महाभारत में कई ऐसे पात्र हैं जो अलग-अलग बातों के लिए जानें जाते हैं। ऐसे ही एक पात्र हैं कर्ण, जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध हैं। कर्ण को सूर्यपुत्र भी कहते हैं। कर्ण के जन्म का पूरा वृतांत महाभारत के आदिपर्व में है।
यदुवंशी राजा शूरसेन की एक कन्या थी जिसका नाम पृथा था। इस कन्या को शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुंतीभोज को दे दिया। इस प्रकार पृथा कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। कुंती जब छोटी थी तो ऋषियों की सेवा करने में उसे बड़ा आनन्द आता था। एक बार कुंती ने महर्षि दुर्वासा की बड़ी सेवा की। जिससे प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उसे एक मंत्र दिया और कहा कि इस मंत्र से तुम जिस देवता का आवाहन करोगी, उसी की कृपा से तुम्हें पुत्र उत्पन्न होगा। दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर कुंती को बड़ा आश्चर्य हुआ।
उसने एकांत में जाकर भगवान सूर्य का आवाहन किया। सूर्यदेव ने आकर तत्काल कुंती को गर्भस्थापन किया, जिससे तेजस्वी कवच व कुंडल पहने एक सर्वांग सुंदर बालक उत्पन्न हुआ। उस समय कुंती कुंवारी थी इसलिए उसने कलंक के भय से उस बालक को छिपाकर नदी में बहा दिया। रथ चलाने वाले अधिरथ ने उसे निकाला और अपनी पत्नी राधा के पास ले जाकर उसे पुत्र बना लिया। उसका नाम वसुषेण रखा गया। यही वसुषेण आगे जाकर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यदुवंशी राजा शूरसेन की एक कन्या थी जिसका नाम पृथा था। इस कन्या को शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुंतीभोज को दे दिया। इस प्रकार पृथा कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। कुंती जब छोटी थी तो ऋषियों की सेवा करने में उसे बड़ा आनन्द आता था। एक बार कुंती ने महर्षि दुर्वासा की बड़ी सेवा की। जिससे प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उसे एक मंत्र दिया और कहा कि इस मंत्र से तुम जिस देवता का आवाहन करोगी, उसी की कृपा से तुम्हें पुत्र उत्पन्न होगा। दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर कुंती को बड़ा आश्चर्य हुआ।
उसने एकांत में जाकर भगवान सूर्य का आवाहन किया। सूर्यदेव ने आकर तत्काल कुंती को गर्भस्थापन किया, जिससे तेजस्वी कवच व कुंडल पहने एक सर्वांग सुंदर बालक उत्पन्न हुआ। उस समय कुंती कुंवारी थी इसलिए उसने कलंक के भय से उस बालक को छिपाकर नदी में बहा दिया। रथ चलाने वाले अधिरथ ने उसे निकाला और अपनी पत्नी राधा के पास ले जाकर उसे पुत्र बना लिया। उसका नाम वसुषेण रखा गया। यही वसुषेण आगे जाकर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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