बुधवार, 23 मार्च 2011

क्यों गुस्से से भर गया दुर्योधन?


हस्तिनापुर लौटने पर शकुनि ने धृतराष्ट्र के पास जाकर कहा मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि दुर्योधन का चेहरा उतर रहा है। वह क्रोध से जल रहा है। वह दिनोंदिन पीला पड़ता जा रहा है। आप उसके तनाव का कारण पता क्यों नहीं लगाते? धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को बुलवाया और पूछा तुम इतने गुस्से में क्यों हो शकुनि बता रहा है कि तुम किसी बात को लेकर परेशान हो? मुझे तो तुम्हारे गुस्से का कोई कारण समझ नहीं आ रहा है। क्या तुम अपने भाइयों या अपने किसी प्रिय व्यक्ति के कारण दुखी हो। दुर्योधन ने कहा-पिताजी मैं कायरों जैसा जीवन नहीं बिता सकता हूं।
मेरे मन में पांडवों से बदला लेने की आग धधक रही है। जिस दिन से मैंने युधिष्ठिर का महल और उसके जीवन का ऐश्चर्य देखा है। तब से मुझे खाना पीना अच्छा नहीं लगता। मेरे शत्रु के घर में इतना वैभव देखकर मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। मेरा मन बैचेन हो गया है। लोग सब ओर दिग्विजय कर लेते हैं लेकिन उत्तर की तरफ कोई नही जाता। लेकिन अर्जुन वहां से भी धन लेकर आया है। लाख-लाख ब्राह्मणों के भोजन कर लेने पर जो शंख ध्वनि होती थी। उसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। युधिष्ठिर के समान तो इन्द्र का ऐश्वर्य नहीं होगा। तब धृतराष्ट्र शकुनि के सामने ही बोले कि युधिष्ठिर जूए का शौकिन है। तुम उन्हें बुलाओ। मैं उन्हे हराकर छल से हराकर सारी सम्पति ले लुंगा।
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