सामने आती है जिसे बड़ा ही निर्दयी और कष्ट देने वाला देवता कहा गया है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9ZuMDbZAIXLjnRypGNFqofBCCvjgtwZoAUL7OBk-RhwfQoSwCkhn2XJO0xLhSpx-TMSTrOSj99raykAV5w1NCgHe8idWwnSNdiMq3CNWHX27eQmJt6HsISmnX1uWQoaOdCjNBYmD5zLgI/s320/upload_yamraj_f.jpg)
यमराज को मृत्यु का देवता भी कहते हैं। साथ ही यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि जिस देवता को हम धर्मराज की उपमा देकर पूजते हैं, उन्हीं को मृत्यु का देव कहते हुए उनकी चर्चा तक करना भी पसंद नहीं करते?
और यदि यमराज सचमुच इतने ही निर्दयी देव हैं तो उन्हें धर्मराज क्यों कहा जाता है?
एक ही देवता के साथ दो अलग-अलग विसंगतियां क्यों?
यमराज को कठोर हृदय का देवता कहा जाता है। कहते हैं कि ये लोगों के मरने के बाद उनके कर्मों के अनुसार उन्हें दण्ड देते हैं। ये सब बातें इसी दुनिया के लोग आपस में करते हैं जिससे यमराज के नाम का हौव्वा खड़ा हो गया है।
वे तो बस लोगों को उनके अच्छे-बुरे को देखते हुए दण्ड देते हैं। यही कारण है कि इन्हें धर्मराज कहा जाता है क्योंकि ये धर्मानुसार ही बिना किसी भेदभाव के लोगों को उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग-नरक का अधिकारी बनाते हैं अथवा किसी नई योनि में दोबारा अपने पाप भोगने के लिए नया जन्म देते हैं।
चूंकि ये कर्मों का उचित लेखा-जोखा करके ही कर्म दण्ड देते हैं अर्थात धर्मपूर्वक जीव के साथ न्याय करते हैं। ये परलोक के जज हैं इसलिए यमराज को धर्मराज कहा जाता है।
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यमराज को मृत्यु का देवता भी कहते हैं। साथ ही यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि जिस देवता को हम धर्मराज की उपमा देकर पूजते हैं, उन्हीं को मृत्यु का देव कहते हुए उनकी चर्चा तक करना भी पसंद नहीं करते?
और यदि यमराज सचमुच इतने ही निर्दयी देव हैं तो उन्हें धर्मराज क्यों कहा जाता है?
एक ही देवता के साथ दो अलग-अलग विसंगतियां क्यों?
यमराज को कठोर हृदय का देवता कहा जाता है। कहते हैं कि ये लोगों के मरने के बाद उनके कर्मों के अनुसार उन्हें दण्ड देते हैं। ये सब बातें इसी दुनिया के लोग आपस में करते हैं जिससे यमराज के नाम का हौव्वा खड़ा हो गया है।
वे तो बस लोगों को उनके अच्छे-बुरे को देखते हुए दण्ड देते हैं। यही कारण है कि इन्हें धर्मराज कहा जाता है क्योंकि ये धर्मानुसार ही बिना किसी भेदभाव के लोगों को उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग-नरक का अधिकारी बनाते हैं अथवा किसी नई योनि में दोबारा अपने पाप भोगने के लिए नया जन्म देते हैं।
चूंकि ये कर्मों का उचित लेखा-जोखा करके ही कर्म दण्ड देते हैं अर्थात धर्मपूर्वक जीव के साथ न्याय करते हैं। ये परलोक के जज हैं इसलिए यमराज को धर्मराज कहा जाता है।
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