बुधवार, 17 नवंबर 2010

क्यों मनाते हैं बकरीद?

बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक वर्ष में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी है बकरीद।

बकरीद पर अल्लाह को बकरे की कुर्बानी दी जाती है। पहली ईद यानी मीठी ईद समाज और राष्ट्र में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है।
दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुर्बानी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए।
कुर्बानी का मतलब है दूसरों की रक्षा करना
कोई व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वह जिस समाज का हिस्सा है, जिस शहर में रहता है और जिस देश का वह निवासी है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा करें। इसके लिए यदि उसे अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देना पड़े तब भी वह पीछे ना हटे।
तीन हिस्से किए जाते हैं कुर्बानी के...
इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से ईद-उल-जुहा पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि पैगम्बर हजरत को अल्लाह ने हुक्म दिया कि अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बान मेरे लिए कुर्बान कर दो। पैगंबर साहब को अपना इकलौता बेटा इस्माइल सबसे अधिक प्रिय था। खुदा के हुक्म के अनुसार उन्होंने अपने प्रिय इस्माइल को कुर्बान करने का मन बना लिया। इस बात से इस्माइल भी खुश था वह अल्लाह की राह में कुर्बान होगा।
बकरीद के दिन ही जब कुर्बानी का समय आया तब इस्माइल की जगह एक दुम्बा कुर्बान हो गया। अल्लाह ने इस्माइल को बचा लिया और पैगंबर साहब की कुर्बानी कबुल कर ली। तभी से हर साल पैगंबर साहब द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में बकरीद मनाई जाने लगी।

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