सोमवार, 28 मार्च 2011

... और तब जूए का खेल शुरू हुआ

सुबह धृतराष्ट्र और सभी पांडव नई सभा को देखने गए। जूए में खिलाडिय़ों ने वहां सबका स्वागत किया। पांडवों ने सभा में पहुंचकर सभी से मिले। इसके बाद सभी लोग अपनी उम्र के हिसाब से अपने-अपने आसनों पर बैठे। मामा शकुनि ने सभी के सामने प्रस्ताव प्रस्तुत किया। उसने कहा धर्मराज यह सभा आपका ही इंतजार कर रही थी। अब पासे डालकर खेल शुरू करना चाहिए। युधिष्ठिर ने कहा राजन् जूआ खेलना पाप है। इसमें न तो वीरता के प्रदर्शन का अवसर है और न तो इसकी कोई निश्चित नीति है। संसार का कोई भी व्यक्ति जुआंरियों की तारिफ नहीं करता है।आप जूए के लिए क्यों उतावले हो रहे हैं?
आपको बुरे रास्ते पर चलाकर हमें हराने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। शकुनि ने कहा युधिष्ठिर देखो बलवान और शस्त्र चलाने वाले पुरुष कमजोर और शस्त्रहीन पर प्रहार करते हैं। जो पासे फेंकने में चतुर है। वह अनजान को तो आसानी से उस खेल में जीत लेगा। युधिष्ठिर ने कहा अच्छी बात है यह तो बताइये। यहां एकत्रित लोगों में से मुझे किसके साथ खेलना होगा। कौन दांव लगाएगा। कोई तैयार हो तो खेल शुरू किया जाए। दुर्योधन ने कहा दावं लगाने के लिए धन और रत्न तो मैं दूंगा। लेकिन मेरी तरफ से खेलेंगे मेरे शकुनि मामा। उसके बाद जूए का खेल शुरू हुआ। उस समय धृतराष्ट्र के साथ बहुत से राजा वहां आकर बैठ गए थे - भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य उनके मन में बहुत दुख था।
युधिष्ठिर ने कहा कि मैं सुन्दर आभुषण और हार दाव पर रखता हूं। अब आप बताइए आप दावं पर क्या रखते हैं? दुर्योधन ने कहा कि मेरे पास बहुत सी मणियां और धन हैं। मैं उनके नाम गिनाकर घमंड नहीं दिखाना चाहता हूं। आप इस दावं को जीतिए तो। दावं लग जाने पर पासों के विशेषज्ञ शकुनि ने हाथ में पासे उठाए और बोला यह दावं मेरा रहा । उसके बाद जैसे ही उसने पासे डाले वास्तव में जीत उसकी ही हुई। युधिष्ठिर ने कहा मेरे पास तांबे और लोहे की संदूको में चार सौं खजाने बंद है। एक-एक में बहुत सारा सोना भरा है मैं सब का सब पर दावं लगाता हूं। इस तरह धीरे-धीरे जूआ बढऩे लगा। यह अन्याय विदुरजी से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने युधिष्ठिर को समझाना शुरू किया।

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