पिछले अंक में हमने पढ़ा कि चंद्र ने अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का हरण कर लिया तब ब्रह्मा ने तारा को पुन: बृहस्पति को दिलाया। उसी दौरान तारा ने बुध को जन्म दिया। तब ब्रह्माजी ने उसके पिता के बारे में जानकर उसे चंद्र को दे दिया। बुध ने ईला से विवाह कर पुरुरवा को जन्म दिया। पुरुरवा सौन्दर्य से परिपूर्ण था। स्वर्ग की अप्सरा उर्वषी पुरुरवा की ओर आकर्षित हो गई। पुरुरवा और उर्वषी से छ: पुत्र उत्पन्न हुए थे। जिसमें गाधि राजा बाद में हुए।
गाधि की सत्यवती कन्या का विवाह ऋचिक ऋषि से हुआ। एक समय सत्यवती और उसकी माता को संतान की इच्छा हुई। ऋषि ने पत्नी के लिए ब्राह्मण मन्त्रों से और सास के लिए क्षत्रिय मन्त्रों से अभिमन्त्रित चरू मंगवाया और जब वे स्नान को गई तो मां बेटी ने चरू बदल लिए। फलस्वरूप यह हुआ कि सत्यवती के गर्भ से तो जमदग्नि और उनकी माता के गर्भ से विश्वामित्र उत्पन्न हुए। जमदग्नि ने रेणुका से विवाह करके उसके गर्भ से अंशुमान आदि अनेक तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें सबसे कनिष्ठ पुत्र परशुराम थे।
परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों द्वारा जमदग्नि ऋषि की हत्या करने से क्रोधित होकर उन्होंने इक्कीस बार धरती से क्षत्रियों का नाश कर दिया था। गाधि पुत्र परम तेजस्वी विश्वामित्र ने अपने तप बल से क्षत्रिय धर्म को छोड़कर ब्रह्म ऋषि का पद प्राप्त किया। उनके भी 100 पुत्र थे। पुरुरवा के पुत्र आयु के नहूष हुए और उनके कुल में आगे जाकर ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और राक्षसराज वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा से विवाह किया।
गाधि की सत्यवती कन्या का विवाह ऋचिक ऋषि से हुआ। एक समय सत्यवती और उसकी माता को संतान की इच्छा हुई। ऋषि ने पत्नी के लिए ब्राह्मण मन्त्रों से और सास के लिए क्षत्रिय मन्त्रों से अभिमन्त्रित चरू मंगवाया और जब वे स्नान को गई तो मां बेटी ने चरू बदल लिए। फलस्वरूप यह हुआ कि सत्यवती के गर्भ से तो जमदग्नि और उनकी माता के गर्भ से विश्वामित्र उत्पन्न हुए। जमदग्नि ने रेणुका से विवाह करके उसके गर्भ से अंशुमान आदि अनेक तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें सबसे कनिष्ठ पुत्र परशुराम थे।
परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों द्वारा जमदग्नि ऋषि की हत्या करने से क्रोधित होकर उन्होंने इक्कीस बार धरती से क्षत्रियों का नाश कर दिया था। गाधि पुत्र परम तेजस्वी विश्वामित्र ने अपने तप बल से क्षत्रिय धर्म को छोड़कर ब्रह्म ऋषि का पद प्राप्त किया। उनके भी 100 पुत्र थे। पुरुरवा के पुत्र आयु के नहूष हुए और उनके कुल में आगे जाकर ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और राक्षसराज वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा से विवाह किया।
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