गुरुवार, 31 मार्च 2011

क्यों युधिष्ठिर ने द्रोपदी को दावं पर लगा दिया?

शकुनि ने युधिष्ठिर से कहा अब तक तुम बहुत सा धन हार चुके हो। अगर तुम्हारे पास कुछ बचा हो तो दांव पर रखो। युधिष्ठिर ने कहा शकुनि मेरे पास बहुत धन है। उसे मै जानता हूं। तुम पूछने वाले कौन? मेरे पास बहुत धन है। मैं सब का सब दावं पर लगाता हूं। शकुनि ने पासा फेंकते हुए कहा यह लो जीत लिया मैंने। युधिष्ठिर ने कहा ब्राह्मण को दान की गई सम्पति को छोड़कर मैं सारी सम्पति दावं पर लगाता हूं।
शकुनि ने कहा लो यह दावं भी मेरा रहा। अब युधिष्ठिर ने कहा मेरे जिस भाई के कन्धे सिंह के समान है। जिनका रंग श्याम है और रूप बहुत सुन्दर है मैं अपने नकुल को दावं पर लगाता हूं। शकुनि ने कहा लो यह भी मेरा रहा। उसके बाद युधिष्ठिर ने सहदेव को दावं पर लगाया। शकुनि ने सहदेव को भी जीत लिया। युधिष्ठिर उसके बाद अर्जुन और भीम को भी दावं पर लगा दिया। युधिष्ठिर ने कहा कि मैं सबका प्यारा हूं।
मैं अपने आप को दांव लगता हूं। यदि मैं हार जाऊंगा तो तुम्हारा काम करूंगा। शकुनि ने कहा यह मारा और पासे फेंककर अपनी जीत घोषित कर दी। तुमने अपने को जूए में हराकर बड़ा अन्याय है क्योंकि अपने पास कोई चीज बाकि हो तब तक अपने आप को दावं पर लगाना ठीक नहीं। अभी तो तुम्हारे पास द्रोपदी है उसे दांव पर लगाकर अबकि बार दावं जीत लो। तब युधिष्ठिर ने द्रोपदी को दावं पर लगा दिया।

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