अक्रूरजी जब मथुरा जाने लगे, तब राजा धृतराष्ट्र के पास आए। अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि राजा अपने पुत्रों का पक्षपात करते हैं और भतीजों के साथ अपने पुत्रों का-सा बर्ताव नहीं करते! अब अक्रूरजी ने कौरवों की भरी सभा में श्रीकृष्ण और बलरामजी आदि का हितैशिता से भरा संदेश कह सुनाया। अक्रूरजी ने कहा-महाराज धृतराष्ट्रजी! आप कुरुवंशियों की उज्जवल कीर्ति को और भी बढ़ाइये।
यदि आप विपरीत आचरण करेंगे तो इस लोक में आपकी निन्दा होगी। इसलिए अपने पुत्रों और पाण्डवों के साथ समानता का बर्ताव कीजिए। इसलिए महाराज! यह बात समझ लीजिए कि यह दुनिया चार दिन की चांदनी है, सपने का खिलवाड़ है, जादू का तमाशा है और है मनोराज्य मात्र! आप अपने प्रयत्न से, अपनी शक्ति से चित्त को रोकिये, ममतावश पक्षपात न कीजिए। आप समर्थ हैं, समत्व में स्थित हो जाइये और इस संसार की ओर से उपराम शांत हो आइये।श्लोक पर बैठकर स्नान का कुुछ ही क्षणों राजा धृतराष्ट्र ने कहा आप मेरे कल्याण भले की बात कह रहे हैं जैसे मरने वाले को अमृत मिल जाए तो वह उससे तृप्त नहीं हो सकता वैसे ही मैं भी आपकी इन बातों से तृप्त नहीं हो रहा हूं।
फिर भी हमारे हितैशी अक्रूरजी! मेरे चंचल चित्त में आपकी यह प्रिय शिक्षा तनिक भी नहीं ठहर रही है क्योंकि मेरा हृदय पुत्रों की ममता के कारण अत्यन्त विषम हो गया है। जैसे स्फटिक पर्वत के शिखर पर एक बार बिजली कौंधती है और दूसरे ही क्षण अन्र्तध्यान हो जाती है। वही दशा आपके उपदेशों की है। अक्रूरजी! सुना है भगवान् पृथ्वी का भार उतारने के लिए यदुकुल में अवतीर्ण हुए हैं। ऐसा कौन पुरुष है। जो उनके विधान में उलट फेर कर सके उनकी जैसी इच्छा होगी वही होगा।इस प्रकार अक्रूरजी महाराज धृतराष्ट्र का अभिप्राय जानकर और कुरुवंशी स्वजन संबंधियों से प्रेम पूर्वक अनुमति लेकर मथुरा लौट आए।
यदि आप विपरीत आचरण करेंगे तो इस लोक में आपकी निन्दा होगी। इसलिए अपने पुत्रों और पाण्डवों के साथ समानता का बर्ताव कीजिए। इसलिए महाराज! यह बात समझ लीजिए कि यह दुनिया चार दिन की चांदनी है, सपने का खिलवाड़ है, जादू का तमाशा है और है मनोराज्य मात्र! आप अपने प्रयत्न से, अपनी शक्ति से चित्त को रोकिये, ममतावश पक्षपात न कीजिए। आप समर्थ हैं, समत्व में स्थित हो जाइये और इस संसार की ओर से उपराम शांत हो आइये।श्लोक पर बैठकर स्नान का कुुछ ही क्षणों राजा धृतराष्ट्र ने कहा आप मेरे कल्याण भले की बात कह रहे हैं जैसे मरने वाले को अमृत मिल जाए तो वह उससे तृप्त नहीं हो सकता वैसे ही मैं भी आपकी इन बातों से तृप्त नहीं हो रहा हूं।
फिर भी हमारे हितैशी अक्रूरजी! मेरे चंचल चित्त में आपकी यह प्रिय शिक्षा तनिक भी नहीं ठहर रही है क्योंकि मेरा हृदय पुत्रों की ममता के कारण अत्यन्त विषम हो गया है। जैसे स्फटिक पर्वत के शिखर पर एक बार बिजली कौंधती है और दूसरे ही क्षण अन्र्तध्यान हो जाती है। वही दशा आपके उपदेशों की है। अक्रूरजी! सुना है भगवान् पृथ्वी का भार उतारने के लिए यदुकुल में अवतीर्ण हुए हैं। ऐसा कौन पुरुष है। जो उनके विधान में उलट फेर कर सके उनकी जैसी इच्छा होगी वही होगा।इस प्रकार अक्रूरजी महाराज धृतराष्ट्र का अभिप्राय जानकर और कुरुवंशी स्वजन संबंधियों से प्रेम पूर्वक अनुमति लेकर मथुरा लौट आए।
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