शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

भागवत: ११४- ११५: गृहस्थी के केंद्र में भगवान को रखें

भागवत में हम युधिष्ठिर-नारद का संवाद पढ़ रहे हैं। नारद मुनि युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं। धर्मराज युधिष्ठिर नारद मुनि से पूछ रहे हैं- जिसका मन गृहस्थी में लगा हुआ हो, ऐसे पुरूष को सहज ही वैराग्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है? कृपया ये बताइये? तब नारदजी ने कहा कि गृहस्थ को चाहिए वह भगवान श्रीकृष्ण की उपासना में तल्लीन रहे। उसे अपने सब कार्य श्रीकृष्ण को अर्पण कर देना चाहिए।

गृहस्थ में रहने पर भी उसको चाहिए कि स्त्री, पुत्र, धन, संपत्ति आदि का अधिक मोह न रखें।गृहस्थी चले कैसे, गृहस्थी बसे कैसे, गृहस्थी दिव्य कैसे हो? ये छोटी-मोटी परेशानियों में कैसे भगवान की भक्ति बची रहे। अब युधिष्ठिर प्रश्न पूछ रहे हैं। उत्तर मिला- पहले भरोसा रखें। गृहस्थी भगवान के भरोसे चलेगी। भगवान को केंद्र में रखो गृहस्थी में कोई परेशानी नहीं आएगी।प्रश्न पूछा तो युधिष्ठिर को उत्तर दे रहे हैं नारद- देखो गृहस्थी को चलाना है तो चार तरह के आश्रम होते हैं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और उसके बाद संन्यास आश्रम । प्रयास करना कि इस आश्रम में भगवान हमारे घर आएं।
याद रखिएगा भगवान को बुलाना पड़ता है, भगवान को याद करिए जैसे भी करिए।ये बात नारदजी ने युधिष्ठिर को समझाई। शुकदेवजी बोले हे- राजा परीक्षित। इस प्रकार महर्षि नारद से धर्म का रहस्य श्रवण करके महाराज युधिष्ठिर अत्यंत प्रसन्न हुए तदं्तर उन्होंनें बड़ी श्रद्धा भक्ति से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की और फिर नारदजी महाराज की भी पूजा अर्चन कर उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए विदा किया।

भागवत को सुनें ही नहीं, जीवन में भी उतारें
नारदजी व युधिष्ठिर का प्रसंग सुनाने के बाद शुकदेवजी महाराज ने परीक्षित से कहा कि- हे राजा परीक्षित। देवता, असुर और मनुष्य आदि समस्त प्राणी जिन दक्षकन्याओं के वंश में उत्पन्न हुए, उनकी वंशावली मैंने आपको सुनाई। वर्णाश्रम धर्म का विवरण भी मैंने आपको सुनाया। इसका सुनना, सुनाना और पढऩा, पढ़ाना। सबको सुख शांति देने वाला है और इसी के साथ सातवां स्कंध समाप्त होता है।इस प्रकार विधान के अनुसार तीसरा दिन समाप्त होने जा रहा है। हम आज से भागवत पारायण के विश्राम स्थल के अनुसार चौथे दिन में प्रवेश कर रहे हैं। तो भगवान को साथ जोड़ते हुए प्रवेश करते हैं।

आज भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण का प्रवेश होने वाला है। ये मणिकांचन योग है। भगवान हमारी कथा में नहीं आ रहे हैं, बल्कि हमारे जीवन में आ रहे हैं। किसी का सौभाग्य होता है कि वसुदेव और देवकी बनते हैं और भगवान उनके घर जन्म लेते हैं। बड़ा परम सौभाग्य है कि कोई दशरथ बने, कौशल्या बने और भगवान जन्म लें। आज भगवान हमारे आंगन में जन्म ले रहे हैं। हमारे जो पुण्य रहे हैं, हमारे पितरों की कृपा रही है कि आज हमें ये दिन देखने को मिला है। इस आनंद का भरपूर लाभ उठाएं। भगवान अब पृष्ठ से निकलकर हमको पालने में नजर आएंगे तो तैयार रहिएगा।

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