भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। बलि दानी था। वह किसी को खाली हाथ नहीं जाने देता था। इसलिए उसने जब भगवान वामन से तीन पग जमीन लेने को कहा। वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया। और कहा तीसरा पग आप मेंरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया।
बलि ने वर मांगा कि वे उसके द्वारपाल बनकर रहें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा? संयोंग से उस समय देवर्षि नारद उनसे मिलने आए। लक्ष्मीजी ने उन्हें अपनी समस्या बताई। नारदजी ने उपाय बताया। कहा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उसे अपना भाई बना लो। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र की बदौलन उन्हें स्वामी पुन: मिल गए।
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