सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस कानून का बहुत-सी महिलाएँ दुरुपयोग करने लगी हैं। वे या तो झूठे मुकदमे दर्ज कराती हैं या बात बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करती हैं।
कृष्णपाल सक्सेना और शोभा घोष मेरठ के एक निजी प्रकाशन संस्थान में नौकरी करते थे। कार्यस्थल की मुलाकातें इतनी अधिक बढ़ीं कि दोनों में प्यार हो गया और अपने-अपने परिजनों का विरोध बर्दाश्त करते हुए दोनों विवाह-बंधन में बँध गए। कुछ वर्ष दोनों के बीच सब कुछ ठीक-ठाक रहा, दो बच्चे भी हुए, लेकिन एक दिन एक मामूली नोकझोंक ने इतना विकराल रूप धारण किया कि बात थाने तक पहुँच गई।
शोभा ने आरोप लगाया कि कृष्णपाल व उसके परिजन दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करते हैं और उससे मारपीट करते हैं। आरोप निराधार था, मगर यह साबित करने की जिम्मेदारी कृष्णपाल व उसके परिवार पर थी। उन्होंने पुलिस को बहुत समझाया और यहाँ तक कहा कि कृष्णपाल के माता-पिता व भाई-बहन तो उसके साथ भी नहीं रहते हैं लेकिन पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके कृष्णपाल व उसके परिजनों को जेल भेज दिया। खैर, जैसे-तैसे जमानत तो हो गई लेकिन कृष्णपाल ओर शोभा का तलाक हो गया और घर टूटने की परेशानियाँ उनके दो बच्चों को झेलनी पड़ीं।
दहेज व घरेलू हिंसा की झूठी शिकायतों के पीड़ित केवल कृष्णपाल सक्सेना ही नहीं हैं। एक सर्वेक्षण, जिसमें विख्यात पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी भी शामिल थीं, के अनुसार दहेज विरोधी कानून के तहत जितने मुकदमे दर्ज कराए जाते हैं उनमें से अधिकांश झूठे व निराधार होते हैं।
इसलिए काफी अर्से से यह माँग की जा रही थी कि दहेज विरोधी कानून में इस किस्म के परिवर्तन किए जाएँ कि उसके दुरुपयोग को रोका जा सके, लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब लगता है कि सरकार इस पर कुछ विचार करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ताजे आदेश में केंद्र सरकार से कहा है कि वह दहेज विरोधी कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा-498 ए) पर पुनर्विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस कानून का अधिकांश महिलाएँ दुरुपयोग करती हैं। वे या तो झूठे मुकदमे दर्ज कराती हैं या बात बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करती हैं।
अधिकांश महिलाएँ न केवल अपने पति के विरुद्ध बल्कि तमाम ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता के मनगढ़ंत आरोप पुलिस थाने में लगाती हैं।
न्यायाधीश दलवीर भंडारी और न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने कहा- 'हमारे सामने इस किस्म की शिकायतें बड़ी संख्या में आती हैं जिनमें से अधिकांश निराधार होती हैं और जिन्हें गलत इरादों से दर्ज कराया गया होता है।'
संभवतः यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड सहिता की धारा 498 ए के तहत जो शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं उन पर प्रशासनिक एजेंसियों को बहुत ध्यानपूर्वक काम करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अदालतों को भी वैवाहिक विवादों में वास्तविकताओं और संभावनाओं को मद्देनजर रखना चाहिए।
कृष्णपाल सक्सेना और शोभा घोष मेरठ के एक निजी प्रकाशन संस्थान में नौकरी करते थे। कार्यस्थल की मुलाकातें इतनी अधिक बढ़ीं कि दोनों में प्यार हो गया और अपने-अपने परिजनों का विरोध बर्दाश्त करते हुए दोनों विवाह-बंधन में बँध गए। कुछ वर्ष दोनों के बीच सब कुछ ठीक-ठाक रहा, दो बच्चे भी हुए, लेकिन एक दिन एक मामूली नोकझोंक ने इतना विकराल रूप धारण किया कि बात थाने तक पहुँच गई।
शोभा ने आरोप लगाया कि कृष्णपाल व उसके परिजन दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करते हैं और उससे मारपीट करते हैं। आरोप निराधार था, मगर यह साबित करने की जिम्मेदारी कृष्णपाल व उसके परिवार पर थी। उन्होंने पुलिस को बहुत समझाया और यहाँ तक कहा कि कृष्णपाल के माता-पिता व भाई-बहन तो उसके साथ भी नहीं रहते हैं लेकिन पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके कृष्णपाल व उसके परिजनों को जेल भेज दिया। खैर, जैसे-तैसे जमानत तो हो गई लेकिन कृष्णपाल ओर शोभा का तलाक हो गया और घर टूटने की परेशानियाँ उनके दो बच्चों को झेलनी पड़ीं।
दहेज व घरेलू हिंसा की झूठी शिकायतों के पीड़ित केवल कृष्णपाल सक्सेना ही नहीं हैं। एक सर्वेक्षण, जिसमें विख्यात पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी भी शामिल थीं, के अनुसार दहेज विरोधी कानून के तहत जितने मुकदमे दर्ज कराए जाते हैं उनमें से अधिकांश झूठे व निराधार होते हैं।
इसलिए काफी अर्से से यह माँग की जा रही थी कि दहेज विरोधी कानून में इस किस्म के परिवर्तन किए जाएँ कि उसके दुरुपयोग को रोका जा सके, लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब लगता है कि सरकार इस पर कुछ विचार करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ताजे आदेश में केंद्र सरकार से कहा है कि वह दहेज विरोधी कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा-498 ए) पर पुनर्विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस कानून का अधिकांश महिलाएँ दुरुपयोग करती हैं। वे या तो झूठे मुकदमे दर्ज कराती हैं या बात बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करती हैं।
अधिकांश महिलाएँ न केवल अपने पति के विरुद्ध बल्कि तमाम ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता के मनगढ़ंत आरोप पुलिस थाने में लगाती हैं।
न्यायाधीश दलवीर भंडारी और न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की खंडपीठ ने कहा- 'हमारे सामने इस किस्म की शिकायतें बड़ी संख्या में आती हैं जिनमें से अधिकांश निराधार होती हैं और जिन्हें गलत इरादों से दर्ज कराया गया होता है।'
संभवतः यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड सहिता की धारा 498 ए के तहत जो शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं उन पर प्रशासनिक एजेंसियों को बहुत ध्यानपूर्वक काम करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अदालतों को भी वैवाहिक विवादों में वास्तविकताओं और संभावनाओं को मद्देनजर रखना चाहिए।
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