शनिवार, 13 नवंबर 2010

भागवत: ११६ परिश्रम व पुरुषार्थ के प्रतीक हैं श्रीराम व श्रीकृष्ण


जीवन को सार्थक बनाने के लिए चार बातों का ध्यान रखना अतिआवश्यक है। यह लिखा है भागवत में। सबसे प्रमुख है पारदर्शिता। महाभारत की एक छोटी सी घटना यदि आप याद करें कि कुंती ने इस बात को छिपाया था कि कर्ण मेरा सबसे बड़ा बेटा है। कुंती ने बात छिपाई और कुंती ने कीमत चुकाई और कर्ण ने भी चुकाई। तो पारदर्शिता बनाए रखिए जीवन में। दूसरा हमारा जो व्यावसायिक जीवन होता है उसमें परिश्रम के बिना कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

भगवान विष्णु के 24 अवतार हुए हैं जिनमें दो पूर्णावतार हैं-श्रीराम और श्रीकृष्ण। यदि आप इन दोनों अवतारों को देखें तो इन्होंने संदेश दिया है कि जीवन में परिश्रम बनाए रखिएगा। श्रीराम की कथा में और श्रीकृष्ण की कथा में जब आप इनके जीवन को टटोलेंगे तो आपको आश्चर्य होगा के कोई इतना भी परिश्रम कर सकता है और जो परिश्रमी होंगे, जो पुरुषार्थी होंगे, जो अपने परिश्रम से अर्जित यश, कीर्ति, धन को अपने घर में लाएंगे वो शांत भी होंगे। तीसरी बात है हमारे परिवार में प्रेम बना रहे। परिवार प्रेम से चलता है और राम और कृष्ण प्रेम के देवता हैं। चौथी बात हमारे निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखिएगा। हमारे निजी जीवन में पवित्रता है तो परमात्मा बहुत जल्दी उतरकर आएंगे।
अब तक के सात स्कंधों में हमने प्रतीक रूप से क्या पाया? प्रथम स्कंध में शिष्यों का अधिकार बताया गया था। अधिकार के बिना ज्ञान शोभा नहीं देता। अनाधिकारी मनुष्य ज्ञान का दुरुपयोग करता है। दूसरे स्कंध में ज्ञान का उपदेश दिया है। तृतीय स्कंध में ज्ञान को जीवन में किस प्रकार उतारना है यह कथा सुनाई गई है। चौथे स्कन्ध में चार पुरुषार्थ की कथा बताई गई है। पांचवें स्कन्ध में ज्ञानी परमहंसों के और भागवत परमहंसों के लक्षण बताए गए हैं। इसके बाद छठे स्कंध में पुष्टि की कथा आई है। सातवें स्कंध में वासना की कथा सुनाई है और बताया कि प्रह्लाद की सद्वासना है, मनुष्य की मिश्र वासना है और हिरण्यकष्यपु की असत् वासना है। अष्टम स्कंध में मन्वन्तर लीला का वर्णन है।

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