बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

अगर परिवार में प्रेम जगाना हो तो....

इस समय हमारे पारिवारिक जीवन में जितनी समस्याएं चल रही हैं उसमें एक बड़ी समस्या है इमोशनल एप्सेंस। संवेदनाओं के अभाव के कारण घर के सदस्य एक दूसरे के प्रति रूखे और सूखे हो गए हैं। अब तो कई घरों में हो रही बातचीत सुन और देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी मॉल के काउंटर पर लेन-देन हो रहा है या किसी कॉर्पोरेट ऑफिस के केबिन में मीटिंग हो रही है या पेढ़ी पर ब्याज-बट्टे का हिसाब चल रहा है।
घर परिवार का हर सदस्य अपना सौदा खुटा रहा है। पिछले दिनों एक खबर सुनने में आई कि गर्भस्थ बालक की मुस्कान थ्री-डी स्केनिंग में फोटो के रूप में प्राप्त हुई है। चिकित्सा विज्ञान के जानकार लोगों का कहना है यह गर्भ में पलने वाले शिशु की संवेदना का मामला है। एक बात तो यह समझने जैसी है कि इसमें मुस्कान संवेदना की प्रतिनिधि क्रिया है। फिर बच्चे की मुस्कान तो और अद्भुत होती है। दरअसल बड़ा जब भी मुस्कराएगा समझ लीजिए बच्चे होने की तैयारी ही कर रहा होगा। अध्यात्म कहता है जैसे-जैसे समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे हम छोटे हो जाएंगे और जितने छोटे होंगे उतने ही विराट के प्रकट होने की संभावना बढ़ जाएगी। बल्कि छोटे होते-होते जितना खो जाएंगे बस उसके बाद फिर उसे पा जाएंगे जिसका नाम परमात्मा है।
वह बच्चा गर्भ में मुस्कराकर यही संदेश दे रहा है कि मैं भीतर जिसके भरोसे मुस्करा रहा हूं हम बाहर भी उसी के भरोसे प्रसन्न रह सकते हैं। यह एक तरह की बायो फीडबेक क्रिया है। जैसे मंदिरों में गुम्बज इसलिए बनाए गए ऊँकार का गुंजन कई गुना होकर हम पर लौट आए। इसी प्रकार भीतर की मुस्कान बाहर और बाहर की स्थितियां भीतर को बायो फीडबेक प्रक्रिया से व्यक्तित्व को शांत बनाने में काम आएगी और शांति जिस भी कीमत पर मिले हासिल कर लेना चाहिए। उस गर्भस्थ शिशु का यही संदेश है।
(www.webdunia.com)

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