गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

नववर्ष का तीसरा संकल्प - बनना है होनहार

नववर्ष पर लिए जाने वाले पांच संकल्पों में अच्छे स्वास्थ्य और धन प्राप्ति के अलावा तीसरा संकल्प भी हर इंसान की सफल ज़िंदगी में निर्णायक होता है। यह संकल्प है - विद्या यानि हर तरह से ज्ञान और दक्षता को प्राप्त करना।
व्यावहारिक रूप से विद्या पाने का मतलब मात्र किताबी ज्ञान नहीं। बल्कि तन, मन, विचार और व्यवहार से संपूर्णता को पाना है। असल में विद्या बुद्धि, चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करती है। यह व्यक्ति को दूरदर्शी, बुद्धिमान, विवेकवान बनाकर जीवन से जुड़े अहम फैसले लेने में मददगार साबित होती है। इस तरह अच्छे स्वास्थ्य और धन के साथ विद्या का भी ज़िंदगी में अहम योगदान होता है।
धर्म की दृष्टि से विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और सुख प्राप्त होते हैं। सार है कि विद्या व्यक्ति को गुणी, अहंकाररहित और विनम्र बना देती है, जिनसे व्यक्ति धर्म और कर्म के माध्यम से सभी सुख प्राप्त करने लायक बनता है।
नववर्ष में ध्यान रहे कि विफलता से बचने के लिए विद्या और ज्ञान को ही ढाल बनाएं। इसलिए बच्चों से लेकर बुजूर्ग हर कोई यह प्रण करें कि किसी न किसी रूप में अध्ययन व स्वाध्याय को दिनचर्या का और लोक व्यवहार को जीवनशैली का अंग बनाना है।

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